ॐ नमः शिवाय का महत्व और इसका सही जाप – लाभ, विधि एवं मंत्र साधना

 

भगवान शिव जी के ऊँ नमः शिवाय मंत्र से कितना लाभ मिलता है


ऊँ नमः शिवाय मंत्र की महिमा (卐)

ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमःशंकराय च मयस्कराय च नमःशिवाय च शिवतरार च।
'ऊँ मीढुष्टम शिवतम शिवो नः सुमना भव।ʼ
(यजुर्वेद, 16.51)

भगवान शिव जी माता पार्वती जी के साथ पहाड़ की ऊँचाई पर बैठे हुए थे। वातावरण से माता पार्वती जी का मन पुलकित हो उठा। उन्होंने पूछा, "हे भोलेनाथ, कलयुग में आपकी किस प्रकार पूजा करने से सब कुछ प्राप्त होगा?"

भोलेनाथ ने उत्तर दिया कि महासर्ग के समय सब कुछ समाप्त हो जाता है, केवल मैं बचता हूँ। मैं क्षीरसागर में योग निद्रा करता हूँ। पंचाक्षर मंत्र बहुत शक्तिशाली है और चारों वेद इसमें समाहित हैं। इसे जपने से मनुष्य आधिदैविक पाप से मुक्त होता है और धन-संपत्ति, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

ऊँ नमः शिवाय मंत्र से मिलने वाले फल

  • घर में जाप करने पर 100 गुना फल प्राप्त होता है।
  • नदी के किनारे जाप करने पर हजार गुना फल प्राप्त होता है।
  • देवालय में शिवलिंग के सामने जाप करने पर करोड़ों का फल मिलता है।
  • साधक को संपूर्ण सिद्धियाँ और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  • भगवान शिव का साक्षात्कार संभव होता है।

पूर्ण कामनाओं की पुष्टि करने वाला मंत्र

पंचाक्षर मंत्र छोटा है, लेकिन इसमें अनेक अर्थ और शक्तियाँ समाहित हैं। यह सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, अनेक सिद्धियाँ देता है और वेदों का सार है। जो व्यक्ति हृदय में इस मंत्र की ज्योति जलाए रखता है, उसके जीवन में सभी विद्याओं और ज्ञान की प्राप्ति होती है। शिव ही ज्ञान और परम पद हैं, इसलिए इस मंत्र का जाप सदैव जारी रखना चाहिए। इसे योग्य गुरु से प्राप्त करना आवश्यक है।

मंत्र को जपने का नियम

  1. सर्वप्रथम करन्यास, देहन्यास और अंगन्यास करें।
  2. जप के समय मन और शरीर पवित्र रखें।
  3. रात को भोजन के बाद शांत मुद्रा में जाप करें, पूर्व या उत्तर की दिशा में मुख करके।
  4. चित की वृत्तियों को अवरुद्ध कर मन को शिव में लगाएँ।
  5. जप से पहले और बाद में प्राणायाम करें।
  6. अंत में बीज मंत्र (ॐ) का 108 बार जाप करें।

ध्यान देने योग्य बातें

  • सदाचार का पालन करें।
  • मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें।
  • हिंसा और मिथ्या वचन से दूर रहें।
  • दीर्घायु के लिए किसी पवित्र नदी के किनारे 1,00,000 बार जाप करना लाभकारी है।
  • देवाधिदेव महादेव का विधिवत पूजन जीवन में दुख से मुक्ति दिलाता है।


  • देवालय में शिवलिंग के सामने जाप करने पर करोड़ों का फल मिलता है।
  • साधक को संपूर्ण सिद्धियाँ और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  • भगवान शिव का साक्षात्कार संभव होता है।

पूर्ण कामनाओं की पुष्टि करने वाला मंत्र

पंचाक्षर मंत्र छोटा है, लेकिन इसमें अनेक अर्थ और शक्तियाँ समाहित हैं। यह सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, अनेक सिद्धियाँ देता है और वेदों का सार है। जो व्यक्ति हृदय में इस मंत्र की ज्योति जलाए रखता है, उसके जीवन में सभी विद्याओं और ज्ञान की प्राप्ति होती है। शिव ही ज्ञान और परम पद हैं, इसलिए इस मंत्र का जाप सदैव जारी रखना चाहिए। इसे योग्य गुरु से प्राप्त करना आवश्यक है।

मंत्र को जपने का नियम

  1. सर्वप्रथम करन्यास, देहन्यास और अंगन्यास करें।
  2. जप के समय मन और शरीर पवित्र रखें।
  3. रात को भोजन के बाद शांत मुद्रा में जाप करें, पूर्व या उत्तर की दिशा में मुख करके।
  4. चित की वृत्तियों को अवरुद्ध कर मन को शिव में लगाएँ।
  5. जप से पहले और बाद में प्राणायाम करें।
  6. अंत में बीज मंत्र (ॐ) का 108 बार जाप करें।

ध्यान देने योग्य बातें

  • सदाचार का पालन करें।
  • मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें।
  • हिंसा और मिथ्या वचन से दूर रहें।
  • दीर्घायु के लिए किसी पवित्र नदी के किनारे 1,00,000 बार जाप करना लाभकारी है।
  • देवाधिदेव महादेव का विधिवत पूजन जीवन में दुख से मुक्ति दिलाता है।

ॐ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, हर-हर महादेव।

ॐ अजय स्मरामि

यह लेख धार्मिक ग्रंथों, पुराणों और पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित जानकारी प्रस्तुत करता है। इसका मूल उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार और श्रद्धालुओं के भीतर भक्ति का संचार करना है। यहाँ प्रस्तुत जानकारी को किसी प्रकार की वैज्ञानिक गारंटी या चिकित्सकीय समाधान के रूप में न समझा जाए।

  • यहाँ बताए गए मंत्र, पूजा-विधि और नियम व्यक्ति की श्रद्धा, आस्था और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होते हैं।
  • इन विधियों का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक स्थिति, जीवनशैली और कर्म के अनुसार भिन्न हो सकता है।
  • यह लेख किसी भी प्रकार की चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक, वित्तीय या कानूनी सलाह प्रदान नहीं करता।
  • यदि किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो तो योग्य चिकित्सक या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।
  • लेख में उल्लिखित कथाएँ और दृष्टांत केवल आध्यात्मिक व पौराणिक शिक्षाओं को दर्शाने के लिए हैं; इन्हें ऐतिहासिक प्रमाण न माना जाए।
  • पाठक अपनी विवेकशीलता और व्यक्तिगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही इन पूजन विधियों और मंत्रों को अपनाएँ।
विशेष सूचना: शिवभक्ति का वास्तविक स्वरूप आंतरिक शुद्धि, निष्काम भाव और आत्मिक साधना में निहित है। बाहरी पूजन-विधियाँ इस साधना का एक सहायक अंग मात्र हैं।

लेखक एवं प्रकाशक इस जानकारी के किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। श्रद्धालु इस लेख को केवल आध्यात्मिक अध्ययन और भक्ति के उद्देश्य से ग्रहण करें।

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