Advertisement

Responsive Advertisement

शिव कथा गणेश स्तुति:-

शिव कथा 

गण श स्तुति:-

गजानंद भूतगणादिसेवितं     कपित्थजंबूफलचारुभक्षणम। 


उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम।।

 विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय ।

लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय।।

नागानाय श्रुतियज्ञविभूषिताय

 गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

  गौरी स्मरण :-


नमो देव्यै महादेव्यै शिवाय सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै सत्या: प्रणता: स्म ताम् ।।

त्वं वैष्णवी शक्तिरनात्नवीरयां

विश्वस्य बीजं परमासि माया । 

सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् ।
 
त्वं वै प्रसन्ना भुविमुक्तिहेतु: ।।


पूजा क्या होती है


अथर्ववेद में ऋषि कहते हैं

 कस्मै देवाय हविषा विद्याम:- अर्थात हम किस देवता को हवी समर्पित करें? 


ॠषि के सामने गंभीर समस्याएँ हैं, कि कौन देवता का चिन्ह है? किसकी पूजा करू ?तभी उनके अंतर्मन से आवाज आती है कि जो स्वयं का बोध कराये तू उसी देवता की पूजा कर।

 स्वंम का बोध केवल समाधि से होता है एवं देवाधिदेव महादेव, नीलकंठेश्वर, आशुतोष, भोले शंकर, भगवान शिव से महान इस संपूर्ण संसार में कौन योगी है।


 जो निरंतर समाधि में रहते हैं, इसलिए हमें भगवान शिव को अपना गुरु मान करके उनके चरित्र से शिक्षा लेकर शिव पूजा  करनी चाहिए।

प्राचीन समय में गृहस्थ आश्रम  में रहते हुए  मनुष्य को पंचमहायज्ञ का अनुष्ठान करना अनिवार्य था। यह पंच महायज्ञ थे ब्रह्म,  यज्ञ, पितृ यज्ञ, देव यज्ञ, भूत यज्ञ और नृज्ञ-मनुष्य को चारों पुरुषार्थो के अनुसार पालन करना चाहिए।


भाव पूजा:-


यह पूजा दिल से की जाती है इसमें जिन के भाव उद्दगार अपने इष्ट मे ही होते हैं सत्य मन अपने इष्ट के प्रति समर्पित रहता है, अपने इष्ट के प्रति दूसरा कोई भी देवता नहीं भाता है। यह पूजा ऐसे ही भक्त करते हैं।

 मैंने एक लेख पढ़ा था जो दृष्टांत के लिए उपयुक्त तंतु है

  लेख इस प्रकार है, एक बार की बात है तुलसीदास जी जगन्नाथ पुरी की यात्रा के बारे में सोच रहे थे अचानक उन्होंने देखा कि कई लोग जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर जा रहे हैं  तो उन्होंने सोचा कि मैं भी उनके साथ चलूं।


 भगवान के दर्शन हो जाएंगे और मेरा भी कल्याण हो जाएगा, यह सोच कर के तुलसीदास जी जगन्नाथ जी की यात्रा पर चले गए।


वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि मंदिर में अत्यधिक भीड़ है, घंटों इंतजार करने के बाद जब उनका नंबर आया तो उन्होंने देखा कि जगन्नाथपुरी में जो भगवान है, वह श्री राम के जैसे नहीं है। हाथ पाव एवं धनुष  विहीन  है।

यह सब देखकर वह मन में खिन्न  होकर विश्राम  के लिए मंदिर के एक पेड़ की छाव में चले गए।


करीब दो घंटे हुए थे,  कि तभी एक छोटा सा बालक हाथ में थाली के लिए आया वह  पुकारता  जा रहा था तुलसीदास कौन है? तुलसीदास कौन है ? यह सुनकर तुलसीदास जी बोले कि मैं ही तुलसीदास हूं बोलो, बालक बोला कि जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।

 तुलसीदास जी बोले कि  भेजा होगा ,किसी पंडित ने मेरे लिए,परन्तु  उन्होंने कहा कि मैं बिना भोग प्रसाद नहीं खाता हूं।

यह झूठा प्रसाद है, तब बालक  बोला किभैया यह झूठा प्रसाद नहीं है ,यह जगन्नाथ जी ने आपको बिजवाया है। तो तुलसीदास बोले कि मेरे प्रभु श्री राम हैं और जगन्नाथ जी के हाथ, पाँव भी नहीं है, तो बालक ने कहा कि आपने  ही तो ही राम चरित्र मानस में लिखा है कि ईश्वर बिना पाँव के चल सकते हैं, बिना हाँथ के सब काम कर सकते हैं ,बिना कान के सब कुछ सुन सकते हैं ,और फिर आप ही ऐसा बोल रहे हैं।

 ठीक  , कि कल आप मंदिर में आपको, आपकी आंखों के दर्शन हो जाएंगे।

 यह कहकर  बालक अंतर्ध्यान हो गया एवं  जब  सुबह  तुलसीदास जी मंदिर में  गये, तो उस  जगन्नाथ जी की मूर्ति  मे उन्हें भगवान श्रीराम ,लक्ष्मण , एवं सीता जी के दर्शन हुए।


तुलसीदास जी की आंखों से आंसू झरने लगे थे सोच रहे थे ओह ,कल रात में भगवान श्री राम ही बालक के रूप में मेरे लिए प्रसाद लेकर आए थे।

यह पूजा भावपूजा कहलाती है  यह पूजा सबके लिए नहीं है, बल्कि उन लोगों के लिए है, जो अपने ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित  हैं।







पूजा के उपचार 


शिव पूजा के लिए निम्न उपचार है। पूजन संबंधी यह प्रसंग गीता प्रेस से ही नित्य कर्म पूजा प्रकाश से उद्धत है

पांच उपचार :-
1 - गन्ध

पुष्पांजलि 

3- धूप

4- दीप

5-नैवेद्य
  

दस उपचार 

1-पाद्य
2-अध्य
3-आचमन
4- स्नान
5-वस्त्र निवेदन 
6-गंध 
7- पुष्पांजलि 
8- धूप  
9- दीप
10-नैवेद्य 

हल उपचार 

1-  पाद्य
2-अध्र्य
3-आचमन 
4- स्नान_  _
5-आभूषण
6-गंध 
7-पुष्प 
8-वस्त्र 
9-धूप 
10-दीप
11-नैवेद्य 
12- आचमन 
13-ताम्बूल
14-स्तवन 
15- त्रयस्थ
16-नमस्कार 

वैसे तो पूजा के 64 उपचार बताए गए हैं लेकिन ऊपर 16 उपचार दिए गए हैं इससे भी पूजा करने से बहुत लाभ होता है।

1 भगवान शिवजी की पूजा करते समय निम्नलिखित फोन को नहीं देना चाहिए ( वीरमित्रोदय मे विस्तृत वर्णन किया गया है)


● कदम्ब, सारहीन, फूल या कचूमर, केवड़ा, भगवान शिव को नहीं चढता है।

●केवडा, शिरिष, तिन्तणी, बकुल, (मौलसिरी), 

●कोष्ठ, कैथ, गजर, अमर, बहेड़ा, 

●सेमल, गंभरी, कपार, पत्रकंटक, मदन्ती लेकिन शास्त्रों में कई जगहों पर इन फूलों को चढ़ाने  का भी है, और कई जगह निषेध भी किया गया है, इसका पूरा विवरण वीरमित्रोदय   मे मिल जाएगा।


जब भी हम प्रभु शिव के भक्तों का नाम लेंगे, तो उसी में पुष्पदन्त  का नाम बहुत ही सम्मान से लिया जाएगा। क्योंकि पुष्पदन्त ने हीं शिव महिम्न स्तोत्र की रचना की है।

जोकि अत्यंत ही दुर्लभ स्त्रोत है, इसकी रचयिता परम शिव भक्त गंधर्वराज पुष्पदंत भगवान शिव की आराधना के लिए प्रातः काल में फूल तोड़ने के लिए एक राजा के उपवन में घुसकर, उन फूलों को निहारते, उन फूलों में देखते थे, कि मेरे प्रभु को कौन सा फूल  सबसे प्रिय है? जिस फूल में अत्यधिक सुगंधित  है और जो फूल भगवान शिव को सबसे प्रिय थे, वे उन फूलों को तोड़कर के वे भगवान शिव के चरणों  में अर्पित करते  थे।

एक बार राजा ने उपवन में सैर करते समय फूलों की संख्या कम होने का परीक्षण किया, तो उन्होंने मालियो से कहा   कि पुष्प देखने में बहुत कम दिख रहे हैं, इस बात पर अत्यंत क्रोधित राजा ने मालियों से कहा, कि तम लोग इन फूलों की ठीक  से देखभाल  नहीं करते हो, इसलिए मैं तुम लोगों को कड़ी सजा देता हूं।


सभी माली राजा की इस आज्ञा से तिलमिला उठे, और वाटिका की सुरक्षा और जी जान से   करने लगे, फूल रोज कम क्यो हो जाते हैं, यह बात मालियों के समझ में नहीं  आयी      


मालियों ने सोचा कि कोई अदृश्य शक्ति है, जो पुष्पों को तोड़कर ले जाती है, यह बात मालियों ने राजा को बताई, तब राजा ने सभा बुलाई, और वहां पर यह निर्णय लिया, कि भगवान शिव का निर्माल्य बागीचे के प्रवेश द्वार पर डाल दिया जाय उस पर अदृश्‍य   शक्ति काम नहीं करती।


राज्यसभा में फैसले के बाद भगवान शिव के निर्माल्य को उपवन के प्रवेश द्वार पर खोल दिया गया। इसके परिणामस्वरूप श्री पुष्पदंत वहां पकड़ लिए गए।

पुष्पदंत को पकड़ने के  बाद में राजा ने उन्हें बंधनगृह में डाल दिया, इस पर पुष्पदंत बहुत दु:खी हुए वे कारगार मे भगवान शिव को हृदय से कहने लगे, वहीं भगवान शिव के बारे में सर्वविदित है कि भगवान शिव भक्तों के संबंध में ह्रदय से शिकायत करें अविलंब प्रकट हो जाते हैं। ऐसे ही वह तुरंत ही गंधर्वराज के सामने प्रकट हो गए।


गंधर्व पुष्पदंत ने जब हजारों चंद्र के प्रकाश के समान अलौकिक निर्मल शीतल अनुपम प्रकाश को देखा जिसे देखकर उनकी आंखें चुंधिया हुई वे आंखें मलते हुए भगवान शिव को देखते हैं।


कि भगवान शिव के ललाट पर बाल चंद्र शोभायमान थे। और शीश  पर मां गंगा शोभायमान  थी, और उनका कंठ जो कि हलाहल विष का सेवन करने के कारण नीला पड़ गया था। एक अद्भुत प्रकाश से शोभायमान हो रहा था।

  कंठ मैं बासुकीनाग, प्रभु के कंठ के शोभा बढ़ा रहे थे। रुद्राक्ष की माला प्रभु के वक्षस्थल मे लटकी हुई थी। हाथ में त्रिशूल था, बाँहों में सर्पों की माला, गज के चर्म की चादर लपेटे हुए भगवान शिव को गंधर्व राज पुष्पदंत देखते ही रह गए। प्रभु की छवि ऐसी निराली थी कि उसे देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठे थे।

गंधर्व राज पुष्पदंत ने कहा हे प्रभु मैंने आपके निर्माल्य को भूलवश लांघा मैं जानता नहीं था ,इसके लिए मैं आपसे हृदय से क्षमा मांगता हूं ,और भगवान शिव की स्तुति में उन्होंने  भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया  वह आज शिव महिम्न स्त्रोत के रूप में जाना जाता है।


जिसे भगवान शिव ने अभयदान दे दिया हो , भगवान शिव ने वरदान दे दिया हो उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है।  


दूसरे दिन राजा कारागार में उपस्थित हुआ,कहां कि आपने भगवान शिव का दर्शन किया है। अब मेरी क्या हिम्मत? कि मैं तुम्हें कारगार में बंद कर दूं। और राजा ने अपने अपराध के लिए माफी मांगी,  गंधर्व राज पुष्पदंत की गणना महान शिव भक्तों में की जाती है।


 उन्होंने प्रभास क्षेत्र में पुष्पदंन्तेश्वर शिवलिंग  की स्थापना की थी ।और संसार को जो शिव महिम्न स्त्रोत दिया है, वह करोड़ों लोगों का कल्याण कर रहा है।










अस्वीकरण
इस लेख में दी गई सूचना / सामग्री / गणना की प्रमाणिकता या प्रमाणिकता या प्रमाणिकता सूचना के विभिन्न माध्यमों / ज्योतिषियों / पंचांग / प्रवचन / पुराण / धार्मिक ग्रंथों / धर्म ग्रंथों से एसएमएस करके यह सूचना आपको प्रेषित की गई है।

 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ