भगवान शिव का नाम पशुपति कैसे पड़ा
भगवान शिव का रथ पर आरूढ़ होना
भूमिका
,•त्रिपुरासुर से त्रस्त देवताओं की विनती
•भगवान शिव के लिए दिव्य रथ का निर्माण
•भगवान शिव को 'पशुपति' नाम कैसे मिला?
•शिव का रथारोहण और ब्रह्मा जी का सारथ्य
•त्रिपुर का विध्वंस और तारकाक्ष का उद्धार
•निष्कर्ष: जीवन का संदेश
भगवान शिव का "पशुपति" नाम कैसे पड़ा?
व्यास मुनि ने सनत्कुमार ऋषि से पूछा —
"मुनिवर! आप तो ज्ञान के महान स्रोत हैं। कृपया बताइए कि प्रभु शिव को पशुपति नाम से क्यों जाना जाता है?"
सनत्कुमार ऋषि ने कहा —
त्रिपुरासुर से त्रस्त देवताओं की विनती
"हे मुनिवर! त्रिपुराधिपति तारकाक्ष से समस्त देवता, ऋषि-महर्षि और सम्पूर्ण विश्व आतंकित था। सभी देवता मिलकर देवाधिदेव महादेव के पास गए।
सभी ने प्रार्थना की — 'प्रभु! त्रिपुर का नाश कर दीजिए, हम सब राक्षसों से बहुत पीड़ित हैं।'
भगवान शिव मुस्कुराए और कहा —
'ठीक है, मैं त्रिपुर का संहार करूँगा।'
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भगवान शिव के लिए दिव्य रथ का निर्माण
•देव शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक अद्भुत रथ बनाया।
•रथ स्वर्ण से मढ़ा था।
•रथ के दाएँ पहिए में 12 अरे थे (बारहों सूर्य), बाएँ पहिए में 16 अरे (चंद्रमा की सोलह कलाएं)।
•रथ के अरे 27 नक्षत्रों से सुशोभित थे।
•नागराज वासुकी रथ का मेरुदण्ड बने, मंदराचल रथ की सीट बना।
•रथ के घोड़े वेद बने, और उनके आभूषण पुराण, उपनिषद व मीमांसा से बने।
•गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी पवित्र नदियाँ स्त्रियों का रूप धरकर चंवर डुलाने लगीं।
•रथ का ऊपरी भाग स्वर्गलोक और निचला भाग पाताल लोक से निर्मित था।
•हिमालय धनुष बना, शेषनाग धनुष की प्रत्यंचा बने।
•स्वयं भगवान विष्णु बाण बने और अग्नि देव बाण की नोक बने।
•सरस्वती देवी धनुष की घंटी स्वरूप विराजित हुईं।
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ब्रह्मा जी बने सारथी
ब्रह्मा जी रथ के सारथी बने।
सनत्कुमार बोले — "हे मुनिवर! संक्षेप में कहूँ तो संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्तियाँ उस रथ में समाहित थीं।"
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भगवान शिव का "पशुपति" नाम कैसे मिला?
सभी देवता बोले —
"हे प्रभु! यह अभिजित मुहूर्त है और त्रिपुर एक साथ हैं। यही उपयुक्त समय है त्रिपुर का संहार करने का।"
भगवान शिव बोले —
"पहले अपने मन में समस्त पशुओं का भाव लाओ।"
देवता मौन रहे। तब भगवान शिव ने दया कर कहा —
"चिंता मत करो! जब तुम पशु भाव को धारण करोगे, तो मैं तुम्हारा अधिपति बनूँगा — इसलिए मेरा नाम पशुपति होगा।"
देवताओं ने पशु भाव अपनाया और शिवजी पशुपति कहलाए।
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शिव का रथारोहण और ब्रह्मा जी का सारथ्य
•जब भगवान शिव रथ पर चढ़े —
•पृथ्वी काँपने लगी।
•वेद रूपी अश्व (घोड़े) गिर पड़े।
•वासुकि और नंदीश्वर भी भार वहन न कर सके।
•ब्रह्मा जी ने चाबुक से अश्वों को संभाला और रथ चल पड़ा।
•आकाश से पुष्पवर्षा हुई, दुंदुभी बज उठी, अप्सराएँ नृत्य करने लगीं।
•सभी देवता भगवान शिव के आगे-आगे चलने लगे।
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वाण का संधान और त्रिपुर का विध्वंस
भगवान शिव ने वाण साधा,
परंतु वाण के अग्रभाग में गणेश जी विराजमान थे, जिससे लक्ष्य चूक रहा था।
गणेश पूजन के बिना कार्य सिद्ध न होना
तभी आकाशवाणी हुई —
"हे शिव! गजानन की पूजा करो।"
भगवान शिव ने भद्रकाली द्वारा गणेश जी का पूजन कराया।
गणेश जी प्रसन्न हुए।
फिर भगवान शिव ने वाण छोड़ा —
विष्णु रूपी वाण अग्निदेव सहित त्रिपुर को जलाकर नष्ट कर दिया।
त्रिपुर का विनाश हो गया।
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तारकाक्ष की प्रार्थना
तारकाक्ष ने शिवजी से प्रार्थना की —
"हे प्रभु! हर जन्म में आपके चरणों में मेरी भक्ति बनी रहे।"
भगवान शिव ने कृपा कर तारकाक्ष की प्रार्थना स्वीकार की।
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मय दानव का बच जाना
त्रिपुर में केवल मय दानव बचा,
क्योंकि वह शिव भक्त था और देवताओं का विरोध नहीं करता था।
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निष्कर्ष
•हमें सदैव शुभ कर्म करना चाहिए।
•दुष्कर्मों का अंत निश्चित है।
•भक्ति और शुभ विचारों से ही सच्चा कल्याण संभव है।
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