कैलाश पर्वत का लिंग पुराण में वर्णन और उसका आध्यात्मिक महत्व
लिंग महापुराण के अनुसार कैलाश पर्वत और महादेव जी का दिव्य निवास
श्री लिंग महापुराण में वर्णित कैलाश का पौराणिक और आध्यात्मिक चित्रण — श्रद्धा के साथ।
परिचय
कैलाश पर्वत का नाम सुनते ही हर शिवभक्त के हृदय में श्रद्धा और भक्ति जागृत होती है। लिंग महापुराण में कैलाश पर्वत का अत्यंत दिव्य और अद्भुत वर्णन मिलता है — जहाँ भगवान शंकर अपने परिवार सहित विराजमान रहते हैं।
कैलाश पर्वत का वैभव
- चोटियाँ स्वर्ण, माणिक्य, नीलम, गोमेद और अन्य बहुमूल्य रत्नों से निर्मित हैं।
- पर्वत पर सौ हजार शाखाएँ हैं और चंपक, अशोक, पारिजात जैसे दिव्य वृक्ष लहलहाते हैं।
- जल सरोवर पुष्पगुच्छों से भरे रहते हैं और विविध पक्षियों का मधुर कलरव वातावरण को पवित्र बनाता है।
भूतवन — एक रहस्यमयी वन
कैलाश पर स्थित भूतवन गहरी जड़ों वाले वृक्षों, घनी छाया और अद्भुत फल-फूलों से युक्त है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थान भूत-प्रेत और अदृश्य शक्तियों का भी निवास स्थान माना गया है।
शिव जी का दिव्य निवास
कैलाश के मध्य में भगवान शिव का कांतिमय भवन स्थित है—स्वर्ण की दीवारों, स्फटिक के स्तंभों और कभी न मुरझाने वाले पुष्पों से विभूषित। यहाँ देवता, ऋषि, गंधर्व, ब्रह्मा, विष्णु व इंद्र नित्य पूजन करते हैं और गंधर्व मधुर वाद्य यंत्रों से स्तुति करते हैं।
कैलाश का विभाजित शिखर एवं मंदाकिनी
कैलाश का शिखर दो भागों में विभक्त है—एक भाग में कुबेर और महात्माओं का निवास है। मंदाकिनी नदी सुवर्ण कमलों और सुगंधित पुष्पों से अलंकृत है और यह पुण्यवाहिनी मानी जाती है।
अन्य शिव निवास
लिंग महापुराण के अनुसार कैलाश-परिवार केवल एक स्थान नहीं है; पर्वतों, वनों और नदियों के तटों पर भगवान शिव के असंख्य पवित्र निवास माने जाते हैं—जैसे गंगा के तट पर शिव-उमा का भवन और नंदा के पास रुद्रपुर।
प्रतीकात्मक अर्थ
कैलाश पर्वत केवल एक भौतिक पर्वत नहीं, बल्कि साधक के भीतर का आध्यात्मिक शिखर है। बर्फ से ढका हुआ यह पर्वत मन की शुद्धि का प्रतीक है, और उसकी चोटी पर स्थित शिवजी की उपस्थिति आत्मा की परम स्थिति को दर्शाती है।
लिंग पुराण में जो अतिशयोक्ति दिखाई देती है, उसका उद्देश्य यही बताना है कि — शिव को नापना असंभव है, वे अनंत हैं।
आधुनिक दृष्टि से महत्व
आज के समय में इन कथाओं का संदेश यह है कि मनुष्य को अहंकार त्यागकर भीतर की यात्रा करनी चाहिए। कैलाश और शिवलिंग का वास्तविक स्वरूप बाहर नहीं, भीतर अनुभव किया जाता है। यही साधना का सार है।
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