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Shiv puja वशिष्ठ पुत्र, शक्ति का आख्यान तथा महर्षि पाराशर की कथा

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             महर्षि पराशर की कथा 

श्री लिंग महापुराण में वशिष्ठ के ज्येष्ठ पुत्र शक्ति का आख्यान और महर्षि पराशर की कथा का वर्णन किया गया है जो संक्षिप्त में इस प्रकार है। 
  
वशिष्ठ पुत्र शक्ति का भक्षण :-
एक बार ऋषियों ने , सूत जी से पूछा कि ,यह बताएं कि वशिष्ठपुत्र शक्ति का भक्षण कैसे हो गया?


तब सूत जी बोले रुधिर नामक राक्षस पूर्व काल में विश्वामित्र द्वारा दिए गए श्राप के कारण वशिष्ठ के पुत्र शक्ति को उनके छोटे भाइयों सहित खा गया था। 

राक्षस ने भाइयों सहित शक्ति का भक्षण कर लिया, यह सुनकर वशिष्ठ जी पृथ्वी पर गिर पड़े।



फिर बहुत दु:खी होकर पहाड़ पर चढ़ गये, और पहाड़ से वह कूद गये, यह देखकर स्वयं देवी पृथ्वी ने उन्हें अपने हाथों में ले लिया, और उन्हें ज़मीन पर लिटा दिया।


यह सब देखकर उनकी पत्नी और पुत्रवधु  बहुत ही दु:खी हो गए, और कहने लगे कि आप इस तरह से अपने शरीर को नष्ट कर देंगे, तो हम लोगों का क्या होगा।


और यह  स्थिति  देखकर, उनके पुत्रवधु ने अपने गर्भ को पीटना  शुरू कर दिया, और बोली कि मेरा अपने पति से वियोग में किस तरह जीना संभव है, मेरा जीवन धिक्कार है, तब तक वशिष्ठ जी को होश आ गया।

उन्होंने देखा कि उनकीं  पुत्रवधू गर्भ पीट  रही है, तो उन्होंने कहा- पुत्री आपको अपने  सुंदर शरीर का त्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि सभी संभावित को सिद्ध करने वाला शक्ति का पुत्र आपके गर्भ में स्थित है।

तब वशिष्ठ की पुत्रवधू बोली  ठीक है,
मैंने अपने जीवन की रक्षा करने का निश्चय किया है तो, मैं किसी भी रूप में शुभ या अशुभ हो अपने गर्भ की रक्षा  करुंगी।

मुझे जो अपने पति के वियोग का दु:ख प्राप्त  है। बहुत कष्ट  देता है, क्योंकि माता- पिता, सास - ससुर, भाई-बंधु कोई काम नहीं आता है ,केवल पति ही पत्नी के सुख -दुःख मे काम आता है।

पति से विहीन  स्त्री का  इस लोक में दिन काटना बहुत मुश्किल   होता है, । स्त्री के लिए पति ही परम गति होता है ,
 
भगवान श्री विष्णु का दर्शन :-

उसी समय आकाश में भगवान श्री विष्णु प्रकट हुए, उन्होंने कहा कि गर्भस्थ शिशु रूद्र का भक्त होगा।

रूद्र की पूजा में संलग्न होंगे ,गुरुदेव कृपा से संपूर्ण कुल का उद्धार  करेंगे ऐसा कहकर  दयावान भगवान विष्णु उसी समय अंतर्धान हो गए।

●ऋषि पराशर का जन्म

सूत जी बोले  हे श्रेष्ठ मुनियों, उस पतिव्रता स्त्री ने शक्ति के अपने वंश परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए किसी प्रकार से गर्भ की रक्षा की।

और उसके बाद दसवे महीने में उस शक्ति पत्नी ने महान पुत्र को जन्म दिया,साक्षात पराशर को जन्म दिया।

अदृश्यन्ती ने फिर से सभी सुख त्याग करके इस बालक का पालन पोषण किया। एक दिन ऋषि पराशर ने अपनी माता को बिना जेवर की देखा, माता के आभूषण विहीन शरीर  को  देखकर पराशर कहने लगे हे अंबे, हे माता, आप का चंद्र के समान मुख मलिन क्यों हो रहा है?

हे माते, ऐसी कौन सी बात है जो आपको व्यथित कर रही है? कृपया मुझे बताएं।


आप उदास  क्यों बैठी हैं? तब यह सुनकर व्याकुल होकर  वह कहने लगी वत्स रुधिर नामक राक्षस ने आपके पिता को भक्षण कर लिया।

माता के मुख से सारी बात सुनकर ऋषि पराशर ने  एक शिवलिंग की स्थापना की एवं कहा ,हे देवदेवेश्वर, हे महादेव हे प्रभु, आप दर्शन दें क्योंकि

राक्षस ने भाइयों सहित मेरे पिता का भक्षण कर लिया है। हे भगवान, मैं अपने पिता को उनके भाइयों सहित देखना चाहता हूं।



 इस प्रकार प्रार्थना करने पर तब भगवान शिव प्रकट हुए, एवं ऋषि पराशर को दर्शन दिया।तथा  भगवान शिव जी की कृपा से उसको अपने पिता के दर्शन उनके भाइयों सहित हुए ।


शक्तिपुत्र ने अपने पिता को भाइयों सहित एवं  अंतरिक्ष में ,करोड़ो  सूर्य के समान तेज वाले को भगवान शिव को प्रणाम किया ,इसके बाद उमापति महेश्वर अंतर्धान हो गए। 

भगवान महेश्वर के जाने के बाद, फिर विशेष मंत्र से भगवान शिव का विधिवत पूजन करने के  बाद ऋषि पराशर जी ने विशेष  मंत्र  को पढ़कर उन मंत्रों के हवन के  द्वारा राक्षसों के कुल को दग्ध करने लगे ।

पुलस्त्य ऋषि का आगमन

तभी वशिष्ठ ऋषि आ पहुंचे, उन्होंने कहा कि तुम राक्षसों का संपूर्ण संहार मत करो।

तब ऋषि वशिष्ठ की  बात मानकर  करके ऋषि पराशर ने राक्षसों का संहार छोड़ दिया। तभी पुलस्त्य ॠषि का आगमन हुआ उन्होंने पराशर से कहा ,कुपित होने पर भी आपनें मेरे वंश का नाश नहीं किया।


 वैसे तो तुम सभी शास्त्रों को जान लोगे, परन्तु मै आज जो परम आशीर्वाद प्रदान करता हूं,  उससे तुम  पुराण की रचना कर सकोगे  एवं तुम पर शिव  की कृपा हमेशा बनी रहेगी  और तुम  दुनिया के परम रहस्य को जानोगे।

मैंने जो कुछ कहा है वह होकर  रहेगा,  तब वशिष्ठ की कृपा से पराशर ने विष्णु पुराण की रचना की, यह सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाला एवं  ज्ञान का भंडार  है।

ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव हर हर महादेव, हर हर महादेव।

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