Advertisement

Responsive Advertisement

शिव पुराण में क्या साध्य है ?क्या साधन है? कैसे कथा को सुनना चाहिए ?कीर्तन और मनन इसमें कौन से साधन श्रेष्ठ हैं?

 यह प्रसंग शिव पुराण से लिया गया है व्यास जी कहते हैं सूत जी का यह वचन  सुन सब महर्षि बोले--'


अब आप हमें वेदांतसार -सर्वस्वरूप अद्भुत शिवपुराण की कथा सुनाइए ।ʼ


सूत जी ने कहा-


आप सब महर्षिगण रोग- शोक से परे कल्याणमय , भगवान शिव का स्मरण करके पुराणप्रवर शिव पुराण, की जो वेद के सात तत्वों से प्रकट होता है कथा सुनिए ।


शिव पुराण में भक्ति ज्ञान और वैराग्य इन तीनों की स्तुतिपूर्वक गाई गई है।


और वेदांतवेद सद्धस्तु का विशेष रूप से वर्णन है। इस वर्तमान में, कल्प में जब सृष्टि रचना की शुरुआत हुई थी। उन दिनों छ: कुलो के महर्षि  वाद विवाद करते हुए कहने लगे अमुक वस्तु सबसे उत्कृष्ट है और अमुक नहीं है।


उनके इस विवाद ने अत्यंत महान रूप धारण कर लिया। तब वे सब के सब अपनी-अपनी  शंकाओ के समाधान के लिए सृष्टिकर्ता अविनाशी ब्रह्मा जी के पास गए और हाथ जोड़कर विनय भरी वाणी में बोले!


प्रभो, आप संपूर्ण जगत के पालन पोषण करने वाले और सभी के कारण है ,कि हम यह जानूना चाहते हैं कि संपूर्ण तत्वों से पदार्थों पर पुराण पुरुष कौन है


ब्रह्मा जी ने कहा जहां से मन सहित वाणी उन्हें ना पाकर लौट आती है ,तथा जिन से ब्रह्मा विष्णु और इंद्र आदि से युक्त या संपूर्ण जगत समस्त भूतों एवं इंद्रियों के साथ पहले प्रकट हुआ है। वहीं यह देव महादेव सर्वज्ञ एवं संपूर्ण जगत के स्वामी हैं ।


यही सबसे उत्कृष्ट हैं ,भक्ति से ही इनका साक्षात्कार होता है दूसरे किसी उपाय से कहीं इनका दर्शन नहीं होता है।


रुद्र ,हरि ,हर, तथा अन्य देवेश्वर सदा उत्तम भक्ति भाव से उनका दर्शन करना चाहते हैं। भगवान शिव में भक्ति होने से मनुष्य संसार बंधन से मुक्त हो जाता है, देवता के प्रसाद से  भक्ति होती है।


और भक्ति से भगवान की कृपा प्रसाद प्राप्त होता है। ठीक उसी तरह जैसे यहां अंकुर से बीज और बीज से अंकुर पैदा होता है। 


इसलिए तुम सब ब्रह्म ऋषि भगवान शंकर की कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए भूतल पर जाकर वहां सहस्त्र वर्षों तक चालू रहने वाले एक विशाल यज्ञ का आयोजन करो।



यज्ञ पति भगवान शिव की कृपा से वेदोक्त विद्या के सारभूत साध्य, साधन का ज्ञान होता है।  

शिव पद की प्राप्ति ही साध्य है, उनकी सेवा ही साधन  है ।तथा उनके प्रसाद से जो नित्य-नैमित्तिक आदि  की ओर से नि:स्पृह होता है, वह साधक है। 


वेदोक्त कर्म का अनुष्ठान करके उसके महान फल को भगवान शिव के चरणों में रखा जाता है। समर्पित कर देना ही भगवान पद की प्राप्ति है।


समान सालोक्य  आदि के कर्म से प्राप्त होने वाली मुक्ति है। उन-उन पुरुषों की भक्ति के अनुसार उन सभी उत्कृष्ट फल की प्राप्ति होती है। उनकी भक्ति के साधन कई प्रकार के होते हैं, वास्तव में साक्षात महेश्वर ने ही व्याख्या की है।


उनमें से सारभूत साधन को संक्षिप्त करके मैं बता रहा हूं। कान से भगवान के नाम के गुण और लीलाओं का श्रवण, वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मन के द्वारा उनका मनन करना चाहिए,  इन तीनों को महान साधन कहा गया है।


महेश्वर का श्रावण, कीर्तन और मनन करना चाहिए -यह श्रुति का वाक्य है हम सबके लिए प्रमाणभूत है।


इसी उपकरण से संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि में लगे हुए आप लोग परम साध्य को प्राप्त हो सकते हैं। लोग प्रत्यक्ष वस्तु को आंख से देख कर वह प्रत्यक्ष होते हैं।


परन्तु  जिस वस्तु का कहीं भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता उसे श्रवणेन्द्रिय द्वारा जान-सुनकर  मनुष्य उसकी प्राप्ति के लिए चेष्टा   करता है।


अतः पहला साधन श्रवण ही है, उसके द्वारा गुरु के मुख से तत्व को सुनकर श्रेष्ठ बुद्धि वाला विद्वान पुरुष अन्य साधन कीर्तन एवं मनन सिद्धि करें।



क्रमशः मननपर्यन्त   इस साधन  की अच्छी तरह साधना कर लेने पर उसके द्वारा सालोक्य आदि  के आगे क्रम से धीरे-धीरे भगवान शिव का संयोग प्राप्त होता है ।


पहले सारे अंगों के रोग नष्ट हो जाते हैं, फिर सब प्रकार का अलौकिक आनंद भी विलीन हो जाता है। भगवान शंकर की पूजा उनके नामों के जप तथा उनके गुण रूप विलास और नामों का युक्तिपरायण  चित्त के द्वारा जो निरंतर परिशोधन या चिंतन  होता है,  उसी को मनन कहा गया है ।


वह महेश्वर की कृपा दृष्टि से उपलब्ध होता है। उसे समस्त श्रेष्ठ साधनों में प्रधान या प्रमुख कहा गया है ।


सूत जी कहते हैं मुनीश्ररो! इस साधन का महत्व बताने के प्रसंग में मैं आप लोगों के लिए प्राचीन वृतांत  का वर्णन करूंगा उसे ध्यान देकर सुने।


पहले की बात है पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यास देव जी सरस्वती जी के सुंदर तट पर तपस्या कर रहे थे। एक दिन सूर्य तुल्य तेजस्वी  विमान से यात्रा करते हुए भगवान सनत्कुमार अकस्मात वहां जा पहुंचे ।


उन्होंने मेरे गुरु को वहां देखा ,वे ध्यान में मग्न थे। उस ध्यान से जगने पर उन्होंने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार  जी को अपने सामने उपस्थित देखा। देखकर  वे बडे वेग से उठे और उनके चरणों में प्रणाम करके मुनि ने उन्हें अर्ध्य दिया और देवताओं के बैठने योग्य आसन दिया । 


तब प्रसन्न हुए सनत्कुमार विनीत भाव से खड़े हुए और व्यास जी से गंभीर वाणी  में बोले-----तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो। सत्य पदार्थ भगवान शिव जी हैं जो तुम्हारी साक्षात्कार के विषय होंगे ।


भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन, मनन, ये तीन महत्ता  साधन कहे गए हैं  यह तीनों ही वेद सम्मत हैं ।पूर्व काल में मैं दूसरे दूसरे साधनों के सम्भ्रम मे पड़कर  घूमता- घूमता मंदराचल पर जा पहुंचा और वहां तपस्या करने लगा।


भगवान शिव की आज्ञा से वहां पर नंदीकेश्वर आए उन्होंने मुझे इस स्नेहपूर्वक मुक्ति का उत्तम साधन बताते हुए बोले भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन, मनन   तीनों साधन वेदसम्मत  है और मुक्ति के साक्षात् कारणहैं।


 यहां बात  स्वंय  भगवान शिव जी ने मुझसे  कही है अतः ब्राह्मण तुम तीनों साधनों का ही अनुष्ठान   करो ।


व्यास जी से बार-बार ऐसा कह कर अनुगामियो  सहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार परम सुंदर ब्रह्मधाम को चले गए।


इस प्रकार पूर्व काल की इस उत्तम वृतांत का मैंने संक्षिप्त वर्णन किया है। 

ऋषि  बोले  सूत जी---श्रवणादि तीन साधनों को आपने मुक्ति  का उपाय बताया है ,किंतु जो श्रवण  में असमर्थ हो, वह मनुष्य किस उपाय का अवलंबन करके मुक्त हो सकता है । किस साधनभूत कर्म द्वारा बिना यत्न  के ही मोक्ष   मिल सकता है?

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ