Shiv katha sawan special एक अनोखा शिवभक्त

 एक अनोखा  शिवभक्त

रावण की शिव आराधना 


लंका का राजा रावण एक महान शिव भक्त के रूप में जाना जाता है। ऐसे ही नहीं उसे महान शिव भक्त कहा जाता है, उसने कहा था मुझ जैसा  व्यक्ति इस पृथ्वी पर न कभी पैदा हुआ है, और ना कभी पैदा हुआ था, और ना कभी पैदा होगा? बहुत ही उपयुक्त बात कही थी रावण ने वाकई उसकी भक्ति बेमिसाल थी  अद्भुत एवं अद्वितीय थी।

रावण की मां कैकसी के द्वारा पार्थिव शिवलिंग का पूजन    :-

एक दिन रावण की माता भगवान शिव की आराधना के लिए समुद्र के किनारे गई और वही भगवान शिव जी का पार्थिव शिवलिंग बनाकर  उनकी आराधना करने लगी ,लेकिन तभी  समुद्र की उफनती  लहरों ने सारे पार्थिव शिवलिंग को अपने अंदर समेट लिया ।


गुरु शुक्राचार्य द्वारा रावण की माता को चेतावनी देना:-

उसी समय दैत्य  गुरु शुक्राचार्य रावण की माता के सामने प्रकट हुए,  और बोले देवी इसमें कोई संदेह नहीं है, कि तुम्हारा पुत्र महापराक्रमी है ,परंतु उसके पापों का घड़ा भर गया है, अतः  उसकी हार एवं मृत्यु निश्चित है।


यह सुनकर रावण की माता घबरा  गयी,  उन्होंने कहा है गुरुदेव, ऐसा कोई उपाय बताइए ,कि मेरा बेटा अजेय हो जाए, तब गुरु शुक्राचार्य बोले किसी तरह से रावण भगवान शिव के आत्मलिंग को यदि लंका  मे स्थापित कर देगा, तो उसे कोई पराजित नहीं कर पाएगा ,यह कह कर के शुक्राचार्य चले गए।


रावण द्वारा अपनी माता को वचन देना:-

उसी समय रावण अपनी माता को खोजते हुए समुद्र के तट के किनारे पहुंचा जब उसने देखा कि उसकी माता के द्वारा निर्मित शिवलिंग को समुद्र की लहरों ने समेट लिया है तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ।

उसने तुरंत समुद्र को सुखाने के लिए दिव्यास्त्र का आह्वान किया। तभी उसकी माता की नजर रावण पर पड़ गई उसने कहा बेटा एक छोटी सी बात के लिए समुद्र को सुखाने की क्या जरूरत है ।

अगर तुम मुझे खुश देखना चाहते हो तो भगवान शिव को कैलाश से  लंका मे ले आओ,  रावण ने कहा ठीक है माता जैसी आपकी इच्छा मैं आपकी खुशी के लिए शिव को लंका में ले आऊंगा।

रावण का कैलाश गमन:-

माता को  दिए हुए वचन को  पूरा करने के लिए रावण पुष्पक विमान पर बैठ कर के कैलाश की तरफ गया ,परंतु सर्वविदित है, कि बिना भोलेनाथ की इच्छा के कोई भी व्यक्ति कैलाश पर नहीं जा सकता ।


उसी तरह से जब रावण कैलाश पर पहुंचा तो उसका विमान  कैलाश से नीचे गिर पड़ा ,यह देख कर के भगवान शिव को खुश करने के लिए कैलाश के नीचे ही बैठकर रावण ने तपस्या प्रारंभ कर दी।

रावण के द्वारा भगवान शिव जी की घोर   तपस्या:-


तपस्या करते -करते  जब बहुत वर्ष बीत गए तब भी भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए, तब रावण ने कहा कि अब मैं अपनी शीश  को ही आपको अर्पित करता हूं । 


और यह कहकर  रावण ने तलवार के द्वारा अपनी शीश  को काटकर  भगवान शंकर जी की चरणों में अर्पित कर दिया। लेकिन उसका शीश  पुनः  भगवान शिव की कृपा से जुड़ गया लेकिन भोलेनाथ जी ने दर्शन नहीं दिए।

रावण के द्वारा  दस शीश  भगवान शिव को अर्पित करना:-

जब भगवान भोलेनाथ के दर्शन रावण को नहीं हुए तो रावण ने अपना दूसरा सिर भी काट दिया, लेकिन वह सिर भी जुड़ गया इस तरह करते-करते रावण ने अपनी नौ शीश  काट दिये लेकिन भगवान शिव जी की कृपा से वह फिर जुड़ जाते ।

रावण जब अपना दसवां सिर काट रहा था ,तब तक साक्षात प्रभु देवाधिदेव  महादेव प्रकट हो गए,  और उसके दसों सिर एक साथ जुड़ गए।

भोलेनाथ का दर्शन 


प्रभु भोलेनाथ की अत्यंत मनोहर छवि  को देख कर के रावण मुग्ध  हो गया , कर्पूर के समान उज्वल, अंग, नीले रंग का कंठ, त्रिनेत्र की अद्भुत आभा, अद्भुत लालिमा से दमकता ललाट, बाँहों मे रूद्राक्ष की माला,अधरों पर संजीवनी मुस्कान।


रावण  कभी उनकी छवि को निहारता,  कभी उनकी जटाओं में मां गंगा को देखता, कभी गले में लिपटे वासुकी नाग को देखता ,कभी हाथों में  थमे त्रिशूल  को देखता, कभी प्रभु की ललाट की शोभा देखता ,जहां  बालचंद्र विराजमान थे, करोड़ों चंद्रमा के समान शीतल प्रकाश प्रभु के  शरीर से निकल रहा था।

रावण को चंद्रहास की प्राप्ति


रावण अपना आपा खो बैठा ,वह भूल गया कि मैं क्या मांगने आया हूं?अंततः भगवान शिव बोले  लंकेश मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न  हूं बोलो तुम क्या वर मांगते हो?


परन्तु रावण तो प्रभु के मनोहर छवि  में ही मस्त हो गया था। उसने कहा प्रभु मुझे कुछ नहीं चाहिए ,तब भोले नाथ बोले  मेरा दर्शन कभी व्यर्थ नहीं जाता है। अच्छा कुछ ना कुछ, तो तुम्हें स्वीकार करना होगा,


मैं तुम्हें   चंद्रहास देता हूं यह अद्भुत खड्ग है ,इसको धारण करने वाला कभी पराजय का मुंह नहीं देखता है। और यह कहके भगवान शिव  चंद्रहास रावण के हाथों में सौंप  करके  अंतर्ध्यान हो गए।

रावण की लंका में वापसी:-

भोलेनाथ के दर्शन पाकर रावण बहुत प्रसन्न हुआ  और वह चंद्रहास लेकर के बड़े उल्लास के साथ लंका लौट आया  जब उसकी मां ने देखा तो पूछा लंकेश तुम  भगवान शिव का आत्मलिंग  लेकर आए हो?

तब रावण बोला कि मै आत्मलिंग को लेकर नहीं आया हूं।
लेकिन माता प्रभु ने मुझे एक अद्भुत हथियार प्रदान किया है जिससे कि मैं सदैव  अपराजेय  रहूंगा।

कैकसी  का क्रोध:-

रावण को बिना आत्मलिंग  के देखकर उसकी माता  कैकसी  बहुत क्रोधित  हुई। और कहां अरे मूर्ख रावण!  मैंने तुम्हें क्या लेने के लिये   भेजा था, और तुम क्या लेकर के आ गए।

जब रावण को होश आया वह बोला माता मुझसे  भूल हो गई ,मैं तो प्रभु की छवि  देख कर के कुछ माँगना ही भूल गया?



लेकिन अब ऐसी भूल दुबारा नहीं  होगी। मैं  प्रभु शिव   के आत्मलिंग को लेने के लिए फिर  कैलाश जाऊंगा। शेष अगले लेख में 

डिस्क्लेमर:-

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