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shiv Katha

भगवान शिव जी की क्रोधाग्नि का निवारण

ब्रह्म उवॉच:-

भगवान शिव के क्रोध से कामदेव तो जलकर भस्म हो गए परंतु भगवान शिव के  तृतीय नेत्र से निकली क्रोधाग्नि  द्वारा    पूरे  विश्व में हाहाकार मच गया।



यह सब देखकर  सभी देवता अत्यंत सोच में पड़ गए सभी दुःखी होकर ब्रह्मा जी के पास , अर्थात मेरे पास आए और कहने लगे हे पितामह, भगवान शिव की क्रोधाग्नि  से तीनों लोक दग्ध हो रहा है।

ब्रह्मा जी के द्वारा समस्या का समाधान


इस पर पितामह बोले हे देवों, मैं इस समस्या से बचने का कोई समाधान खोजता हूं, इसके बाद उन्होंने  भगवान शिव का स्मरण किया एवं भगवान शिव की इच्छा से उन्होंने उनके  उग्र क्रोध को एक शक्तिशाली अश्व में बदल दिया।

ब्रह्मा जी के द्वारा अश्व , समुद्र को भेंट:- 

ब्रह्मा जी अश्व को लेकर के   समुद्र पर पहुंचे वहां समुद्र देव ने उनका बहुत आदर सत्कार किया,

और कहां हे पितामह ,किस कारण से आपका आगमन हुआ है,कृपया बताने का कष्ट करें , पितामह बोले कि, यह भगवान शिव का उग्र क्रोध है, जो सभी लोको को दग्ध कर रहा है।

इसलिए  मैंने इसे अश्व में परिवर्तित कर दिया है, और यह मैं तुमको भेट कर रहा हूं । पितामह की बात  सुनकर समुद्र देव बोले ठीक है भगवन, जैसा आप कहते हैं ,वैसा ही मैं करूंगा। और ब्रह्मा जी   को प्रणाम करके समुद्र देव अश्व को  लेकर चले गए।


नारद उवाच :-

नारद जी ने पूछा हे पितामह, जब कामदेव भस्म हो गए ,तब माता पार्वती जी का क्या हुआ?  पितामह बोले हे नारद ,जब कामदेव भस्म हो गए उस समय आकाश में घोर गर्जना हुई , उस गर्जना को सुनकर  हिमालय राज और मैंना घबरा गए तथा मैनाक एवं सेवकों के साथ वहां पहुंचे जहां पार्वती जी भगवान शिव की सेवा कर रही थी ।

शिवजी का अंतर्ध्यान हो जाना:-

जिस समय आकाश में बहुत गर्जना हुई ,उसी समय भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए। शिवजी के अंतर्ध्यान होने पर , पार्वती जी  अत्यंत वियोग में भर गई, और  अपनी सहेलियों जया एवं विजया से कहने लगी, सखी  मेरी मति मारी गई थी, मेरे इस सुंदर रूप को धिक्कार  है । जो प्रभु मुझे छोड़ कर चले गए।

देवी पार्वती का विलाप:-


देवी पार्वती प्रभु का विछोह   सह नहीं पा रही थी, बार-बार मूर्छित होकर गिर जाती थी, उनकी यह  दशा देख करके हिमालय राज एवं मैना ने पार्वती जी को संभाला, एवं अपनी पुत्री को अपने घर ले आए। 

दिन बीतते चले गए लेकिन पार्वती जी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ वह हर प्रहर  , हर घड़ी, हर क्षण भगवान शिव को याद किया करती थी।  

देवर्षि नारद जी महाराज  का आगमन :-

तब ब्रह्मा जी बोले हे नारद, तुम भगवान शिव की प्रेरणा से   घूमते हुए हिमालय पर पहुंचे, तुम्हारा आया जानकर हिमालय बड़े प्रसन्न हुए, वह  आपको अपने महल में ले गए, एवं काफी सेवा सत्कार किया।


तथा अपनी पुत्री के बारे में सब बताने लगे, इसके बाद  तुमने कहा कि आप घबराइए मत सब ठीक हो जाएगा।

नारद जी के द्वारा देवी पार्वती को पंचाक्षर मंत्र का ज्ञान देना,:-

ब्रह्मा जी बोले हे नारद ,तुमने हिमालय और मैंना को काफी समझाया, और धीरे से वहां से चले आए। फिर  एकांत देखकर माता पार्वती जी से मिले और माता पार्वती जी से कहा -  आप भगवान शिव का ही भजन कीजिए।


भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कीजिए , भगवान शिव  प्रसन्न होंगे और फिर आपको अपनी अपनी पत्नी बनाएंगे।

यह सुनकर माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुई, और बोली हे देवर्षि नारदजी,  भगवान शिव को प्रसन्न करने का क्या उपाय है ?

पंचाक्षर मंत्र का ज्ञान,:-

नारद जी बोले हे देवी, भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है, ओम नमःशिवाय मंत्र का जप किया जाए, यह मंत्र सभी मंत्रों का राजा है। तथा यह मंत्र भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है ।यह मंत्र इतना  शक्तिशाली है कि  भोग और मोक्ष दोनों देता है।



तो हे देवी ,आप निश्चिंत होकर भगवान शिव का ही चिंतन मनन एवं ध्यान  करें। यह कहकर नारद जी महाराज  चले गए ।

इधर पार्वती जी ने जब से  पंचाक्षरमंत्र  की महिमा देवर्षि  नारद के  मुखारविंद से सुनी तभी से एक पल के लिए भी उनका ध्यान भगवान शिव के चरणों से नहीं हटा, उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं भगवान शिव की आराधना के लिए तपस्या करुंगी ,एवं इसके लिए मुझे आप लोगों का आशीर्वाद एवं अनुमति चाहिए।

उनके माता-पिता  ने बहुत समझाया ,जब पार्वती अपनी माता के पास अनुमति के लिए गयी तो उनके मुंह से निकला अरी उमा ,मतलब अभी तपस्या मत करो, तभी से देवी पार्वती का एक नाम उमा पड़ा। 

जब पार्वती जी को तपस्या  करने की अनुमति मिली, एवं अपनी माता की आज्ञा पाकर देवी पार्वती  बड़ी खुश हुई ।

उन्होंने राजसी वस्त्रों का त्याग किया ,एवं बड़ी खुशी से वल्कल वस्त्र धारण किए,  मृगछाला धारण करके तपस्या करने वन में चली गई।

वहां अलग-अलग जगहों पर उन्होंने कई प्रकार के पौधों को लगाया, और कठोर तपस्या करने बैठ गई। 

पार्वती जी की कठोर तपस्या:-

देवी पार्वती जी ने कठोर तपस्या प्रारंभ कर दी ,वह गर्मी के दिनों में अपने चारों ओर आग जलाती, और उसी के बीच में तपस्या करती,तथा ठंड के दिनों में बर्फ की शिला पर बैठकर तपस्या करती ,एवं वर्षा ऋतु में घनघोर पानी की बौछारों के बीच बैठकर    तपस्या करती , इतनी कठोर तपस्या करने के पश्चात भी उनका ध्यान  केवल भगवान शिव के चरणों में लगा रहता था।

पार्वती जी की तपस्या का प्रभाव:-

पार्वती जी की  कठोर तपस्या का परिणाम यह हुआ ,की दो परस्पर विरोधी शत्रु भी आपस में आकर उनके पास बैठकर  अपनी शत्रुता भूल जाते थे, एवं मित्रवत व्यवहार करते थे।

जैसे कि सांप चूहा ,शेर बकरी, यह सभी एक साथ बैठकर माता पार्वती के सम्मुख अपनी दुश्मनी को भूल जाते थे 

ब्रह्म उवॉच:-

ब्रह्मा जी बोले  हे नारद ,माता पार्वती जी की तपस्या के कारण तीनों लोकों में हलचल मचने लगी।

तब सारे देवता घबराकर  मेरे पास आए, और बोले हे पितामह, माता पार्वती की तपस्या के कारण तीनों लोक दग्ध  हो रहे हैं।

कृपया हम लोगों के दुःख का निवारण करें ,यह सब देखकर  मैं सभी देवताओं को लेकर भक्त वत्सल करुणानिधान ,दया के सिंधु ,भगवान  विष्णु के पास गया, वहां जाकर देखा कि भगवान श्री विष्णु शेषनाग की कोमल शैया पर बैठे हुए हैं।

भगवान विष्णु से मुलाकात

मैंने उनसे कहा हे भगवन, माता पार्वती जी की विशेष तपस्या के कारण सारे लोगों में हलचल व्याप्त है ।

देवताओं के सुख, तथा समाज के  कल्याण के लिए हमें भगवान शिव के पास चलना चाहिए ,भगवान शिव  परम दयालु है, भक्तोंकी मदद करने  वाले हैं 

ब्रह्मा जी की बात सुनकर भक्त वत्सल विष्णु जी बोले ,हम सभी देवताओं को एक साथ मिलकर भगवान शिव की समक्ष चलना चाहिए।

भगवान शिव से मिलना:-


सारे देवताओं को  लेकर भगवान विष्णु और मैं भगवान शिव के पास पहुंचे, वहां जाकर देखा तो भगवान शिव समाधि में बैठे हुए हैं ।


मैंने देवराज इन्द्र को भगवान शिव के समक्ष भेजने का प्रयास किया,  तो देवराज इन्द्र बोले कि मेरी हिम्मत नहीं हो रही है , कि मैं शिव की समाधि भंग कर सकूं,सभी देवताओं में किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि, भगवान शिव को समाधि से जगाया जाए ।

तब तक अनायास भोले शंकर की समाधि खुल गई, तब महादेव ने देवताओं से आने का कारण पूछा? तब मैंने  पूरा वृत्तान्त सुनाया,शिव मुस्कुराए और बोले ठीक है,  मैं जगत कल्याण के लिए और पार्वती की तपस्या के फलस्वरूप दर्शन अवश्य दूंगा। यह कहकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।

डिस्क्लेमर:-

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