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Shiv katha

 भगवान शिव का ब्राह्मण वेश 

भगवान शिव के कैलाश से  लौटने के बाद सारे देवता  मिलकर देवगुरु बृहस्पति जी के पास गये उनसे मार्गदर्शन लेकर ब्रह्मा जी एवं श्री विष्णु जी को लेकर भगवान शिव के निवास कैलाश  पर गये,और बोले

  हे कृपालु, हे भुवनेश्वर ,हे महेश्वर, आप सभी देवताओं पर प्रसन्न हो।


देवताओं को भगवान शिव का  आश्वासन :-

सभी देवताओं  ने भगवान से यह कहां हे प्रभु, शैलराज अपने समस्त परिवार के साथ आपकी भक्ति में डूबे हुए हैं।आप भक्त वत्सल हैं ऐसे में आप , शैलराज की भक्ति को भी सार्थक कीजिए। 



कृपया हम लोगों का उचित मार्गदर्शन कीजिए। इस पर भगवान शिव बोले हे, देवगण 
 आप लोग निश्चिंत होकर अपने घर को जाइए। भगवान भोलेनाथ का आश्वासन पाकर सभी देवगण अपने  -अपने लोक  को चले गए। 

भगवान शिव का ब्राह्मण वेश बनाना

भगवान शिव  ब्राह्मण के वेश  में शैलराज  के दरबार में पहुंचे, जहां पर पर्वतराज अपने बंधु बांधवों सहित मंत्रणा में व्यस्त थे ।


तब तक उन्होंने देखा, की एक बहुत तेजस्वी  ब्राह्मण जिनके एक हाथ में लकुटी है, एक हाथ में छत्र है , रेशमी उत्तम वस्त्र धारण किए हुए,गले में  शालिग्राम धारण किए हुए और भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन करते हुए दरबार में पधार रहे हैं।

जब शैलराज की नजर उन पर पड़ी तो वह उठे, और  अपने बंधु बांधवों सहित उन ब्राह्मण को दंडवत प्रणाम किया, उनको उचित आसन देकर  मधुपर्क दिया और फिर पूछा कि हे ब्राह्मण देव आप कौन हैं ?


तभी देवी पार्वती जी ने भी ब्राह्मण को देखा, एवं वह भगवान शिव को पहचान गई ,उन्होंने मन ही मन भगवान शिव को प्रणाम किया, भगवान शिव ने भी सबसे अधिक पार्वती जी को आशीर्वाद दिया ।

शिव जी का वृत्तांत 

भगवान शिव बोले हे पर्वतराज, मैं मन की गति से विचरण करने वाला वैष्णव ब्राह्मण हूं , अपने  गुरुजी  के आशीर्वाद से मैं तीनों लोकों में कही भी आ --जा सकता हूं ।

मेरे गुरु जी ने मुझे बहुत सारी शक्तियां प्रदान की है, एवं मैं  ज्योतिष वृत्ति का सहारा लेकर लोगों के दुःख ,दर्द दूर करता हूं ,तथा उनका भविष्य  भी बताया करता हूं ।

भगवान शिव के द्वारा हिमालयराज को भ्रमित करना:-

भगवान शिव बोले हे पर्वतराज, बड़े ध्यान से सुनो मैंने सुना है कि तुम अपनी लक्ष्मी के सदृश्य  पुत्री का विवाह शिव से करना चाहते हो यह तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है।



कहां। तुम रत्न की खान हो और कहां ,वो शिव शमशान निवासी हैं। नंग-धड़ंग रहते हैं, वस्त्र नहीं पहनते हैं,और गले में सांपों की माला  पहनते हैं।

उनके कुल, खानदान का किसी को भी पता नहीं, उनकी आयु भी किसी को मालूम नहीं,उनके जटा जुट उलझे  रहते हैं ।


उनकी जाति का पता नहीं है ,भला यह कैसे हो सकता है? आप ऐसे व्यक्ति से अपनी पुत्री की शादी करने जा रहे है, जो हमेशा  ध्यान मुद्रा में ही बैठे रहते हैं ।

हमेशा योग रमाए रहते हैं ,भला उस व्यक्ति से आप अपनी पुत्री का कैसे विवाह करवा सकते हैं । 
मेरी बात मानो अपने बन्धु, बान्धवों, से एक बार पूछ लिजिए, मैना , एवं मैनाक से सलाह,मंत्रणा करके किसी निर्णय पर पहुंचे।

लेकिन देवी पार्वती से कुछ मत पूछिए क्यों कि वह आपसे सहमत नहीं होंगी।

इतना कहकर लीला विशारद, मायापति विभिन्न प्रकार की लीलाओं को करने में अत्यंत कुशल, अपने निवास स्थान पर लौट आयें।

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।








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