Shiv katha
🔱 भगवान शिव का ब्राह्मण वेश
🕉️ भूमिका
भगवान शिव की लीलाएं अद्भुत हैं। वे त्रिलोक के स्वामी होकर भी सरल, सहज और अपने भक्तों के प्रेमवश अनेक वेशों में प्रकट होते हैं। ऐसी ही एक कथा है — जब उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर हिमालयराज को भ्रमित किया।
🛕 देवताओं की प्रार्थना और शिव का आश्वासन
भगवान शिव कैलाश से लौटे ही थे कि सभी देवता एकत्र होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए। उनके मार्गदर्शन से वे
ब्रह्मा जी एवं श्रीहरि विष्णु के साथ कैलाश पर्वत पहुँचे।
देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति करते हुए कहा —
“हे कृपालु! हे भुवनेश्वर! हे महेश्वर! आप सभी देवताओं पर दयालु हैं। कृपया हमारी प्रार्थना स्वीकार करें।”
देवताओं ने प्रार्थना की कि शैलराज हिमालय अपने समस्त परिवार सहित आपकी भक्ति में लीन हैं।
आप भक्तवत्सल हैं, अतः उनकी भक्ति को सफल बनाइए।
इस पर भगवान शिव मुस्कुराए और बोले —
“हे देवगण! आप निश्चिंत होकर अपने-अपने लोकों को लौट जाइए।”
🧙♂️ शिव का ब्राह्मण वेश
कुछ समय पश्चात भगवान शिव ब्राह्मण वेश में हिमालयराज के दरबार में पहुंचे।
उनका तेजस्वी रूप:
- एक हाथ में लकुटी (छड़ी), दूसरे में छत्र (छाता)।
- रेशमी उत्तम वस्त्र, गले में शालिग्राम।
- मुख पर दिव्य तेज और श्रीहरि विष्णु का कीर्तन करते हुए।
हिमालयराज ने आश्चर्यचकित होकर उन्हें प्रणाम किया, आसन दिया, और मधुपर्क से सत्कार किया।
फिर उन्होंने पूछा —
“हे ब्राह्मणदेव, कृपया बताइए, आप कौन हैं?”
🌸 पार्वती का साक्षात्कार
देवी पार्वती ने ब्राह्मण को पहचान लिया।
उन्होंने मन ही मन भगवान शिव को प्रणाम किया।
भगवान शिव ने भी हर्षपूर्वक उन्हें आशीर्वाद दिया।
📜 भगवान शिव का परिचय और भ्रम
भगवान शिव बोले —
“हे पर्वतराज! मैं एक वैष्णव ब्राह्मण हूँ, जो मन की गति से तीनों लोकों में विचरण करता हूँ। अपने गुरुजी के आशीर्वाद से मुझे दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हैं। मैं ज्योतिष विद्या से लोगों के दुःख दूर करता हूँ और उनका भविष्य बताता हूँ।”
फिर शिव जी ने कहा —
“मैंने सुना है कि आप अपनी पुत्री का विवाह शिव से करना चाहते हैं।
यह आपकी सबसे बड़ी भूल है। वे श्मशानवासी, वस्त्रविहीन, नागधारी हैं।
उनका कुल-गोत्र, जाति और आयु अज्ञात है। वे योगी हैं, सदा समाधिस्थ रहते हैं।
क्या आप ऐसे योगी से अपनी पुत्री का विवाह कर सकते हैं?”
💬 सुझाव और लीला समाप्ति
शिवजी ने सलाह दी —
“आप मैनाक और मैना से विचार करें, पर पार्वती से मत पूछें। वह पहले ही मन, वचन और कर्म से मुझे अर्पित हो चुकी हैं।”
इसके बाद लीलाविशारद, मायापति शिव अपने निवास को लौट गए।
📿 अंत में एक पंक्ति:
“जो स्वयं योगी हो, वही सबसे बड़ा गृहस्थ बनता है — यही शिव का ब्राह्मण वेश है।”
🔱 भगवान शिव का ब्राह्मण वेश
🕉️ भूमिका
भगवान शिव की लीलाएं अद्भुत हैं। वे त्रिलोक के स्वामी होकर भी सरल, सहज और अपने भक्तों के प्रेमवश अनेक वेशों में प्रकट होते हैं। ऐसी ही एक कथा है — जब उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर हिमालयराज को भ्रमित किया।
🛕 देवताओं की प्रार्थना और शिव का आश्वासन
भगवान शिव कैलाश से लौटे ही थे कि सभी देवता एकत्र होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए। उनके मार्गदर्शन से वे
ब्रह्मा जी एवं श्रीहरि विष्णु के साथ कैलाश पर्वत पहुँचे।
देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति करते हुए कहा —
“हे कृपालु! हे भुवनेश्वर! हे महेश्वर! आप सभी देवताओं पर दयालु हैं। कृपया हमारी प्रार्थना स्वीकार करें।”
देवताओं ने प्रार्थना की कि शैलराज हिमालय अपने समस्त परिवार सहित आपकी भक्ति में लीन हैं।
आप भक्तवत्सल हैं, अतः उनकी भक्ति को सफल बनाइए।
इस पर भगवान शिव मुस्कुराए और बोले —
“हे देवगण! आप निश्चिंत होकर अपने-अपने लोकों को लौट जाइए।”
🧙♂️ शिव का ब्राह्मण वेश
कुछ समय पश्चात भगवान शिव ब्राह्मण वेश में हिमालयराज के दरबार में पहुंचे।
उनका तेजस्वी रूप:
- एक हाथ में लकुटी (छड़ी), दूसरे में छत्र (छाता)।
- रेशमी उत्तम वस्त्र, गले में शालिग्राम।
- मुख पर दिव्य तेज और श्रीहरि विष्णु का कीर्तन करते हुए।
हिमालयराज ने आश्चर्यचकित होकर उन्हें प्रणाम किया, आसन दिया, और मधुपर्क से सत्कार किया।
फिर उन्होंने पूछा —
“हे ब्राह्मणदेव, कृपया बताइए, आप कौन हैं?”
🌸 पार्वती का साक्षात्कार
देवी पार्वती ने ब्राह्मण को पहचान लिया।
उन्होंने मन ही मन भगवान शिव को प्रणाम किया।
भगवान शिव ने भी हर्षपूर्वक उन्हें आशीर्वाद दिया।
📜 भगवान शिव का परिचय और भ्रम
भगवान शिव बोले —
“हे पर्वतराज! मैं एक वैष्णव ब्राह्मण हूँ, जो मन की गति से तीनों लोकों में विचरण करता हूँ। अपने गुरुजी के आशीर्वाद से मुझे दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हैं। मैं ज्योतिष विद्या से लोगों के दुःख दूर करता हूँ और उनका भविष्य बताता हूँ।”
फिर शिव जी ने कहा —
“मैंने सुना है कि आप अपनी पुत्री का विवाह शिव से करना चाहते हैं।
यह आपकी सबसे बड़ी भूल है। वे श्मशानवासी, वस्त्रविहीन, नागधारी हैं।
उनका कुल-गोत्र, जाति और आयु अज्ञात है। वे योगी हैं, सदा समाधिस्थ रहते हैं।
क्या आप ऐसे योगी से अपनी पुत्री का विवाह कर सकते हैं?”
💬 सुझाव और लीला समाप्ति
शिवजी ने सलाह दी —
“आप मैनाक और मैना से विचार करें, पर पार्वती से मत पूछें। वह पहले ही मन, वचन और कर्म से शिव को अर्पित हो चुकी हैं।”
इसके बाद लीलाविशारद, मायापति शिव अपने निवास को लौट गए।
⚠️ डिस्क्लेमर:
यह लेख पौराणिक कथाओं पर आधारित है, जिनका स्रोत धर्मग्रंथ, प्रवचन, पंचांग और धार्मिक जनश्रुतियों से लिया गया है। इसका उद्देश्य केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी देना है। पाठक स्वयं विवेकपूर्वक इसका उपयोग करें। लेखक या प्रकाशक किसी व्याख्या की जिम्मेदारी नहीं लेते।
📿 अंत में एक पंक्ति:
“जो स्वयं योगी हो, वही सबसे बड़ा गृहस्थ बनता है — यही शिव का ब्राह्मण वेश है।”
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