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Shiv puja (कुबेर को आखिर क्यों कुबेर नाम से जाना जाता है एवं उसका क्या कारण है?)

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शिव पूजा 

भगवान शिव की पूजा के सामान कोई पूजा नहीं, उनकी भक्ति के समान कोई भक्ति नहीं, उनके समान कोई देवता नहीं। इसलिए सब कुछ छोड़ कर के एक परब्रह्म भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। भगवान राम से लेकर के कृष्ण सभी ने  भगवान शिव की  पूजा की है।

उनकी पूजा हर जगह की जाती है, हजारों शिवलिंग भगवान शिव के हर स्थान पर पाए जाते हैं।
भगवान शिव की पूजा केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी बड़ी तत्परता से की जाती है।


भगवान शिव के पूर्व वाले देश ,और विदेश में भक्त  बहुत संख्या में हैं। भगवान शिव जी के भक्तों, एवं साधको को केवल भगवान शिव की ही चर्चा अच्छी लगती है।

 

भगवान शिव समभाव से सभी को मानते हैं, उनकी सब पर समान कृपा दृष्टि होती है। चाहे वह धनी हो, चाहे वह गरीब हो, चाहे वह भक्त हो या भक्त न हो,  आशुतोष सब पर प्रसन्न हो जाते हैं । आशुतोष का अर्थ होता है ,शीघ्र ही प्रसन्न हो जाना।

शिव भक्ति:-

भगवान शिव की पूजाभक्ति कवि, सप्तर्षि, महात्मा मुनि संत, ॠषि, ब्रह्मॠषि, नागर, दैत्य, मनुष्यदानव, यक्ष, सभी ने की है। भगवान शिव सभी के आराधक हैं।


राक्षस से लेकर, देव, नाग ,गंधर्व, मनुष्य  यक्ष तक सभी लोग भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके दर्शन के लिए लालायित रहते हैं ।


शिव कृपा :-

क्योंकि शिव भगवान कल्याण स्वरूप हैं, अत्यंत कल्याणकारी बम भोले स्वभाव के होने के कारण ही पशु,पक्षी से लेकर गंधर्व मनुष्य जो भी उनकी आराधना  करता है, उन पर शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है।


गर्भोदक उपनिषद:-

मे कुबेर के बारे में बताया गया है कि   तपस्या करते- करते उनके शरीर की हड्डियां उभर गयी थी।

कुबेर नाम रखने का कारण

शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया था, यह सब देख कर भगवान शिव को कुबेर पर बहुत ही दया आई। इसी तरह वे  मां पार्वती के साथ कुबेर के पास गए।

भगवान शिव को देखकर कुबेर आश्चर्य में पड़ जाते हैं,   हे प्रभु मेरी आंखें आपके तेज को सहन नहीं कर पा रही हैं।


मुझे दिव्य दृष्टि दीजिये,  जिससे कि मैं आपके इस रूप को देखूं, तब भगवान शिव ने उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की जैसे ही कुबेर की आंखें भगवान शिव पर रखीं तो बगल में ही माता पार्वती के रूप को देखते रहे।


 उनके इस तरह से दर्शन  करना माता पार्वती को अच्छा नहीं लगा उन्होंने भगवान शिव से कहा कि प्रभु यह मुझे किस तरह से देख रहा है।


तो भगवान शिव कहते हैं कि वह देवता कौतूहल से देख रहे हैं, परन्तु वह मन का सरल  है, इस प्रकार माता पार्वती को देखने के कारण ही उनका नाम कुबेर पड़ा।

ईश्वर का नाम जप कैसे करें:-

भगवान मायापति हैं, इसलिए उनके नाम के साथ उनकी माया का नाम लेना भी आवश्यक है। क्योंकि भगवान की शक्ति भगवान से अलग नहीं होती।


 इसलिए भगवान के नाम के साथ उनकी शक्ति का नाम भी लेना जरूरी हो जाता है।

वेदों में नाम का प्रयोग:-

वेदों में भी ऐसा प्रयोग मिलता है, हे गौरी शंकर, हे राधे कृष्ण, पहले शक्ति का नाम लेना चाहिए, और फिर भगवान शंकर का नाम उच्चारण गौरीशंकर करना चाहिए।

 कृष्ण जी के नाम जपने मे राधे कृष्ण कहते हैं तब जाकर के पूजा सफल हो जाती है।

नाम जप का समय:-

ईश्वर का नाम किसी भी समय लिया जा सकता है। आप कारण हैं, फिरते, दिन-रात हो, बैठे, या कोई भी काम कर रहे हो।

नाम जपने  का संकल्प:-

यदि आपने नाम जप का संकल्प लिया है, तो इसमें कोई नियम और संयम की आवश्यकता नहीं होती है। आप किस देश में हैं, किस काल में हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है आप कहीं भी ईश्वर का नाम जाप कर सकते हैं।

नाम जप की महिमा

 नाम जाप करने की अपनी एक अलग महिमा है नाम जप आप किसी भी स्थिति में किसी भी समय में कर सकते हैं क्योंकि ईश्वर का नाम जपना ही मनुष्य का एकमात्र उद्देश्य है।


इसलिए कोई विचार ना करके कैसी भी परिस्थिति हो ईश्वर का नाम हमेशा जपना चाहिए ऐसा व्यक्ति मरने के बाद मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

  ध्यान के द्वारा आराधना    :-

जब भी साधक, साधना करने के लिए  उत्सुक  होता है,  तो  ध्यान ही प्रमुख होता है, क्योंकि ध्यान करने से ही इष्ट की प्राप्ति है शिवपुराण की संहिता उत्तर भाग के अ॰ 8 मे लिखा है। कि पञ्चयज्ञ में ध्यान और ज्ञान-यज्ञ मुख्य है। 

शिव का अर्थ :- 

इस पूरे त्रिलोक में कोई देवता इतना समर्थ नहीं है जो कि अपने भक्तों को मुक्ति प्रदान कर दे।

यह केवल देवाधिदेव महादेव ही कर सकते हैं, मुक्ति शंकर से प्राप्त होने के कारण ही उन्हें शिव कहते हैं। शिव का अर्थ होता है पापों का नाश करने वाला एवं मुक्ति देने वाला।

साधक के पापों का नाश करके मुक्ति दे देते हैं, भगवान शंकर में दोनों गुण हैं, इसलिए उन्हें शिव कहते हैं।


सभी देवता उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इसलिए वे देवों के देव महादेव कहलाते हैं।

 एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से क्या कहा था कि शिव का नाम उच्चारण करने से मनुष्य को गर्भ नहीं धारण करना पड़ता है।

अर्थात उनकी मुक्ति हो जाती है शिव का नाम पवित्र एवं कल्याण है, यह मुक्ति के साथ-साथ अबोधभय नाश करने वाला भी है।


भगवान शिव के निराकार रूप में लिंग का ही महत्व सबसे अधिक है, क्योंकि यह संपूर्ण सृष्टि प्रलय काल में लिंग में ही समाहित हो जाती है।

 हमारे इस ब्रह्माड में   अनेकों सूर्य, अनेकों पृथ्वी हैं, और सबको  निमित्त गति  देने वाले भगवान शिव है। उन्हीं की आज्ञा से सूरज तपता है,  चंद्रमा शीतल है, उन्हीं की आज्ञा से पवन बहता है, उन्हीं की आज्ञा से वर्षा होती है, सारी सृष्टि का एक नियम मे बँधी हुई किसी भी भगवान शिव  की आज्ञा से चलती है। 



इस सृष्टि के संचालन में वे ही अपने स्वरूप से ब्रह्मा, विष्णु को प्रकट करते  हैं। इस सृष्टि में कई पृथ्वी हैं, कई ब्रह्मांड हैं, और ब्रह्मांड में कई ब्रह्मा हैं जो कि सृष्टि के संचालन का कार्य कर रहे हैं।


विज्ञान की दृष्टि से देखें आप भी आज हम जो टेलीस्कोप के माध्यम से ब्रह्मांड की ओर देखते हैं, तो नये-नये  ग्रहों  का पता चलता है।

 इसमें जैसे, हमारे पास विज्ञान के उपकरण उन्नत होते जाते हैं, हमें सृष्टि के रहस्य धीरे-धीरे उजागर होते जाते हैं विज्ञान द्वारा ही हमें पता चला कि कई पृथ्वी हमारे जैसे अंतरिक्ष में हैं।

 हो सकता है कि हमसे भी कोई बहुत उन्नत सभ्यता अंतरिक्ष में हो, लेकिन हम उससे संपर्क नहीं कर पा रहे हैं और नहीं जान पा रहे हैं। क्योंकि हमारे पास अभी भी प्रकाश की गति से चलने वाली अंतरिक्ष यान नहीं है।


 जब हम प्रकाश की गति से चलते हुए अंतरिक्ष यान का निर्माण करेंगे, तब कुछ भेद को पता चल जाएगा, लेकिन ऐसा करने में वर्षों लग जाएंगे।

और यदि हम अंतरिक्ष में प्रकाश की गति से अंतरिक्ष यान से जाना चाहते हैं, तो भी हजारों वर्षों में हम किसी ग्रह पर पहुंचेंगे।

 इसलिए यह विस्तार विशाल ब्रह्मांड है, इसका जो रचयिता है उसकी शक्ति का मूल्यांकन निर्धारण नामुमकिन है। मनुष्य जीवन का अधिकार है कि वह सृष्टि के नियंता का धन्यवाद दे, और अपने जीवन का सदोपयोग करते हुए, अपना समय बनाए।

क्योंकि 8400000 योनियों के बाद मनुष्य का जन्म मिला है, इससे पहले हम लोगों ने जिन योनियो में जन्म लिया, वह सब भोग योनिया है। जिसका मतलब होता है, केवल भोगना, जैसे कि पशु -पक्षी नौकरी, व्यापार नहीं करते।

एवं अन्य जीव-जंतु भी यह सब नहीं करते हैं, परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही बुद्धि दी है, जो कि इसका सदुपयोग करके जीवन को उन्नत और असीमित बना सकता है।

इसके लिए हमारे ऋषि मनीषियों ने वर्षों तक तपस्या की, और तपस्या करने के बाद जब उन्हें अपनी अंतरात्मा में ईश्वर की धारणा हुई, तो उन्होंने संसार को वेद, पुराण, उपनिषद के माध्यम से बताया।

 क्योंकि उन्होंने जो ईश्वर का साक्षात्कार किया एवं जो ईश्वर की विवेचना  की, उनका बयान करना नामुमकिन है।

यह उसी प्रकार है, जिस प्रकार गूंगे को यदि गुड खिला  दिया जाए ,तो उसका स्वाद कैसा है? उससे  बोलें, कि वह बताएं तो वह नहीं बता  पायेगा क्यो कि उसके  पास वाणी नहीं है। ठीक उसी प्रकार से जब ईश्वर की अनुभूति  होती है, तो उसे शब्दों से नहीं व्यक्त  किया जा सकता है, क्योंकि यह एक अनुभव का विषय है।


मूल्यांकन एक अलग विषय है और उनके वास्तविक स्वरूप को समझा पाना अलग विषय है।

ईश्वर को समझने के लिए स्वयं को उस प्रक्रिया से जीवित रहना पड़ेगा, इसलिए ॠषि, मुनियों ने शास्त्रों में सांकेतिक रूप से आम जनमानस के लिए लिखा है।

वह संकेत को समझकर व्यक्ति अपना कल्याण कर सकता है, और मानव जीवन को सफल बना सकता है। ऋषि महर्षियो ने जो अनुभव किया, वह पारलौकिक ज्ञान आम आदमी की समझ से परे है।

लेकिन जो व्यक्ति अध्यात्म की गूढ़ बातें जानना चाहते हैं ,या जो ईश्वर पर है,या आप यह कर सकते हैं कि जो ईश्वरपराणय है ।

  जिनको आज गहरी ललक है, कि ईश्वर के दर्शन करना है। या जिनको यह ज्ञान  हो गया है, कि संपूर्ण सृष्टि ईश्वर के अलावा कुछ भी नहीं है। वह उन ऋषि, मुनियों के लिखित संकेत  से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं।


 नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय हर हर महादेव -हर हर महादेव 




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