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Shiv puja (Lord shiva story in hindi) ( हरिकेश यक्ष की महान शिव भक्ति एवं काशी में दण्डपाणि पद की प्राप्ति ( शिव आराधना)

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यह कहानी है, एक यक्ष की, शिव भक्ति की, दुर्लभ शिव भक्ति की, भगवान शिव जी की भक्ति की कहानी बहुत समय पहले की बात है, एक यक्ष रहा था। उसका पास

धन और दौलत की कमी नहीं थी। लेकिन एक चीज की कमी थी उसे, उसने सोचा कि मेरे पास राज्य धन दौलत एक पैसा सब कुछ है। लेकिन मेरे मरने के बाद उसका भोग  करने वाला कोई नहीं है। इसलिए वह हमेशा चिंतामग्न रहते थे। 



यह उनकी पत्नी से नहीं देखा गया। उन्होंने कहा स्वामी, आप इतनी चिंता क्यों करते हैं? आप  शिव आराधना क्यों नहीं करते? भगवान शिव की आराधना से संसार में सब कुछ प्राप्त हो सकता है।


भगवान शिव  प्रसन्न हो, तो आराधक को  धन दौलत, रुपये, पैसै, पुत्र, पत्नी, किसी भी चीज की कोई कमी नहीं  होती है।


भगवान शिव की कृपा से हमेशा भाग्य को अनुकूल   बनाया जाता है, शिव भाग्य के लिखे को  भी बदल सकते हैं। 


अपनी पत्नी की बात सुनकर यक्ष ने शिव की  प्रसन्नता    लिए कठोर तपस्या शुरू की,  कठोर साधना के कारण  उसे  बहुत ही सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम हरिकेश पड़ा।

हरिकेश जब आठ साल का हुआ तभी से बालू का शिवलिंग रहने का अक्षर, गंगा जल लेकर उस शिवलिंग पर चढाता और उसे भगवान शिव का पूजन करता था।
8 साल की उम्र में जो उनके दोस्त थे उन्होंने अलग-अलग नाम रखे थे।

किसी को चंद्रशेखर बताता था, किसी को महादेव बताता था, किसी को आशुतोष बताता था, किसी को नीलकंठ बताता था, किसी को शंकर बताता था, किसी को शिव बताता था, किसी को शंभू बताता था।

 उनकी आंखें हमेशा भगवान शिव का ही दर्शन करती थीं। उनके होंठ हमेशा भगवान शिव का नाम लेते थे। उनके पांव हमेशा भगवान शिव के दर्शन के लिए उठाते थे। उनके हाथ भगवान शिव की सेवा के लिए फूल चुने हुए थे।

उनके सारे काम शिवपरायण होते थे उनका दिमाग हमेशा भगवान शिव को ही देखता था।

 वह नींद में भगवान शिव के सपने देखता रहता था।

हरिकेश की हालत देखकर उसके पिता ने सोचा कि इसे गृह कार्य में लगा दिया जाए लेकिन हरिकेश का मन इसमें नहीं लगा।

और हरिकेश एक दिन घर से निकल गया फिर उसने कहा हे ईश्वर, हे भगवान शिव, मैं जहां जाऊं तब तक उसके मन में विचार आया कि मैं काशी के अंदर जाऊं काशीपुरी मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है काशी का निवास मुझे मोक्ष प्रदान करेगा।

 इसी भगवान शिव की तृष्णा के लिए वह आनंदवन में समाधि लगा कर बैठे ।कुछ समय का चुनाव किया तो भगवान शंकर पार्वती जी के साथ में आनंद वन मे विचिरण (देखने के लिए) निकले, आनंद वन में नाना प्रकार के पुष्प चंपा चंपा चमेली केतकी नागरानी, ​​पुष्प के निशाने पर थे।

 उन सुगंधित गंधों से मन मस्त हो जाता है वहां पहुंचकर भगवान शिव बोले देवी आनंदवन मुझे बहुत ही प्रिय है।

 इसमें जो जीव मर जाते हैं उनका जन्म का बंधन नहीं होता है वह संसार में जन्म नहीं लेते हैं फिर से गर्भाशय में नहीं आते हैं एवं इस तरह बातचीत करते हुए वहां पहुंचते हैं जहां आनंद वन मे हरिकेश समाधि स्थिति स्थिति थी।

 तब तक माता पार्वती ने कहा हे प्रभु हरिकेश आपका परम भक्त इसे वरदान देकर इसका मनोकामना पूर्ण रूप से देता है।

 यह सब सुनकर भगवान शिव जो भक्त वत्सल हैं, दया के सागर हैं उनका हृदय करुणा से भर गया, और उन्होंने हरिकेश को हाथ से स्पर्श किया, भगवान शिव के स्पर्श करते ही हरिकेश की आंखें खुल गईं।


और वह भगवान शिव के चरणों में गिर पड़ा बोला प्रभु आपका दर्शन हो गया मेरे भाग्य जग गए मैं धन्य हुआ आपके अमृतमय हाथो का स्पर्श मेरे शरीर में नया संचार पैदा कर रहा है।

हे प्रभु मैं किस कंठ से आप की पूजा करू हरिकेश का गला अवरुद्ध हो गया। 
तब भगवान शिव ने हरिकेश को उठाया और कहा कि तुम गणेश पूरी हो गई, तपस्या पूरी हो गई, मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं ।मुझसे नो वर मांग लो, तब हरिकेश बोला प्रभु तुम्हारे दर्शन हो गए, इससे बड़ा वर मेरे जीवन में क्या है ? इस पर प्रसन्न हो कर भगवान शिवजी ने उन्हें उस क्षेत्र का दंडपाणि बना दिया।


  तब भगवान शिव जी की कृपा से हरिकेश काशी में दंडपाणि के रूप में भक्तों का कल्याण करने लगे।

 हर हर महादेव ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय  

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