चंचुला – शिवभक्ति और आध्यात्मिक कथा |
चंचुला की भक्ति कथा – शिवपुराण से
सूत जी कहते हैं, ऐसा कहकर हाथ जोड़कर चंचुला उस शिवपुराण की कथा को सुनने की इच्छा से ब्राह्मण देवता की सेवा में तत्पर वहां रहने लगी।
शिव भक्तों में श्रेष्ठ और शुद्ध बुद्धि वाले उन ब्राह्मणों ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिवपुराण की कथा सुनाई। इस प्रकार उसने गोकर्ण नामक महा क्षेत्र में सुबह से शिवपुराण की परम उत्तम कथा सुनी, जो भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को बढ़ाने वाली है।
उस प्रमुख कथा को सुनकर वह अत्यंत हर्षित हुई, उसका चित्त शिवमय हो गया और फिर भगवान शिव का उसके हृदय में चिंतन होने लगा। इस प्रकार वह भगवान शिव में लगी रहने लगी। उत्तम बुद्धि पाकर शिव के आनंदमय स्वरूप का बार-बार कीर्तन आरंभ किया।
तत्पश्चात समय के पूरे होने पर भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से युक्त चंचुला ने अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया। इतने में ही भगवान शिव का भेजा हुआ एक विमान वहां पहुंचा, और चंचुला की कैलाश जाने की प्रक्रिया संपन्न हुई। भगवान शिव के श्रेष्ठ पार्षदो ने उसे तत्काल शिवपुरी में पहुंचा दिया।

वह दिव्यांगना हो गई थी, सुन्दर रूप धारण किए और वह कैलाश पहुंची जहाँ गौरा देवी, गणेश जी, कार्तिकेय जी तथा वीरभद्रेश्वर आदि उपस्थित थे। वहाँ महादेव जी सुशोभित थे। भगवान शंकर का दर्शन करके वह ब्राह्मणी अत्यंत प्रसन्न हुई, उत्सुक होकर उसने बारंबार प्रणाम किया।
उस समय भगवती पार्वती और भगवान शंकर ने उसे अपने पास बुलाया, एवं माता पार्वती जी ने उसे अपनी सखी बना लिया।

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