"तारकासुर वध की दिव्य योजना: ब्रह्मा जी की युक्ति और शिव विवाह की पौराणिक कथा"
तारकासुर के आतंक से त्रस्त देवगण और ब्रह्मा जी की युक्ति
ब्रह्मा जी की शरण में
ब्रह्मा जी बोले – हे नारद, सारे देवगण तारकासुर के अत्याचार से अत्यंत पीड़ित थे, क्योंकि उसने सभी देवों को पराजित कर स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया था। उसने देवताओं को भगा कर उनके स्थान पर दैत्य बैठा दिए। देवराज इंद्र परेशान होकर समस्त देवताओं सहित मेरे पास आए और बोले –
“हे प्रभु! आप ही हमारे रक्षक हैं, कृपया हमें इस दैत्य के अत्याचार से छुटकारा दिलाने का उपाय बताइए। हमारे सारे अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए हैं, यहां तक कि भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी उसके गले पर जाकर कुंठित हो गया है।”
तारकासुर को मिला वरदान
ब्रह्मा जी बोले – हे देवगण! तारकासुर मेरे ही दिए वरदान के कारण इतना शक्तिशाली हुआ है। मैं स्वयं उसका वध नहीं कर सकता क्योंकि जिसे पालता है, वह उसका वध नहीं करता – यह शास्त्रों के विरुद्ध है। जैसे कोई विष का पौधा लगाता है तो स्वयं उसे नहीं काटता।
त्रिदेवों द्वारा अवध्य
मैंने देवताओं को समझाया कि न मैं, न भगवान विष्णु और न ही भगवान शिव – कोई भी तारकासुर का वध नहीं कर सकता। तारकासुर से मुक्ति का एकमात्र उपाय यही है कि भगवान शिव पार्वती से विवाह करें।
सती देवी पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती रूप में प्रकट हुई हैं, और भगवान शिव उन्हीं से विवाह करेंगे। उनके अंश से उत्पन्न पुत्र ही तारकासुर का अंत करेगा।
देवराज इंद्र का संकल्प
मेरे कथन के बाद देवगण स्तुति कर विदा हुए। देवराज इंद्र ने तत्पश्चात अपने मित्र कामदेव को स्मरण किया। कामदेव तुरंत उपस्थित हुए और बोले –
“हे इंद्रदेव! कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?”
देवराज इंद्र मुस्कुराते हुए बोले – “मित्र, इस बार सेवा नहीं, सहायता चाहिए।”
कामदेव की भूमिका
कामदेव बोले – “मित्र की सहायता करना मेरा धर्म है, आदेश दें।”
तब इंद्र बोले – “हे मनोज! इस समय भगवान शिव हिमालय पर घोर तप में लीन हैं, और पार्वती जी सेवा में हैं। आप कृपा करके भगवान शिव के हृदय में प्रेम का संचार करें जिससे उनकी समाधि टूटे और वे पार्वती से विवाह करें।”
“जब देवता हुए असहाय, ब्रह्मा जी ने सुझाया उपाय – शिव विवाह से होगा तारकासुर का अंत”
डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई जानकारी / सामग्री / गणना की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं की जाती। यह जानकारी विभिन्न धर्मग्रंथों, प्रवचनों, पंचांगों एवं शास्त्रों से संकलित है। हमारा उद्देश्य केवल आपको सूचित करना है। इसका किसी भी रूप में उपयोग पाठक के विवेक पर निर्भर है।
भगवान शिव की तपस्या में व्यवधान
✦ यह लेख “शिव पुराण” में वर्णित दिव्य कथाओं से प्रेरित है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति भावना और भारतीय सांस्कृतिक चेतना को जाग्रत करना है।
ब्रह्मा जी नारद जी से बोले —
हे देवर्षि! जब कामदेव ने देवराज इंद्र को आश्वासन दे दिया, तो वह अपने सैन्य बल, रति तथा बसंत को लेकर उस स्थान पर गया जहाँ भगवान शिव तपस्या कर रहे थे।
उन्होंने मार्ग में मुनियों के स्थान पर शिविर डाला, जहाँ से शिव की तपोभूमि निकट ही थी। वसंत ने अपनी ऋतु से वहां का वातावरण मोहक बना दिया। फूलों की बहार, सुगंधित समीर, मयूरों का नृत्य, कोकिल की वाणी — सबकुछ रच दिया जैसे सृष्टि स्वयं प्रेम का निमंत्रण दे रही हो।
कामदेव ने अपनी लीला आरंभ की। लेकिन... क्या भगवान शिव की तपस्या भंग हो पाई?
देवर्षि! आगे की कथा आपको तब सुनाऊंगा, जब आप भी पूर्ण समर्पण से सुनने को तत्पर होंगे।
जब संसार के सारे उपाय निष्फल हो जाएं, तब भी एक दिव्य संयोग—ईश्वरीय प्रेम—सब संकटों को समाप्त कर सकता है।
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