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Shiv puja शिव पूजा कैसे करनी चाहिये शिव आराधना के क्या लाभ होते है


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भगवान शिव की भक्ति और पूर्ण समर्पण से मनुष्य   वरदान देने में भी सक्षम हो जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महर्षि जमदग्नि ने अपने पुत्रशुराम को वरदान दिया था। 


कि संसार का कोई भी राजा युद्ध में उन्हें जीत नहीं सकता। ॠषि   जमदग्नि बहुत  बड़े शिव भक्त थे। उसी तरह से राजा शांतनु ने भीष्म पितामह को आशीर्वाद दिया था पुत्र आप इच्छा मृत्यु को प्राप्त हो।



अगस्त मुनि ने एक बार भगवान श्रीराम को भगवान शिव की महिमा के बारे में बताते हुए कहा था कि आपको शिव की पूजा करनी चाहिए।


यह उस समय की बात है जब रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लिया गया था।एवं भगवान श्री राम विक्षिप्त की भानति वृक्ष- पशु सभी से पूछ रहे थे क्या आपने मेरी वैदेही अर्थात सितार को देखा है?



उसी समय महामुनि अगस्त आ पहुंचे और उन्होंने राम की दशा को जब देखा तो मन में सोचा कि प्रभु भी मनुष्य के रूप में कितना सजीव चित्रण कर रहे हैं।







ऐसा सजीव मनुष्य चित्रण को देखकर अगस्त मुनि मन ही मन भगवान श्रीराम को प्रणाम करते हैं। और फिर उन्हें त्रिलोकीनाथ ना समझ कर एक सामान्य मनुष्य समझ कर कहते हैं।


उन्होंने कहा कि हे राम, आप अपनी स्त्री में आसक्ति छोड़ो, यथार्थ को समझो आप इस समय मनुष्य के रूप में उचित कर्तव्य करो, आपको इतना वियोग करना शोभा नहीं देता।


तब भगवान श्री राम बोले- हे मुनिवर, मैं अपने दिल को बहुत समझाता हूं, लेकिन मेरा दिल नहीं मानता । समझ में नहीं आता। अब  आप ही कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरे हदय का संताप दूर हो।


इस पर महामुनि अगस्त्य ने कहा, हे राम आप अपने स्वरूप को पहचानिए, आप में और त्रिदेवों में कोई अंतर नहीं है, आप इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव की अर्चना लें, भगवान भोलेनाथ परम दयालु हैं, वह आपकी हर मुश्किल का अंत कर देंगे, आपका कल्याण होगा। इसलिए हे श्री राम, आप भगवान शिव की पूजा करें, उन्हें वरदान प्राप्त करके, रावण से युद्ध करें,इससे आपकी विजय होगी।


क्योंकि भगवान शिव जी ही ऐसे देवता हैं जोकि देवों के भी देव हैं और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी शिवजी की आराधना बहुत जरूरी है।


तब श्री प्रभु श्री राम ने भगवान शिव की स्तुति की, एवं रावण को मारने के पहले रोज भगवान शिव को अपनी भक्ति एवं समर्पण से प्रसन्न करके कई प्रकार के दिव्यास्त्र भी प्राप्त किए थे। 


दिव्यास्त्रो को देते समय हुए शिव ने कहा कि, हे राम रावण मेरा परम भक्त है।एवं मैं नहीं चाहता कि वह मृत्यु को प्राप्त हो, लेकिन मैं धर्म का ही साथ दूंगा। हे राम, जो किसी भी व्यक्ति के धर्म के मार्ग पर चलता है, वह दुनिया की लाख विपत्ति आने पर भी उसी की विजय होती है। 


क्योंकि जिसके साथ धर्म होता है उसका कभी पराजय नहीं होता। रावण का साथ धर्म ने छोड़ दिया है। इसलिए वह कितना बलशाली क्यों ना हो। पराजय निश्चित है 


इस तरह से भगवान शिव की महिमा सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है।


ब्रह्मा जी ने एक बार महर्षि गौतम से कहा हे, ॠषिवर भगवान शिव का नाम जिस मनुष्य के कंठ में रहता है। वह स्वयं नीलकंठ हो जाता है।


इसलिए शिव नाम के प्रभाव को समझकर मनुष्य को सदैव भगवान शिव के नाम का ही उच्चारण और ध्यान देना चाहिए। 


भगवान शिव का नाम अमृत के समान है। सभी को शिव नाम रूपी अमृत का पान करना चाहिए जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तो बिना भगवान शिव की कृपा के शिव नाम होठों पर नहीं आता है।


वेदों, आगमों, स्मृतियो मे शिव का परब्रह्म तत्व: 

वेदों के भीतर आगम और स्मृतियों में जब हम देखते हैं तो हमें भगवान शिव के परब्रह्म तत्व का ज्ञान होता है वेद में परब्रह्म भगवान रुद्र का उल्लेख है।

रूद्र अध्याय की शुरुआत, हम देखते हैं पूरे अध्याय की शुरुआत भगवान शिव के ऊँ नमो भगवते रुद्राय से हुई है। मेरू तंत्र में रूद्र पाठ के प्रभेदों का उल्लेख मिलता है। लघु रूद की 11 आवृतियो के समाहार- पाठऔर जप को महारुद्र कहते हैं इससे जप एवं घर करने से महा दरिद्र व्यक्ति भी धनवान बन जाता है। 'कैवल्योपनिषदलघु रूद्र, महारुद्र, और अति रुद्र:। मेरू तंत्र में रूद्र पाठ के प्रभेदों का उल्लेख मिलता है।


लघु रूद की 11 आवृतियो के समाहार- पाठ और जप को महारुद्र कहते हैं। इससे जप एवं तप करने से महा दरिद्र व्यक्ति भी धनवान बन जाता है।
'
कैवल्योपनिषद
' के अनुसार बताया गया है कि रुद्राध्याय का एक बार भी जप करने से ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है।












ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय ?ओम नमः शिवाय, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव, हर-हर महादेव।


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