"अर्धनारीश्वर: शिव और शक्ति का पूर्ण एकत्व"

 अर्धनारीश्वर: शिव और शक्ति का पूर्ण एकत्व






भूमिका


सनातन परंपरा में भगवान शिव का स्वरूप जितना रहस्यमय है, उतना ही समग्र और समावेशी भी। वे केवल संहारक नहीं, सृजनकर्ता भी हैं। उनका यह सृजन तब संभव होता है जब वे शक्ति से एकाकार होते हैं। अर्धनारीश्वर का स्वरूप इसी दिव्य एकता का प्रतीक है — जहाँ शिव और शक्ति एक ही देह में समाहित होकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के संतुलन का दिग्दर्शन कराते हैं।


अर्थ और भाव


अर्धनारीश्वर — ‘अर्ध’ अर्थात् आधा, ‘नारी’ अर्थात् स्त्री (शक्ति), और ‘ईश्वर’ अर्थात् शिव।


अतः अर्धनारीश्वर वह दिव्य रूप है जिसमें आधा भाग भगवान शिव का है और आधा देवी शक्ति का। यह न पुरुष मात्र है, न नारी मात्र — बल्कि यह पूर्णता का ऐसा प्रतीक है जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों का संतुलन समाहित है। यह रूप ब्रह्मांडीय ऊर्जा की दोनों धाराओं का सामंजस्य है।



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पौराणिक कथा (शिवपुराण पर आधारित)


सृष्टि के आदि काल में जब न तो दिन था, न रात्रि, न पृथ्वी, न आकाश, न जल, न वायु — चारों ओर केवल घोर अंधकार था, तब केवल परम तत्त्व — परब्रह्म — ही विद्यमान था। उसी परब्रह्म की इच्छा हुई कि "एक से अनेक" होकर सृष्टि का विस्तार करूँ।


उन्होंने अपने ही तेज से एक दिव्य नारी स्वरूप की रचना की — एक ऐसी शक्ति जो तेजस्विता में स्वयं भगवान शिव के समकक्ष थी। शिव ने उस देवी से कहा — “हे देवी, तुम मेरी अर्धांगिनी हो। तुम शक्ति हो और शक्ति के बिना मैं भी अधूरा हूँ।”


इसके उपरांत शिव ने अपनी काया के बाएँ भाग से अमृततुल्य तेज प्रकट किया, जिससे एक दिव्य पुरुष उत्पन्न हुए — जिनका स्वरूप अत्यंत तेजस्वी, शांत, और विराट था।


वही पुरुष ‘विष्णु’ के रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने शिव को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा से सृष्टि-संरक्षण हेतु विश्राम में लीन हो गए।


तदनंतर विष्णु जी की नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ, जिस पर ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी ने जब स्वयं को उत्पन्न होते देखा, तो अपने स्रोत की खोज में कमल-नाल के भीतर युगों तक भ्रमण किया, परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। अंततः उन्होंने विष्णु को देखा और दोनों में विवाद हुआ कि "श्रेष्ठ कौन?"


तभी एक तेजोमय अनंत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, जिसकी न आदि था, न अंत। दोनों ने उसके स्वरूप को जानने का प्रयास किया, पर असफल रहे।


तब ही शिव अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए, और बोले — “हे ब्रह्मा और विष्णु! तुम दोनों मेरी ही इच्छा से उत्पन्न हुए हो, सृष्टि-संचालन के लिए। शक्ति और शिव — दोनों का एकत्व ही इस ब्रह्मांड का मूल है।”


दोनों ने उन्हें नमस्कार किया और स्तुति की। शिव ने उन्हें आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।



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दार्शनिक दृष्टिकोण


शिव = चेतना (Purusha)


शक्ति = सृजनशक्ति (Prakriti)



जब पुरुष और प्रकृति का मिलन होता है, तभी सृष्टि संभव होती है। अर्धनारीश्वर का रूप इस गूढ़ तत्वज्ञान का प्रतीक है — यह दर्शाता है कि जगत की उत्पत्ति, विकास और समापन — सब शक्ति और शिव के संतुलन से होता है।


यह रूप यह भी संकेत करता है कि:


न पुरुष पूर्ण है न नारी,


सम्पूर्णता केवल एकता में है।




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आध्यात्मिक संदेश


हर मानव के भीतर शिव और शक्ति दोनों विद्यमान हैं —

तर्क और भावना, शक्ति और करुणा, मौन और अभिव्यक्ति।

अर्धनारीश्वर हमें भीतर संतुलन साधने की प्रेरणा देता है —

जहाँ हम न केवल बाह्य रूप से, बल्कि आत्मिक रूप से भी पूर्णता की ओर अग्रसर होते हैं।



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मूर्तिकला और उपासना में


अर्धनारीश्वर की मूर्तियों में सामान्यतः:


दायीं ओर शिव — त्रिशूल, जटा, नाग, गंगा, अर्धचंद्र से युक्त।


बायीं ओर पार्वती — साड़ी, श्रृंगार, कमल या मृदंग लिए हुए।



यह प्रतिमा सजीव प्रतीक है — द्वैत और अद्वैत के अद्भुत संगम का।



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शास्त्रीय श्लोक


> “चामुंडे चण्डमुंडारि नाशिनि शिवनायिके।

अर्धनारीश्वर स्वरूपिणि नमस्ते जगतां धुरे॥”




(हे चामुंडा! आप चण्ड-मुण्ड का नाश करने वाली, शिव की नायिका, अर्धनारीश्वर रूप वाली — आपको नमस्कार है, हे समस्त जगत की धुरी!)



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निष्कर्ष


अर्धनारीश्वर केवल एक प्रतीक नहीं, यह जीवन का गूढ़ दर्शन है —

जहाँ पुरुष और नारी एक-दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं।

जब हम अपने भीतर के शिव और शक्ति को पहचानते हैं,

तब ही हम सच्चे अर्थों में ‘पूर्ण’ बनते हैं।

डिस्क्लेमर:-

यह लेख धर्मग्रंथों, पुराणों और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करना है। कृपया इसे श्रद्धा और विवेक के साथ पढ़ें।




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