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भगवान शिव का वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को भंग करने हेतु भेजना

देवी सती की आत्मदाह का परिणाम

आकाशवाणी सुनकर , सारे देवता बड़े भयभीत हो गए उन्हें एक प्रकार से ऐसा भय हो गया कि,  मुंह से कोई कुछ भी नहीं बोल पाया , जैसे कि सारे के सारे स्तंभित हो गए हो,  अत्यधिक भय होने के कारण किसी के मुंह से कोई बोल नहीं फूटा।

जब देवी सती के द्वारा आत्मदाह  कर लिया गया, तो वहां उपस्थित  दस हजार शिवगणों ने  लज्जावश   तुरंत अपने अंगों को   काट-काटकर आत्मदाह कर लिया । और जो बचें हुए  हम लोग थे, तो हम लोगों ने वहां पर युद्ध तो किया परंतु भृगु के मंत्र बल के  सामने  हम कुछ नहीं कर सके।

भगवान शिव जी की शरण:-

और प्रभु आपकी शरण में आना पड़ा । हे प्रभु, वहां पर आपका बड़ा अपमान हुआ, और यही देखकर देवी सती  ने आत्मदाह कर लिया। और बार-बार दक्ष की निंदा करते हुए उन्होंने योगाग्नि  से अपने शरीर को भस्म  कर लिया।




ब्रह्म उवाच ः-

ब्रह्मा जी बोले, हे नारद ,जब शिव गणों ने भगवान शिव को यह बातें बताई तब भगवान शिव का क्रोध अत्यंत उग्र हो गया, उन्होंने तुम्हें स्मरण किया, क्योंकि तुम्हारी बुद्धि हमेशा भगवान शिव के चरणों में रहती है। और जैसे ही उन्होंने तुम्हें याद किया,  तुम दिव्य दृष्टि से सम्पन्न हो, तुम प्रभु के याद करते ही तुरंत चले आए।    


प्रभु ने बड़े प्रेम से आपसे पूछा कि  नारद क्या हाल-चाल है? आप भी यज्ञ में गए हुए थे, एवं वहां पर क्या घटित हुआ? कृपया इसको विस्तार से मुझे बताइए।

नारद जी का वृत्तांत:-

ब्रह्मा जी बोले हे नारद , उस यज्ञ में जो भी घटित हुआ था आपने सब पूर्ण विस्तार से भगवान शिव को बता दिया ।जब आपके मुख से भगवान शिव ने सब बातें सुनी तो भगवान शिव क्रोध से आग बबूला हो  उठें।

वीरभद्र की उत्पत्ति:-


उन्होंने अपने सर से एक लंबी जटा खींचीं  और उसे वही एक शीला पर पटक दिया तभी एक बहुत ही भयंकर विस्फोट हुआ और उस बाल के अग्र भाग से वीरभद्र उत्पन्न हुए जो कि इतने विशाल थे कि  पूरे आकाश को ढक दिया था।

वीरभद्र का क्रोध :-

बल्कि उससे भी दस कदम आगे तक  उनके साथ लाखों की संख्या में गण मौजूद थे । चतुर बुद्धि वाले वीरभद्र  ने भगवान शिव से कहा  हे, प्रभु  चंद्र,  सूर्य और अग्नि। आपके नेत्र है।

ऐसे महाप्रभु ने मुझे किस काम के लिए याद किया ,यदि आप कहें तो एक क्षण में ब्रह्मांड को मसल दूं, यदि आप कहें तो आधे  क्षण में इस पूरी दुनिया को नष्ट कर दू, हे प्रभु ,आपकी कृपा से तो साधारण व्यक्ति भी वह कार्य कर सकता है जो  असंभव हो, तो मैं तो, आपका प्रमुख पार्षद हूं शिवगणों  में प्रमुख हूं।



आप ही की  शक्ति से संचालित हूं ,हे प्रभु आज मेरे दाये अंग फड़क रहे हैं ,ऐसा , प्रतीत हो रहा है कि आज मुझसे कोई बहुत ही अच्छा कार्य होने वाला है।

वीरभद्र की सेना :-

वीरभद्र का रूप बहुत ही भयंकर था, एवं बहुत ही विशालकाय  था। एवं बाल के पिछले  भाग से देवी महाकाली की उत्पत्ति हुई देवी महाकाली आश्चर्य रूप से भयंकर दिखाई दे रही थी ।


उनके साथ हजारों प्रकार के रोग ज्वर ,सन्निपात,   यह सब के सब शरीर सहित  उत्पन्न होकर दाह उत्पन्न कर रहे थे ।


काली माता का रूप भी बहुत  भयानक था ।उनके साथ नौ देवी और आ गई थी,जो क्रोध करके माता के साथ आ गई थी। तब वीरभद्र ने विनय पूर्वक भगवान शिव से आज्ञा मांगी ,

शिव उवाच :-

तो भगवान शिव बोले हे वीरभद्र, दक्ष आजकल  बहुत घमंडी हो गया है ।उसने एक यज्ञ किया है आपको यज्ञ संपूर्ण नष्ट करना है ,और उसके अंदर जो भी देवी देवता आ जाए उन सबको मौत के घाट उतार देना है।

कोई भी जिंदा नहीं रहना चाहिए ,जो भी देवी देवता वहां पर दक्ष का साथ दे रहे हैं सब के सब मृत्यु को प्राप्त हो जाना चाहिए ।

हे वीरभद्र, तुम जाओ और जाकर  सभी देवताओं का वध कर दो जो भी रास्ते में आयें  किन्नर ,ऋषि ,महर्षि, नाग, देवता, कोई भी हो जो दक्ष का साथ दे रहे हो ,सबको भस्म कर दो।


और वहां पर रखे हुए कलश में जो भी जल है सबको लीला करते हुए पीकर  दक्ष का  यज्ञ संपूर्ण रूप से नष्ट करके वापस लौट आए।


 यदि इसमें त्रिदेव भी आ जाते हैं ,श्री ब्रह्मा ,विष्णु ,भी आकर आपसे विनती करें, तो उन्हें भी नहीं छोड़ना ऐसा कहकर भगवान शिव चुप हो जाते हैं।


डिस्क्लेमर:-

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Shiv Katha
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