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Shiv puja Search of God (ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जाए)

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ईश्वर की प्राप्ति एवं मोक्ष का 

ईश्वर को प्राप्त करने या जानने के पूर्व हमें सबसे पहले परमात्मा और आत्मा की भिन्नता को दाखिल करना होगा शास्त्रों में कहा गया है कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी का मतलब यह है कि हमारा जन्म ही ईश्वर की प्राप्ति के लिए हुआ है।

शरीर को चलाने के लिए हमें कर्म तो करना ही होगा ! तो हमारा उद्देश्य ही परमात्मा की प्राप्ति है।

 इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही हमें मानव का शरीर मिला है 8400000 योनियों में जाने के बाद यह मानव का शरीर मिलता है। मनुष्य का शरीर ही मोक्ष का द्वार है।


अर्थात वही शरीर के रहने वाले हम परमात्मा में विलीन हो सकते हैं, जब आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाता है तो उसी को मोक्ष कहा जाता है। अर्थात फिर उसका पुनः

 जन्म नहीं होता।



 मोक्ष की परिभाषा

 है। और इसके लिए शास्त्रों में मोक्ष प्राप्त करने के लिए कर्म, ज्ञान, एवं भक्ति के लिए विशेष जोर दिया गया है।

जिस प्रकार नींद मे जाने के बाद हम दिन भर की बातें भूल जाते हैं , और सुबह उठते  हैं, तो फिर से हमें याद आता है,  कि हम कल किस-किस से मिले थे, कौन-कौन से काम हमने किए थे ,क्या बात की है ? लेकिन मृत्यु मे यह सब याद नहीं रहता। यही नींद और मौत में फर्क होता है।

परंतु योगी के साथ ऐसा नहीं होता जब उनकी मृत्यु होती है, तो उन्हें पूर्व जन्म का सब कुछ याद आता है इसलिए अपनी उन्नति के लिए ईश्वर की आराधना  करते हैं और जनमानस को भी प्रेरित करते हैं।


उन्हें पिछले जन्म का सब कुछ याद आता है इसलिए उन्हें अमर कहते हैं यही अमृत है। उनकी जब मृत्यु होती है, तो उनके शरीर की तो मृत्यु होती है। ,लेकिन उन्हें सब कुछ याद रहता है।


इसलिए वह अमृतत्व की प्राप्ति कर चुके हैं, यही अमृत है।बाकी लोगों की मृत्यु के बाद कुछ भी याद नहीं होता।

गीता के भीतर कर्म को प्रधानता दी गई है लेकिन परमात्मा की प्राप्ति के लिए कर्म, ज्ञान और भक्ति से परमात्मा के खोज के रास्ते बताए गए हैं।

वैसे से तो परमात्मा की प्राप्ति के लिए शास्त्रों में कई साधन बताए गए हैं।

परन्तु ज्ञान और भक्ति का अत्यधिक महत्व है। ज्ञान का मतलब होता है ज्ञान, ज्ञान जब हो जाता है तो सभी वस्तुओं का बोध हो जाता है।

ज्ञान से ही हमें परमात्मा का बोध होता है जब होता है तो सारे संदेह  को उसी तरह से जलाकर भस्म करता है, जैसे कि आग लकड़ी को भस्म कर देता है। बुद्ध को बोध (ज्ञान) हुआ तो वह पूजनीय  हो गये।

परमात्मा की प्राप्ति के लिए विद्वानों  ने ज्ञान मार्ग का सहारा लिया सांख्य योग के ज्ञान द्वारा  उद्धव   परमात्मा को जान गये। प्रेम योग के ज्ञान के द्वारा गोपियां  कृष्ण को पहचान गयी कि परमात्मा है।


लेकिन वही परमात्मा के पास रहने वाले भी गोपिया नहीं पहचान पायी लेकिन जब गोपियों की अपार श्रद्धा और प्रेम जो है भक्ति में बदल गया तब उन्हें भी बोध हुआ नहीं हमारा कृष्ण ,कृष्ण नहीं है वह तो परमात्मा है।

इसीलिए जब बोध (ज्ञान)हो जाता है तब आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल हो जाती है।

 और व्याकुलता  भक्ति में बदल जाती है ।और जो व्यक्ति नवधा भक्ति करता है, वह अपने चित् को परमात्मा से जोड़ कर के , परमात्मा में विलिन हो जाता है। यही शुद्ध भक्ति के लक्षण हैं, इसलिए परमात्मा की प्राप्ति कर्म, ज्ञान एवं भक्ति से की जा सकती है।

भगवान शिव की शिक्षा:



हम लोगों को गृहस्थाश्रम मे  भगवान शिव की शिक्षा को अमल में लाना  चाहिये, किसी जंगल में या पहाड़ की चोटी पर रह कर कोई भी समता का व्यवहार कर सकता है।

लेकिन अपने रोज़मर्रा के जीवन में हर तरह की तकलीफ़ और झंझटों का सामना करते हुए जो उन्हें प्रभावित करता है   वही सच्चा शिवभक्त होता है।


ओम नमः शिवाय हर हर महादेव हर हर महादेव हर हर महादेव हर हर महादेव

 

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Shiv katha
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