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Shiv puja शिव कथा हिंदी

शिव कथा 

शिव सारे ब्रम्हाण्डो  के संचालन कर्ता  ,

माता पार्वती जी की शिव आराधना :-

सृष्टि का निर्माण, उनका नियंत्रण और संहार कर्ता, शिव एक ऐसा नाम जिसके लिए स्वयं मां पार्वती जी को पेड़ के पत्ते खाकर जपना पड़ा। माता पार्वती जी जब भगवान शिव की तपस्या कर रही थी, उसी समय सप्त ऋषियों ने उपनी परीक्षा ली, उन्होंने कहा हे देवी, आप इतनी कठोर तपस्या क्यों कर रही हैं? 






 तब माता पार्वती जी ने कहा कि मैं शिव की तपस्या, उन्हें प्रसन्न करके पति के रूप में पाना चाहती हूं, केवल भगवान शिव ही भगवान हैं।  वही सबके लिए कल्याण स्वरूप है, इसलिए मैं उनको पति के रूप में पाना  चाहती हूँ । तब सप्त ऋषि कहते हैं कि हे देवी, भगवान शिव बिना वस्त्र के, बिना घर के हिमालय पर निवास करते हैं। उनकी वेश-भूषा भी अद्भुत है।


इसलिए वह महायोगी की तरह जीवन यापन करते हैं और आप कहाँ  महलों में सुख-सुविधा मे पली हुई है, भगवान शिव के साथ जीवन यापन मे क्या रखा है?

पार्वती जी की सत्यनिष्ठा :-


सप्त ऋषि के वचन सुनकर  पार्वती जी  बोली , आप सब मुझे कुछ क्यों समझा रहे हैं?  आप लोग मेरी चिंता मत कीजिए, मुझे  मेरे हाल पर छोड़िए, मैं भगवान शिव के अलावा किसी को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती।



और जब तक भगवान शिव मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करते, तब तक मैं तपस्या नहीं छोड़ना चाहती ।


जब पार्वती की तपस्या करने से तीन लोक दग्ध होने लगे तब ब्रह्माजी सभी के साथ मिलकर भगवान शिव के पास पहुंचे।


और उन्होंने भगवान शिव से कहा कि प्रभु आप पार्वती जी को पत्नी के रूप में स्वीकार करें, जिससे विश्व का कल्याण हो।



शिव पूजा एवं महामृत्युंजय मंत्र

शिव के महामृत्युंजय मंत्रों के उच्चारण मात्र से रोगो का दमन, संजीवनी विद्या से मुर्दे मे जीवन, डमरू की नाद से संगीत की उत्पत्ति, नृत्य, गायन, वादन, जीवन की हर कला का निर्माण शिवजी द्वारा किया गया।



ब्रह्म जी एवं विष्णु जी का विवाद 

शिव अनादिकाल से है, न उनका आदि है न उनका अंत इस संबंध में  शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्म एवं विष्णु का आपस मे विवाद हो गया कि हम दोनों मे कौन बड़ा है? दोनों एक दूसरे से अपने को बड़ा  बता रहे थे।


तभी, अचानक उनके सामने एक ज्योतिर्मय स्तंभ प्रकट होता है, यह देखकर ब्रह्मा, एवं  विष्णु, दोनो आश्चर्य में पड़ गए, और शिवलिंग को आश्चर्य से देखने लगे, लेकिन उन्होंने देखा कि इसका कोई आदि और अंत नहीं है।


उनकी आपस  में एक शर्त लगी , कि जो भी इस शिवलिंग का पता लगाएगा वही हम दोनों में श्रेष्ठ होंगे। ऐसा कह कर के भगवान विष्णु वराह पर सीधे नीचे की ओर चले गए, और ब्रह्मा जी हंस पर शिवलिंग के ऊपर की ओर चले गए।

ब्रह्मा जी, हजारों साल तक शिवलिंग का चक्कर लगाते रहे ,लेकिन शिवलिंग का कोई अंत नहीं मिला, इधर  विष्णु जी भी हजारों साल तक शिवलिंग का चक्कर लगाते रहे, लेकिन वे भी कोई अंत नहीं खोज पाये। दोनों  निराश होकर वापस लौट आये  ।

तभी अचानक उनके सामने भगवान शिव अर्धनारीश्वर के रूप में प्रकट होते हैं, और कहते हैं कि यह शिवलिंग मेरा ही रूप है, मैं अजन्मा, अविनाशी मेरा निराकार रूप ही यह शिवलिंग है। 


मेरे द्वारा ही आप लोगों की उत्पत्ति हुई  है, आप लोग आपस में व्यर्थ विवाद ना करें क्योंकि आप लोग दोनों ही एक समान हैं ।आप में कोई अंतर नहीं है केवल आप लोग को सृष्टि की रचना के लिए ,मैंने आप लोगों की उत्पत्ति की है ब्रह्मा जी सृष्टि  का संचालन करेंगे एवं विष्णु जी उसका पालन करेंगे ।

 यह शिवलिंग जोकि मेरे निर्विकार रूप को प्रकट करता है ,एवं मेरे साकार स्वरूप में मैं प्रत्यक्ष आपके सामने हूं।एवं निराकार रूप में मैं ज्योतिर्लिंग में निवास करता हूं।


आगे चलकर मेरा यह निराकार रूप द्वादश ज्योतिर्लिंगों में पृथ्वी पर प्रसिद्ध होगा।एवं मैंने सृष्टि के संचालन के लिए आप लोगों को नियुक्त  किया है।विष्णु जो सृष्टि का पालन करेंगे, ब्रह्मा सृष्टि की उत्पत्ति होगी, एवं मेरे द्वारा सृष्टि का संहार कार्य होगा।


यह सब सुनकर ब्रह्मा और विष्णु जी बड़े आश्चर्य में पड़ गए कि उन्होंने भगवान शिव की स्तुति की, उनकी आराधना  की, उनकी पूजा की, उनका वेद मंत्रों से स्तवन किया।

और कहा हे! प्रभु यह आपका अर्धनारीश्वर रूप भक्तों को अति प्रसन्न एवं भक्तों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। हे ,प्रभु आप हम पर प्रसन्न हो, और हमें आशीर्वाद दें, इतना कह कर के जब!

 विष्णु और ब्रह्मा जी स्तुति कर उठे, तो भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। और उन्हें अद्भुत आशीर्वाद देकर वे मां भगवती के साथ वापस कैलाश पर चले गए। 

ऊँ नमः शिवाय, हर हर महादेव।


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