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Shiv Katha.

भगवान शिव के द्वारा भक्ति  को परिभाषित करना


परम पिता परब्रह्म परमेश्वर भगवान शिव के पवित्र पावन चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मैं आगे के लेख को लिख रहा हूं ।


भगवान शिव का दक्ष प्रजापति के यज्ञ स्थल पर पहुंचना:-

जब वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को विध्वंस किया तो सभी देवताओं ने भगवान शिव से  क्षमा याचना की, क्षमा  के बाद देवताओं की प्रार्थना करने पर भगवान शिव यज्ञ स्थल पर पहुंचे ।

तो उन्होंने सारे देवताओं को जिनके अंग भंग हो गए थे ,उनके अंगों को  ठीक कर दिया , पूषा के उखड़े हुए दांत फिर से जम गए ,एवं अन्य देवताओं के जो अंग विच्छेद हो गए थे ,वह पुनः  पूर्व के समान  हो गए ।



तब भगवान शिव ने वीरभद्र से कहा कि जाओ, दक्ष प्रजापति का शव  ले आओ ,वीरभद्र दक्ष प्रजापति के शव को लेकर आए ,लेकिन तब भगवान शिव मुस्कुराए, और उन्होंने कहा की दक्ष प्रजापति का सर कहा हैॽ

दक्ष प्रजापति का पुन: जीवित  होना:-

तब वीरभद्र जी बोले कि प्रभु मैंने तो दक्ष प्रजापति के सर को हवन कुंड में डाल दिया था, इस पर भगवान शिव बोले कि किसी बकरे का सिर  ले आओ, और जब  बकरे सिर वीरभद्र जी लेकर आए, तो भगवान शिव ने बकरे के सर को दक्ष प्रजापति के धड़  से जोड़ दिया।


जब बकरे का सिर दक्ष प्रजापति के धड़ से जुड़ा तो दक्ष प्रजापति जीवित हो गए, और भगवान शिव से अपने किए हुए कर्मों के प्रति क्षमा मांगी।

भक्तों के प्रकार:-

भगवान शिव बोले कि दक्ष प्रजापति अब तुम्हारा मन निर्मल हो गया है ,अब तुम भक्ति के बारे में कुछ समझो ,मेरे भक्त तीन प्रकार के होते हैं , अर्थार्थी , जिज्ञासु और ज्ञानी। 


 ना योग से,  न तपस्या , न किसी भी प्रकार के कर्मकांड से मुझे नहीं पाया जा सकता ,यदि मुझे पाना हो तो केवल ज्ञान के द्वारा पा सकते हैं।


 मेरा दर्शन केवल ज्ञान की प्राप्ति द्वारा ही संभव है यह कहकर  भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति को आशीर्वाद दिया, तब दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की।


सारे देवताओं के द्वारा भगवान शिव की स्तुति:-

भगवान श्री शिव के परम वचन को सुनकर ब्रह्मा जी बोले हे नारद ,जब प्रभु इस प्रकार बोल रहे थे ,तो सारे देवता यह सुनकर मुग्ध हो गए,और प्रभु की जय -जयकार करने लगे ।


और भगवान विष्णु ने भी भगवान शिव की नाना प्रकार के  मंत्रो से स्तुति की, इससे भगवान भोलेनाथ परम प्रसन्न हो गए।

और यज्ञ को संपन्न करके  दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को यज्ञ का पूरा भाग दे दिया, इससे भगवान शिव दक्ष प्रजापति से बहुत प्रसन्न हुए, सारे देवता भगवान शिव की   जयकार करने लगे।

ब्रह्मा विष्णु और महेश के  स्वरूप का वर्णन:-

तब भगवान शिव बोले कि हे दक्ष प्रजापति ,वस्तुत: ब्रह्मा, विष्णु और महेश हम तीनों एक ही हैं । मैं निर्गुण पार ब्रह्म परमेश्वर होते हुए, सभी प्राणियों के हृदय में निवास करता हूं परंतु लोक कल्याण के लिए मैं सगुण भी हूं, और निर्गुण भी हूं ,केवल कार्य विभाग  से ही हम लोग अलग-अलग रूप में अपने कार्य को करते हैं।


 मैं ही पार ब्रह्म परमेश्वर हूं और मेरा ही रूप विष्णु का भी है और ब्रह्मा का भी है, क्योंकि सृष्टि का संचालन के लिए हम त्रिदेवों ने अलग-अलग रूप धारण किया हुआ है ।इसलिए भक्तों को हमारे में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए।


 जो केवल मेरा भक्त होकर विष्णु की निंदा करता है ,तथा विष्णु

 का भक्त होकर मेरी निंदा करता है ,उसकी भक्ति कभी सफल नहीं होती। 

इसलिए   हम त्रिदेवों में कोई भेदभाव ना करते हुए मनुष्य को हमारी भक्ति करनी चाहिए।

भगवान शिव की बात सुनकर के सारे देवता  जयकार करने लगे, सभी देवताओं ने अपने-अपने तरीके से  भगवान शिव की स्तुति की।

 इससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए ,उन्होंने सभी देवताओं को आशीर्वाद दिया ,और यज्ञ  संपन्न करा कर वापस कैलाश पर लौट आए।


उपसंहार:-

भगवान शिव के बारे में जितना भी लिखा जाए वह पर्याप्त नहीं है ,क्योंकि लेखन के द्वारा असीम को लिखा नहीं जा सकता, जिनकी सीमा ही नहीं है ,उनकी लीला का  वर्णन भला वाणी एवं कलम के द्वारा  कहां तक संभव है?

फिर भी पुराणों  की रचना हुई, शिव पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण, शिव की महिमा का गुणगान करते हैं ,और मनुष्य को चाहिए भी अपने इष्ट का नाम ,कीर्तन, मनन चिंतन करते रहे। और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें ,क्योंकि बड़े भाग्य से मनुष्य का जीवन 84 लाख योनियों से गुजर कर मिलता है।
और यह जीवन भोग और विलास के लिए नहीं है, मनुष्य की योनि छोड़कर  सारी योनियां भोग योनियां कहलाती है। लेकिन मनुष्य योनि ऐसी है ,कि परमात्मा  ने उसको ऐसा बनाया है।

 मनुष्य को सोचने के लिए  बुद्धि दी है ,जिससे कि वह सत्य का पता लगा ले और अपने जीवन को सार्थक करके, मोक्ष की प्राप्ति कर ले।

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।

 


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