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Shiv puja (भगवान शिव जी के पाँच मुखो की आराधना कैसे करनी चाहिये)

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शिव पूजा 



मन्दिर मे महादेव:-



वह पागलों  की भाॅॅॅॅति मन्दिर के चक्कर  लगाये जा रहा था।आज फिर वह इस दुनिया से दु:खी हो गया। एवं निकट के शिव मंदिर मै पहँचा।

जैसे उसकी निगाहें भगवान शिव जी की नवनिर्मित संगमरमर की मूर्ति पर पडी वह भावुक हो गया  । मूर्ति अद्भूत सुन्दर थी वह मूर्ति को देखता रह गया।


 बोला  यह  दुनिया  माया से भरी  है।  लेकिन मेरा इस दुनिया में कौन सा स्थान है, हे भोले मैं अक्सर  यही सोचता हूं, कि हर जगह  मेरा दिल टूटता है । हर जगह मुझे अपमान मिलता है।


 मेरे  प्रिय जो मैं चाहता हूं कोई नहीं करता आज की दुनिया  देखती है धन और दौलत देखती है।


 आदमी के हृदय की हो कोई नहीं देखता और आज से 100 साल पहले लोग कितने मिलनसार से एक दूसरे की सुख दुख में काम आते थे मानवता लोगों  में कूट-कूट कर भरी थी।




आज का संसार:-

आज पूरी दुनिया मशीन की  हो गई है, इस मशीन से बनी दुनिया में व्यक्ति केवल नाम मात्र का व्यक्ति है ,उसका अपना कोई वजूद नहीं है ।


वह केवल भागता  जा रहा है क्यों ?  वह भाग रहा हैं, हर कोई भाग रहा है । आखिर इस भागती हुई जिंदगी से क्या हासिल होगा ? मानवता कब जगेगी? इंसान को इंसान कब समझेगा ? इंसानियत कब पैदा होगी ? कब इंसान इंसान के काम आएगा, आखिर दुनिया बनाने वाले तुम्हारे मन में कुछ तो होगा, कुछ तो इस दुनिया का उद्देश होगा ,आपके दर्शन के लिए  हजारों लोग आते हैं।

 कितने लोग आप से प्रेम के वशीभूत होकर  हो आते हैं और कितने लोग आपको स्वार्थ  से पुकारते हैं ।  

महात्मा से भेट:-

यह सारी बातें एक महात्मा सुन रहे उन्होंने कहा यह दुनिया जिस पर चल रही है वह एक सिद्धांत है प्रकृति के द्वारा बनाए हुए  नियम,आज मनुष्य उन नियमों का अनदेखा करके स्वयं को भगवान समझ कर  अपनी मनचाही करने पर उतारू है।

  प्रकृति अपना कार्य निरंतर बिना किसी रूकावट के कर रही है। 

महात्मा जी ने उस युवक से कहा कि भगवान शिव के पांच मुख हैं पहला है, ईशान  दूसरा है अघोर, तीसरा है तत्पुरूष'  तो चौथा है वामदेव' एवं पांचवा है सद्धोजात। 

हमें भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि परम शिव का सबसे पहला रूप है वह है  ईशान, जिसका   मतलब होता है की भगवान शिव  संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी है।

 पूरी कायनात उनके अधीनस्थ है भगवान शिव की इच्छा मात्र से ही सब कुछ संभव है संपूर्ण संसार चलायमान है।

शिव का अघोरी रूप:-

शिव का दूसरा रूप है अघोर जिसका अर्थ होता है कि निन्दित कर्म करने वाले भी भगवान शिव की कृपा से निन्दित कर्म  को शुद्ध बना लेते है।

अर्थात उन पर जब भगवान शिव की कृपा हो जाती है तो ऐसे कर्म जो निन्दित  हैं वह भी अपने आप शुद्ध हो जाते।

 भगवान शिव का तीसरा रूप है तत्पुरुष जिसका मतलब होता है अपनी आत्मा में स्थित होकर लाभ प्राप्त  करना , अर्थात हदय मे स्थित परमात्मा को देखना स्वयं में स्थित  होकर मुक्त हो जाना।

आत्मा की गहराइयों में चले जाना, योग की प्राकाष्ठा को प्राप्त कर लेना,  भगवान शिव का चौथा रूप है वामदेव  जिसका जिसका मतलब है कि भगवान शिव  विकारों का नाश करने वाले है।



शिव का ध्यान:-

जब भगवान शिव का कोई भी मनुष्य  ध्यान करता है पूजा। पाठ करता है उनकी स्तुति  करता है। उनका मन से ध्यान  करता है उनका चिंतन करता है तो उसके अंदर जितने भी विकार  हैं उनका संपूर्ण शमन  हो जाता है ।


संपूर्ण विकार नष्ट हो जाते हैं  मनुष्य गंगाजल के जैसा  पवित्र बन जाता है। इसी तरह भगवान शिव का  पाँचवाँ स्वरूप है    वह  बालक के समान है। निश्छल बिना किसी कपट के जैसे एक बालक के अन्दर( छल )कपट द्वेष किसी प्रति नहीं होता है बालक  शुद्ध मन से होता है, उसी प्रकार मनुष्य को  शिव जी की आराधना  करनी चाहिये ।


अतः वत्स तुम निराश न हो एवं मेरे बतायें अनुसार शिवजी के पाँच स्वरूप का ध्यान करना अवश्य ही तुम सारे दुःखो से मुक्त हो जाओगे ।


ऊँ नमःशिवाय ,ऊँ नमःशिवाय ,ऊँ नमःशिवाय ,ऊँ नमःशिवाय, हर हर महादेव ,हर हर  महादेव ,हर हर महादेव,  हर हर महादेव ,हर हर महादेव ।


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