सती और भगवान शिव की पहली भेंट: तप, दर्शन और विवाह की दिव्य कथा
🕉️ सती को भगवान शिव का दर्शन
तपस्या, दर्शन और विवाह की दिव्य कथा
देवी सती की कठोर तपस्या
देवी सती भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने हेतु एकांत वन में कठोर तपस्या कर रही थीं। उनके तेज, संयम और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए।
उन्होंने सती से मधुर स्वर में कहा —
"हे देवी! मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ। बताओ, क्या इच्छा है तुम्हारी?"
सती का मौन रह जाना
भगवान शिव के साक्षात दर्शन से सती अत्यंत लज्जित हो गईं। उनके मुख से एक भी शब्द न निकल सका।
यह देखकर महादेव स्वयं बोले —
"हे सती! जो भी वर मांगना चाहो, निःसंकोच मांगो।"
सती की दृष्टि में शिव का सौंदर्य
कपास जैसे गौर वर्ण, ललाट पर चंद्रमा, वासुकी नाग की माला, व्याघ्र चर्म, त्रिशूलधारी प्रभु — महादेव अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहे थे।
करोड़ों कामदेव की सुंदरता भी उनके सौंदर्य के आगे फीकी लगती थी।
चारों ओर पुष्पवर्षा, गंधित वायुएं, देवताओं की स्तुति — यह दृश्य सती के हृदय को पुलकित कर रहा था।
भगवान शिव का वरदान
सती की दशा देखकर महादेव बोले —
"जो वर तुम मांगना चाहती हो, वह मैं देता हूँ। तुम मेरी भार्या बनो।"
सती बोलीं —
"प्रभु! यदि आप मुझे वरण करते हैं, तो मेरे पिता दक्ष से प्रस्ताव भेजें।"
सती को आशीर्वाद और विदा
सती ने शिव की पूजा की और कहा —
"मेरे जन्म-जन्मांतर के पुण्य आज फले हैं। मैं आपको पति के रूप में प्राप्त करूँगी।"
फिर वह दक्ष प्रजापति के महल लौट गईं।
दक्ष प्रजापति की प्रसन्नता
दक्ष ने सहेली से सारी कथा सुनकर हर्ष प्रकट किया और कहा — "मेरे अहोभाग्य हैं कि मेरी पुत्री को भगवान शिव वरण करेंगे।"
ब्रह्मा जी का आमंत्रण
शिव समाधि में भी सती का स्मरण कर रहे थे। उन्होंने अंतःकरण से ब्रह्मा जी का आह्वान किया।
ब्रह्मा जी देवी सरस्वती सहित प्रकट हुए और बोले —
"प्रभु! क्या आज्ञा है?"
शिव बोले —
"मैं सती को पत्नी रूप में स्वीकार कर चुका हूँ। दक्ष को तैयार कीजिए।"
ब्रह्मा जी की यात्रा
ब्रह्मा जी दक्ष के पास गए और शिव विवाह का प्रस्ताव रखा। दक्ष बोले — "यह मेरा परम सौभाग्य है। मैं यह विवाह सहर्ष स्वीकार करता हूँ।"
दक्ष की चिंता
ब्रह्मा जी के जाने के बाद दक्ष सोचने लगे —
"यदि शिव नहीं आए तो?"
वह संशय में पड़ गए।
भगवान शिव की तैयारी
ब्रह्मा जी ने कैलाश लौटकर शिव को दक्ष की स्वीकृति बताई।
भगवान शिव ने गणों को आदेश दिया और बारात की तैयारी प्रारंभ हुई।
विष्णु भगवान का आगमन
भगवान विष्णु लक्ष्मी सहित आए। यक्ष, किन्नर, अप्सराएं, ऋषि, मुनि, देवता — सभी उपस्थित हुए।
शिव नंदी पर आरूढ़ होकर दूल्हे रूप में प्रस्थान कर रहे थे।
दिव्यता ऐसी थी मानो करोड़ों चंद्र एक साथ प्रकट हो गए हों।
विवाह स्थल पर स्वागत
दक्ष प्रजापति ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वागत किया, उत्तम आसन दिए और शिव की पूजा की।
📖 शेष कथा अगले लेख में...
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक कथाओं, धर्मग्रंथों व जनश्रुतियों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य आध्यात्मिक जानकारी को साझा करना मात्र है।
✍️ लेखक: अजय कुमार
📅 प्रकाशित: अगस्त 2025
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