Shiv katha sawan special शिव भक्त रावण

रावण की शिव आराधना ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
रावण की शिव आराधना
Lord Shiva

एक अनोखा शिवभक्त

लंका का राजा रावण एक महान शिव भक्त के रूप में जाना जाता है। उसने स्वयं कहा था कि मुझ जैसा व्यक्ति इस पृथ्वी पर न कभी पैदा हुआ है, न कभी पैदा होगा। उसकी भक्ति अद्भुत और अद्वितीय थी।

रावण की मां कैकसी के द्वारा पार्थिव शिवलिंग का पूजन

एक दिन रावण की माता भगवान शिव की आराधना के लिए समुद्र किनारे गईं और पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करने लगीं। तभी समुद्र की लहरों ने सभी शिवलिंग बहा दिए।

गुरु शुक्राचार्य की चेतावनी

दैत्य गुरु शुक्राचार्य प्रकट हुए और बोले कि रावण का अंत निश्चित है। यदि वह शिव का आत्मलिंग लंका में स्थापित कर दे तो वह अजेय हो जाएगा।

रावण का कैलाश गमन और तपस्या

रावण कैलाश गया लेकिन विमान गिर पड़ा। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की और अपने नौ सिर अर्पित कर दिए। दसवां सिर काटने ही वाला था कि शिव प्रकट हो गए।

भोलेनाथ का दर्शन और चंद्रहास की प्राप्ति

शिव ने रावण को चंद्रहास नामक दिव्य खड्ग प्रदान किया जो धारक को अपराजेय बनाता है।

लंका वापसी और माता का क्रोध

रावण आत्मलिंग न लाकर खड्ग लेकर लौटा तो माता क्रोधित हुईं। रावण ने पुनः आत्मलिंग लाने का संकल्प लिया।

डिस्क्लेमर

नोट: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न धार्मिक स्रोतों एवं मान्यताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल धार्मिक व सांस्कृतिक जानकारी साझा करना है। उपयोगकर्ता अपनी समझ से इसका प्रयोग करें।

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