Shiv Katha कामदेव का भस्म होना
🔱 भगवान शिव की तपस्या में व्यवधान और कामदेव का विलय 🔱
🔸 ब्रह्मा जी का कथन
ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा— "हे देवर्षि, जब देवराज इन्द्र ने कामदेव को अपने उद्देश्य के लिए भेजा, तो उसने अपनी पत्नी रति, वसंत ऋतु और अपने समस्त सैन्य बल के साथ उस स्थान की ओर प्रस्थान किया, जहाँ देवाधिदेव महादेव — परम योग में लीन होकर समाधिस्थ थे।"
🔸 कामदेव का अपराध
कामदेव ने वहाँ पहुँचकर अपने अहंकारवश अमोघ बाण चलाया, जिससे भगवान शिव की समाधि भंग हो गई। प्रभु ने क्रोध में कहा — “कौन मूर्ख है जो मेरी साधना भंग करने का दुस्साहस कर रहा है?”
उन्होंने सामने कामदेव को देखा, जो बाण चढ़ाए खड़ा था।
🔸 तृतीय नेत्र का प्रज्वलन
यह अपवित्र कुचेष्टा देखकर शिव का धैर्य समाप्त हो गया। उनके तृतीय नेत्र से अग्नि ज्वाला प्रकट हुई, जो आकाश को चीरते हुए सीधे कामदेव पर गिरी और उसे भस्म कर दिया।
🔸 रति का विलाप
कामदेव के भस्म होने से रति मूर्छित हो गई। होश आने पर वह विलाप करने लगी — “देवताओं ने मेरे स्वामी को छल से मरवा दिया!”
देवताओं ने उसे सांत्वना दी और वचन दिया कि वे महादेव से निवेदन करेंगे।
🔸 शिव की स्तुति
देवगण ब्रह्मा और विष्णु सहित भगवान शिव की स्तुति करने पहुँचे। वेद-मंत्रों और प्रार्थनाओं द्वारा उन्होंने शिव को प्रसन्न किया।
🔸 शिव का वरदान
भगवान शिव ने वरदान दिया — “कामदेव फिर से जन्म लेगा जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी के गर्भ से पुत्र प्राप्त करेंगे। तब तक कामदेव बिना शरीर के कार्य करेगा।”
उन्होंने रति को सम्बक नामक नगर में जाकर प्रतीक्षा करने को कहा और वचन दिया कि वही पुत्र उसका पुनः पति बनेगा।
🔸 देवताओं का लौटना
शिव अंतर्ध्यान हो गए और देवता प्रसन्न होकर अपने-अपने लोक लौट गए।
📜 डिस्क्लेमर:
यह कथा धर्मग्रंथों, पुराणों, प्रवचनों एवं लोकमान्य स्रोतों पर आधारित है। लेख का उद्देश्य केवल सांस्कृतिक एवं धार्मिक ज्ञान का प्रसार है। इसकी प्रमाणिकता का दावा नहीं किया गया है। पाठक विवेकपूर्वक ग्रहण करें।
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