भगवान शिव जी के ऊँ नमः शिवाय मंत्र से कितना लाभ मिलता है
ऊँ नमः शिवाय मंत्र की महिमा (卐)
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमःशंकराय च मयस्कराय च नमःशिवाय च शिवतरार च ।
'ऊँ मीढुष्टम शिवतम शिवो नः सुमना भव।ʼ(यजुर्वेद,, 16.51)
भगवान शिव जी एक बार माता पार्वती जी के साथ बहुत ही रमणीय स्थल पर पहाड़ की ऊंचाई पर बैठे हुए थे।
मंदिर मंदिर शीतलहर बह रही थी उसी समय वहां के वातावरण से माता पार्वती जी का मन पुलकित हो उठा,
वह कहने लगी, कि हे, भोलेनाथ हे शंभू, नीलकंठेश्वर , हे भगवान कृपया बताएं कि कलयुग के अंदर आपकी किस तरह से पूजा होगी कि वह सब कुछ पा सकते हैं।
इस पर भोलेनाथ कहते हैं कि हे देवी, महासर्ग के समय इस सृष्टि में जब सब कुछ समाप्त हो जाता है, तो केवल एक मैं बचता हूं ।
और सभी लोग इस तरह महासर्ग के अंदर समाहित हो जाते हैं ।मैं अपने दूसरे रूप से क्षीरसागर मे श्री विष्णु के रूप में योग में निद्रा करता हूं ।
उसी समय मेरा यह पंचाक्षर मंत्र जो कि बहुत ही शक्तिशाली है, चारों वेद इस मंत्र में समाहित हो जाता है इसलिए मैं फिर से जब सृष्टि की रचना करता हूं, तब यह मंत्र मुझे मेरे वेद को वापस देता है।
और मैं इसे ब्रह्मा जी को सौंपता हूं मेरा यह मनुष्य को आधिदैविक पाप से मुक्ति आज्ञा है। और धन दौलत ऐश्वर्या की प्राप्ति जपने से है।
अगर घर में जाप किया जाता है, तो 100 नमूने फल मिलते हैं। और यदि किसी नदी के किनारे जाप किए जाते हैं, तो हजार नमूने फल मिलते हैं। और यदि देवालय में शिवलिंग का अलग से जप किया जाए तो करोडों का नमूना फल देता है।
इस मंत्र के जप से साधक को संपूर्ण सिद्धियां प्राप्त होती हैं, इस मंत्र के जप से साधक भौतिक रूप से समृद्ध हो जाता है।
इस मंत्र के जप से मेरा साक्षात्कार भी संभव है। अर्थात मेरा साक्षात्कार इस मंत्र को जपने से होता है।
एक ही मंत्र कई प्रकार से जपा जाता है। यह कई प्रकार से फल देता है, इसलिए साधकों को इसी मंत्र को जपना चाहिए।
यह मेरा सबसे सरल मंत्र है, और सबसे अधिक शक्तिशाली भी है ।शास्त्रों में षडक्षर मंत्र है, लेकिन साधकों को केवल पंचाक्षर मंत्र बहुत फलदाई होता है इसलिए यह मेरा मंत्र सब प्रकार से साधक का कल्याण करता है।
हे देवी, मेरे और तुम्हारे अधिकारों का अधिपत्य उसी के पास है और उसी सृष्टि की उत्पत्ति का कारण यही मेरा तांडव नृत्य है।
मैं जब परमानंद की स्थिति में आनंद से मदमस्त हो जाता हूं तो नृत्य करता हूं, उस नृत्य के परिणाम से इस सृष्टि के पदार्थों की उत्पत्ति होती है।
इस प्रकार यह विश्व मेरे नृत्य का ही परिणाम है।
यह विश्व मेरे नृत्य और नाद का परिणाम है। मेरे डमरू में स्पंदन होता है वहां शब्द भी होता है।
जो मेरी तीसरी आंख है वह दिव्य ज्ञान चक्षु है। और मैंने इसे प्रत्येक व्यक्ति के अंदर स्थापित किया है ।परंतु वह बिना मेरी इच्छा के नहीं खुल रहा है, लेकिन मेरा ओम नमः शिवाय मंत्र मनुष्य की तीसरी आंख को खोलने में सक्षम है।
पूर्ण कामनाओं की पुष्टि करने वाला मंत्र :-
पंचाक्षर मंत्र अल्पाक्षर है। लेकिन छोटे होते हुए भी इसमें कई अर्थ देखने को मिलते हैं।यह मंत्र सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
अनेक सिद्धियों को देने वाला है, सभी विद्याओं का बीज है वेदों का सार है।
भगवान का वाचक अक्षर है, इसमें प्रणव देने से षडक्षर हो जाता है। जिस व्यक्ति का ह्रदय इस मंत्र से परिपूर्ण है, जिसके हृदय में हमेशा इस मंत्र की ज्योति जलती है, जिसके मानस पर हमेशा यह मंत्र अंकित होता है, जिसके अधरों पर यह मंत्र हमेशा रहता है।
उसने सारे शास्त्रों के सारे वेदों का अध्ययन किया है। क्योंकि शिव ही ज्ञान है, वही परम पद है, इसलिए हमेशा ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहना चाहिए इसे योग्य गुरु से प्राप्त करके जप करना चाहिए।
मंत्र को जपने का नियम
इस मंत्र को जपने के लिए साधक सर्वप्रथम करन्यास के बाद में देहन्यास एवं अंगन्यास करना चाहिए।
रात को भोजन करें सभी प्रकार के नियमों के अनुसार रहने की मुद्रा में रहने के लिए उसे शुद्ध करके पूर्व में मुख करके या उत्तर में मुंह रखकर उसे जप करना चाहिए।
जप करते समय चित की वृत्तियों को अवरुद्ध कर मन को देवाधिदेव महादेव भगवान शिव में निर्धारण होना चाहिए। इसी मौन भाव से इस मंत्र को जपना चाहिए।
इस मंत्र को जपने के पहले प्राणायाम कर लेना चाहिए और जब जप पूरा हो जाता है, तो उसके बाद भी प्राणायाम कर लेना चाहिए।
सबसे अंत में बीज मंत्र (ॐ) का 108 बार जाप कर लेना चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें:-
इस मंत्र को जप करते समय सदाचार का बहुत ध्यान देना चाहिए शरीर के पवित्र होने के साथ-साथ मन का भी पवित्र होना अति आवश्यक है।
साधक को मन, वचन और कर्म से पवित्र होना चाहिए किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए।
शास्त्रों में हमेशा सत्य बोलना चाहिए कि जो व्यक्ति लंबी उम्र चाहता है उसे इस मंत्र का जाप किसी भी पवित्र नदी के किनारों को 100000 बार करना चाहिए।
देवाधिदेव महादेव स्वयं धर्म की प्रतिमूर्ति हैं इसलिए इनका विधिवत पूजन करने से जीवन में कभी भी दुख की प्राप्ति नहीं होती है।
ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव हर। महादेव
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