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Shiv Katha

 

शिव  विवाह 

देवर्षि नारदजी ने कहा हे पितामह ,कृपया करके यह बताइए कि सप्त ऋषियों के कैलाश आगमन के पश्चात भगवान शिव ने क्या किया? मैं प्रभु की अमृतमय एवं पापनाशिनी कथा को श्रवण करना चाहता हूं।
ब्रह्मा उवॉच:-

ब्रह्मा जी बोले हे, नारद 

हिमालय राज ने  पूरी तैयारी से   वैवाहिक पत्रिका अपने आत्मीय जनों  एवं ब्राह्मणों के साथ भगवान शिव के पास पहुंचाया, ये लोग वैवाहिक पत्रिका लेकर कैलाश पहुंचे,  तो उन्होंने वैवाहिक पत्रिका भगवान शिव के हाथ में  दी, जिन्हें भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। एवं आए हुए अतिथियों का सत्कार किया।

नारद उवाच :-

देवर्षि नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा हे पितामह, अब  मैं  आगे भगवान शिव की  संपूर्ण पापों को नाश करने वाली कथा को सुनना चाहता हूं lआपसे निवेदन  है कि  पुण्य को प्राप्त कराने वाली कथा का वाचन करें।

ब्रह्मा उवॉच:-

ब्रह्मा जी बोले हे नारद,  

हिमालय राज के द्वारा भिजवाई हुई वैवाहिक पत्रिका को स्वीकार करने के बाद भगवान शिव ने तुम्हें याद किया,  भगवान शिव  के  याद करते ही तुम तुरंत वहां प्रकट हो गए।


भगवान शिव ने कहा कि हे नारद, तुम्हारे ही कहने पर पार्वती ने बहुत कठोर तपस्या की,  तुम जानते हो मैं  भक्तों के वश में  रहता  हूं,इसलिए उनकी तपस्या के फलस्वरूप  मुझे उनको मनचाहा  वर देना पड़ता है।


इसलिए पार्वती को जो मैंने अपनी पत्नी बनाने का  वर प्रदान किया है ,और जगत कल्याण के लिए मैं पार्वती से विवाह करने जा रहा हूं। सप्त ऋषियों ने लग्न शोधन कर लिया है ,एवं एक सप्ताह के बाद विवाह होना है।


इसलिए तुम जाओ ,और सभी लोगों को आमंत्रित करो, इसके बाद  तुमने सभी ऋषि, महर्षि, देवताओं , नाग , किन्नर , अप्सराओं , एवं हजारों संतों को भगवान शिव के विवाह का आमंत्रण दिया।

सभी देवताओं का कैलाश आगमन :-

ब्रह्मा जी बोले हे नारद , सभी देवी-देवताओं  ने भगवान शिव के विवाह का आमंत्रण स्वीकार किया, एवं बहुत ही खुशी के साथ सज-धजकर  कर कैलाश पर पहुंचे ।


वहां पर भगवान शिव ने  सभी का  सत्कार किया , सारे देवता  बहुमूल्य रेशमी वस्त्र एवं आभूषण पहनकर कैलाश पर आए , सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ बहुत सज-धजकर आए थे।

रुद्र एव महाकाली का आगमन:-

भगवान शिव का विवाह जानकर समस्त रुद्र गण कैलाश पर आए , महाकाली का भी कैलाश में आगमन हुआ।

महाकाली प्रेत पर सवारी करते हुए ,अनेक भूत बेताल को साथ लेकर कैलाश पर आयी थी, उनके एक हाथ में खप्पर था उसमें आलौकिक ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी।

करोड़ों शिवगणों के एकत्रित आवाज से आकाश गुंजायमान  हो गया ।एक बहुत ही भारी उत्सव सभी लोगों ने मनाया ।

सभी शिवगण रुद्राक्ष धारण किए गए थे ।वे सब भगवान शिव के स्वरूप के समान थे। सभी के हाथों में डमरू और त्रिशूल सुशोभित हो रहे थे।

अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र तुरही, डमरू, झांझ मंजीरा, ढोल , नगाड़े, बज रहे थे। एक अद्भुत आनंद सभी लोगों में छाया हुआ था।

सभी लोग मस्त होकर नाच, गा रहे थे, आखिरकार भगवान शिव का विवाह जो था। स्वयं भगवान विवाह के बंधन में बंधने जा रहे थे।

भगवान विष्णु का आगमन:-

ब्रह्मा जी बोले हे देवर्षि नारद उसके बाद भगवान विष्णु  अपने गणों और सेवकों के साथ कैलाश पर आए  । भगवान विष्णु ने भी बारात में जाने के लिए अद्भुत श्रंगार किया हुआ था। उनके अंग-अंग से दिव्य प्रभा प्रकाशमान हो रही थी। उन्होंने भगवान शिव को प्रणाम किया एवं उचित स्थान पर ठहर गये।

ब्रह्मा जी का आगमन :-

ब्रह्मा जी बोले हे नारद, उसके बाद मैं अपने सभी दल-बल ,सेवकों , एवं ऋषि मुनियों के साथ कैलाश पर्वत पहुंचा।


मेरे साथ  ऋषि  भारद्वाज ,गौतम, परशुराम,वशिष्ठ , नारायण पिप्पलाद , कपिल , दुर्वासा , श्रृंगी , विश्वामित्र , वेदव्यास आदि ऋषियों का समूह था।  हम सभी ने भगवान शिव को प्रणाम किया और और उचित स्थान पर जाकर ठहर गये। 

भगवान विष्णु का सुझाव:-


भगवान विष्णु ,भगवान शिव से बोले हे परमेश्वर, हे दीनबंधु, मेरा आपसे यही निवेदन  है
कि आप यह  विवाह लोकाचार हेतु कीजिए क्यों कि प्रभु जिस प्रकार आप विवाह का संपादन करेंगे, उसी प्रकार सारा संसार आपसे प्रेरित  होकर
विवाह का संपादन करेगा ।


इसलिए प्रभु  आप सभी विधि- विधान से, इस विवाह को संपन्न कीजिए। 


ब्रह्मा जी पर वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न कराने की जिम्मेदारी:-

ब्रह्मा जी बोले हे देवर्षि नारद, इसके बाद भगवान शिव ने संपूर्ण विवाह को विधि- विधान से सम्पन्न कराने का कार्य मुझे सौंपा। मैंने भी उस दायित्व को निभाने के लिए अपना संपूर्ण प्रयास किया।


मेरे पास ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद को जानने वाले अनेक विद्वान ऋषि उपस्थित थे। सभी लोगों ने वेदों  सूक्तो  के द्वारा मांगलिक कार्यक्रम संपन्न किया

समस्त विधि विधान से संपूर्ण ग्रहों की शान्ति के लिए ग्रहों का पूजन एवं मंडल के देवताओं की पूजा की गई । जिससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न हए।


उसके बाद भगवान शिव को सातों मातृकाओं ने आभूषण पहनायें , भगवान शिव का अद्भुत श्रंगार हुआ चंद्रमा भगवान शिव के ललाट पर स्थापित हो गए, उनके उनके ललाट पर जो नेत्र थे वह तिलक के रूप में सुशोभित हो गए, उनके कानों के दोनों सर्प दिव्य कुंडल के रूप मैं सुशोभित हो गए। 



एवं शरीर पर जो भस्म लगी थी, वह चंदन राग बन गयी, जब ईश्वर ही सजने लगे, तो भला उनके रूप और सौंदर्य की तुलना पूरे ब्रह्मांड में कौन कर पाएगा, जैसे-जैसे भगवान शिव लगे संवरने हालांकि ईश्वर को सजने और संवरने की क्या जरूरत है? 

 लोकाचार हेतु संसार को दिखाने के लिए वैवाहिक ऐश्वर्य क्या होता हैे ?वैवाहिक बंधन क्या होता है? वैवाहिक रीति रिवाज क्या होते हैं?यह सब करने के लिए भगवान शिव ने स्वयं अपना ही अनुपम उदाहरण पेश किया।



 भगवान शिव की शोभा अद्भुत निराली थी, इतना अनुपम सौंदर्य की देवताओं की आंखें भी टिक नहीं पाती थी।

नंदी की सवारी:-

इसके बाद प्रभु नीलकंठेश्व, घर्म स्वरूप स्फटिक के समान उज्जवल वृषभ पर विराजमान हुए। एवं कैलाश पर्वत से निकले उसके बाद सारे देवगण एवं बाराती प्रभु के पीछे-पीछे निकले , और इस तरह से कैलाश पर एक भारी उत्सव मनाया गया और शिव जी के के साथ बारात हिमालय राज के घर की ओर प्रस्थान कर गई।  

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।



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