नीलकंठ के दर्शन: शिवभक्ति, दक्ष यज्ञ और सती कथा | Shiv Darshan Blog"
नीलकंठ के दर्शन: शिवभक्ति की चरम अवस्था
भगवान शिव में लगातार मन लगाये रखने एवं मन को एकाग्र करके, सच्चे मन से हृदय में प्रभु का ध्यान करने के बाद कई वर्षों के पश्चात, प्रभु के केवल कंठ के दर्शन होते हैं।
उस दर्शन की छवि अवर्णनीय है। क्षण मात्र के लिए ही जब आपकी भक्ति, आपका प्रेम, आपका विश्वास, आपका संकल्प — यह चारों एक साथ समान रूप से मिलकर प्रभु के चरणों का ध्यान करते हैं, तब प्रभु के कंठ का अद्भुत और दिव्य दर्शन होता है।
प्रयागराज में महायज्ञ का आयोजन
ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा — "हे नारद, बहुत समय पहले की बात है, प्रयागराज में एक महायज्ञ के समापन हेतु सभी ऋषि, महर्षि, देवता एकत्र हुए। मैं भी वहाँ पहुँचा और सभी ने मेरा अभिवादन किया।
तभी वहाँ देवों के देव महादेव भी पधारे। सभी ने उनका स्वागत किया। कुछ समय बाद मेरे पुत्र दक्ष प्रजापति भी वहाँ आए, सभी ने उनका स्वागत किया परंतु भगवान शिव अपने स्थान पर ही शांत बैठे रहे। दक्ष को यह व्यवहार असम्मानजनक लगा और उन्होंने शिवजी की निंदा करते हुए शिवगणों को श्राप दे दिया।
नंदी का प्रतिकार और शिव का विवेक
शैलाद पुत्र नंदी को यह अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने दक्ष और साथ देने वाले ब्राह्मणों को क्रोध में श्राप दे दिया। परंतु भगवान शिव ने नंदी को शांत करते हुए कहा — "हे नंदी, मैं यज्ञ भी हूँ, यजमान भी, यज्ञ की अग्नि भी और भोक्ता भी। मेरे ऊपर किसी श्राप का कोई प्रभाव नहीं होता। फिर भी आपको ब्राह्मणों को श्राप नहीं देना चाहिए था।"
यह कहकर शिवजी अपने गणों सहित कैलाश पर्वत लौट आए और दक्ष भी अपने गृह वापस गए। परंतु उनके मन में शिव के प्रति द्वेष और अधिक बढ़ गया।
देवी सती का आत्मदाह
कालांतर में दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, परंतु भगवान शिव को जानबूझकर आमंत्रित नहीं किया।
जब देवी सती ने देवताओं को सजधज कर आकाशमार्ग से जाते देखा, तो उन्होंने देवराज इंद्र से पूछा। इंद्र ने यज्ञ का विवरण दिया। सती ने शिवजी से वहाँ जाने की प्रार्थना की, परंतु भगवान शिव ने आमंत्रण न मिलने के कारण मना कर दिया।
सती के आग्रह पर उन्होंने सती को अनुमति दे दी। यज्ञ स्थल पहुँचकर जब सती ने देखा कि भगवान शिव का अपमान हो रहा है और उन्हें यज्ञ का भाग भी नहीं मिला — तो अपमान सहन न कर पाने पर उन्होंने योगाग्नि से आत्मदाह कर लिया।
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