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Shiv katha शिव पुराण का सत्रहवां अध्याय

सती को भगवान शिव का दर्शन

देवी सती भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए कठोर तप कर रही थी। उनके तप से प्रसन्न होकर के भगवान शिव ने दर्शन दिए, और उनसे कहा हे देवी मैं तुम्हारी तपस्या  से बहुत खुश हूं ।बोले आपकी क्या इच्छा है?


सती के द्वारा कोई वरदान नहीं माँगना:-

भोलेनाथ के साक्षात दर्शन पर सती के मुंह से लज्जा वश एक भी बोल नहीं फूटा ।वह अपने दिल की इच्छा अपने प्रभु को बताई नहीं पा रही थी। सती  को असमंजस में देख कर  देवाधिदेव  महादेव बोले  कि सती मैं आपकी भक्ति से बहुत प्रसन्न  हूं। इसलिए आपको जो भी वर मांगना हो कृपया नि:संकोच  माँग लो।


सती  की प्रार्थना:-


कपूर के समान गोरा रंग, उन्नत ललाट बाल चंद्रमा की रोशनी से
सुशोभित ,साक्षात वासुकी नाग की माला गले में, तथा 
हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए ,ब्याघ्र चर्म  को धारण किए हुए महादेव  अत्यंत ही सुंदर लग रहे थे ।

इतने सुंदर लग रहे थे कि 
 करोड़ों , करोड़ों कामदेव की सुंदरता मिलकर भी प्रभु के सौंदर्य  के एक अंश का भी सामना नहीं  कर सकती।


प्रभु की  शीतल चन्द्रमा के समान   आभा पूरे वातावरण को मनमोहक बना रही थी।


और उसी समय  प्राणियों को मदमस्त कर देने वाली बयार बहने लगी ।नाना प्रकार के सुगंधित पुष्प अपने सुगंध को हवा में बिखेरने  लगे ।

संपूर्ण देवता आकाश मार्ग से  प्रभु की स्तुति एवं पुष्प  वर्षा करने लगे। यह सब देख कर सती  अत्यंत ही आनंदित हो गई।

भगवान शिव का स्वयं वर देना:-

सती की दशा को  देखकर भगवान शिव ने कहा सती  जो तुम मांगना चाहती हो,  मैं तुम्हें ऐसे ही दे देता  हूं,  तुम मेरी भार्या बनो, यह सुनकर लज्जा को त्याग कर   सती  बोली हे प्रभु, आप मुझको  पसंद करते है ,तो मेरे पिताजी के पास  ही  विवाह  प्रस्ताव  भिजवा   दीजिये ।
जिससे कि मेरे पिताजी आपसे विवाह के लिए उत्सुक हो जाए।

शिव का आशीर्वाद :-


और यह सब सुनकर के सती ने भगवान शिव का आशीर्वाद लिया ,कहने लगी मेरे जन्मों-जन्मों के पुण्य आज उदित हुए है। जिससे कि प्रभु मैं आपको पति के रूप में वरण  करूँगी ,आज मेरे भाग्य  खुल गए हैं । यह कहकर भगवान शिव जी की पूजा अर्चना कर सती पिता  दक्ष के यहां चली गयी ।

 दक्ष प्रजापति:-

 दक्ष प्रजापति ब्रह्माजी के मानस पुत्र कहे जाते हैं सती  को आया देख करके दक्ष प्रजापति बहुत प्रसन्न हुए ।
 तब तक सती अपने कक्ष में चली  गयी  , और प्रिय सहेली को बुला करके सारी तपस्या का परिणाम एवं भगवान शिव के दर्शन तथा  विवाह की बात अपनी सहेली से कह देती हैं ।


सती की सहेली जाकर यह सब उनके पिता दक्ष प्रजापति एवं  माता से   कहती है। यह जानकर कि इस सती  का वरण  स्वयं देवाधिदेव महादेव करेंगे ,दक्ष प्रजापति बहुत प्रसन्न  होते हैं ।और कहते हैं कि हमारे अहोभाग्य है कि  मेरी बेटी को भगवान शिव जी  वरण करेगे।

ब्रह्मा जी को आमंत्रण:-

सती को वरदान देने के पश्चात् देवाधिदेव महादेव भगवान शिव कैलाश आए, लेकिन उनका मन समाधि में नहीं लग रहा था। परम सिद्ध  योगी होते हुए भी समाधि से भटक रहे थे।

 ऐसे मे भी उन्होंने मन ही मन ब्रह्मा जी का आह्वान किया ,उनके मानस पुकार को सुनकर ब्रहमा जी देवी  सरस्वती  के साथ तुरंत उपस्थित हो गए,  और कहा प्रभु क्या आज्ञा  है? 


शिव  उवाच :-

भगवान शिव बोले ,हे ब्रह्मा मैं सती को यह वर दे चुका हूं कि वह मेरी पत्नी बनेगी ,अतः तुम जाओ और किसी भी तरह से दक्ष प्रजापति को इस विवाह के लिए तैयार करो।
 

ब्रह्म उवाच:-


यह सुन कर ब्रह्मा जी बोले हे प्रभु हम लोग तो पहले से ही इस विवाह के लिए तैयार हैं ,बस केवल आपके हां की देरी है! और यह कह कर के  त  ब्रह्मा जी देवी सरस्वती  के साथ दक्ष प्रजापति के पास पहुंचे।

 अपने पिता को आया देख करके दक्ष प्रजापति अत्यंत प्रसन्न हुए , और बोले कि   पिताश्री मैं  आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?

ब्रम्हा उवाच:-


तो ब्रह्मा जी नारद से  बोले हे पुत्र मैं भगवान शिव की आज्ञा से  सरस्वती सहित  अपने मानस पुत्र दक्ष प्रजापति के यहाँ गया 
,और  कहा कि मैं भगवान शिव की आज्ञा से आपके पास आया हूं और मैं  चाहता हूं कि तुम अपनी पुत्री  का विवाह भगवान शिव से कर दो,  


यह सुनकर के दक्ष प्रजापति बहुत प्रसन्न  हुए  और बोले कि पिताजी मैं भी यही  चाहता हूं । यह मेरा बहुत ही सौभाग्य होगा कि मैं अपनी पुत्री  का विवाह  महादेव से कर दूँ । यह सुनकर की मैं (ब्रह्मा जी) फिर वापस कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास आए।


दक्ष की चिंता:-

ब्रह्मा जी के जाने के बाद जब कुछ समय बीत गया तब दक्ष को चिंता होने लगी वे सोचने लगे 
कि भगवान शिव प्रसन्न थे, तब भी आए और ब्रह्मा जी भी अब चले गए ,लेकिन अब कुछ समय बीत गया है ,तो कैसे मैं भगवान शिव को प्रसन्न  करूं?


यदि  मैं उनके पास जाता हूं, और उन्होंने मेरे प्रस्ताव  को स्वीकार नहीं किया तो,  भी मुझे बहुत दु:ख होगा ।और तुरंत जाना भी उचित नहीं है। यही सब सोचकर दक्ष प्रजापति  और चिंता में पड़े हुए थे।

भगवान शिव का विवाह के लिए तैयार होना:-

यहां ब्रह्मा जी ने आकर भगवान शिव से कहा की है प्रभु जैसी आपकी आज्ञा हुई मैंने अपने पुत्र दक्ष प्रजापति को विवाह के लिए तैयार कर लिया है ।


और अब आप भी तैयार हो जाये,  हम सभी लोग दक्ष प्रजापति के यहां चले,यह सुनकर के भगवान शिव ने अपने सभी गणों  को आदेश दिया, और सारे देवता भगवान शिव के साथ हो गए।

भगवान विष्णु का आगमन:-

शिव भक्तों के सम्राट भगवान विष्णु भी देवी लक्ष्मी के साथ कैलाश पर आ गए, एवं यक्ष, किन्नर , दानव, भूत, वैताल, पिशाच, प्रेत, योगिनी, योगी,अप्सरा, देवता, ऋषि, महर्षि, सभी लोगों के साथ भगवान शिव अत्यंत बलशाली नंदी पर सवार हुए।


 उस समय उनकी शोभा ऐसी लग रही थी, जैसे  करोड़ो चंद्र एक साथ उदित  हो गए हो। और उनके शरीर की कांति अद्भुत  लग रही थी भगवान शिव जी  दूल्हे के रूप में अत्यंत सुंदर और मनभावन दिख रहे थे ।


सभी लोग सज धज करके तुरंत ही दक्ष प्रजापति की यहां पहुंचे वहां दक्ष प्रजापति ने सारे देवताओं ब्रह्मा, विष्णु ,एवं स्वयं देवाधिदेव महादेव की अगवानी की ,सबको उत्तम आसान दिया एवं भगवान शिव की आराधना की तथा  उन्हें उच्च आसन  पर बैठाया। 

शेष अगले लेख  में

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