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बालक उपमन्यु की शिव भक्ति – महादेव की कृपा से क्षीरसागर की प्राप्ति | शिव कथा

परम पूज्य देवाधिदेव महादेव के चरणों में नमन करते हुए इस कथा का आरंभ करते हैं।

जो देवों के भी देव महादेव हैं, जो सदैव अर्धचंद्र को अपने मस्तक पर धारण करते हैं, जिनके गले में वासुकि नाग शोभायमान हैं। जो उनके कंठ की शोभा बढ़ा रहे हैं, मस्तक पर मां गंगे भगवान शिव के सिर पर शीतलता प्रदान कर रही हैं जो बालचंद्र को धारण किए हुए हैं। प्रभु के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। ऐसे नीलकंठेश्वर देवाधिदेव महादेव के चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूँ।

बालक उपमन्यु की शिव भक्ति:-

एक समय की बात है, एक गाँव में एक बहुत ही निर्धन परिवार रहता था। परिवार में केवल दो सदस्य थे — माँ और बेटा, जिसकी उम्र लगभग 11 वर्ष थी। वह बच्चा अपने साथियों के साथ खेलने में मग्न रहता था, लेकिन उसके साथी सभ्रांत परिवारों के थे।

एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था, तभी उसने देखा कि उसके एक मित्र के हाथ में सफेद रंग का एक पदार्थ था जिसे वह पी रहा था। उपमन्यु ने पूछा, "तुम क्या पी रहे हो?" उसके मित्र ने उत्तर दिया, "मैं दूध पी रहा हूँ।"

उपमन्यु की दूध पीने की अभिलाषा

यह सुनकर उपमन्यु घर गया और अपनी माँ से जिद करने लगा, "माँ, मैं भी दूध पीना चाहता हूँ।" लेकिन उसकी माँ बहुत गरीब थी, और एक वक्त की रोटी जुटाना भी उसके लिए मुश्किल था। दूध कहाँ से लाए? माँ ने बेटे को आटे का घोल दे दिया और बोली, "बेटा, यही दूध है।" उपमन्यु ने कभी दूध नहीं देखा था और न ही उसका स्वाद चखा था। अगले दिन वह अपने साथियों के पास गया और कहा कि वह भी दूध पीकर आया है।

मित्रों द्वारा उपमन्यु का उपहास

साथियों ने उसका मजाक उड़ाना शुरू किया। बोले, "तू दूध पीता है, दिखा तो सही!" उपमन्यु ने दूध दिखाया, पर वे बोले, "यह दूध नहीं, आटे का घोल है।" उपमन्यु बहुत दुखी हुआ और माँ के पास जाकर बोला, "माँ, मेरे दोस्त कहते हैं कि यह दूध नहीं है।" उसकी माँ की आँखें छलक आईं और बोलीं, "हम गरीब हैं, दूध नहीं खरीद सकते।" उपमन्यु ने पूछा, "तो मैं दूध कैसे पाऊँ?"

देवाधिदेव महादेव से प्रार्थना

माँ ने प्यार से उसका सिर सहलाते हुए कहा, "अगर दूध पीना हो तो देवाधिदेव महादेव की प्रार्थना करो। वह दयालु हैं।" उपमन्यु ने मन में ठाना कि वह भगवान भोलेनाथ के हाथ से दूध पियेगा और जंगल की ओर चल दिया।

तपस्या हेतु कठोर परिश्रम

जंगल में उपयुक्त स्थान चुनकर उसने 'ॐ नमः शिवाय' का जाप शुरू किया। उसकी तपस्या चरम पर थी कि देवाधिदेव महादेव ने देवराज इंद्र का रूप धारण कर उसकी परीक्षा ली। उन्होंने पूछा, "पुत्र, तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई, वर क्या चाहते हो?"

उपमन्यु की परीक्षा

उपमन्यु ने कहा, "हे देव, मैं वर नहीं मांगता। मैं केवल अपने इष्ट भगवान भोलेनाथ के दर्शन चाहता हूँ।" इंद्र ने कहा, "मैं सब कुछ दे सकता हूँ।" तब उपमन्यु ने कहा, "भगवान भोलेनाथ के गले में नागराज वासुकी, हाथ में त्रिशूल और डमरू, बाघंबर लपेटे हुए, और लालाट पर बालचंद्र सुशोभित हैं, ऐसे नीलकंठ के दर्शन चाहिए।"

भगवान शिव का साक्षात दर्शन

देवाधिदेव महादेव का हृदय पिघल गया और वे देवी पार्वती सहित साक्षात प्रकट हुए। उन्होंने उपमन्यु से कहा, "बेटे, आंख खोलो, देखो कौन है।" उपमन्यु ने अपनी आँखें खोलीं और नीलकंठ भगवान के दर्शन किए। नागराज वासुकी कंठ में शोभित थे, जटाओं से गंगा बह रही थी, और चन्द्रमा लालाट पर था। भगवान के दर्शन से उपमन्यु का मन भर न सका। तब शिवजी ने कहा, "पुत्र, तुम्हें दूध पीने की इच्छा है।"

उपमन्यु को क्षीरसागर की प्राप्ति

भगवान शिव ने कहा, "मैं दूध का पूरा सागर देता हूँ।" और तुरंत क्षीरसागर, दूध का महासागर, उत्पन्न कर दिया। उपमन्यु ने उसे देखा, पर कुछ न कहा और पुनः तपस्या करने लगा। भगवान शिव और माता पार्वती उसकी तपस्या देखकर आश्चर्यचकित हुए।

तभी भगवान शिव ने माता पार्वती को इशारा किया। माता पार्वती ने सोने का कटोरा लेकर क्षीरसागर से दूध भरा। भगवान शिव ने उस कटोरे को हाथ में लिया और उपमन्यु को गोद में बिठाकर दूध पीने के लिए दिया। उपमन्यु की आँखें प्रभु के निश्छल प्रेम को देखकर भर आईं।

भगवान भोलेनाथ भक्तों के प्रेम में सब कुछ देते हैं। इसलिए हमें सच्चे मन से उनकी उपासना करनी चाहिए। हर हर महादेव।

📜 अस्वीकरण (Disclaimer):
यह कथा पारंपरिक पुराणों (शिवपुराण आदि) एवं लोककथाओं पर आधारित है और इसका उद्देश्य केवल धार्मिक व आध्यात्मिक प्रेरणा देना है। इसमें वर्णित घटनाओं की ऐतिहासिकता का दावा नहीं किया गया है। कृपया इसे श्रद्धा और सांस्कृतिक संदर्भ में ग्रहण करें।

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