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Shiv puja vidhi (जानिए शिव पूजा से क्या लाभ होता है

 शिव पूजा से क्या लाभ होता है, शिव पूजा का सही समय, शिव पूजा मे मंत्र एवं सामग्री क्या लब्ज है एवं शिव पूजा के नियम कौन से है यह सब इस लेख में बताया गया है।


भगवान शिव की पूजा एवं भक्ति की परकाष्ठा

सब कुछ प्रभु को अर्पित कर दो। फिर इसके बाद देखो कि घड़ी हर कार्य अपने आप बनते हैं। मै तो सारे दुःख का एक यही दिखाई देता हूँ ।
-रविन्द्रनाथ टैगोर (ललित निबंध) से



संख्या ब्रह्माण्ड शनिवार की इच्छा मात्र से संचालित है, जो दया के महासागर है। जो जरा एवं व्याधि से मुक्त है, जिनको श्री ब्रह्म, एवं श्री विष्णु भी समझ में नहीं आता है। जो विभिन्न प्रकार की लीला को रचने वाले हैं।,

हे प्रभो! आप, निर्विकार, आनन्दमय, अनादि-अनंत, एवं अद्भुत है। अक्षत, अविनाशी, अजन्मा, निर्मल, मायाहीन, अतुल महिमा वाले ईश्वर है।






 

भगवान शिव के समान आचरण करते हुए साधक को उनके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है। जब साधक शिव तत्व का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। तभी वह कृतार्थ होता है। इसलिए   शिव पूजा के अतिरिक्त मनुष्य के कल्याण का कोई मार्ग नहीं है।


'नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय।'

(यजुर्वेद अ○31


संपूर्ण वसुंधरा जिनके आश्रय मात्र से पुलकित है। 
' हे पशुपते शिव! आपके मुखारविंद, त्रिनेत्र, त्वचा, पृष्ठदेश को, अंङ्गो को, उदर(पेट) सभी को मेरा प्रणाम ।

भगवान शिव आशुतोष ,आनंदमय एवं कल्याणकारी है । प्रभु के ज्ञान में लगता है कि वह मेरा मन मार्ग ढूंढ रहा है जो कि मनुष्य को हर भविष्य तक पहुंचा देता है।


भगवान शिव का दृश्य, मनन, अध्ययन, शिव पुराण, विष्णु पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण, मे जब देखते हैं तो हम आकर्षण हैं कि प्रभु की महिमा के गुणगान सारे पुराणों में एक साथ किए गए हैं।

एक कार्यस्थल भक्त की कथा:-

नंदी वैश्य :-

बहुत प्राचीन समय की बात है नंदी नामक व्यापारी अपने नगर के सबसे धनी धनी और प्रतिष्ठित पुरुष थे। वह एक बहुत ही सदाचारी एवं धर्म को वरीयता देने वाले थे।


सदा सत्य बोलने वाले थे। निष्ठा एवं कर्तव्यनिष्ठा तथा शिव आराधना में लीन रहने वाले थे।भगवान शिव ही उनके आराध्य देव थे। भगवान शंकर की पूजा करने का उनका सबसे पहला और महान उद्देश्य था। उन्होंने भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया था। इसके लिए वह दर्ज से कुछ दूर जंगल में भगवान शिव की पूजा के लिए रोजाण करते थे।वहां वह नियम से शिव मंत्र   पंचाक्षर मंत्र (ऊँ) नमःशिवाय का प्रणव सहित जप करते हैं,उसके बाद शिव पूजा सामग्री   गंगा जल से भगवान शिव जी का अभिषेक करते हैं, फिर गाय का दूध, अक्षर, विल्वपत्र, धृत, दधि, ईखरस, शर्करा, शहद, कनेर का, नीलकमल इन पूजा पुष्प की ग्रामीणों  से  शिव आरती करने के बाद वह हाथ जोड़कर  शिव गणेश का विशेष महत्व रखते हैं शिव स्तुति    करते हैं उनके पास अपार धन था। इसलिए वह सावन के महीने मेहोने के कारण शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का श्रृंगार स्वर्ण, रत्न, जवाहरात, मोती, माणिक्य से करते थे। क्यों कि वे जानते हैं कि सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।
 

 सबसे शक्तिशाली शिव गण (शिव भक्त किरात):-


शिव मंदिर से दूर एक जंगल में था। एक दिन की बात है कि कोई किरात शिकार खेलता हुआ वहाँ से निकला किरात प्राणियों को हमेशा वध करता था उसकी बुद्धि जड़ थी। इसमें विवेक नाम की कोई वस्तु नहीं थी। वह यह नहीं जानता था कि हिंसा करने से पाप लगता है।

वह तो बेरोटोक   निर्दोष प्राणियों की हमेशा हिंसा करता था। दोपहर के समय वह भूख और प्याले से व्याकुल के मंदिर के पास पहुंचा उसने जल को देखा उसने वहां आकर उस सरोवर में स्नान किया और जलपान करके अपने पत्ते बुझाई, जब वहां से लौट कर जाने लगा तो उसकी दृष्टि मंदिर पर मांगी , उनकी मन में इच्छा हुई, मंदिर में चलकर भगवान के दर्शन कर ले।

 उसने मंदिर में आकर भगवान शंकर जी का दर्शन किया और जो भी पूजा अर्चना को नौज किया उसी से उसने पूजा की आप स्वयं रिपोर्ट लगा दिया यह हिंसा करने वाला किरात किस प्रकार भगवान शिव की पूजा कर सकता है, ना तो पास पूजा के लिए सामग्री थी, और न वह भगवान शिव की पूजा की विधि को जानता था।

किरात की शिव पूजा 










वह पूजा विधि भी नहीं जानते थे कि कौन सी सामग्री से भगवान शिव की पूजा करें? या कौन सा पुष्प चढ़ाया जाए?या कौन सा मंत्र पढ़े? जो पीठ पर पानी पीने के लिए चामडे की मीनार लटकाकर रखा गया था।

हमारे यहां रहने के कपड़े की छाले होती है उसी तरह पुराने जमाने में किरात लोग पानी पीने के लिए चमकते हैं और उसके अंदर पानी भरते और पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं।
उसने अपने एक हाथ के मांस को और मस्क के पानी को भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ा दिया

वह भी मांस खाने वाला था उसे इस बात का पता नहीं था कि भगवान को माँस नहीं चढाया जाता है। परंतु ने तो अपनी भाव से अपनी शक्ति से और अपने ज्ञान के अनुसार भगवान शिव की पूजा की थी।

उसे बड़ा आनंद हुआ कि वह शिवलिंग के सामने साष्टांग दंडवत करके चला गया निश्चय किया कि मैं अब शंकर जी की रोज ऐसे ही पूजा करूंगा।

दूसरे दिन प्रातः काल नंदी व्यापारी पूजा करने के लिए उस मंदिर में आए उन्होंने देखा कि कल जो पूजा की है वह सारा सामान शोक- उद्रभिरा पड़ा है।


उसने सोचा कि मेरी पूजा में कोई गलती हो गई है जिसका फल है, ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं पूजा करके और दुर्भाग्य से शोक-विरांग जाता हूं।


 वह अपने घर लौट आया, वह पुरोहितों की कही हुई सारी बातें पुरोहितों से कह सकते हैं कि यह किसी मूर्ख व्यक्ति का काम है जो भगवान शिव की पूजा करके उन्हें भी बिखेरकर गया है।

 नहीं तो वाइजमैन रत्नों को बिखेर करके ऐसा क्यों करेंगे मंदिर का पुरोहित बोला कि कल हम आपके साथ चलेंगे और देखेंगे कि कौन सा दुष्ट यह कार्य करता है।

जब सवेरा तो नंदी वैश्य अपने पुरोहित के साथ उस शिव मंदिर में वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कल की ही तरह सारा सामान हट गया है। तो नंदी वैश्य ने मंदिर को पूर्णतया साफ किया। साथ आए सभी ब्राह्मणों ने स्तुति मंत्र एवं वेद मंत्रों का पाठ किया।


उसने उस शिव मंदिर को पूरी तरह से पहले जैसा साफ किया वहां भगवान शिव की पूजा अर्चना की भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया वहां पर ब्राह्मणों ने मंत्र पाठ किया।

इतना करने के बाद सभी लोग यह इंतजार करने लगे कि देखे कौन आता है? और इस मंदिर को नष्ट कर देता है अपवित्र करता है।

दोपहर के समय किरात वहाँ पर उसकी भयानक आँखें लाल-लाल हो रही थी। अजीब शरीर था। शरीर का रंग पूरा काला था, एवं उसका रंग बड़ा भय था ।उसकी इस रूप को देखकर के सभी लोग डर गए एवं लोग शोक-उदर छुप गए।

फिर उसी तरह से उसने मांस पहना और लौट आया। उसके लौटने के बाद इन लोगों के जी मे जान गए, नंदी वैश्य जब अपने घर गए तो उन्हें किसी तरह से उस शिवलिंग को घर पर आने का आदेश मिला नंदी वैश्य के घर में हीरे जवाहरात की कोई कमी नहीं थी।

शिवलिंग का स्थान परिवर्तन 


वह सुबह के शिवलिंग को दिखाकर अपने घर ले आया और वहां उसने प्राण प्रतिष्ठा की।

हर दिन मथुरा के नियम के अनुसार जब किरात मंदिर में आया तो भगवान शिव के शिवलिंग को कहीं भी नहीं देखा घबराया हुआ, वह व्याकुल चारों ओर भटकता हुआ ढूंढता हुआ, उसने मंदिर का कोना-कोना छान मारा, परंतु उसे शिवलिंग का दर्शन कहीं नहीं हुआ।

किरात का प्राणोउत्सर्ग 


वह अत्यंत व्याकुल हो गया, अपने प्राणेश्वर भगवान शिव को एक क्षण ना पाकर उनकी आंखों से अविरल आंसू टपकने लगे, वह रुदन करने लगे हे प्रभु, आप मुझे छोड़ कर चले गए, मेरे प्राण निकल रहे हैं, मेरी छाती फटी जा रही है ।

 हे ईश्वर अब दर्शन दो अब आपका यह वियोग सहा नहीं चला हे भगवान दर्शन दो, इस प्रकार विलाप करने लगा, उसने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है फिर क्या कारण है?कि तुम मेरा क्रोध हो कर चले गए हो।


उसने कहा कि मैं अपने प्राण का त्याग कर दूंगा उसके शरीर का मांस अपने हाथ से काटकर जहां शिवलिंग था वहां स्थापित किया गया और हमेशा की तरह ध्यान रखने पर।

उसने केवल एक ही फैसला लिया था या तो भगवान शिव दर्शन दे, नहीं तो मैं अपना प्राण त्याग दूंगा।

उसकी चित उसका मन भगवान शिव की लीला धाम में विचरण करने लगा, कर्पूर गौरम करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारम् •••••○○ कपूर के समान जीवंत देहयष्टि भगवान शिव की मस्तक पर लगे हुए बालचन्द्र की छिटकती शीतल किरणें परम ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए महा योगेश्वर भगवान शिव पर उनका मन हो केंद्रित हो गया।

उनकी आंखें आत्मा भगवान शिव के स्वरूप में विलीन हो गई उनके बाहरी जगत से भिन्न हो गईं।

वह अंतर जगत में अपने प्रभु की गोद में बैठ कर अपने प्रभु को निहारने लगा उसकी आंखों से आंसू के घेरे अविरल बह रही थी उसका रोम-रोम से जाम की धारा बहने लगी।

 एक जीव का वध करने वाला इतना दयालु कैसे हो सकता है? यह प्रेम की परकाष्ठा थी भगवान शिव के दर्शन की उत्कंठा थी।

 शिव भगवान से क्या मिलता है 

भगवान शिव समाधि समेटे हुए महाभाव में बैठे थे किरात के इस अपार प्रेम और उनके प्राण त्याग को देखकर भगवान शिव ने अपनी समाधि को भंग किया एवं साक्षात उनकी आंखों के सामने खड़े हो गए।


भगवान शिव के मस्तक से बालचंद्र की रश्मियां फूट-फूटकर किरात के शरीर पर आ जाती हैं। किरात के शरीर का अणु-अणु सूक्ष्म अमृत हो गया।


लेकिन किरात की समाधि भंग नहीं हुई, तब भगवान शिव बोले कि वत्स उठो, अपनी आंखें खोलो मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारे प्रेम का ॠणी हो चुका हूं।


कहो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं? हर पल आपके स्टैम्स में मेरा प्यार बढ़ता जा रहा है।


हे प्रभु आप ही मेरी मां है, आप ही मेरे पिता हैं, आप ही मेरे बंधु हैं, आप ही मेरी सखा है, आप के अतिरिक्त तीनो लोगों में मेरा कोई संबंध नहीं है।

किरात की प्रार्थना को सुनकर भगवान शिव गदगद हो गए उन्होंने उन्हें सदा के लिए अपना सदस्य बना लिया और वे अपने आनंद को प्रकट करने के लिए डमरू की याद दिलाते हुए भगवान शिव के डमरू के बजने से  तीन लोगों में शंख, भेरी, मृदंग और नागारे बजने लगे ।


 चारों ओर जय-जय की ध्वनि होने लगी, आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी, भक्तों के चित् मे आनंद छा गए ।


यह आनंद नंदी वैश्य के घर में समाचार के रूप में गया तो वह मंदिर पर आए किरात की भक्ति भावना देखकर उनके हृदय गदगद हो गए, उनके हृदय की सारी दुर्भावना निर्मल हो गई वह किरात की पूजा करने लगे किरात की भक्ति से भगवान शिव प्रकट होते हैं मैं तुम्हारे शरण में हूं, अब तुम ही मैं भगवान शिव की सीढ़ियों में अर्पित करो।


 यह सुनकर किरात नंदी वैश्य का हाथ पकड़कर के भगवान शिव के पास गए उस समय भगवान शिव अन्य बन गए कहने लगे कि यह कौन है? फिर किरात ने कहा प्रभु यह हर सावन के महीने मे आपकी मणि, माणिक्य, से पूजा करते हैं ,हीरे जवाहरात चढ़ाते हैं।


भगवान शिव की मुस्कान के बारे में कहें जो निष्काम भक्त होते हैं, जो निष्कपट होते हैं, मैं वैसे ही पहचानता हूं, वह मेरे प्यारे होते हैं। 



 किरात बोले कि हे प्रभु मैं आपका भक्त हूं, और यह मेरा प्रेमी है इसलिए हम दोनों आपके सदस्य हैं।

शिव गर्भ का महत्व 
अब भगवान शिव निरुत्तर हो गए क्योंकि भक्त की स्वीकृति भगवान की स्वीकृति से बढ़ रही है।

 किरात के मुंह से यह बात ही सारी दुनिया में फैल गई और लोग इसकी सराहना करने लगे।

किरात का शिव लोक गामन

उसी समय बहुत से जगमग-जगमग करते हुए विमान चले गए, भगवान शिव ने दोनों भक्तों को अपना स्वरूप देकर दोनों भक्तों को अपना सदस्य बनाकर अपने साथ विमान में बैठेकर कैलाश ले गए।

वहाँ स्वयं माँ पार्वती ने अपना सत्कार किया वे भगवान शिव के पार्षद नंदी और महाकाल के नाम से विख्यात हुए।

 शिव पूजा के उपाय (शिव आराधना की सबसे महत्वपूर्ण पूजा विधि)

भगवान शिव की साधना के लिए अष्टांग योग का मार्ग अपनाना चाहिए। अर्थात यम, नियम, अहिंसा, अपग्रह, ब्रह्मचर्य, प्राणायाम, धारणा, समाधि। 

योग के लिए स्थान:_


भगवान शिव को केवल योग के द्वारा ही पाया जा सकता है योग के लिए ऐसा स्थान हो, जिसमें मच्छर ना हो, शोरगुल ना हो, शमशान ना हो, जीर्ण-शीर्ण गौशाला न हो,

भगवान शिव का जप करने के लिए नदी का किनारा सबसे उत्तम होता है।


इसके अलावा किसी देवालय के अंदर और कहीं ना मिले तो घर के ही अंदर एक कमरा पूजा के लिए बनाएं,  इसमें केवल शिव पूजा का ही कार्य होना चाहिए। 
 
अखण्ड ज्योतिर्मय में एक लेख आया था (मृत्यु पर विजय की अमित गाथा उसकी कुछ पंक्तियाँ मुझे बहुत महत्वपूर्ण लगी वो निम्नलिखित है

 ●हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से ही संसार के सभी विषयों के भोग कर सुख प्राप्त करते हैं।

●परन्तु जो आत्मसाक्षात्कार, आत्मज्ञान की इच्छा हो।

●उसे विभिन्न योग साधनाओं के माध्यम से अपनी इंद्रियों को विषय- भोगो से हटाने का बार-बार अभ्यास करना चाहिए। बार-बार के अभ्यास से इंद्रियाँ विषय -भोगो से मुक्त हो जाती है।

 चित की चंचलता सदा के लिए समाप्त हो जाती है।

परमहंस के दृष्टांत द्वारा 

मिथिला नरेश

परमहंस जी महाराज की शिव पूजा के बारे में एक दृष्टांत है उन्होंने बताया कि महाराज निमी के वंश में मिथि नाम के प्रसिद्ध राजा थे। राजा के नाम से ही मिथिला का नाम पदा।

सौंदर्य का आकर्षण 


राजा की दो रानियां थीं, छोटी रानी परम सुंदरी थी, राजा छोटी रानी को बहुत ध्यान देते थे, बहुत मानते थे, बहुत प्यार करते थे ।

उन्होंने छोटी रानी के प्रभाव में आकर बड़ी रानी के लिए अपने महल से दूर एक प्रासाद बनवा दिया था। व्यवस्थापन के लिए दास दासियों की नियुक्ति कर दी गई थी। असली बड़ी रानी मजबूर होकर रहने लगी।

बड़ी रानी के जाने के बाद छोटी रानी निश्चिंत बेरोटोक महल में रहने लगी।

शिव योगी के दर्शन 


एक दिन उदास होकर बड़ी रानी अपने कैमरे की खिड़की से बाहर देख रही थी, तब तक शिवयोगी आते हुए दिखाई दिए कि उन्होंने दासों को भेज दिया, उन्हें आदर व सम्मान के साथ बुलाकर ले आओ।


दासिया शिव   योगी को बड़े सम्मान के साथ लेकर आई, आने ही बड़ी रानी ने शिव योगी को प्रणाम किया एवं बढ़िया स्वादिष्ट भोजन का विवरण काफी सेवा सुश्रुषा की।


जिससे कि शिवयोगी बड़े खुश हो गए, एवं रानी से बोले कि तुम दु:खी दिखाई दे रही हो, रानी बोली हां मुझे राजा ने अपनी महल से निकालकर की यहां एकांत में रखा है। 

योगी बोली आप चिंता मत करें, आपके घर के सामने एक नदी है उस नदी के बगल में भगवान शिव जी का मंदिर है आप भगवान शिवजी की पूजा करें, इससे आपके सारे दुःख दूर हो जाएंगे।

शिव पूजा 


रानी ने कहा ठीक है, उसके बाद वह भगवान शिव के मंदिर में  सुबह शिव पूजा के लिए अपने दासों के साथ गई, उन्होंने नदी में स्नान किया और भगवान शिव की पूजा की इस तरह करते-करते रानी को 40 दिन की पसंद।


 अटलांटिस किंग बड़ी रानी लगभग भूल गए थे। रानी अकेली ही पूजा के लिए उन्होंने अपने दास दासियों को भी साथ में नहीं लिया था।

  राजा का आखेत


और दैवयोग से राजा भी शिकार करने के लिए उसी रास्ते से आ रहे थे, शोक बड़ी रानी अकेली जा रही थी, उररा राजा शिकार करने के लिए आ रहे थे, रास्ते में दोनों की मुलाकात हो गई जब राजा ने रानी को देखा तो उनकी अपनी स्मृति में याद आया उन्होंने कहा कि क्या तुम इस जंगल में क्या कर रही हो?

शिव मंदिर की ओर


 रानी बोली कि मैं भगवान शिव की मंदिर में शिव   पूजा के लिए जा रही हूं तब राजा बोले इस जंगल में भयानक जीव जंतु टाइगर, शेर, चीता, भालू, यह सब विचरण करते हैं।
तब रानी बोली की शिव भक्तों को इन सभी चीजों से क्या डरना है, भगवान भोलेनाथ हैं वह मेरी रक्षा करेंगे ।



तब बोली ऐसी बात है, तो मैं भी आपके साथ चलता हूं मुझे भी महादेव के दर्शन हो जाएंगे यह कह कर वह भी  शिव पूजा के लिए रानी के साथ चल दिए।

 नदी के तट पर राजा और रानी दोनों ने विल्वपत्र एवं पुष्पों से भगवान शिव पूजा अर्चना की भगवान शिव पूजा अर्चना करने से राजा का हृदय निर्मल हो गया उनके भीतर ज्ञान पैदा हो गया।

राजा का हृदय परिवर्तन:-


शिव पूजा करने के बाद राजा ने रानी से कहा हे देवी, मैं बड़ी भूल हो गई मैं आपके अपराधी हूं, कृपया मुझे क्षमा करें। एवं अपने महल की ओर लौटें।



तब रानी बोली नहीं राजन आप मेरे पति हैं, मुझसे बड़ी और श्रेष्ठ है।

शिव कृपा 


रानी बोली कि  भगवान शिव की कृपा से आपकी स्मृति वापस आ गई यही मेरे लिए काफी है। 
आखिरकार राजा नहीं माने एवं बड़ी रानी को लेकर के अपने महल की ओर लौट आए।  शिव पूजा, अर्चना करने से बड़ी रानी का अपना पुराना सुख लौटा।

महल में वापसी


अब राजा और रानी दोनों महल के भीतर रोज शिव पूजा करते हैं, धीरे-धीरे राजा और रानी ने भगवान शिव की भक्ति का प्रसार किया और इस लोक में सुख भोग कर परलोक में भी सुख भोगने चले गए।



संसार का अर्थ है (जन्म-मरण का प्रवाह)

संसार का प्रत्येक जीव इस प्रवाह में बहता चला जा रहा है। वह संपूर्ण जीवन इसलिए दुख सहता है कि संसार के दुखों से मुक्ति मिल जाए।
परन्तु जब तक ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होगी तब तक संसार का दुःख से मुक्त होना असंभव है।

जिस ईश्वर की कृपा से वैराग्य प्राप्त होता है जीव जन्म, मरण रूप संसार के दुःख से मुक्त हो जाता है और परमानंद की प्राप्ति करता है, अर्थत मोक्ष को प्राप्त करता है। उस ईश्वर के संदर्भ को बेशक जान लेना चाहिए जिससे किसी की योनि में जन्म लेना प्रमाणिक हो जाय।

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ईश्वर ही अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए गणपति, विष्णु, ब्रह्म, शिव, राम, कृष्ण, आदि रूप धारण करते हैं। 

लिंग पुराण में कथा दिखाई देती है:-



भगवान शिव जी की श्रेष्ठता :-

शिव-पुराण मे महर्षि वेद-व्यास ने सभी विश्व मे भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ बताया है।

कुशंका का निवारण:-

बहुत से नासमझ लोग यह मन में शंका करते हैं कि भगवान शिव जब भगवान हैं। तो वह शमशान मे शरीर पर भस्म मलकर, ब्याघ्र चर्म लपेट कर, सभी ऐश्वर्य का त्याग कर दरिद्र की भाँति क्यों रहते हैं?

इसका उत्तर यह है कि भगवान शिव संपूर्ण ईश्वर्य को प्रदान करने वाले भी अपने लिए कुछ भी उपयोग मे इसलिए नहीं लेते हैं इसलिए कि वह यह संसार को बताना चाहते हैं कि संसार मे वैराग्य सुख से बढ़कर कोई भी सुख नहीं है।


उपसंहार:-

●इस दृष्टांत को देखें तो हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी स्थिति में चाहे सुख हो या दुःख हो लेकिन ईश्वर को बचना नहीं चाहिए।

●ईश्वर सारे संसार को धन, वैभव, ऐश्वर्य, प्रदान करते हैं तो भला उन्हें सांसारिक भौतिक वस्तुओं पर चढ़ा कर क्या खुश कर पाएंगे। 

●ईश्वर केवल एक दिल से पूजा करने पर प्रसन्न होते हैं, जिससे मनुष्य को मानव जीवन मिला है हमारा शरीर दुर्गुणों से भरा है। शास्त्रों में संकेत कथाओ के माध्यम से ही ईश्वर की आराधना विधि दी गई है। परन्तु शरीर को दुर्गुणो से पूरी तरह से मुक्त करना एवं संपूर्ण इंद्रियों को अपने वश मे करना सामान्य बात नहीं है इसमें बहुत समय लगता है ईश्वर की कृपा से यह एक जन्म मे हो जाय नहीं तो अनेकों जन्म निर्णय ले सकते हैं।

 ●हम चाहे किसी भी धर्म को बोलने वाले हों हमारा कोई ना कोई पूर्व निश्चित रूप से होता है जिसकी हम पूजा करते हैं।

  ● ईश्वर की पूजा करने से व्यक्ति के भीतर आत्मबल का संचार होता है।

  ● ईश्वर की आराधना करने से व्यक्ति परम शांति को प्राप्त करता है एवं उसके रोज़मर्रा के कार्यों में भी मन लगता है कि उसकी चित् शांत रहता है एवं वह नहीं होता।

● सनातन धर्म में ईश्वर की अर्चना को ही प्रमुख माना जाता है ।अतः हमें ईश्वर की पूजा रोज करनी चाहिए।

●जो भगवान शिव की भक्ति में तत्पर है, जो मन से वैसे ही शरणागत है तथा उन्ही का चिंतन करता है, वे कभी दु:ख के भागी नहीं होते।

● शिव पुराण में कहा गया है मानव जब स्वंय काम,क्रोध, लोभ,मोह और अहंकार के ऊपर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो वह शिव का सानिध्य प्राप्त कर सकते हैं।

ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय हर-हर महादेव ।


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