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शिव कथा twelve jyotirlinga in india१२ ज्योतिर्लिंग कौन से प्रदेश में है,इनकी स्थापना कैसे हुई ?द्वादश ज्योतिर्लिंग का परिचय:(-About 12 jyotirlinga)

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की इस लेख में व्याख्या की गई है। साथ में यह भी बताया गया है 

12  ज्योतिर्लिंग किस  प्रदेश से किस प्रकार से स्थापित हुआ है   ? (भारत में बारह ज्योतिर्लिंग  ) लिंग पुराण में आता है कि भगवान शिव ही सब कुछ है और भगवती पार्वती ही उनकी शक्ति है। संसार में सर्व भी पुरुष प्रधान अर्थात पुलिंग है वह सभी शिव संदर्भ है एवं वर्गीकरण भी स्त्रीलिंग है वह सभी शिव रूप है।





शिव एवं शिव के अतिरिक्त और कोई नहीं है ।संसार के सभी पदार्थ भी ,सब मे शिव समाए हैं। यह पूरा ब्रह्मांड ही शिवलिंग के रूप में है।भगवान शिव पुरुष है, एवं माता पार्वती ही माया है जब जीव माया से परे हो जाता है। तब वे भगवान शिव जी की शरण ग्रहण करते हैं। 

वैसे तो भगवान शिव के हजारों ज्योतिर्लिंग हैं, लेकिन भगवान श्री शिव जी, वैसे तो पंच भूतों के नाम से पांच  लिंग प्रसिद्ध हैं।और यह सभी दक्षिण भारत के भीतर है। 

पंचभूत लिंग की जानकारी:-

एकाम्रेश्वर (क्षिति-लिंग )

● इनमें से एकाम्रेश्वर का  क्षिति-लिंग  है जो शिवकाँच्ची में है। अयोध्या को लेकर जो सात पुरिया हैं। मामूली सप्तपुरियो कांचीपुरी भी आती है।

  इसे मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। इसे हरिहरात्मक पुरी भी कहा जाता है। क्योंकि इसके शिवकाच्ची और विष्णुकच्ची नामक दो भाग हैं।  


भगवान एकाम्रेश्वर के विषय में कहा जाता है कि एक बार भगवती पार्वती ने ऐसे ही भगवान शिव के साथ ठिठोली करते हुए वश कि क्या होता है? इसे देखने के लिए उन्होंने भगवान शंकर की आंखों को अपनी पंक्तियों से बंद कर दिया।

 जैसे ही भगवान शिव की आंखों को माता ने बंद किया तो तीन लोगों में घोर अंधेरा छा गया। और ऐसा अचानक हुआ, इस पर भगवान शंकर ने इसके प्रायश्चित संदर्भ पार्वती जी को तपस्या करने का आदेश दिया।


 तो भगवती जी ने बालू के शिवलिंग के रहने के कठोर तपस्याकी। भगवान भगवती पार्वती द्वारा प्रतिष्ठित यह लिंग एकाम्रनाथ क्षितीलिंग है


वायु लिंग:-

तिरुपति बालाजी  के निकट  कालहस्तीश्वर नाम से वायु लिंग  के रूप मे प्रतिष्ठित  है। यह तिरुपति बालाजी  से कुछ  दूरी  पर स्वर्णमुखी  नदी के  किनारे  भव्यता एवं सुन्दरता से आच्छादित मंत्रमुग्ध  कर देने वाला है।


 ●आकाश  लिंग:- (चिदंबरम )यहां पर भगवान शिव का आकाश तत्वमय  शिवलिंग प्रतिष्ठित है या दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थ है, यह मंदिर काली नदी के तट पर है यहां का स्थान सुरम्य और मनमोहक है।

मंदिर में भगवान शिव की तांडव करते हुए नृत्य मुद्रा में बड़ सुंदर प्रतिमा स्थित है इस  मंदिर में सोने से मढा हुआ एक दक्षिणावर्त  शंख भी है।

 ●तेजोलिंग (अरूणाचल) :-

अरूणाचल  में  भगवान शिव का तेजोलिंग  स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि भगवती देवी माता पार्वती की तपस्या के कारण ही यह प्रकट हुआ।

 ●जल तत्व लिंग (जंबूकेश्वर)

त्रिचिनापल्ली मे श्रीरङ्गम्   से  मात्र 1 मील की दूरी पर एक जल प्रवाह के ऊपर जंबूकेश्वर लिंग स्थापित है। इस मंदिर पर जल मूर्ति का नाम  जंबूकेश्वर पड़ा है। यहां पर एक जामुन का पेड़ है जिसका बहुत ही महत्व है।


द्वादश ज्योतिर्लिंग की परिचय:(-About 12 jyotirlinga)

लेकिन जो  12 ज्योतिर्लिंग है यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण  है। इनकी पूजा अर्चना करने से साधक विशेष रूप से लाभान्वित होते हैं।


 हर एक शिवलिंग की अपनी एक कथा है ,अपना महत्व है, हर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की  भक्ति का परिचायक है। लगभग सभी शिवलिंग जो भगवान के ज्योतिर्लिंग है ।


इसमें जब-जब भक्तों ने आराधना की है। तो प्रभु को संसार के कल्याण के लिए शिवलिंग के रूप मे प्रतिष्ठित होने के लिए कहा गया है। भोले नाथ, भोले शंकर भक्तों की कामना को पूरी  करते है।


इसलिए सहज ही वह  भक्तों की खुशी के लिए तैयार हो जाते हैं। इससे हर जगह ज्योतिर्लिंग में अपनी ज्योति को भर देते हैं।

  द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना  कैसे हुई ? इसमें बताया गया है कि ये कहां पर है ?इसका  क्या महत्व है? एवं  आने-जाने के साधनों का भी इसमें वर्णन किया गया  है ।आशा है यह लेख पाठको  को बहुत पसंद आएगा, एवं  इसकी जानकारी  से पाठक लाभान्वित हो जाएंगे।

(twelve jyotirlinga name and place)

१२ ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान ,दर्शन ,महत्व एवं महत्वपूर्ण तथ्य एवं नाम संस्कृत  में 

 

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम

उज्जयिन्यां   महाकालमोंकारे  परमेश्वरम्  ।।


केदारं  हिमवत्पृष्ठे  डाकिन्यां  भीमशंकरम्  ।
वाराणस्यां  च  विश्वेशं  त्र्यम्बकं   गौतमीतटे ।।


वैधनाथं  चिताभूमौ  नागेशं दारूकवने       ।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं  च   शिवालये    ।।


द्वादशैतानि  ना माने  प्रातरूत्थाय तः पठेत्  ।

सर्वपापैर्विनिर्मुक्तः  सर्वसिद्धिफलं  लभेत्   ।। 

12 Jyotirlingas in india for that spiritual 2022 journey !

( 1) श्री सोमनाथ मंदिर की कथा, इतिहास ,एवं महत्व:-बारह  में पहला ज्योतिर्लिंग  कौन सा है 12 Jyotirlingas in india for that spiritual 2022 journey !

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग  प्रभास क्षेत्र काठियावाड़ के वेरावल  नामक  स्थान में स्थित है। स्वतंत्रता से पहले यह मंदिर वेरावल जूनागढ़ राज्य का हिस्सा था ।यह बारह ज्योतिर्लिंगों  मे सबसे  पहला ज्योतिर्लिंग है 

बताया जाता है  कि पांच पांडव गुफा लालघाटी में सोमनाथ मंदिर के पास स्थित है। यह पर्यटकों को बहुत ही सुंदर,एवं आंखों को सुकून देने वाला है,यह  प्राकृतिक  सौन्दर्य से परिपूर्ण है , इन गुफाओं  मे जाने के लिये   कुछ सीढ़ियां चढ़ने पड़ती है ,इन गुफाओं को अरवलेम  माना जाता है ।


 ऐसी  मान्यता  है कि युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन ,नकुल ,सहदेव अपने निर्वासन काल के दौरान इस स्थान पर आए थे ।उन्होंने कई उपवास, प्रार्थना ,तपस्या  करके भगवान शिव की पूजा की और भगवान शिव उनसे  प्रसन्न हुए और पांचों पाँडवो को आशीर्वाद दिया। पंच पांडव गुफा सोमनाथ की पास स्थित है।



यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है ।गुफाओं की ऊंचाई बहुत कम होती है  मंदिर में  राम ,लक्ष्मण ,सीता, दुर्गा और हनुमान जी कि मूर्तियाँ भी है। इन गुफाओं का निर्माण 15वी शताब्दी  के आसपास मना  जाता है ।


मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सोमनाथ मंदिर पर कई बार  आक्रमण  किया।   लेकिन  स्वदेशी शासकों द्वारा  फिर से इसे बनाय गया ।इस मंदिर को तोड़ने और हिंदुओं को फिर से खड़ा करने का सिलसिला सदियों तक चला। इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर को  कई बार  नष्ट किया गया।


सोमनाथ  संगम पर स्थित है जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है।भगवान शिव के प्रकट होने के स्थान के रूप में जाना जाता है ।


सोमनाथ को मंदिरों का शहर भी कहते हैं, बताया जाता है कि  सोमनाथ  घनी आबादी वाला शहर था यहाँ पर धार्मिक और आर्थिक गतिविधियों की विशाल प्रतिष्ठान थे ।


 कुमार चरित  ने अपने लेखन मे सोमनाथ के समय  के व्यापारी का उल्लेख किया  है।  जिसके पास अपने व्यापार की सहायता के लिए स्वंम का जहाज था 


महमूद गजनी   इसे लूटने के   लिये  पूरी तैयारी के साथ चल पड़ा, उसकी सेना में 30,000 घोड़े थे ।

सैकड़ों हजारों पैदल सैनिक ने नवंबर की शाम के समय कूँच  किया और दक्षिण की ओर बढ़ा तो घाटी पर अधिकार कर लिया ।सोलंकी वंश के  भीमदेव जो उज्जैन के राजा भोज के अधिनस्थ  थे

उन्होंने महमूद का सामना किया लेकिन हार गए , उनके  नेतृत्व में गुर्जर के राजा एकजुट होने लगे, इस  राजनीतिक घटना को भापते हुए,गजनवी  सीधे सोमनाथ की ओर बढा


मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार महमूद   6 जनवरी 1026 को सोमनाथ पहुंचा। उसने   सोमनाथ नगर को घेर लिया और सोमनाथ के स्थानीय शासकों  से युद्ध किया ।


और हमलावर सेनाओं  को शहर से बाहर रखा स्थानीय शासकों ने  सेनाओं के  सामने  घुटने टेक दिए ।उसने सोमनाथ मंदिर के पहले विनाश का मार्ग प्रशस्त किया। मंदिर पूरी तरह से धराशाई हो गया।


यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रथम स्थान पर आता है । राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को  फिर से निर्मित किया ।

इस मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय:-

इस मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय  अक्टूबर से फरवरी के तीन  महीनों में होता है ,ऐसे तो मंदिर पर सालभर खुला रहता है। लेकिन शिवरात्रि पर फरवरी या मार्च में कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ महाशिवरात्रि  बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है ।


महमूद सन 998 ईसवी में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना ,राजपूतों के बीच कोई राजनीतिक एकता नहीं थी ।बताया जाता है कि इस मंदिर की रक्षा मे हजारों लोग मारे गए थे ।यह वह लोग थे जो पूजा कर रहे थे , या मंदिर के दर्शन का लाभ ले रहे थे । एवं जो गांव के लोग मंदिर  की रक्षा की दौड़ पड़े थे।


 महमूद ने  मद्धेशिया में विशाल साम्राज्य की स्थापना की उस ने 1020 में पहली बार भारत पर आक्रमण किया ।बाद में उसने  दिल्ली  ,कन्नौज ,मथुरा ,कांगना  थानेश्वर ,कश्मीर ग्वालियर, मालवा ,बुंदेलखंड , पर आक्रमण  किया एवं  1024 से सोमनाथ की लड़ाई में इसे लूट लिया ।



ऐसी मान्यता है कि जब युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ पूरा हुआ तो  भगवान कृष्ण ने चंदन की लकड़ी से  इसे बनवाया था ।अशोक के समय से सोमनाथ महादेव मंदिर पर 1701 में मंदिर पर एक बार फिर मुगल बादशाह औरंगजेब ने हमला किया था।


 जब उसने  मंदिर को देखा था  तब उसका मुकुट गिर गया था जिससे  वह बड़ा क्रोधित हुआ और उसने मंदिर को नष्ट  करने की कोशिश की,  लेकिन ऐसा करने में असफल रहा तो उसे आधा अधूरा छोड़ दिया ।


महमूद गजनवी ने मंदिर के विषय में कई  प्रसंगों को सुना था और महमूद गजनवी  धर्मांध, धन लोलुप,व्यक्ति था।   इसलिए उसे मंदिर पर आक्रमण करने में  मंदिर के बाहर देश के राजाओं से उसे काफी कठिनाई  का सामना करना पड़ा ।


फिर  भी वह सफल हुआ उसने मंदिर को तोड़ फोड़ डाला, मंदिर को जलाकर राख कर दिया । महमूद गजनवी ने  इस पर  कई बार  आक्रमण किया  था। एवं इसकी विशाल संपत्ति को लूटा था। मंदिर का कई बार निर्माण हो चुका है ।वर्तमान में जो मंदिर  स्थित है ,इसका  भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा इसका पुनर्निर्माण कराया गया है ।


जैसे ही   आप मंदिर के पास पहुंचे नहीं , कि एक अद्भुत शांति के दर्शन होंगे,भगवान शिव का शिवलिंग ,यह बहुत ही जागृत और पुण्य दायक है। हां इस के संदर्भ में एक कथा शिव पुराण में आती है ।


दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था। परंतु चन्द्रमा का  27 कन्याओं में एक समान प्रेम  नहीं था यह सब देख कर के दक्ष  प्रजापति क्रोधित हो गये,  और चंद्रमा  को श्राप दे दिया कि तुम क्षय  रोग से ग्रसित हो जाओ,।


इससे दुःखी होकर चंद्रमा ने   भगवान शंकर की तपस्या   की तब  शंकर जी  ने प्रसन्न होकर  दर्शन दिए प्रभु के दर्शन मात्र से चन्द्रमा उस रोग से मुक्त हो गये।

इसका उल्लेख  शिवपुराण,  स्कन्द पुराण,  एवं  अन्य धर्म ग्रंथों मे मिल जाता है।

तब चंद्रमा   ने यह   प्रार्थना की हे प्रभु , आप   ज्योतिर्लिंग के रूप में  यहां पर  हो स्थित हो जाइए । तो चंद्रमा की प्रार्थना पर भोलेनाथ चन्द्रमा के नाम(सोम) से  ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं पर स्थित हो गए।

● यह सोमनाथ  ज्योतिर्लिंग गर्भ गृह के नीचे गुफा के अंदर स्थित है।

●इसका शिखर 150 फीट  ऊंचा है। एवं इसके कलश का भार 10 टन है। इसकी ध्वजा 27 फीट ऊँची है ।इस स्थान पर ठहरने हेतु  श्रद्धालु  गेस्ट हाउस में,  विश्राम शाला ,तथा  धर्मशाला में  ठहर सकते है।

 ●(आरती सुबह 7:00 बजे होती है फिर दोपहर 12:00 बजे होती है और फिर शाम को आरती रात  8:00 बजे होती है)

   

 ●ॠगवेद मे भी इस ज्योतिर्लिंग का महत्व बताया गया है।

  ●सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सारे पाप मिट जाते है:-

शास्त्रों में  उल्लेख आता है कि सोमनाथ मंदिर के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे पाप मिट जाते हैं। एवं भक्तों की मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती है। कहा जाता है कि देवताओं ने यहां एक पवित्र कुंड का निर्माण किया था जिसे सोम कुंड कहा जाता है


●सोमनाथ मंदिर की भव्य दीवारों पर भव्य देवताओं की मूर्तियाँ  बनायी  गई है ।भगवान शिव के साथ श्री   विष्णु और ब्रह्मा जी की मूर्तियां भी यहां पर देखने को मिल जाती है। सोमनाथ मंदिर सोमनाथ शिव भक्तों की अपार श्रद्धा का केंद्र है,  लाखों शिव भक्त यहां पर दर्शन करने आते हैं ।महाशिवरात्रि पर्व पर अपार जनसमूह एकत्रित होता है। 

इन्हीं  सब को ध्यान में रखते हुए यहां की सड़कों की व्यवस्था बहुत ही सुंदर की गई है। सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक बाण स्तंभ है लेकिन इसकी की स्थापना कब हुई उसका कोई सही प्रमाण नहीं मिलता है। एवं इस क्षेत्र को आवागमन की सभी मार्गो से लगभग जोड़ दिया गया है। बाण स्तंभ  एक दिशा सूचक यंत्र है।  इसके ऊपर एक तीर का निशान है जिसका मुंह समुद्र की तरफ है। 

हवाई मार्ग:-

दीव एयरपोर्ट यहाँ सबसे नजदीक है। यह सोमनाथ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। एवं वेरावल रेलवे स्टेशन  से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।


सड़क मार्ग:-

वेरावल  जाने के लिए राज्य के किसी भी कोने से बस की व्यवस्था है। सोमनाथ सड़क मार्ग से लगभग देश के सभी हिस्सों से जुड़ा हुआ है ।आसपास के कई राज्यों से यहां पर   लग्जरी बस ,एसी बस ,नान एसी बस,  एवं सरकारी बस यहां पर आती है।

रेल मार्ग:-

सोमनाथ के लिए अहमदाबाद जंक्शन से ,राजकोट जंक्शन से, भी यहां जाने के लिए ट्रेन की सुविधा है ।जबलपुर, ओखा,  पोरबंदर से भी  ट्रेन की सुविधा उपलब्ध  है।


  mallikarjun mandir श्रीमल्लिकार्जुन  ज्योतिर्लिंग मंदिर:-

 (2) श्रीमल्लिकार्जुन  ज्योतिर्लिंग की कैसे हुई स्थापना?

इस ज्योतिर्लिंग का महत्व दक्षिण भारत में बहुत अधिक है ,दक्षिण भारत (तमिलनाडु) में पातालगंगा कृष्णा  नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर यह अद्भुत शिवलिंग स्थित है ।


मान्यता है कि इस पर्वत के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।  ऐसा भी कहा जाता है कि फिर उसे आवागमन के चक्कर में नहीं पड़ना पड़ता है। मंदिर की बनावट अत्यंत कलापूर्ण  और मनमोहक है। पहली नजर में  ही भक्तों के मन को मोह लेती है ।


अद्भुत कारीगरी का नमूना है  यह ज्योतिर्लिंग  सभी  पापों का नाश करने वाला एवं भगवान शिव के चरणों में उत्तम भक्ति को स्थापित करने वाला है ।

  mallikarjun shivling श्रीमल्लिकार्जुन  ज्योतिर्लिंग कथा

शिवपुराण मे कथा आती है कि श्री गणेश जी का जब विवाह हुआ उस समय गणेश जी और कार्तिकेय जी दोनों में पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए शर्त लगी थी कि जो सर्वप्रथम पृथ्वी का चक्कर लगाकर आ जाएगा उसी का विवाह पहले होगा।


कार्तिकेय जी तो अपने वाहन  से चले गए,  परन्तु  गणेश जी का वाहन कार्तिकेय जी के अपेक्षा कम गति से चलने वाला था। तब गणेश जी  ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए अपने माता-पिता की  परिक्रमा कर दी ,एवं यह कहा कि आप लोगों की परिक्रमा करके मैंने पूरी पृथ्वी  का चक्कर लगा दिया है।


 गणेश जी की बुद्धिमता पूर्ण  बातों को  सुनकर के भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए। और उन्होंने गणेश जी का विवाह कर दिया ।जब कार्तिकेय जी लौट कर आए  तब उन्हें यह सब मालूम पड़ा तो वह, रुष्ट  हो करके  चले गए ।


भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें बहुत रोका ,परन्तु वह नहीं  माने ,सारे देवताओ ने भी कार्तिकेय जी को मनाने के लिए बहुत प्रयास किया  परंतु कार्तिकेय जी लौट कर  नहीं आए।


 जब कार्तिकेय जी लौट के नहीं आए तब   भगवान शिव और माता पार्वती दोनों साथ में कार्तिकेय जी को बुलाने के लिए गये,  लेकिन अपने माता पिता को आया देख क़र कार्तिकेय जी और दूर चले गये ।


तब भगवान शिव अपने पुत्र के दर्शन के लिए वही ज्योतिर्लिंग में स्थापित हो गए, यह वही शिवलिंग है जो मल्लिकार्जुन के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। मल्लिका  माता पार्वती का प्रतिनिधित्व करता  है ,एवं अर्जुन भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता  है।दोनों को मिलाकर के मल्लिकार्जुन है  अर्थात शिव एवं  पार्वती जी दोनों की शक्ति इस शिवलिंग  मे  समाहित है।



(3)  shri mahakal  श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 

मध्यप्रदेश में उज्जैन के अंदर भगवान महाकालेश्वर का अद्भुत एवं प्राचीन  मंदिर है। और  अब इसके अंदर काफी नव निर्माण होने से इसकी  शोभा और बढ़ गई है।


दर्शन के लिए भक्तों को कतारबंद होकर के जाना पड़ता है, इस मंदिर की विशेषता है कि यहां पर जो भी भक्त सच्चे मन से आते है  वह भक्त निराश  नहीं होते उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।


 लेकिन भगवान महाकाल के दर्शन के लिए घंटों लाइन में खड़ा रहना  पड़ता है । महाकालेश्वर लिंग की स्थापना के संबंध में पुराणों में बहुत सारी जानकारियां मिलती है।


भगवान महाकाल कालों के काल कहे गए हैं। कालों के काल महाकाल यह उक्ति  बहुत  प्रसिद्ध है।   उज्जैन के महाकालेश्वर राजाधिराज है ।आज भी महाकाल की  शाही सवारी  पूरे जोश के साथ ढोल ,बाजे, नगाड़े के साथ निकलती है।


श्रावण महीने में इनकी सवारी को देखने के  लिए दूर दूर से लोग आते हैं एक अद्भुत दृश्य देखने के लिये  शिव भक्तों को प्राप्त होता है।

 (4)  shri omkareshwar jyotirlinga श्री ऊँकारेश्वर  ज्योतिर्लिंग  (ओमकारेश्वर )

shri omkareshwar jyotirlinga near railway stationओमकारेश्वर जाने के लिए इंदौर से उज्जैन से ज्यादा सुगम हो जाता है। मालवा प्रांत में नर्मदा नदी के तट पर    भगवान शिव का परम पवित्र शिवलिंग मांधाता पर्वत के ऊपर ओमकार के रूप में विराजमान है।


शिव पुराण में श्री ओमकारेश्वर  का बहुत ही महत्व बताया गया  है ।कथा  है कि सूर्यवंश के राजा मांधाता ने अपनी कठोर तपस्या  से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसीलिए इस पर्वत का नाम मांधाता  पड़ गया। 


ऊँकारेश्वर लिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शिवलिंग  स्वयंभू है, प्राकृतिक है, इसके चारों को हमेशा जल भरा रहता है।


 (5)श्री  केदारेश्वर महादेव:- 

    kedareshwar temple  केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग :-यहाँ  जाने ,इससे  जुडी पुराणों में वर्णित कथा   

यह भाग हिमालय के चोटी पर स्थित है शिखर के पूरब में अलकनंदा है और पश्चिम में मंदाकिनी , केदारनाथ जी हैं। केदारनाथ जी हरिद्वार से लगभग 150 मील ऋषिकेश से 132 मील उत्तर में है ।


इसके संबंध में बड़ी रोचक कथा आती है नर और नारायण जो कि दो ऋषि थे एवं  बाद में अर्जुन और भगवान कृष्ण के रूप में अवतरित हुए। इन्हीं नर -नारायण की यह तपस्या स्थली है। देवराज  इन्द्र  ने नर - नारायण की तपस्या को भंग करने के  स्वर्ग से अप्सराओ को भेजा था ।


लेकिन यह अप्सराएं भी नर और नारायण ऋषि की तपस्या को भंग नहीं कर पाई ,तब नारायण  ने कहा कि तुम लोग जिस नृत्य ,यौवन,एवं  सौंदर्य से हम लोगों को विचलित  करने आई हो ,

 तुम  सभी से  कई गुना अधिक सुंदर अप्सरा हम तुम्हें भेट मे  देते हैं, और  इसे ले  जा करके इसे अपने देवराज इंद्र को यह भेट दे देना ।


यह कहकर नारायण में अपनी जाँघ  से एक ऐसी अप्सरा प्रकट की जिसके यौवन, सौन्दर्य, कोमलता, एवं नृत्य को देखकर   स्वर्ग की सभी  अप्सराएं  आश्चर्यचकित    हो गयी । एवं अपने अभिमान को भंग होता हुआ देखकर  शर्म से भर गयी । 

नारायण के जाँघ  से उत्पन्न होने  के कारण  उसका नाम उर्वशी पड़ा उर्वशी अप्सरा को नारायण ने इंद्र को भेट के रूप में दे दिया ।


यह नर और नारायण ऋषि भगवान शिव की पूजा पार्थिव शिवलिंग बना कर करते थे ।ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव रोज उस शिवलिंग  में आकर के उनकी पूजा को ग्रहण करते थे।


समय का चक्र बीतता चला गया, आखिर  वह समय आया जब भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए ,एवं नर- नारायण से कहा कि मैं आप की आराधना से बहुत प्रसन्न  हूँ,  आप अपना इच्छित वर मांगिये।


 तब   नारायण ने कहा हे प्रभु यदि आप  प्रसन्न  है और देना चाहते हैं तो आप अपने स्वरूप से ही यहाँ  प्रतिष्ठित हो जाइये,  और भक्तों के दुखों को दूर करते रहिए।


 इस प्रकार भगवान शिव ने नर और नारायण के कहने पर वही ज्योतिर्लिंग के रूप में अपने को प्रतिष्ठित कर दिया। तभी से वह ज्योतिर्लिग केदारेश्वर के नाम से विख्यात हुआ ।


इस ज्योतिर्लिंग  के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। यहां के दर्शन की बहुत ही महिमा बताई गई है।

 (6) bhimashankar temple  भीमा शंकर            

भीमा शंकर  क्यों  प्रसिद्ध है ?

भीम शंकर ज्योतिर्लिंग मुंबई से पूर्व दिशा में भीमा नदी के किनारे पर स्थित है। भीमा नदी यहाँ  से निकलती है।  सूर्यवंशी राजा भीमक ने यहाँ पर  तपस्या की थी। उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए भगवान शंकर ने प्रकट होकर साक्षात दर्शन दिए थे ।


और भीमक के आग्रह करने पर यहां  वह ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गये । ज्योतिर्लिंग का नाम राजा भीमा के नाम पर भीमाशंकर पड़ा इसका  शिव पुराण में उल्लेख आता है।



 भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग  का रहस्य :- कामरूप जिले में ब्रह्मापुर पहाड़ी में स्थित है ।शिवपुराण की कथा आती है कामरुप देश में कामरूपेवश्वर नामक राजा था। जो कि भगवान शिव का महान भक्त था। वह भगवान शिव जी के शिवलिंग के  सामने घंटों प्रभु की आराधना में डूबा रहता था।


शिवाय प्रभु के उसके मन में और कोई बात नहीं आती थी धीरे-धीरे उसकी ख्याति फैलने लगी, उसकी ख्याति को  बढ़ते हुए देख कर के एक महा राक्षस जिसका नाम भीम था वह उस राजा के विनाश के लिए वहां पर आ पहुंचा ।

लेकिन जिसके ऊपर भगवान शिव का हाथ हो उसका दुनिया क्या बिगाड़ पाएगी। जैसे ही उस महा राक्षस ने तलवार से उस राजा को मारने की कोशिश की वह तलवार उसके हाथ से छटक करके   शिवलिंग पर जा गिरी।


तलवार के शिवलिंग पर गिरते ही भगवान शिव  साक्षात  प्रकट हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल  से भीम शंकर राक्षस का वध कर दिया।


 (7  ) vishweshwar (kashi vishwanath temple)श्रीविश्वेश्वर महादेव :-

यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की सबसे प्रिय नगरी काशी के अंदर स्थित है। कहा जाता है कि जो भी प्राणी काशी में मरते हैं उनके कान में भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र को बोलते है ।  यहां उन्ही विश्वनाथ जी का   ज्योतिर्लिंग है

जो कि अपार श्रद्धा का केंद्र है ।श्री काशी विश्वनाथ जी का मूल ज्योतिर्लिंग उपलब्ध नहीं है। लेकिन विश्वनाथ जी के मंदिर का निर्माण थोड़ा हटकर के गंगा जी के समीप में हुआ है।

इस ज्योतिर्लिंग की बड़ी महिमा बताई गई है क्योंकि यह पवित्र नगरी काशी ही अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण हैऔर उसके अंदर भगवान शिव की नगरी है। इसका प्रलय काल में भी लोप नहीं होता।



 (8)   shri trimbakeshwar mandir श्रीत्र्यंम्बकेश्वर  ज्योतिर्लिंग मंदिर 

यह पावन और पवित्र ज्योतिर्लिंग मुंबई के नासिक जिले में है। और उसके समीप में ही गोदावरी नदी निकलती है। जो महत्त्व गंगा जी का है वही गोदावरी जी का भी है।

श्रीत्र्यंम्बकेश्वर क्यों  प्रसिद्ध है ?

गोदावरी को दूसरी गंगा  कहा जाता है क्योंकि कहा जाता है कि गौतम जी की महान तपस्या के फलस्वरूप गोदावरी नदी की उत्पत्ति हुई, और गंगा जी भागीरथ जी के तपस्या से धरती पर अवतरित हुई।

जैसे गंगा जी   भागीरथ जी के कठोर तपस्या करने पर  भगवान शिव के प्रसन्न होने पर धरती पर उतरी । वैसे ही गौतम ऋषि की तपस्या के कारण  गोदावरी प्रकट हुई।

यहाँ  गौतम ऋषि  की तपस्या से प्रकट हुए थे शिव 

इस ज्योतिर्लिंग के बारे में पावन कथा है वह इस प्रकार है, महर्षि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ आश्रम मे रहा करते थे।

  वह बहुत ही परोपकारी  थें । हमेशा  परोपकार किया करते थे। इस पुनीत कार्य में  अहिल्या भी साथ दिया करती थी।

 एक समय की बात है कि उन्होंने   10000 वर्षों तक तपस्या करके वरुण देव को प्रसन्न कर दिया ।

उसी समय  100 वर्षों तक अकाल पड़ा, अकाल  की वजह से क्षेत्र के आसपास के लोग वह क्षेत्र को छोड़कर जाने लगे, यह सब देख कर कि गौतम ऋषि ने सभी को  बहुत रोका,   एवं   वरुण देव की आराधना की एवं उनको प्रसन्न  करके उन्होंने अक्षय कुंड  प्राप्त किया ,वह जल कभी भी  समाप्त नहीं होता था।


  ऋषि गौतम के आश्रम में बहुत ही अन्न  उत्पन्न हुआ,  और जल की भी कोई कमी नहीं रही। उनका आश्रम पूरी तरह से हरा भरा  हो गया था। चारों तरफ हरियाली छा गई थी। नाना प्रकार के  पुष्प,  फल, जड़ी बूटी सब  उनके आश्रम मे उत्पन्न होने  लगे, किसी  प्रकार  कोई कमी नहीं रही।

 यह सब देख कर के वहां पर जो ब्राह्मण लोग थे,उनकी  पत्नियों ने ऋषि गौतम के तप के प्रभाव को देखकर उन स्त्रियों ने अपने पतियों को  भ्रमित  कर दिया।


 उन्होंने सोचा किसी तरह से कोई ऐसी  युक्ति  चली जाए कि गौतम ऋषि अहिल्या के साथ  आश्रम को छोड़कर बाहर चले जाए ।


इसके लिए  ब्राह्मणों की पत्नियों ने मिलकर अपने-अपने  पति के साथ एक योजना   बनाई  एवं उस  योजना को किसी देवता के सहारे  से उस योजना को  कार्यन्वित   किया।


वह देवता एक दुर्बल गाय का रूप बनाकर आये  तभी महिर्षि  गौतम ने  आश्रम   मे  दुर्बल गाय को  चरते हुए देखा। उस समय उनके हाथ में मुट्ठी भर घास का गुच्छा था उसी गुच्छे  से उन्होंने उस गाय हटाने  का प्रयत्न किया एवं   मुट्ठी भर तृण से स्पर्श करते ही उस गाय के प्राण-पखेरू  उड़ गये , तब तक छिपे  हुए  ब्राह्मण बाहर आए ,और उन्होंने कहा कि  अरे आपने तो गौ हत्या कर दी है इसका तुम्हें प्रायश्चित करना पड़ेगा आप पर तो   गौ हत्या का पाप लग गया है ।


  तब ॠषि  गौतम ने ब्राह्मणो से पूछा कि इसके  प्रायश्चित के लिये  लिए मुझे क्या करना पड़ेगा? इस पर ब्राह्मणों  ने कहा  कि पूरी पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करनी पड़ेगी ।


 और फिर गंगा स्नान करने के बाद आपको फिर से 1000 शिवलिंग की नित्य पूजा करनी पड़ेगी उसके बाद पूजा करने के बाद फिर से आपको गंगा स्नान करके और फिर से आपको शिव पूजा करनी पड़ेगी ।


 तब जाकर आप इस  पाप से मुक्त हो पाएंगे, गौतम ॠषि ने इसे स्वीकार किया ,और इस   दुष्कर कार्य  को करते रहे ,  भगवान  शिव के शिवलिंग की पूजा की उनकी पूजा तपस्या को देखकर भगवान भोलेनाथ तुरंत प्रकट हो गए। 


भगवान शिव के प्रकट होने पर गौतम ॠषि बोले कि प्रभु मुझसे  गौ हत्या हो गई हैं । और इस पाप को दूर करना चाहता हूं।


 तब भगवान आशुतोष बोले कि  ऐसी कोई बात नहीं है,    आप तो  निष्पाप है, आपके  साथ छल हुआ  है ।


तब गौतम ॠषि ने कहा हे प्रभु, चाहे जो हो उसी कारण आपका दर्शन हुआ, आपका दर्शन  तो देवताओं को भी बड़ी  मुश्किल से मिलता है।


 आप साक्षात प्रकट हुए हैं आपसे मेरी यही प्रार्थना है कि आप   गोदावरी के तट पर विराजमान हो जाइए ।  इस प्रकार गौतम ऋषि की प्रार्थना करने पर भगवान शिव वहां   ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए ।


यह ज्योतिर्लिंग   सभी कामनाओं को पूर्ण करता है।  और मुक्ति प्रदान करता है।


 

(9)  vaijnath jyotirlinga  बैजनाथ  ज्योतिर्लिंग

श्री बैजनाथ पटना कोलकाता जो रेलवे का मार्ग  है वहीं पर  स्टेशन से दक्षिण पूर्व की ओर 100 किलोमीटर पर देवघर है। और यही देवघर बैजनाथ बैजनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है।


  बैजनाथ  ज्योतिर्लिंग की  बड़ी ही रोचक कथा:-

 श्री बैजनाथ की एक बहुत ही रोचक कथा आती है महा बलशाली रावण उसकी इच्छा हुई कि भगवान शिव की आराधना करके मैं अपार बल और सामर्थ्य  प्राप्त करूं, और इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने भगवान शिव की आराधना चालू कर दी ।


वह गर्मी के अंदर पंचांग सेवन करता था और ठंड में पानी के अंदर रहता  था। और बारिश के मौसम में खुले मैदान में  तपस्या करता था ।


इस तरह  कई वर्ष बीत गए काफी समय हो गया जब भगवान शिव जी का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं हुआ, तो  रावण ने पार्थिव शिवलिंग की स्थापना की, और उसके पास में गड्ढा खोदकर आग जलाकर के और वैदिक विधि  विधान से भगवान शिव की पूजा की।


 इसमें वह अपने  सिर को काट-काट कर चढ़ाने लगा, लेकिन शिव जी की कृपा से उसका कटा हुआ सिर फिर जुड़ जाता । इस प्रकार उसने 9 बार सिर काटकर चढ़ाया, जब दसवीं बार उसने अपना सिर काटना चाहा तो  भगवान भोलेनाथ , दया के सागर, उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गए और बोले कि  क्या मांगते हो?

 तब रावण बोला कि प्रभु मै अपार बल एवं सामर्थ्य चाहता हूँ तब भगवान शिव ने कहा तथास्तु!

 इसके बाद  रावण ने कहा कि आप से मेरी यह प्रार्थना है कि आप मेरे साथ लंका में चले। तब भगवान शिव ने आत्मलिंग  (शिवलिंग) दिया ,भगवान शिव ने जब  उसे शिवलिंग दिया तो  कहा कि, मैं लंका तो चल रहा हूं लेकिन यदि तुम इसे कहीं मार्ग में रख दोगे, तो यह वहीं अचल हो जाएगा।


 तब रावण  शिवलिंग को लेकर चलने लगा,   मार्ग मे उसको लघुशंका लगी, लघु शंका करने के लिए जैसे ही वह इधर-उधर देखने लगा, तो उसे ग्वाला दिखाई दिया उसने ग्वाले से कहा कि  10 मिनट के लिए आप  इस शिवलिंग को पकड़ लीजिए, इसे धरती पर  मत रखिएगा  मै अभी आता हूं ।


काफी समय  हो गया, इधर ग्वाल शिवलिंग के भार को वहन   नहीं कर पाया , उसने शिवलिंग  को जमीन पर  रख  दिया।


 जब रावण लघुशका के बाद आया ,तो उसने देखा कि शिवलिंग जमीन पर है वह बहुत  हताश हुआ,  और उसने  बहुत  कोशिश की, लेकिन वह शिवलिंग को हिला भी नहीं  सका।

आखिर हार कर  रावण शिवलिंग को छोड़कर चला गया, वही  शिवलिंग  बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ और  एक  घटना घटी ब्रह्म जी सभी  देवताओं के साथ वहां  उपस्थित हो गए ।


सभी देवताओं ने भगवान शिव का साक्षात दर्शन  किया देवताओं ने उनकी  प्राण प्रतिष्ठा की, महादेव की स्तुति कर, सारे देवता आपने -अपने घर को चले गए ।

बैजनाथ महादेव   की पूजा से समस्त दुखों का नाश हो जाता है। यहां पर हजारों की संख्या में शिव भक्त आते है एवं  भगवान शिव जी के इस जाग्रत शिवलिंग के दर्शन का लाभ उठाते हैं ।


 (10)   nageshwar jyotirlingaश्री नागेश्वर  ज्योतिर्लिंग की  कथा  :-

श्री नागेश्वर भगवान का  द्वारका से बेट द्वारका को जाते समय  पूर्व मार्ग पर स्थित है इस लिंग की स्थापना के संबंध में शिव पुराण में कथा आती है।

बहुत प्राचीन समय की बात है एक बार दारू नाम का राक्षस रहता था ।उसकी पत्नी का नाम दारूका  था। बलवान राक्षस ने बड़ा उपद्रव एवं  संहार मचा रखा था।


सभी  वर्गों के  लोगों का धर्म का नाश करता ।पश्चिम समुद्र के तट पर उसका एक वन था जो कि 16 योजन फैला  था ।उसकी पत्नी दारूका  माता पार्वती की  आराधिका  थी।

 राक्षस दारू के अत्याचारों से प्रेरित होकर सारे लोग महर्षि और्व की शरण मे गये ।

महर्षि और्व की शरण:-

सभी लोग  राक्षसों की अत्याचार से पीड़ित  थे, महर्षि और्व ने   आश्वासन दिया और राक्षसों को श्राप दिया कि यदि यह पृथ्वी पर किसी भी मनुष्य का यज्ञ विध्वंस करेंगे या उनके धर्म को नष्ट करेंगे तो उनका मस्तक  कट के गिर जाएगा और अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे।


 यह श्राप  जानकर देवताओं  ने  राक्षसों के ऊपर चढ़ाई कर दी राक्षस घबरा  गए,  यदि वह पृथ्वी पर लड़ाई में  देवताओं को मारते तो मृत्यु हो जाती और नहीं मारते तो भी मृत्यु हो  जाती ।



दारूक  वन   16 कोस में फैला हुआ था। राक्षसों से दारूका  ने कहा आ मुझे  माता पार्वती के आशीर्वाद से यह शक्ति प्राप्त है कि मैं इस वन  को जहां चाहे वहां ले जा सकती हूँ ।


 यह कहकर दारूका उस वन  को लेकर के समुद्र में चली गई वही बस गई ।

एक बार  उधर बहुत से मनुष्य नौका  के द्वारा निकले उन मनुष्यों को  राक्षसों ने पकड़ कर जेल में डाल दिया।एवं  अनेक प्रकार से उनको यातना देने लगे, उस मनुष्यों मे जो प्रधान  था।


वह एक व्यापारी था जो कि बड़ा सदाचारी था सत्य आचरण  करने वाला, भगवान शिव का परम भक्त था।  शिव की पूजा किए बिना भोजन नहीं करता था। उसने अपने सारे साथियों को भगवान शिव जी  के संरक्षण मंत्र  का जाप करना ओम नमः शिवाय सिखा दिया था।


 सारे उसके मित्र  भगवान शिव के इस मंत्र का जाप करते थे। इस तरह की वह  पूजा पाठ रोज  करते  कारावास  में बंद होने के बाद भी उनकी शिव भक्ति में कभी कोइ  कमी नहीं आई। यह सब देख कर के राक्षस दारुक बहुत नाराज हुआ। एवं वह उनके मुखिया को मारने के लिए नंगी तलवार लेकर आया। उसको आया देख कर के उस व्यापारी ने  भगवान शिव को हृदय से पुकारा, हे महादेव हमारी  रक्षा कीजिए।

 हम सब आपकी शरण में है हमारी  रक्षा कीजिए भक्त  की आवाज सुन कर  भगवान शिव दीवाल में से निकले उनके साथ शिव मंदिर भी प्रकट हुआ।

 व्यापारी और  उसके साथियों ने भगवान शिव जी का  दर्शन किया ,भगवान शिव प्रसन्न हो गए उन्होंने  पशुपतास्त्र से  सभी  राक्षसों  को नष्ट कर दिया।


एवं  अपने भक्तों की रक्षा की  दारूका  ने  माता पार्वती से प्रार्थना की मेरे वंश की  रक्षा करे उसकी प्रार्थना  सुनकर   महादेवी ने अभय  दान दे दिया।


 उसके बाद भगवान शिव पार्वती वापस हो गए वही  शिवलिंग महादेव नागेश्वर कहलाये ।


 (11   )  rameshwar mandir श्री रामेश्वर  धाम  :-

श्री रामेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग  11 वे स्थान पर आता है इस ज्योतिर्लिंग की बहुत ही महिमा शिव पुराण स्कंद पुराण मैं बताई गई है ।


इसको भगवान श्रीराम ने स्वयं अपने हाथों से  निर्माण किया था , भगवान श्रीराम ने  समुद्र के किनारे पर बालू से  इस शिवलिंग का निर्माण किया था ।एवं  पूजा अर्चना करके रावण पर विजय प्राप्त करने का वर भगवान शिव जी से माँगा । श्री रामेश्वर जी का मंदिर अत्यंत भव्य एवं  विशाल है।इसमें शिवजी के  शिवलिंग  के अतिरिक्त भी अधिक शिव मूर्तियाँ है। नंदी की बहुत बड़ी मूर्ति  मंदिर के अंदर जाने पर मिलती  हैं।


 मंदिर के अंदर अनगिनत   कुएँ है ।  यहां गंगाजल को श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाना का बहुत ही पुण्यदायक बताया गया है।





  (12)      grishneshwar templeश्री घृणेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर :-

यह ज्योतिर्लिंग दौलताबाद से 20 किलोमीटर  बेरूल ग्राम के पास स्थित है।


 शिव पुराण में शिवलिंग के   संबंध में बहुत ही रोचक कथा :-


 वह कथा इस प्रकार है देवगिरी के निकट ही एक भारद्वाज गोत्र में उत्पन्न सुधर्मा नामक ब्राह्मण रहते थे। वह ब्राह्मण नियम से  शास्त्र के अनुसार पूजा अर्चना करते  थे ।


रोज अग्निहोत्र करते थे,   दोनों पति पत्नी धर्म मार्ग में चलने वाले शिव जी के  परम भक्त थे। लेकिन  उनका कोई पुत्र नहीं था ।


उनकी पत्नी  सुदेहा पुत्र ना होने के कारण  दुःखी  हो जाती थी। पति से  बोलती थी कि मुझे पुत्र नहीं  है । इस पर  ब्राह्मण  तो समझाते परंतु उसका मन नहीं मानता  था ।


 उसने  पुत्र प्राप्ति  के बहुत सारे  उपाय किये लेकिन   सफल नहीं हुआ ।तब  उसने दुःखी होकर के  अपनी बहन घुष्मा से अपने पति का दूसरा विवाह करा दिया।


 विवाह के पहले सुधर्मा ने  बहुत बार समझाया था। इस समय तुम बहन से प्यार कर रही हो जब उसके पुत्र हो जाएगा तो वैसा  प्रेम  नहीं  कर पाओगी । लेकिन ब्राह्मण के समझाने के बाद भी वह  नहीं मानी और  अपनी  छोटी बहन घुष्मा से विवाह करवा दिया, घुष्मा  बहुत ही धार्मिक   थी ।वह रोज भगवान शिव के  101 पार्थिव शिवलिंग को  बनाकर के पूजा किया करती थी। शंकर जी के कृपा  से उसको सुंदर सौभाग्यवान  पुत्र हुआ ।


इससे उसका मान और बढ़ गया  अब  पुत्र बड़ा हुआ तो  उसका विवाह हुआ ।पुत्रवधु  आ गई, अब तो सुदेहा के मन मे ईर्ष्या जाग गयी, और एक दिन उसने रात में सोते हुए घुष्मा के  पुत्र को मार डाला । एवं उसके शव को उसी तालाब में फेंक दिया जहां पर रोज घुश्मा  पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन करती थी। 


जब सुबह हुई तो फिर पुत्रवधु ने अपने  पति को वहां न पाकर के घर में कोहराम मचा दिया । तब वह वापस   घुश्मा के पास गयी, और बोली कि आपका पुत्र कहां है ? घुश्मा  उस समय   पूजा मे बैठी थी उसके मन में केवल  भगवान शिव थे ।


जब तक वह पूजा करती तब तक वह दूसरी बात की चिंता भी  नही करती थी ।पूजा समाप्त होने पर  उसने  अपने पुत्र को न देख कर के भी कुछ नहीं बोली, एवं फिर से वह शिव के पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने चली गई।



उसके मन में किसी भी प्रकार के कोई विचार नहीं थे, वह जानती थी कि मेरे रक्षक भगवान शिव हैं ,तो वह सब चिंता करेंगे ,मैं क्यों इतनी चिंता क्यों करूँ?  उसे अपनी भगवान श्री शिव जी के उपर पूरा विश्वास था।



जब वह भगवान शिव के पार्थिव शिवलिंग को विसर्जन करने तालाब पर गई तब तक उसका पुत्र उसे वहां मिल गया,  ऐसा लगा जैसे कहीं से घूम कर आ रहा है।


 घुश्मा के  खुशी का ठिकाना नहीं रहा, तभी उसकी भक्ति एवं  सेवाओं से  भगवान शिव जी प्रकट हो गए।  उन्होंने कहा तुम्हारी बहन सुदेहा  ने तुम्हारे पुत्र का वध कर दिया था। इसलिए  मै उसे  त्रिशूल से  मारूंगा।


तब घुश्मा ने ज्योति स्वरूपा ईश्वर  को प्रणाम किया,  और यह बोलीं,  कि उसकी बड़ी बहन सुदेहा  को भगवान क्षमा  कर दो।


 शिव शंकर महादेव  ने कहा कि तुम्हारी बहन ने जघन्य अपराध किया है । तब  तुम उसे प्यार क्यों करती हो? ,दुष्ट कर्म करने वाले  को दंड की  आवश्यकता   होती है ।


उस पर घुश्मा बोली,  मैंने ऐसा  सुन रखा है,  कि जो अपकार का काम करने वाले पर भी उपकार करता है ,उसके दर्शन मात्र से पाप बहुत दूर भाग जाता है।


 घुश्मा के मुंह से ऐसे बचे हुए श्रवण भक्तवत्सल महेश्वर प्रसन्न हो गए , बोले कि तुम अपने मनपसंद का कोई वर मांग लो , भगवान शिव की बात सुनकर घुश्मा बोली कि हे प्रभु यदि आप देना चाहते हैं, तो लोगों की रक्षा के लिए यहां सदा निवास प्लग, मेरे नाम से ही मेरी ख्याति हो तो भगवान शिव ने बड़ी सराहना से उसे यह वर दे दिया।


डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।

 














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