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Shiv Katha

  शिवजी का लग्न

देवर्षि नारद जी महाराज ने ब्रह्मा जी से पूछा कि हे  प्रभु, यह बताइए देवी अरुंधति के जाने के बाद क्या हुआ?

ब्रह्मा जी बोले हे नारद ,

सप्त ऋषियों के समझाने पर हिमालयराज ने दृढ़ निश्चय कर लिया, कि अब मैं अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से ही करूंगा। इसी खुशी में उन्होंने अपने पुरोहित गर्ग जी को बुलवाया , गर्ग जी से उन्होंने लग्न पत्रिका लिखवाई, और लग्न पत्रिका  लिखवाकर कर ,भगवान शिवजी को तिलक चढ़ाने हेतु अपने बहुत से  आत्मीय, स्वजनो के साथ हीरे मोती, नीलम , पुखराज, माणिक्य एवं अन्य विशिष्ट वस्तुएं तथा कई प्रकार के मिष्ठान एवं सुगंधित  पदार्थ एवं विभिन्न प्रकार के इत्र और भी अन्य सामग्रियों के साथ  पंडितों का एक दल उनके साथ भगवान शिव के निवास कैलाश पर देवाधिदेव महादेव का तिलक करने के लिए भेजा। 



भगवान शिव के द्वारा गर्ग एवं अन्य व्यक्तियों का स्वागत:-

भगवान शिव  जी ने देखा कि गर्ग जी कई व्यक्तियों के साथ  विशाल सामग्री लिए हुए  कैलाश पर आ रहे हैं।

भगवान शिव जी ने हंस कर उन सभी का स्वागत किया, उसके बाद गर्ग मुनि ने भगवान शिव जी के ललाट पर तिलक लगाया ,और उन्हें लग्न पत्रिका भेंट की ।


भगवान शिव जी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।


उसके बाद सारे आगुन्तको का भरपूर आतिथ्य सत्कार किया और जाते समय सभी को विदाई के रूप में भगवान शिव जी ने बहुमूल्य उपहार दिए,
इस प्रकार भगवान शिव का तिलक  पूरा हुआ। 

 बंधु -बांधवों  को  निमंत्रण :-


जब गर्ग मुनि भगवान  शिव जी को तिलक लगा करके लौटे आए, तब हिमालय राज के हर्ष का ठिकाना ही न रहा। 


फिर उन्होंने अपने सभी बंधु, बांधवों ,चित्रकूट, त्रिकूट, कैलाश,  मलयाचल , अस्ताचल, उदयाचल, अरूणाचल पर्वत  ,  विंध्याचल, सुमेरु , मदरांचल एवं अन्य पर्वतों को लिखित निमंत्रण भेजा।


हिमालय राज अपने बन्धु, बान्धवों को निमंत्रण भेजकर बहुत हर्षित हुए।


भगवान शिव का विवाह जानकर,  सभी दिशाओं से, सभी पर्वत, भगवान शिव का विवाह देखने के लिए, आने की तैयारी करने लगे । 

बंधु-बांधवों  का आगमन:-


हिमालय राज का निमंत्रण पाकर सभी पर्वत अपनी -अपनी पत्नियों सहित रेशमी वस्त्र धारण करके तथा, उनकी पत्नियां बहुमूल्य आभूषण धारण करके बच्चों सहित हिमालय राज के द्वार पर पहुंची।


अपने बंधु बांधवों का हिमालय राज ने  गर्म जोशी के साथ स्वागत किया, कुशल  क्षेम पूछने के पश्चात सभी को उचित आसन दिया। उचित आसन देने के बाद उन लोगों के खाने -पीने की व्यवस्था  करवाई। तथा सभी को अमूल्य उपहार भेंट में दिये।

विवाह सामग्री का भंडारण :-

इसके बाद हिमालय राज ने सुगंधित चावल ,दाल घी, शक्कर,आटा , मक्खन तेल मिष्ठान्न  , काजू बादाम, किशमिश, अखरोट ,चिलगोजा,  छुहारा, सुगंधित मसाले यह सब इतने इकट्ठे कर लिए की पहाड़ जैसा ढेर बन गया ।

इसके बाद घी, तेल एवं अन्य तरल सामाग्रियों की
बावड़ियां बन गई। इस प्रकार का अन्न संग्रह भगवान शिव  के विवाहके लिए किया गया। 

देवताओं को निमंत्रण:-

जब सारी सामग्री संग्रह हो चुकी ,तब हिमालय राज ने  सभी देवताओं को विवाह का निमंत्रण भेजा।  सारे देवताओं ने भगवान शिव- पार्वती का विवाह देखने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हुए विवाह में  आने की  तैयारी करने लगे।

समस्त नदियों का आगमन:-

हिमालय राज ने भगवान शिव के विवाह  का निमंत्रण  गंगा ,जमुना, सरस्वती, कावेरी, ब्रह्मपुत्र , सतलुज  जैसी सभी नदियों को दिया।


सारी नदियां   दिव्य रूप  में हिमालय राज के द्वार पर पहुंची उन लोगों का हिमालय राज  ने भरपूर स्वागत किया एवं अमूल्य उपहार भेंट में दिये।

मंगलाचरण

सारे मेहमानों के आने के बाद राज्य की सड़कों पर झाड़ू लगवाया गया ,सारे राज मार्ग एवं अन्य मार्गों  को खूब धोकर कर साफ सुथरा किया गया ।

इसके बाद विवाह स्थल पर बड़े-बड़े चंदोवे  लगाए गए ,चारों ओर बंदनवार लगाई गई ।

केले के बड़े-बड़े खंभों ,में उसके चारों तरफ से आम्र के पत्तों सहित बंदनवार बांधी गई। केले के खंभों से पूरे नगर को सजाया गया ।

इतने बड़े-बड़े चंदोवे ताने गए जिसमें कि सूर्य की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती थी।



राज परिवार की स्त्रियों ने देवी पार्वती का अद्भुत श्रंगार किया।

सारे नगर में तोरणद्वार बनवाये गये और सारी राजधानी को सुगन्धित पुष्प द्वार से सजाया गया। नगर की स्त्रियां सज, धज, के  मंगल गीत गाने  लगी । मधुर वाद्ययंत्र  बजने लगे ,और मंगलाचरण  प्रारंभ हो गया।
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ब्राह्मण स्त्रियों के द्वारा मंगलाचरण 


इस महान शुभ ॶवसर पर नगर के सारे ब्राह्मण की स्त्रियों ने मंगल कार्य चालू कर दिए ।  नगर में हर जगह मंगल कार्य प्रारंभ हो गया।

एक अद्भुत  उत्सव प्रारंभ हो गया है और सभी नगरवासी भगवान शिव की प्रतीक्षा करने लगे ।

देव शिल्पी विश्वकर्मा जी को आमंत्रण :-


इसके बाद हिमालय राज ने देव शिल्पी विश्वकर्मा जी को बुलवाया, हिमालय राज का निमंत्रण विश्वकर्मा जी ने सहर्ष स्वीकार किया और अविलम्ब  चले आए।


और बोले  बताइए,   पर्वत राज मेरे लिए क्या आज्ञा है? हिमालय राज ने कहा कि मैं अपनी पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ कर रहा हूं।

इसलिए  अद्भुत मंडप बनाए, एवं देवी, देवताओं के ठहरने की उचित व्यवस्था हो ,ऐसी व्यवस्था   कीजिए जो अनुपम , बेजोड़  एवं  अद्वितीय हो।  

विश्वकर्मा जी के द्वारा अद्भुत निर्माण :-

देव शिल्पी विश्वकर्मा जी ने एक बहुत ही विस्तृत मंडप का निर्माण किया जिसका जिसकी लंबाई, चौड़ाई कई सौ योजन की थी।

इसके बाद उन्होंने जितने भी देवी देवता आयें थे सबके लिए उन्होंने विश्राम करने के लिए जैसे-जैसे उनके  घर थे वैसा- वैसा ही निर्माण कर दिया।

अद्भुत विवाह मंडप का निर्माण

देव शिल्पी विश्वकर्मा जी ने अद्भुत विवाह मंडप का निर्माण किया ,यह मंडप आश्चर्यजनक  था।इसके  मुख्यद्वार पर नन्दी जी का विशाल विग्रह था जो कि देखने पर लगता था कि साक्षात् नन्दी जी विराजमान है। एवं  दो गजराज स्वागत हेतु खड़े थे जो कि साठ वर्ष के पाठे के  समान थे।

जिनके ऊपर स्वर्ण रचित पुष्पांजलि रखी हुई थी और दोनों गजराज प्रकाशवान हो रहे थे। इस प्रकार की अद्भुत रचना मुख्यद्वार पर थी।


उसके बाद विश्वकर्मा जी ने मंडप में हाथी , घोड़े, रथ ,सहित सैनिकों की रचना की, जो देखने में असली जैसा दिखते थे।

जंगम और  स्थावर वस्तुओं का अद्भुत निर्माण

विश्वकर्मा जी ने ऐसा निर्माण किया था ,कि जहां पर जल था, वहां पर लोग स्थल समझते थे और जहां पर स्थल था वहां लोग जल समझते थे। इस प्रकार का मति भ्रम निर्माण करने में विश्वकर्मा 
बड़े निपुण है ।अच्छे से अच्छे लोग। भी धोखा खा जाते थे।


उन्होंने मंडप के अंदर साक्षात देवी लक्ष्मी जी का ऐसा कृत्रिम निर्माण  किया था, कि लगता था देवी लक्ष्मी साक्षात् क्षीरसागर  से आकर अब यहां बैठी हुई हैं।


विश्वकर्मा जी ने रत्ती भर का भी अंतर नहीं किया था। ब्रह्मा जी बोलें नारद इसी तरह से भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाई थीं जो देखने में लगता था कि श्री हरि स्वयं क्षीरसागर छोड़कर चले आए हैं। ब्रह्मा जी बोले हे नारद, मंडप इतना अदभुत रचा हुआ था, कि देखने वाले दांतों तले उंगलियां दबा लेते थे।

 कृत्रिम हाथी, घोड़े ,ऐसा लगता थे मानो की असली है ।

इस प्रकार की कई  अनोखी और आश्चर्यजनक वस्तुएं विश्वकर्मा  जी ने  बनाई थी ।

यहां पर  उन्होंने कृत्रिम औरतें  नृत्य करते हुए बनाई थी , जो कि देखने में असली जैसे लगती थी। और  अपनी भाव-भंगिमा  से अच्छे-अच्छे पुरुषों का चित डांवाडोल कर रही थी।

विश्वकर्मा जी ने अद्भुत शिल्प विद्या का प्रयोग करते  हुए,  मुझ ब्रह्मा की भी प्रतिमा बनाई थी ,जो कि देवताओं की सभा  में हाथों में वेद धारण करते हुए अत्यंत भव्य प्रतीत हो रही थी।

सभी देवताओं के ठहरने के लिए उनके लोक का निर्माण :-


विश्वकर्मा जी ने भगवान विष्णु के ठहरने के लिए  विष्णु लोक जैसा ही बैकुंठ धाम तैयार कर दिया था ।उसके बाद देवराज इंद्र के ठहरने के लिए ठीक स्वर्ग जैसा महल तैयार कर दिया था ।उसके बाद मेरे ठहरने  के लिए मेरे सत्य लोग जैसा ही  निर्माण कर दिया था।


इस प्रकार जितने भी देवी देवता थे सबके लिए जैसे-जैसे वह लोग रहते थे, उसी प्रकार के भवनों  का निर्माण विश्वकर्माजी ने किया था।

विश्वकर्मा जी को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। इसी के फलस्वरूप उन्होंने ऐसी आश्चर्यजनक और अद्भुत वस्तुओं का निर्माण  किया जो कि अन्यंत्र दुर्लभ थी ।

भगवान शिव का निवास :-


उन्होंने अंत में भगवान शिव केलिए भी बहुत ही सुंदर निवास बनाया, जो कि भगवान शिव के  चिन्हों से अलंकृत  था।

अब इस प्रकारकी व्यवस्था सभी मेहमान लोगों के लिए करके हिमालय राज भगवान शिव के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे ।

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।






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