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Shiv puja वाणासुर की शिव आराधना

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शिव पूजा 

भगवान शिव का परम भक्त स्कंदपुराण मे...


बाणासुर के बारे मे वर्णित है कि, वाणासुर शिव जी का परम भक्त था। शिव की तपस्या द्वारा सहस्त्र बाँह प्राप्त  कर  सहस्त्रबाहु  के नाम  से प्रसिद्ध था। 

कठोर तपस्या 

बाणासुर ने 10000 वर्षों तक कठोर तप किया था

बाणासुर का  इतिहास:-
भगवान विष्णु के परम भक्त हुए पहलाद जी, ऐसे परम भक्त  हुए, कि उनके प्रभाव से उनका सारा वंश भक्त हो गया। प्रहलाद जी भगवान विष्णु के परम भक्त थे।

उनके पिता  के द्वारा लाख यातनाएं देने के बाद भी प्रहलाद जी  ने भक्ति नहीं छोड़ी ,वह अखंड भक्ति करते रहे। इस भक्ति से प्रसन्न होकर ,भगवान विष्णु ने प्रह्लाद  जी को दर्शन दे दिये।



उसके बाद भगवान विष्णु की भक्ति से प्रह्लाद जी  ने अखंड  राज्य किया ।इनके पुत्र विरोचन थे ,और विरोचन के पुत्र राक्षसों  में सर्वश्रेष्ठ राजा बलि हुए जिनके दान की महत्ता  पूरे संसार में की जाती है ।


जिनसे दान लेने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को वामन रूप में पृथ्वी पर आना पड़ा था ।बलि के 100 पुत्र थे, उन्ही   पुत्रों में बाणासुर  सबसे बड़ा था ।

इसकी राजधानी केदारनाथ जी के पास सोनितपुर थी ।इनके बारे में प्रचलित है,  कि जब प्रभु शंकर जी नृत्य  करते थे,  तो वाणासुर  अपने हजार हाथों से बाजा बजाते थे।

एक दिन भगवान शंकर वाणासुर  की सेवा से बड़े प्रसन्न  हो गए, और उन्होंने वरदान मांगने को कहा तो,वाणासुर ने प्रार्थना की, हे प्रभु,  मुझे आपकी ऐसी कृपा चाहिए कि विष्णु भगवान मेरे पिताजी के पास साक्षात विराजमान रहकर, उनके  पुर की रक्षा करें, इस प्रकार  मेरी राजधानी मे निवास करते रहे।


भगवान शिव बोले तथास्तू , लेकिन कहां जाता है कि ,जब अधिक बल हो जाता है ,विद्या हो जाती है ,तो व्यक्ति का अभिमान बहुत बढ़ जाता है।


सिद्धियों की प्राप्ति:-

भगवान शिव की आराधना करके वाणासुर ने असीम  शक्तियां प्राप्त की थी।

उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे  तीन नगर प्रदान किए थे ।इसमें एक नगर सोने का बना हुआ था, दूसरा नगर चांदी का बना हुआ था ,और तीसरा नगर लोहे का बना हुआ था ।इसलिए  इनको त्रिपुर कहा जाता था।

त्रिपुर की संरचना 

यह तीनो नगर अभेद्य  एवं अजेय  थे। अर्थात इन नगर को ना कोई जीत सकता था, और ना ही कोई इनको भेद सकता था। जिसकी वजह से वाणासुर  ने बहुत उत्पात मचाया हुआ था।

वाणासुर के अत्याचार ;-

उसे कोई भी सुंदर वस्तु दिखती ,वह उसे तुरंत पाने के लिए लालायित हो जाता था। उसने अनेक सुंदरियों को जबरदस्ती से अपने यहां कैद कर रखा था।


उसे कोई भी स्त्री पसंद आती थी ,तो उसे उठा लाता।
उसके अत्याचारों से चारों तरफ हाहाकार मच गया, इसके बाद भी वह नहीं माना, तो उसने स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी, और वहां चढ़ाई करके उसने देवराज इंद्र को पराजित कर दिया, और देवताओं को खदेड़ दिया।


सारे देवता विवश होकर भगवान शिव की शरण में आए और कहां हे प्रभु बाणासुर के अत्याचारों से तीनो लोक में हाहाकार मचा है, इसलिए कृपया हमें इसके अत्याचारों से मुक्त कराइए।

भगवान शिव के द्वारा आश्वासन:-

तब भगवान शिव ने देवताओं को आश्वासन दिया कि आप लोग घबराइए मत , मैं अति शीघ्र ही आप लोगों को वाणासुर  के अत्याचारों से मुक्त कराऊंगा ।


तब भगवान शिव ने नारद जी को स्मरण किया एवं नारद  जी से कहा कि  हे नारद ,त्रिपुर में जाओ और वहां की स्त्रियों में जो कि सती और पतिव्रता धर्म को मानने वाली है। 


उनके अंदर ऐसे भाव भर दो कि, वह दूसरे धर्म को मानने एवं दूसरे देवताओं की पूजा पाठ पर लग जाए ।जिससे कि उनका अपने पति की सेवा में मन कम लगेगा, और इससे उनका पातिव्रत्य   क्षीण  हो जाएगा ।तब त्रिपुर को जीतना आसान होगा।


भगवान शिव की आज्ञा मानकर के नारद जी   त्रिपुर में गए एवं अपनी  वाणी और तेज के द्वारा वहां की स्त्रियों को उन्होंने अन्य देवी देवताओं की पूजा में लगा   दिया ।


और इस तरह से वापस भगवान शिव के पास लौट आए स्त्रियों के अन्य देवी देवताओं की आराधना से त्रिपुर   की शक्ति कम हो गई।


तब भगवान शिव जी ने अपने धनुष को टंकार   दी,  जिससे कि तीनों लोक  काँप  गए । इसके बाद से उन्होंन  एक वाण का संधान किया, एवं उसे त्रिपुर पर छोड़ दिया, जिससे कि त्रिपुर जलने लगा।


यह देख कर के वाणासुर काफी घबराया, वह भगवान शिव के शिवलिंग को सिर पर रखकर  भगवान शिव जी की  शरण में आया,और बोला हे प्रभु आप चाहे तो मेरी जान ले लीजिए, परंतु यह शिवलिंग मुझे प्राणों से भी ज्यादा प्रिय है।


इस शिवलिंग की रक्षा कीजिए ,यह सुनकर  भगवान शिव प्रसन्न हो गए । और वाणासुर को अभय दे दिया।

इसके बाद वाणासुर  शिव आराधना के लिये,  एक पर्वत पर चला गया, एवं सारे देवताओं मे हर्ष व्याप्त हो गया। सभी ने मिलकर भगवान शिव जी की स्तुति की।
 एवं अपने लोक को  चले गए ।  
 



ऊँ नमःशिवाय, ऊँ नमःशिवाय ऊँ नमः शिवाय,ओम नमः शिवाय,ओम नमः शिवाय ।

 




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