रावण संहिता और भगवान शिव की आराधना | रावण संहिता और लिंग पुराण के उपाय
रावण संहिता और भगवान शिव की आराधना: एक गहन दृष्टि

सारे राक्षसों का वध करने के बाद जब प्रभु श्रीराम ने राजसिंहासन ग्रहण किया, तो उनके बल, पराक्रम और प्रतिष्ठा की प्रशंसा के लिए सारे ऋषि अयोध्या में आए।
ऋषियों का आगमन और सम्मान
सभी ऋषिगण महल के दरवाजे पर खड़े थे, और उनकी तेजस्विता अग्नि के समान थी। द्वारपालों ने उनका आदर सत्कार किया। भगवान श्रीराम ने हाथ जोड़कर उनका स्वागत किया और बड़े आदर भाव से प्रत्येक ऋषि को एक-एक गाय का दान दिया। इसके बाद उन्हें स्वर्ण के आसन पर बैठाया और उनकी कुशलक्षेम पूछी।
"हे महाबाहो रघुनंदन, आपके आशीर्वाद से हम सभी कुशल हैं। आपके द्वारा रावण का वध होना हम सौभाग्य समझते हैं, परंतु इंद्रजीत का वध सुनकर हम अधिक आश्चर्यचकित हैं। इंद्रजीत बहुत मायावी था और उससे युद्ध में विजय प्राप्त करना अत्यंत कठिन था।"
रावण संहिता: भगवान शिव को प्रसन्न करने का उपाय
- केवल भगवान शिव ही आराधना के योग्य हैं।
- मनुष्य जन्म प्राप्त करके यदि कोई शिव की आराधना नहीं करता, तो वह सबसे बड़ा पापी है।
- इस दुर्लभ मानव जीवन का सदुपयोग भगवान शिव की आराधना में करना चाहिए।
- यथासंभव भक्ति और शक्ति से भगवान शिव की आराधना करें।
- साधक को पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसका पूजन करना चाहिए।
- ध्यान के लिए कैलाश पर्वत का ध्यान करें, जिस पर चांदी के समान चमकता हुआ भगवान शिव का सिंहासन है।
लिंग पुराण में भगवान शिव को प्रसन्न करने का उपाय
- ध्यान रूपी अमृत से संसार रूपी दृश्य और धर्म से ज्ञान प्राप्त होता है।
- साक्षात ज्ञान से वैराग्य उत्पन्न होता है और वैराग्य से परमज्ञान का प्रकाश उत्पन्न होता है।
- भक्त जो श्रद्धा और पाखंड रहित होकर गुरु की सेवा करता है, धर्म में निष्ठावान रहता है, वह स्वास्थ्य और शांति से युक्त जीवन प्राप्त करता है।
- शिव आराधना से आसक्ति रहित साधक कालकूट से मुक्त होता है।
- भगवान शिव की कृपा से मुक्ति प्राप्त करने वाला प्राणी चाहे बालक हो, युवावस्था में हो, वृद्ध हो या किसी अवस्था में हो, मुक्त हो जाता है।
- भगवान शिव ने संपूर्ण जगत और सभी जीवों की उत्पत्ति की है।
संसार और दुःख की व्याख्या
- गर्भ में, पृथ्वी पर, युवावस्था, वृद्धावस्था और मृत्यु के समय प्राणी अनेक दुःख भोगते हैं।
- वासना, संसारिक सुख, धन और इच्छाओं से सच्चा सुख नहीं मिलता।
- पिशाचलोक, राक्षसलोक, गंधर्वलोक, चंद्रलोक, बुधलोक आदि सभी लोकों में दुःख है।
- सभी प्राणी राग, द्वेष और अनेक रोगों से ग्रस्त रहते हैं।
- जैसे जड़ से कटा वृक्ष गिरता है, वैसे ही स्वर्ग में पुण्य समाप्त होने पर प्राणी पृथ्वी पर लौट आते हैं।
- दुःख प्राणी की इच्छाओं और आसक्तियों से उत्पन्न होते हैं।
निष्कर्ष
भगवान शिव की आराधना और ध्यान साधना से प्राणी मुक्ति, सुख और वैराग्य की ओर अग्रसर होता है। रावण संहिता और लिंग पुराण के अनुसार साधक को ध्यान, भक्ति और गुरु की सेवा में निरंतर रहना चाहिए।
डिस्क्लेमर: यह सामग्री धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों के आधार पर प्रस्तुत की गई है। इसका उद्देश्य केवल ज्ञान और शिक्षा प्रदान करना है।
इसमें वर्णित कथाएँ और उपाय आध्यात्मिक संदर्भ में हैं। व्यक्तिगत, चिकित्सीय या आर्थिक निर्णयों के लिए इसे वास्तविक मार्गदर्शन न मानें।
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