शिव पुराण से यह प्रसंग लिया गया है।
माता पार्वती जी के बुलावे पर जब गंधर्वराज तुम्बरू माता पार्वती जी के समक्ष उपस्थित हुए तब माता पार्वती बोली तुम्बरू तुम मेरे मन की बातों को जानकर मेरे अभीष्ट कार्य को सिद्ध करने वाले हो, इसलिए मैं तुमसे एक बात कहती हूं, तुम्हारा कल्याण हो।
मेरी इस सखी के साथ विन्ध्य पर्वत पर जाओ, वहां एक महपिशाच रहता है।
वह पूर्व जन्म में बिंदुग नामक ब्राह्मण था। मेरी सखी चंच्चुला का पति था परंतु, वह दुष्ट वेश्यागामी हो गया, धर्म , पूजा, संध्या, कुछ भी नहीं करता,
अच्छे कर्मों को छोड़कर अपवित्र कर्म करता ,अपवित्र वस्तुओं का भक्षण ,दूषित वस्तुओं का दान लेना यही उसकी वृत्ति हो गयी थी।
जुआ खेलना, हिंसा करना, घातक अस्त्र, शस्त्र, रखना ,दिन,रात, मद्यपान करना यही उसकी दिनचर्या थी।और मृत्यु तक वह लाचार वही फँसा रहा, अंतकाल आने पर
उसकी मृत्यु हो गई वह पापियों के भोग भोगने हेतु यमपुरी में गया ,वहां बहुत यातना पाकर वह दुष्ट आत्मा इस समय पिशाच बना हुआ है।
वही पर वह आज अपने पापों का फल भोग रहा है ,तुम उसके आगे शिवपुराण की कथा का प्रवचन करो ,तथा समस्त पापों का नाश करने वाली हैं शिवपुराण की कथा का श्रवण उसको उत्कृष्ट बना देगा ।
उसका हृदय शुद्ध हो जाएगा, और कहते हैं ,महेश्वरी के इस प्रकार आदेश देने पर तुम्बरू मन ही मन बड़े प्रसन्न हो गए, उन्होंने अपने भाग्य की सराहना की, तत्पश्चात उस दिशा की कीओर, साथ मे सती साध्वी उसकी पत्नी चंच्चुला के साथ विमान पर बैठकर विंध्याचल पर्वत पर गये ।
वहाँ वह पिशाच रहता था। वहां उन्होंने उसको देखा उसका शरीर विशाल था थोढ़ी बहुत बड़ी थी, वह कभी हंसता कभी रोता, उसकी आकृति बड़ी विकराल थी ।
गंधर्व राज तुम्बरू के द्वारा भगवान शिव के शिवपुराण की कथा सुनाने का समाचार जब ऋषि ,महर्षि, मुनियों, नाग, गंधर्व को मिला तो वह भगवान शिव की कथा सुनने के लिए उस विंध्य पर्वत पर आकर इकट्ठे हो गए।
गंधर्व राज तुम्बरू के द्वारा भव्य एवं विशाल पंडाल का निर्माण कराया गया, उसके अंदर नाना प्रकार की रेशमी झालरें, अनेक प्रकार के सुगन्धित पुष्पो से उसको सुशोभित किया गया, कई प्रकार की रेशमी चादरें उसमें लगाई गई, इस प्रकार का अद्भुत पांडाल जब बनकर तैयार हुआ। तो वहां ऋषि, महर्षि , मुनियों के बैठने के लिए उत्तम आसन दिया गया।
तत्पश्चात गंधर्वराज तुम्बरू ने अपने पाश के द्वारा उस भयंकर पिशाच को पकड़ कर के वहीं पर बांध दिया और भगवान शिव की पुनीत पावन शिवपुराण की कथा को कहना प्रारंभ कर दिया।
गंधर्व राज तुम्बरू के द्वारा शिव पुराण की कथा का स्पष्ट वर्णन किया था। उस कथा को सुनने के प्रभाव से बिंदुग के सारे पाप धुल गये।
उसने पिशाच योनि को त्याग करके सुंदर देव तुल्य शरीर प्राप्त कर लिया उसके पश्चात बिंदुग अपनी प्राण बल्लभा के साथ विमान में बैठकर गंधर्व राज तुम्बरू के साथ देवी पार्वती जी के समक्ष चला गया ।
इस तरह से भगवान शिव की पवित्र पावन शिवपुराण की कथा सुनकर के बिंदुग ब्राह्मण पिशाच योनि से मुक्त होकर भगवान शिव की लोक को चला गया।
और भगवान शिव का गुणगान करने लगा ,भगवान महेश्वर का विस्तार पूर्वक श्री शिव कार्य करते हुए तुम्बरू अपने धाम चले गए।
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