दक्ष प्रजापति का यज्ञ
शिव पार्वती वार्ता
दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में जब भगवान शिव को प्रजापति ने आमंत्रित नहीं किया तो एक दिन सती भगवान शंकर जी के साथ के कुछ बात कर रही थी।
देवताओं का आकाश मार्ग से गमन:-
उसी समय स्वर्ग के सभी देवगण नाना प्रकार के जेवरों से अलंकृत और रेशमीवस्त्र धारण कर आकाश मार्ग से कहीं भी जा रहे हैं।
वे सभी स्वर्ग की देवी,देवताओं को नाना प्रकार के सुंदर वस्त्र और आभूषणों से आच्छादित देखा तो माता सती से रहा नहीं गया एवं उन्होंने देवराज इंद्र से पूछा कि हे देवराज, इतने सारे देवगण कहां की ओर जा रहे हैं ?
तब देवराज इंद्र बोले हे माता, आपके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है उसी में सभी देवगण जा रहे हैं।
सती का भगवान शिव से प्रार्थना करना
यह सुनकर माता सती भगवान शिव की प्रार्थना करने लगी हे प्रभु ,मेरे पिता के यहां यज्ञ हो रहा है, और हम लोग भी चले , सारे देवता लोग जा रहे हैं।
तो भगवान शिव मुस्कुराते हुए कहते हैं ,कि सती तुम्हारे पिता हम से द्वेष रखते हैं, इसलिए मुझको यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया गया है।
इसलिए बिना किसी आमंत्रण के वहां जाना उचित नहीं है, लेकिन सती नहीं मान रही थी ।बार- बार बोलने लगी कि हमें चलना चाहिए, तो भगवान शिव बोले बिना आमंत्रित किये तो मैं नहीं जाऊँ गा ,लेकिन अभी तुम जिद कर रही हो, तो जाना चाहती हो, तो चले जाओ।
भगवान शिव की आज्ञा लेकर किसी तरह से सती अपने पिता के यज्ञ स्थल पर पहुंचती हैं, तो क्या देखती है कि, भगवान शिव पूरी को यज्ञ का हिस्सा मिला है, लेकिन भगवान शिव के लिए यज्ञ का कोई हिस्सा नहीं है।
सती का योगाग्नि के द्वारा आत्मदाह:-
यह देखकर माता सती को अत्यंत दुःख होता है एवं अपने पति का अपमान देखकर क्रोध से आग बबूला हो जाते हैं, और उसी समय योग शक्ति के द्वारा आप को भस्म कर देते हैं।
जब-यह समाचार भगवान शिव को मिलता है, अत्यंत क्रोध से वीरभद्र को आदेश देते हैं, और दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस कर दो।
वीरभद्र के द्वारा यज्ञ का विध्वंस करना :-
वीरभद्र भगवान शिव के क्रम के अनुसार पूरे यज्ञ को तहस-नहस करके भगवान शिव के पास आते हैं। तभी दक्ष प्रजापति की पत्नी सारी दुनिया के साथ मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि उनके पति को फिर से जीवित कर दिया जाए।
दक्ष को फिर से जीवित करना
भोलेनाथ की प्रार्थना से द्रवित हो जाते हैं, और दक्ष प्रजापति के सिर पर बकरे का सिर हटकर उसे जीवित कर देते हैं।
सती के शरीर का खंडन:-
फिर वह सती के शरीर को लेकर के विक्षिप्त की अवस्था में त्रिलोक की सैर करती हैं। उनकी अवस्था देखकर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई मोह में काट देते हैं।
तब जाकर भगवान शिव का सती से मोह भंग होता है। एवं शांति के लिए समाधि लगाने के लिए एकांत पर चलते हैं।
भगवान शिव की तपस्या
हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में घने वृक्षों से आच्छादित गुमनाम जगह जहां मनुष्य का चौक संभव ही नहीं है, प्राकृतिक शोधन से आच्छादित वृक्षों का घेरा हुआ एकांत एवं - बाहरी शोर-शराबे से मुक्त यह क्षेत्र शिव जी को बहुत पसंद आया।
प्रभास का यह क्षेत्र इतना सुंदर और मनोरम है। जो की आत्मा को मोहित करने वाला है और यहां कोई भी प्राणी आने वाला नहीं है।
ऐसी स्थिति में यह मेरी तपस्या के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है ऐसा सोच कर कि नटराज वही समाधि लगा कर बैठ गए।
परब्रह्मा पूर्ण परमात्मा होते हुए भगवान क्यों समाधि लगा कर बैठे हैं सटीक किसकी पूजा करते हैं क्यों समाधि उम्मीदवार हैं? क्या जरूरत है?परमात्मा है ! किसकी आराधना एवं पूजा करते हैं ।
सभी को जानने के लिए माता सती उत्सुकता हमेशा रहती थी जब भी भगवान शिव से इसके बारे में पूछते हैं तो प्रभु मुस्कुराते हुए बात करते हैं और कुछ कथन नहीं।
यह सब देखने के बाद माता सती हमेशा ओझल हो जाती हैं। लेकिन भगवान शिव मंदिर की मुस्कान कर के इस सवाल के जवाब को बात करते थे।
आज समाधि के पूर्व सती की सभी चीजें याद आ रही थीं। शिव जी भविष्य को जानते हैं भी सती को आज्ञा देते हैं। यही बात उन्हें कचोट रही थी।सर्व समर्थ होते हुए भी सती को रोक नहीं पाएंगे।
ऐसा कई बार हुआ है कि जो प्रश्न हम रुके हैं दे वह सब लीला है।
नारद जी ने इस बात की कई बार पुष्टि की है कि शिव के अतिरिक्त इस जगत में कुछ भी नहीं है हम सब शिव लीला से मोहित हो रहे हैं। इसलिए हमें अपने आराध्य भगवान शिव जी को कभी भी नहीं भूलना चाहिए।
ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय हर-हर महादेव हर -हर महादेव हर -हर महादेव -
0 टिप्पणियाँ