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Shiv puja शिव लीला (पार्वतीजी की तपश्चर्या)

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शिव लीला 

पार्वती जी की तपस्या

पार्वती जी का कठोर तपस्या का एकमात्र उद्देश्य भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करना, इसके लिए उन्होंने ऐसे घने जंगल का चुनाव किया जहां बड़े-बड़े सिंह, बाघ, सर्प, भालू की संख्या बहुत अधिक थी।


ऐसा कहा जाता है कि पार्वती जी ने 12 साल तक केवल धुने का सेवन किया था। और 64 साल तक पत्ते खाकर, घनघोर बारिश में भीगते हुए तपस्या की, एवं प्रचंड गर्मी में पंचाग्नि तापा करती थी।

पार्वती जी की उग्र तपस्या से तीन लोग दग्ध होने तब लगे ब्रह्मा जी पार्वती जी के पास गए, और उन्होंने कहा कि हे माता आप जगत जननी है, आप तप करना बंद कर दें, आपके तप के तेज से तीन लोग जल लोग रहे हैं। और अब आपकी तपस्या पूरी हो गई है।

 हे माता, आप घर चले गए और आप भगवान शिव के पति के रूप में प्राप्त हो जाएंगे।




पार्वती के स्वयंवर की घोषणा


ब्रह्मा जी की बात मानकर पार्वती जी वापस घर आ गए, पार्वती जी को देख कर के उनकी माता मैं ने उनकी मस्त चूमा उनके पिता हिमालय ने अपनी स्वयंवर की घोषणा कर दी।

स्वयंवर में पथ


पार्वती के स्वयंबर की चर्चा को सुनने के बाद विष्णु, ब्रह्मा देव, देवराज इंद्र, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, नाग, गंधर्व, यक्ष, सभी लोग, अपनी-अपनी संपत्तियों के साथ सुंदर गहने एवं वस्त्रों को धारण करके, रथ में सवार होकर पार्वती के स्वयंवर में शामिल होने के लिए दिए गए हैं।

स्वयंवर मंडम:- स्वर्ण निर्मित स्वयंवर मंडप  में नीलम, पुखराज, लालमणि, पन्ना इन रत्नों की एवं अति बहुमूल्य रत्नों का प्रयोग किया गया था।शीतल प्रकाश लोगो को आनंद दे रहा था। कई खंबे शानदार मणि से बनाए गए थे।


सभी खंभों में रत्न जड़े हुए थे जिससे प्रकाश से पूरा प्रकाशन प्रकाशमान था।

पार्वती जी का स्वयंवर मे प्रस्थान


देवी पार्वती अपनी सखियों से घिरी हुई, मंडम की ओर धीरे-धीरे-धीरे चली जा रही थी, उनके सहेलियों के हाथों में कल्पवृक्ष के फूलों की मालाएं  थी।एवं उनके सहेलियों के आगे अप्सराएं नृत्य करती चली जा रही थी।


कुछ अप्सराएं जगत माता पार्वती को चँवर दुला रही थी, कुछ सहेलियों ने स्वर्ण  से युक्त  छत्र से माता पार्वती को ढक  रखा था। इस प्रकार पार्वती जी संभल कर मंडम पर पहुंचती हैं।

भगवान शिव के शिशु के रूप में क्रीड़ा करना


स्वयंवर में उपस्थित सभी ने माता पार्वती का स्वागत किया, उनका अभिनंदन किया, इत्ने में अचानक घटना घटी कहीं से एक बालक माता पार्वती की गोद में आकर बैठ गया।


यह देख कर के सारे देवता सकते  में आ गए, सब ने उस बालक को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए, देवराज  इन्द्र ने अपने अमोघ बज्र से हटाने का प्रयास किया, लेकिन उनका वज्र भी स्तंभित हो गया।

 इसी तरह से यम का दंड भी स्तंभित हो गया, इसी तरह से अग्नि का तेज भी स्तंभित हो गया, और भी प्रमुख देवता थे। सभी के अस्त्र और शस्त्र स्तंभित हो गए।


 यह देख कर के भगवान विष्णु ने बालक को हटाने के लिए अपना सुदर्शन चक्र प्रवाह चाहा, परंतु वह चक्र भी स्तंभित हो गए, इसे देख कर के ब्रह्मा जी को बड़ी चिंता हो गई, उन्होंने ध्यान लगाते देखा तो उन्होंने यह बालक और कोई नहीं पाया साक्षात भगवान आशुतोष, देवों के देव महादेव, परमपिता भगवान, नीलकंठेश्वर, महेश्वर हैं।


यह देखकर उन्होंने भगवान शिव को उनकी स्तुति की प्रणाम की, और उनसे कहा हे प्रभु, हमें क्षमा करें हमें बालक के रूप में आपकी पहचान नहीं मिली। यह कह कर के वे सभी विश्व से कहते हैं कि यह बालक और कोई साक्षात परब्रह्मपरमेश्वर नहीं हैं।


पैत्रिक द्वारा भगवान शिव की स्तुति


जब वैश्विक को आसान हुआ कि बालक के रूप में स्वयं भगवान शिव हैं तो उन्होंने साक्षात शिव को प्रणाम किया। और कहा हे प्रभु, हमें माफ कर दो हम तुम्हें पहचान नहीं पाए।

तब भगवान शिव की मुस्कान कर के बोलो ठीक है, मैं आप लोगों पर बड़ा अनुग्रह हूं, तब सभी भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न होकर जानकर विनती करते हैं हे प्रभु, हमें आप अपना वह रूप दिखाते हैं जो आज तक किसी ने भी नहीं देखा है 

भगवान शिव द्वारा विश्व को दिव्य दृष्टि प्रदान करना


भगवान शिव ने सभी को दिव्य दृष्टि प्रदान की और अपना वह रूप दिखाया, जो आज तक किसी भी देवता को नहीं देखा था। उनका वह रूप देख कर के सारे देवता बहुत ही प्रसन्न हुए।


एवं भगवान शिव की स्तुति करने से उनकी महिमा का गान करने लगे, वेदों का पाठ होने लगा।


इसके बाद भगवान शिव सभी को आशीर्वाद देने के अंतर्ध्यान हो गए।

ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, हर-हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर,हर महादेव हर हर महादेव।

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