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Shiv puja शिव विवाह

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शिव कथा
भगवान शिव और पार्वती के विवाह के आख्यान को जो व्यक्ति पढ़ता है ,सुनता, है एवं अन्य ब्राह्मणों को सुनाता है,( लिंग पुराण में आया है) कि उसको परम पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव की अपार कृपा से लाभान्वित होता है।

ब्रह्मा जी का आचार्य पद पर आसीन होना

माता पार्वती जी के स्वयंवर  के पश्चात ब्रह्मा जी, विष्णु से बोले हे कमलनयन, आप भगवान शिव के  अंग है, एवं
मैं भी भगवान शिव के अंग से उत्पन्न हुआ हूं। एवं आप की नाभि कमल से उत्पन्न हुआ हूं। इस तरह से आप मेरे जनक भी हैं और गुरु भी हैं ।


इसलिए मैं आपको सर्वप्रथम प्रणाम करता हूं, और जगत माता जो कि भगवान शिव के  अंग से  उत्पन्न है,  वह माया रूप से ही पार्वती के रूप में है ।परंतु वही सृष्टि का आदि  कारण है। भगवान शिव (नक्षत्र ,चंद्र ,सूर्य ,पृथ्वी, आकाश, वायु, यह सभी  भगवान शिव की  मूर्तियां हैं 


विवाह का निमंत्रण 

जगत के सुख मात्र के लिए आज माता पार्वती का विवाह संपन्न होने जा रहा है,  इसके अंदर संपूर्ण लोगों को निमंत्रण जा चुका  है ।


मैं  स्वयं आचार्य पद पर रह करके भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराऊँगा। ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के विवाह का विस्तृत वर्णन  उपस्थित लोगों  को समझाया ।


भगवान शिव के विवाह की सूचना चारों  तरफ पहुंच चुकी थी, एवं  सभी लोग अपने -अपने वाहन से भगवान शिव के विवाह स्थल पर उपस्थित हो चुके थे।

करोड़ों- करोड़ों गण भी वहां पहुंचे  थे। यक्ष, किन्नर , नाग, गंधर्व ,देवता, ऋषि ,महर्षि, जो भी जहां था,जिसने भी सुना था ,सब भगवान शिव के विवाह स्थल  पर पहुंचे थे।

भगवान शिव का श्रृंगार:-

अद्भुत श्रृंगार  किया गया था, भगवान शिव का परमपिता परमेश्वर, नील लोहित, नीलकंठेश्वर ,आशुतोष ,बर्फानी बाबा, महाकाल, के विवाह के समय जब उनका श्रृंगार किया गया तो इस प्रकार की शोभा हुई जैसा कि तीनो लोक में किसी भी दूल्हे को नहीं सजाया गया था ।

बारातियों की वेशभूषा
ब्रह्मा जी के आदेशानुसार सभी लोग भगवान शंकर जी के विवाह की तैयारी में लग गए थे, नाना प्रकार के  श्रृंगार  एवं अमूल्य वस्त्रों ,एवं बेशकीमती आभूषणों से सुसज्जित होकर सभी   लोग विवाह स्थल पर उपस्थित थे ।


 इधर रूद्र गण भी वर रूप में भगवान शंकर का श्रृंगार कर एवं उनके बाराती बन  कर भगवान शिव के साथ चल पड़े, शंकर जी के अद्भुत एवं विकट  वेष को देखकर देवकन्याएँ मुस्कुराने लगी ।


स्वयं भगवान शंकर जी भी अपने गणों  के रूप आकार और वाहनों को देखकर हंस पड़े ।इधर पर्वतराज हिमालय ने बारातियों के स्वागत? के लिए अनुपम मंडप की रचना की थी,


 सभी नदी ,पर्वत ,वन सागर, सब लोग मूर्तिमान (साकार) होकर  बहुत ही सुंदर वस्त्रों को धारण कर एवं नाना प्रकार के अलंकारों से अलंकृत होकर करके बारात में आए हुए थे ।

सारे बाराती पर्वतराज हिमालय की नगर में पहुंचे कई प्रकार के देवता उसमें शामिल थे विभिन्न देवताओं के विभिन्न मनोहारी रूप को देखकर के नगरवासी बहुत प्रसन्न हुए  जब उन्होंने रूद्र गणों के बीच विकट वेशभूषा धारण किए हुए शिव का दर्शन किया तो उनके वाहन भड़क कर भाग गए।


मैना रानी का भगवान शिव  के अद्भुत एवं विकट रूप से विचलित होना

 मैना रानी मंगल आरती के बीच अमंगल रूप मे शिव को देखकर अत्यंत दुखी थी ।आरती करने के बाद वह अंतः पुर 
 में चली गई।

और पार्वती को गोद में बैठाकर के नाना प्रकार से रुदन करने लगी ,विलाप करने लगी। तभी देवर्षि  नारद वहां पर आये एवं  उन्होंने देवी मैना  को पार्वती जी के पूर्व जन्म की कथा सुनाई।


 और कहा देवी ,चिंता मत करें भगवान शिव का और देवी सती का सनातन  संबंध है, एक शक्ति ही देवी पार्वती और भगवान शिव है । दोनो का संबन्ध  नित्य है।

 जब यह सब जब  मैंना  ने , देवर्षि नारद के मुखारविंद से सुना  , तो  जो सबके चेहरो पर उदासी  छाई हुई थी। वह दूर हो गयी, सब लोगो के चेहरों पर खुशी लौट आई।

विवाह की तैयारी 


हजारों ऋषि-मुनियों ने वेद मंत्रों से अग्नि को प्रज्वलित किया  इसके पश्चात ब्रह्मा जी ने  उपाध्याय का पद धारण किया। एवं भगवान शिव से बोले हे प्रभु आज तक जिस विधि का विवाह में प्रयोग नहीं हुआ है मैं उसी विधि से आप लोगों का विवाह करवाना चाहता हूं ।


भगवान शिव जी ने कहा कि  ठीक है,  जैसी तुम्हारी मर्जी इसके बाद ब्रह्मा जी ने भगवान शिव और पार्वती जी का हाथ लेकर के एक दूसरे के हाथ पर रखा एवं  मंत्र उच्चारण किया।

भगवान विष्णु का पार्वती के भाई की भूमिका अदा करना


उसके बाद भगवान विष्णु ने पार्वती जी के भाई के रूप में सारी भूमिका अदा करी । साक्षात रुप से अग्नि ने वहां पर उपस्थित होकर विवाह स्थल पर हाविष्य ग्रहण किया । इसके बाद ब्रह्म  जी ने भगवान शिव और पार्वती का हाथ से हाथ  छुड़ाकर के विवाह की आगे की गतिविधियां संपन्न की । एवं  विवाह  सम्पूर्ण विधि -विधान  के द्वारा सम्पूर्ण हुआ ।


विष्णु जी को अविचल भक्ति प्रदान करना 


ब्रह्म जी ने आचार्य की भूमिका निभाई थी। पर उसके    बाद विष्णु ने भगवान शिव को (अपने आप को समर्पित कर)  दिया जिससे भगवान शिव ने अत्यंत  प्रसन्न होकर कर  विष्णु जी को अविचल भक्ति प्रदान की।

पुष्प  वर्षा 


आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी, गंधर्व गान  करने लगे, आकाशचारी  सिद्ध  पुष्प वर्षा करने लगे ।चारों तरफ आनंद ही आनंद छा गया, देव दुन्दभी बजने लगी।   नगाड़े बजने लगे, अप्सराएं नृत्य करने लगी, एवं सारे देवता हर्षनाद करने लगे।

तत्पश्चात  सभी देवताओं को आशीर्वाद देकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए, भगवान शिव के अंतर्ध्यान हो जाने के बाद सारे उपस्थित देवता वहां से अपने अपने लोग को चले गए।

ऊँ नमःशिवाय, ऊँ नमःशिवाय, ऊँ नमःशिवाय,  ऊँ नमःशिवाय, ऊँ नमःशिवाय, ऊँ नमःशिवाय,

 हर हर महादेव, हर हर  महादेव, हर हर महादेव हर हर  महादेव । 


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