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Shiv katha sawan special शिव भक्त रावण

 

शिवभक्त रावण

अभी तक आप लोगों ने पढ़ा है कि जब रावण कैलास से भगवान शिव का चंद्रहास लेकर लौटा, तो उसकी माता कैकसी  बहुत क्रोधित हुई थी, उन्होंने कहा कि मैंने कहा था कि भगवान शिव को ले आओ और तुम, चंद्रहास लेकर आये , इस पर रावण को अपनी भूल का पता चला।


रावण का दूसरी बार कैलाश का गमन:-

माता को  दिए गए वचन को पूरा करने के लिए ,रावण पुष्पक के साथ कैलास पर्वत पर जाता है, लेकिन पूर्व की तरह अपने स्थान पर उसका विमान वापस धाराशायी हो जाता है।

और कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की इच्छा के बिना कोई नहीं जा सकता, यह बात सर्वविदित है।

ऐसे में रावण नीचे कैलाश की तलहटी पर भगवान शिव की आराधना में बैठता है।


रावण का अपनी आँतों को निकाल कर वीणा बजाना:-

भगवान शिव की तपस्या करते-करते रावण को  जब कई वर्ष हो गए, लेकिन प्रभु के दर्शन न होने के कारण अब रावण व्याकुल हो जाता है। पहली बार तो रावण ने अपने सिर को काटकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया  था।



परन्तु इस बार तो वह भिन्न- प्रकार की भक्ति आरम्भ करता है। अपनी  आन्तों को निकाल कर वीणा बनाकर  प्रभु के  मंत्र  ॐ नमः शिवाय का जाप करता है।

इतना अपार कष्ट सहने के बाद भी प्रभु की भक्ति में किंचित मात्र की भी कमी नहीं होती है । न ही रावण के मुख  पर  वेदना के कोई  चिन्ह उभरते  है।

  
 ।   ऐसी अद्भुत  भक्ति   देखकर माता  पार्वती भगवान शिव से बोली। हे प्रभु  अब आपको रावण को दर्शन देना अत्यंत आवश्यक हो गया है।

भगवान शिव एवं माता पार्वती का साथ-साथ रावण को दर्शन देना:-

रावण की कठोर  तपस्या को देख कर भगवान शिव प्रसन्न  होते हैं,  और माता पार्वती के साथ रावण के सम्मुख प्रकट होते हैं ।



कहते हैं लंकेश, आँखें  खोलो मैं बहुत प्रसन्न  हूं, अपनी इच्छानुसार  कोई वर मांग लो।

रावण की  अनुचित  माँग:-

रावण ने कहा हे प्रभु, यदि आप   मुझ  पर प्रसन्न  हैं तो, 
मैं  पार्वती जी को अपने साथ  लंका  मे ले जाना चाहता हूँ ।


यह सुनकर भगवान शिव कुछ नहीं बोले ,परन्तु 
माता पार्वती का क्रोध प्रचंड हो गया  , उन्हें रावण पर बहुत गुस्सा आया लेकिन कहते हैं भगवान भक्त के वश में होते है।

प्रभु शिव  तो वचन दे चुके थे,  इसलिए उन्होंने  कुछ नहीं कहा , लेकिन रावण माता पार्वती को लेकर  लंका मे जाने  लगा ।



तब माता  पार्वती ने इस दुष्ट के लिए  उपाय सोचा  एवं रावण आगे-आगे चला एवं माता पार्वती पीछे-पीछे चलती  रहीं


थोड़ी दूर आगे चलने पर माता को एक मेंढ़की मिली बस फिर क्या?माँ आदिशक्ति ने उसे  एक अपूर्व सुंदरी में  बदल दिया, यहाँ जब रावण ने उस सुंदरी को देखा तो उसने कहा कि पार्वती जी तो तीनो लोको में सबसे सुंदर हैं।

लेकिन यह तो बहुत सुंदर है इसका मतलब मेरे साथ धोखा हुआ है? नहीं तो इतनी आसानी से पार्वती  मेरे साथ कैसे चली आती? एवं  भगवान शिव जी भी कुछ नहीं बोले ।


ये सोच कर रावण ने उस सुंदरी से  कहा हे पार्वती !

तब वह सुंदरी बोली नहीं, मैं पार्वती नहीं हूं मंदोदरी हूँ । लेकिन रावण  अपनी  जिद मे  नहीं माना, और उसे लेकर लंका में चला आया।

कैकसी का क्रोध:-

जब कैकसी  ने रावण को देखा , कि रावण  सुंदर स्त्री  को लेकर आ रहा है, तब कैकसी का क्रोध  सातवें आसमान पर चढ़ गया, कैकसी  ने कहा कि रावण  मैंने  भगवान शिव को बुलाया था, और तुम ये किसको ले आये?


तब लंकेश बोला कि माता मैं पार्वती को लेकर आया हूं, जब कैकसी ने माता पार्वती का नाम सुना तो दंडवत हो गयी, मेरे अहोभाग्य, जगत जननी मां आदिशक्ति हमारी लंका में हैं, उनका स्वागत है।


लेकिन मंदोदरी ने कहा कि नहीं माता में पार्वती नहीं हूं,  मैं मंदोदरी हूं। तब क्या? कैकसी ने रावण से कहा अरे मूर्ख, यह आदि शक्ति माता पार्वती जी नहीं बल्कि मंदोदरी है।

रावण का पश्चाताप :-


तो रावण को अपनी भूल का अहसास  हुआ ।रावण ने  माता से कहा अबकी अगर मैं भगवान शिव को लेकर नहीं आऊंगा ,तो मैं लंका में  प्रवेश  नहीं  करूँगा ।



और तुम्हें अपना मुँह नहीं दिखाऊंगा, और यह मंदोदरी मेरी पटरानी  बनेगी । यह  कहकर   रावण कैलाश पर चला गया । 

शिव तांडव स्त्रोत की रचना:-

अबकी बार जब रावण गया, तो उसने कहा कि मैं अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न  करके और आत्मलिंग लेकर   ही लंका में लौटूंगा ।


यह कह कर के उसने भगवान शिव की घोर तपस्या शुरू कर दी।

रावण ने कैलास को अपने हाथों से उठाया :-

लेकिन जब भगवान शिव जी ने दर्शन नहीं दिए , तो अंत में   रावण ने कहा हे प्रभु जी, आप दर्शन नहीं देते हैं तो मैं आपको कैलाश  सहित लंका ले जाऊंगा,  और रावण ने वह दुस्साहस कर दिया।


ऐसा शायद ही कोई कर पाये, रावण ने कैलाश पर्वत को उठाया, उसके कैलाश पर्वत को उठाते  ही तीनो लोक में हलचल मच गई।

देवताओं की चिंता:-


सारे देवता डर गए, यह देखकर जगत जननी माता पार्वती प्रभु से  बोली रावण का अंहकार  बहुत बढ़ गया है, इसे दूर कीजिये ।


तब भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे  से कैलास को थोड़ा सा दबा दिया, जिसके कारण रावण का हाथ कैलास के नीचे दब गया, जिससे उसे असहनीय पीड़ा होने लगी, जिसे वह सहन नहीं कर सका, और वह रुदन करने लगा।

  भगवान शिव जी के द्वारा लंकेश का  नाम रावण रखना:-



रुदन करने से ही भगवान शिव जी ने  लंकेश का नाम   रावण रखा । रुदन करते हुए रावण ने भगवान शिव की प्रार्थना की जो शिव तांडव स्त्रोत के रूप में जाना जाता है।



और उस शिव तांडव स्तोत्र को जब रावण ने गान किया, तो उसकी आवाज में इतनी कशिश थी, कि गजानन, कार्तिकेय, सब लोगों ने स्त्रोत गान सुना,  और इतना मगन हो गये कि भावावेश मे आकर सभी लोगों ने नृत्य करना शुरू कर दिया।


शिव जी का प्रसन्न होकर  रावण को आत्मलिंग सौपना:'


भगवान शिव ने रावण के इस गान  से द्रवित  होकर  के साक्षात दर्शन दिए, और बोले लंकेश बोलो क्या इच्छा है? रावण बोला मेरी एक ही इच्छा है कि आप मेरे साथ लंका में चलें, 



भगवान शिव  ने उसे अपना आत्मलिंग प्रदान किया और  रावण को चेतावनी दी कि ध्यान रखना भूलकर भी इस आत्मलिंग  को भूमि से स्पर्श मत कराना। अन्यथा यह आत्मलिंग  वही धरती पर स्थिर हो जायेगा 




फिर इसे  कोई भी  वहां से  हिला भी नहीं सकता। रावण  अपार हर्ष के साथ, आत्मलिंग को लेकर के लंका की ओर बढ़ गया।

शेष अगले लेख में 

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह आपको सूचित करता है। हमारा उद्देश्य सिर्फ आपको सूचित करना है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अलावा इस लेख के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठकों या उपयोगकर्ताओं की होगी।

 



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