देवी मैना का कोप-भवन में प्रवेश
भगवान शिव के ब्राह्मण वेश में हिमालय राज को समझाने के पश्चात देवी मैना ने कहा कि मैं अपनी बच्ची को भले समुद्र में डुबा दूंगी,या फिर फांसी पर लटका दूंगी, नहीं होगा तो अपनी पुत्री पार्वती को विष पिला दूंगी, परन्तु उस भिक्षुक शिव को अपनी कन्या किसी भी कीमत पर नहीं दूंगी।
देवी मैना का कोप-भवन में प्रवेश :-
यह सब करते हुए मैले वस्त्र धारण करके देवी मैना कोप भवन में चली गई और वही जाकर के लेट गई।
सारे आभूषणों का त्याग कर दिया, उनकी यह दशा देवराज हिमालय से देखीं नहीं गई, उन्होंने मैना को जाकर समझाया, और कहा हे देवी, जैसा आप चाहती हो वैसा ही होगा ।
शिव आज्ञा :--
मैंना के कोप भवन में जाने की बात जब भगवान शिव को मालूम पड़ी, तो उन्होंने सप्त ऋषियों को बुलवाया, एवं अपनी लीला के बारे मे बताया।
भगवान शिव सप्तर्षियों से बोले हे ,ॠषिवर
आप लोग महा ज्ञानी है ।आप अपने साथ देवी अरुंधति को भी लेते जाइए ,जिससे कि देवी मैना अरुंधति की बात समझ जाएगी।
अतः आप लोग जाइए एवं आप लोग जाकर के हिमालयराज एवं मैना को समझाइए ,भगवान शिव की बात मानकर सप्त ऋषि हिमालय राज के राज्य की ओर अग्रसर हो गए।
सप्त ऋषियों का हिमालय राज के द्वार पर पहुंचना:-
भगवान शिव की आज्ञा मानकर सप्त ऋषि आकाश मार्ग से देवराज हिमालय के प्रांगण में पहुचे ,वे आकाश मार्ग से देवराज का ऐश्वर्य देखकर के चकित रह गए।
शैलराज हिमालय द्वारा सप्त ऋषियों का स्वागत :-
जब हिमालय राज ने सप्त ऋषियों को आकाश मार्ग से उतरते हुए देखा , तो दरबारियों से कहा आहा! आज तो हमारा अहो भाग्य है , हम सभी के भाग्य खुल गए ।जो देव तुल्य सप्त ऋषि हमारे राज्य में आकाश मार्ग से उतर रहे हैं।
हिमालय राज के द्वारा सप्त ऋषियों का स्वागत:-
जैसे ही सप्त ऋषि उतर करके हिमालय राज के राज भवन में पहुंचे,हिमालय राज ने सभी लोगों का सेवा सत्कार करके उन्हें उचित आसन दिया ,और मधुपर्क दिया।
सब प्रकार से ॠषियो की सेवा करने के बाद हिमालयराज बोले ,मैं और मेरा परिवार धन्य हो गया आप जैसे महात्मा लोगों का हम जैसे गृहस्थ के यहां आगमन हमारे महान भाग्य को दर्शाता है।
सप्त ऋषियों के द्वारा हिमालय राज को समझाना:-
हिमालय के द्वारा किए गए आतिथ्य सरकार से सप्तर्षि बहुत प्रसन्न हुए, और बोले, हिमालय राज आपका ऐश्वर्य अद्भुत है, लेकिन एक बात बताइए कि आपने, अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से करने से अस्वीकार क्यों कर दिया ?
आप जानते हैं कि ,भगवान शिव आराध्यो के आराध्य है ,देवों के देव हैं।
ब्रह्मा, विष्णु ,और महेश भी भगवान शिव से उत्पन्न है ।
और उन्हीं की आज्ञा से सृष्टि का संचालन करते हैं। आपने साक्षात् परब्रह्म को मना क्यों कर दिया
हिमालय राज बोले हे सप्तर्षियों आपका स्वागत है लेकिन, मेरी पत्नी और मैं दोनों भ्रमित हैं।
हिमालय राज का प्रयास :-
एक दिन एक महान तेजस्वी ब्राह्मण हमारे यहां आए ,एवं शिव के बारे में बहुत बातें बताई , इस पर देवी मैना ने निश्चय किया, कि मैं अपनी पुत्रीका विवाह शिव से नहीं करूंगी ।
सप्त ऋषियों के द्वारा शिव तत्व का वर्णन :-
सप्त ऋषि बोले आप लोग भगवान शिवको समझ नहीं पाये।
अरे! भगवान शिव ने जब देवी पार्वती तपस्या कर रही थी , तो इस तपस्या से खुश होकर उन्होंने आशीर्वाद दिया। कि मैं उन्हें अपनी पत्नी बनाऊंगा ।
बातों में अत्यंत कुशल वशिष्ठ जी ने अरुंधती
से कहा कि देवी, जाकर, देवी मैना को समझाइए।
तब अरुंधति कोप भवन में गई।
अरूंधति का कोप भवन में जाकर देवी मैना को समझाना :-
अरुंधति जब कोप भवन में पहुंची ,तो देखा की देवी मैना और पार्वती साथ में ही खड़ी है ।जब देवी मैना ने अरुंधति को देखा तो कहने लगी अरे!हमारे भाग्य जग गए, जो स्वयं वशिष्ठ की पत्नी एवं। ब्रह्मा जी की पुत्रवधू आज मेरे द्वारा पर आई है ।
अरूंधति ने मैना को समझाया उन्होंने कहा है देवी भगवान शिव जो समस्त ब्रह्माण्ड के रचयिता और तीनों लोकों के स्वामी है ।जो देवों के भी देव महादेव हैं।
ईश्वर हैं , परमेश्वर हैं उन नीलकंठेश्वर महादेव के साथ अपनी पुत्री का पाणिग्रहण करो, और उन्हें समझा कर सप्त ऋषियों के पास ले आई ।
देवी मैना ने सप्तर्षियों को प्रणाम किया, उन्होंने आशीर्वाद दिया, मैंना बोली सप्त ऋषि आज हमारे द्वार पर पधारे हैं, हमारा कुल धन्य हो गया, हमारा जीवन सफल हो गया।
इस पर सप्त ऋषि बोले हे देवी मैना , लीला विशारद भगवान शिव लीला में बड़े माहिर हैं ।कई प्रकार की लीला करते रहते हैं। भगवान शिव साक्षात परमेश्वर हैं।आप उनसे अपनी पुत्री का विवाह करने से मना क्यों कर रही है।
मैंना बोली हे सप्तर्षियों , भला में कैसे उस व्यक्ति से विवाह करूं जो की नंग, धड़ंग रहते हैं, शरीर में चिता की भस्म रचाते हैं,और उनके अन्दर कोई राज्योचित लक्षण मुझे देखने को नहीं मिला ।
भला वस्त्र विहीन धन विहीन व्यक्ति से कैसे मै अपनी पुत्री का विवाह कर दूं।
शास्त्रो में लिखा है, जानबूझकर अपनी पुत्री का निर्धन व्यक्ति से विवाह कराने वाला व्यक्ति पाप का भागीदार होता है।
एवं इस पर सप्तर्षि बोले हे देवी मैना, आप जिसे निर्धन समझ रही है, वह परमात्मा है ,ईश्वर है। कुबेर जिनके किंकर है, जिनकी भृकुटी यदि थोड़ी टेढ़ी हो जाय, तो तीनों लोकों में हलचल मच जायेगी।
पलक झपकते ही जो ब्रह्मांड का सृजन एवं विनाश कर दे, उन्हें विवाह की कोई आवश्यकता नहीं है।
वह तो ब्रह्मा जी ने जब निवेदन किया कि, हे प्रभु आपके विवाह करने से ही संसार का कल्याण हो पायेगा, एवं तारकासुर के अत्याचारो से सभी को मुक्ति मिलेगी।
ब्रह्माजी की बात संसार कल्याण के लिए थी इसलिए कल्याणकारी भगवान शिव ने हां कर दी। और आपकी पुत्री जो भगवान शिव को पति के रूप में वरण कर करने के लिए तपस्या कर रही थी। कुछ तपस्या के फल स्वरुप भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनने का आशीर्वाद दिया।
आपकी पुत्री पूर्व जन्म में देवी सती के रूप में
दक्ष प्रजापति के अवतरित हुई स्वयं दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव के हाथ में अपनी पुत्री सती का हाथ दिया, परंतु दक्ष प्रजापतिके द्वारा किए गए यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर, देवी सती सहन नहीं कर पाई और और उन्होंने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर लिया।
भगवान शिव जो गले में मुंड माल धारण करते हैं सती के मुंडो की माला है । वही सती आपकी पुत्री पार्वती के रूप में आप आपके यहां जन्म ली है। इसलिए है पर्वत राज यदि आप अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव साथ नहीं करेंगे तो भी भावी भगवान शिव पार्वती का विवाह करा देगी, देवी पार्वती खुद भगवान शिव के पास चली जाएंगी ।
क्योंकि ईश्वर का संकल्प कभी भी विफल नहीं होता अरे जब उनके भक्तों का संकल्प विफल नहीं होता तो स्वयं परमेश्वर संकल्प कैसे भी विफल हो सकता है।
सप्त ऋषि बोले हे पर्वत राज, शिव और शिवा का
जन्म -जन्मान्तरो का संबंध है। इसीलिए भगवान शिव ने हम सप्त ऋषियों को एवं देवी अरुंधति को आपको समझाने के लिए भेजा है।
हिमालय राज एवं देवी मैना द्वारा विवाह की स्वीकृति देना:-
हिमालय राज एवं देवी मैना बोले हे सप्तर्षियों , आप लोगों के समझाने से हमारे ज्ञानचक्षु खुल गये। हम लोग उस वैष्णव ब्राह्मण के समझाने से भ्रमित हो गए थे ।
भगवान शिव से अपने इस कृत्य की क्षमा मांगते हैं, और क्षमा याचना करके हिमालय राज और मैंना भगवान शिव के चिंतन -मनन में रम गए।
सप्त ऋषियों का वापस कैलाश पर लौटना:-
इस तरह सप्त ऋषि अपना कार्य संपूर्ण करके भगवान शिव के निवास कैलाश पर आए और उन्होंने सारा वृत्तांत भगवान शिव को सुनाया यह सब सुनकर भगवान शिव मुस्कुरा कर रह गए। एवं सप्तर्षियों को आशीर्वाद दिया। भगवान शिव का आशीर्वाद पाकर सप्त ऋषि अपने-अपने लोग को चले गए।
डिस्क्लेमर:-
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