रावण संहिता के अनुसार
सारे राक्षसों का वध करने के बाद जब प्रभु श्री राम जी ने राज सिंहासन ग्रहण किया तो प्रभु श्री राम के बल पराक्रम एव प्रशंसा के लिए सारे ॠषि अयोध्या में आए।
सभी ऋषिगण महल के दरवाजे पर खड़े हो गए । सभी अग्नि के समान तेजस्वी थे। द्वारपालों ने जाकर उनका आदर सत्कार किया।
महर्षि के आगमन सुनकर के भगवान श्रीराम हाथ जोड़कर के उठ खड़े हुए, एवं सभी ॠषियो का उन्होंने पूजन किया, और बड़े आदर भाव से सबको 1-1 गाय का दान किया ।
इसके बाद प्रणाम करके स्वर्ण के आसन पर बैठाया एवं, भगवान श्रीराम ने उन सब की कुशलक्षेम पूछी तब उन्होंने कहा हे महाबाहो रघुनंदन, आपके आशीर्वाद से हम सभी लोग कुशल से हैं।
हे श्री राम आप ने रावण का वध किया, जिसे हम अपना सौभाग्य समझते हैं। तो रावण का वध सुनकर हम इतने आश्चर्य मे नही पड़े, जितना कि इंद्रजीत का वध सुनकर आश्चर्य में पड़े हैं।
इंद्रजीत को युद्ध में आपने (लक्ष्मण) ने मार दिया, तो उसका वध सुनकर हम लोग बड़े आश्चर्य में पड़ गए है।
क्योंकि इंद्रजीत बहुत मायावी था। उससे माया युद्ध में जीतना बहुत मुश्किल था।
रावण संहिता भगवान शिव को प्रसन्न करने का उपाय
रावण संहिता में रावण ने भगवान शिव की आराधना के संबंध में बताया है कि , केवल भगवान शिव ही आराधना के योग्य है
मनुष्य जन्म को प्राप्त करके जो मनुष्य शिव की आराधना नहीं करता, उससे बड़ा संसार में कोई भी पापी नहीं है।
इस दुर्लभ मनुष्य शरीर को पाकर भगवान शिव की आराधना पूजा करनी चाहिए, भगवान शिव का भजन करना चाहिए। भगवान शिव की महिमा को तो सारे शास्त्र और सारे देवता भी नहीं बता सकते हैं। लेकिन फिर भी यथासंभव जितनी शक्ति हो जितनी भक्ति हो उतने से ही उतने से ही यदि आपने प्रयत्न किया तो भगवान शिव से प्रसन्न होते हैं ।
भगवान शिव के साधकों को इस लोक में भी सुख मिलता है और परलोक में सुख प्राप्त होता है। रावण संहिता में रावण ने कहा है भगवान शिव का पाठ पार्थिव शिवलिंग बना करके उसका पूजन करके भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है।
भगवान शिव की भक्ति में किसी भी प्रकार संदेह नहीं होना चाहिए।
रावण संहिता मे बताया गया है , भगवान शिव का ध्यान करने के लिए कैलाश का ध्यान करना चाहिए जिस पर चांदी के समान चमकता हुआ भगवान शिव का सिंहासन है ।
लिंग पुराण में भगवान शिव को प्रसन्न करने का उपाय
●लिंग पुराण में आता है कि ध्यान रूपी अमृत से ही संसार रूपी दृश्य , एवं धर्म से ज्ञान होता है। साक्षात ज्ञान से वैराग्य उत्पन्न होता है, और वैराग्य से प्रमाणित प्रकाशक परम ज्ञान होता है।
एवं उससे परमाणु प्रकाशक परमधाम उत्पन्न होता है। ज्ञान के अनुसार व्यवहार में प्रवृत्ति होने लगती है। ज्ञान वैराग्य से युक्त साधक को ही सिद्धि की प्राप्ति होती है।
●मेरा भक्त , मेरी पूजा में लीन रहने वाला सब प्रकार से धर्म में निष्ठा रखने वाला, सदा उत्साह से संपन्न, आवेशित सभी बंधुओं को प्रसन्न करने वाला, सभी प्राणियों के हित में तत्पर रहने वाला सरल स्वभाव वाला ,सदा स्वस्थ मन वाला, कोमल चित् वाला ,मान रहित, बुद्धिमान शांत, प्रतियोगिताओं से रहित सदा मुक्ति की इच्छा रखने वाला, धर्म की आत्मा के लक्षणों को जानने वाला तीनों प्रकार के रोगों से मुक्त, वह जो श्रद्धा के साथ पाखंड रहित होकर गुरु की सेवा करके, अच्छे कर्म से सुखों का भोग करके फिर भारत वर्ष में जन्म लेकर ब्राह्मण होता है।
● शिव आराधना के द्वारा आसक्ति रहित वाला व्यक्ति कालकूट से मुक्त हो जाता है।
●जब शिव की माया से विद्वान अनासक्त हो जाता है, तब उसकी मुक्ति हो जाती है, अन्यथा करोड़ों कर्मों से भी मुक्ति नहीं होती है ।
●ॠषियो के द्वारा बताया गया है कि मुक्ति कर्म परमेष्ठी शिव के लिए उचित नहीं है। परमेश्वर की कृपा से क्षणभर में मुक्ति हो जाती है, यह उनकी प्रतिज्ञा है इसमें संदेह नहीं है ।
●भगवान शिव की कृपा से मुक्त हो जाता है ,चाहे वह घर में स्थित हो, उत्पन्न हो रहा है ,बालक हो, तरुण हो, अथवा वृद्ध हो, देवों के देव महेश्वर के अनुग्रह से प्राणी मुक्त हो जाते हैं। इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।
●भगवान शिव ने संपूर्ण जगत को तथा सभी जीवो क उत्पन्न किया है, यह देवी अंबिका रूद्र की आज्ञा के रूप में विराजमान है ,
●लिंग पुराण के अनुसार गर्भ मे, पृथ्वी तल पर, कुमार अवस्था, में युवावस्था, में वृद्धावस्था में ,और मृत्यु के समय प्राणी को अनेक दु:ख होते हैं,इसलिए विचार करके देखा जाए, तो स्त्री संसर्ग आदि से सज्जनों को दु:ख उत्पन्न होता है ,एक दु:ख से दूसरे दु:ख को शांत करना चाहते हैं ,और दु:खी होते होते हैं।
●विषयों के उपभोग से काम की शांति कभी नहीं होती है ,जैसे घी की आहुति से अग्नि बढ़ती है, वैसे ही वह वासना निरंतर बढ़ती जाती है।
विचार किया जाए तो, मनुष्य को विश्व के प्राप्त होने पर भी सुख नहीं प्राप्त होता है ,धन के आयोजन में ,उसकी सुरक्षा करने में, में भी दु:ख है।
●विचार करने पर देखा जाए तो पिशाच लोक, राक्षस लोक , गंधर्व लोक, चंद्र लोक,बुध लोक, प्रजापति लोक, भी तथा एक दूसरे से श्रेष्ठ होने कारण इससे संबंधित दुख से दु:खी रहते हैं।
विचार किया जाए तो पृथ्वी सम्बन्धी, आकाश सम्बन्धी, प्रकृति संबंधी, योगियों के लिए दुःख है। इसमें संदेह नहीं है।
विचार करके देखा जाए तो वास्तव में सभी दुखी हैं ।
●समस्त लोकों में प्रारंभ तथा मध्य और अंत में दु:खी है ,वास्तव में वर्तमान में भी दु:ख है और भविष्य में भी दु:ख होंगे , दुःखो से ग्रस्त सभी देशों में अनेक प्रकार के दु:ख हैं। अपने को ज्ञानी समझने वाले कुछ लोग अज्ञान के कारण दु:खी है।
●जिस प्रकार औषधि रोगों के उपचार के लिए होती है, ना कि सुख के लिए उसी प्रकार आहार से भूख रूपी रोग को दूर करने के लिए बताया गया है ,ना कि सुख के लिए।
●इसमें संदेह नहीं है ,कि लोग नहीं समझ पाते हैं इसी प्रकार सभी लोग नाना प्रकार के दु:खों से ,राग द्वेष आदि नाना प्रकार रोगों से ग्रस्त होते हैं ।
●जैसे जड़ से कटा हुआ वृक्ष गिर जाता है वैसे ही स्वर्ग में भी स्वर्ग में रहने वाले पुण्य की समाप्ति पर इसी पृथ्वी पर आ जाते हैं ।
●दु:ख हमें कामनाओं से युक्त होने पर प्राप्त होता है ।तथा दु:ख में भूमि संपदा से परिपूर्ण स्वर्गवासी देवताओं को भी कष्ट होता है ।
●पृथ्वी के प्राणियों को कभी ना कभी विभिन्न वर्गों के लोगों को नर्क में पड़ने के कारण वहां दु:खी होना पड़ता है । पक्षियों मे घोड़ा, हाथी ,आदि पशुओ में भी देखा गया है ।
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