Shiv Katha
🔱 एक माँ का हृदय, एक योगी का रहस्य, और एक कन्या की तपस्या"
महादेव की बारात जब कैलाश से कैलाश के पार चली, तब उसकी अगवानी करने देवता भी आए, परन्तु शिव ने अपनी लीला से प्रकट किया — वे योगी भी हैं, औघड़ भी, और सृष्टि के पार भी।
भूत-प्रेत, विकट गण, कपाल धारण किए हुए रुद्रगण — इस दृश्य को देखकर देवी मैना को भय और पीड़ा हुई।
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📜 प्रस्तावना:
शिव विवाह की कथा में एक अत्यंत मार्मिक पक्ष है — देवी मैना की व्यथा। वे पर्वतराज हिमालय की धर्मपत्नी और पार्वती की माता थीं। उनका मातृत्व, पार्वती के प्रेम और तप को तो समझ सका, परंतु जब स्वयं शिव की बारात आई — गण, भूत, पिशाच, कंकालधारी रूपों के साथ — उनका मातृहृदय काँप उठा।
देवी मैना की व्यथा। वे पर्वतराज हिमालय की धर्मपत्नी और पार्वती की माता थीं। उनका मातृत्व, पार्वती के प्रेम और तप को तो समझ सका, परंतु जब स्वयं शिव की बारात आई — गण, भूत, पिशाच, कंकालधारी रूपों के साथ — उनका मातृहृदय काँप उठा।
जब शिव बारात लेकर हिमालय पहुँचे —
तब उनके वेश को देखकर देवी मैना के मन में पहली बार संकोच और चिंता उपजी।
परंतु जब बारात आई, और उसमें भूत, पिशाच, नाग, योगी, श्मशानवासी साथी,
और स्वयं शिव — त्रिनेत्र, जटाधारी, मुण्डमाल धारी, भस्मलेपित रूप में आगे बढ़े,
तब देवी मैना का हृदय क्रोध और भय से भर गया।
🔥 देवी मैना का क्रंदन – विवाह का विरोध
बारात को देखकर,
देवी मैना ने जो कहा,
वह इतिहास बन गया:
"मैं अपनी बच्ची को समुद्र में डुबा दूंगी,
या फांसी पर लटका दूंगी,
नहीं हुआ तो विष ही पिला दूंगी,
लेकिन उस भूतों के स्वामी को नहीं दूंगी!"
देवी मैना का आक्रोश, शिवपुराण
यह केवल शब्द नहीं —
एक माँ की टूटती अपेक्षा और मातृत्व का हाहाकार था।
क्या यह क्रोध था?
नहीं, यह क्रोध नहीं था — यह मातृत्व की अव्यक्त पीड़ा थी।
उन्होंने जो कहा, वह माँ का द्रवित, भयभीत हृदय था।
वह स्वरूप — वह औघड़ वेश — जिसमें कोई सामान्य जन शिव को स्वीकार नहीं कर सकता, वही माँ मैना को अस्वीकार्य लगा।
यहाँ शिव केवल वर नहीं थे — वे संन्यासी, काल, वैरागी, और सृष्टि की पराकाष्ठा के प्रतीक बनकर आए थे।
और माँ — वह स्नेह की मूर्ति — भला उस रूप को कैसे समझ पाती जिसमें "घोर तांडव" छिपा हो?
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🌺 शिव – रौद्र रूप में मौन
शिव ने कुछ नहीं कहा।
वो जानते थे कि माँ की ममता विरोध नहीं करती, रक्षा करती है।
उनकी मौन दृष्टि कह रही थी:
> "मुझे अस्वीकार कर सकती हो,
पर जो मुझे पहचान चुकी है —
वह अब मुझसे अलग नहीं होगी।"
🌸 पार्वती – आस्था की स्तंभ बनीं
देवी पार्वती जानती थीं — वे किससे प्रेम करती हैं।
जहाँ एक ओर माँ विफर रही थीं,
वहीं पार्वती शांत थीं।
उन्होंने न रोया, न विरोध किया।
बस शिव की ओर देखा —
और माता से कहा:
> "माँ, तुमने मुझे शिव के लिए जन्म दिया था।
अब यदि यह मेरा शिव है,
तो तुम उसे कैसे नकार सकती हो?"
वहीं देवी मैना को झटका लगा —
और उनकी कठोरता गलने लगी।
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🕉️ आंतरिक परिवर्तन – जब माँ झुकती है
धीरे-धीरे उन्होंने देखा कि वह योगी,
जिसे वह भूतों का स्वामी समझती थीं —
वही त्रिलोकनाथ, महाकाल, करुणामय शिव हैं।
वे बोलीं:
> "यदि मेरी बेटी को वही चाहिए,
जिसने तप से उसे पाया है,
तो मेरा विरोध किसलिए?"
📿 नीलकंठ संदेश:
> "माँ मैना का क्रोध भक्ति नहीं था, परन्तु ममता था।
शिव का मौन तर्क नहीं, परन्तु करुणा था।
और पार्वती की स्थिरता —
वह वह शक्ति थी, जो संसार को शिव से जोड़ती है।"
नीलकंठ संवाद से — (शिष्य), और शिवचेतना से प्रेरित संवादकारी
🌺 देवी मैना की पीड़ा: माँ और महादेव के विलक्षण संवाद
“नर रूपधारी ब्रह्म ही शिव हैं, फिर भी एक माँ का हृदय क्यों काँप उठा?”
पार्वती की निष्ठा और माँ का भ्रम
उनके लिए शिव का रूप मायिक नहीं, मूल्य था।
और माँ के लिए — केवल एक बेटी का भविष्य।
माँ को केवल वर्तमान और दृश्य सत्य दिखता है।
पुत्री को — आत्मा का मिलन और अर्द्धनारीश्वर का रहस्य।
अंततः — माँ का हृदय भी पिघलता है
शिव ने स्वयं ही अपनी लीला से माँ मैना को दर्शन दिए — ब्रह्मस्वरूप, सौम्य वेश में।
वे न केवल विश्वपति हैं, अपितु माँ के दामाद भी।
माँ ने क्षण भर को जो कहा, वह शिव के त्याग और स्वरूप के परीक्षण की लौकिक प्रक्रिया थी।
निष्कर्ष
देवी मैना के ये शब्द — "भिक्षुक" को बेटी न देना — हमें खटक सकते हैं, पर यह एक माँ की पीड़ा है, न कि शिव की निंदा।
शिव स्वयं करुणा के सागर हैं।
उन्होंने माँ मैना के भावों को समझा, न केवल सहन किया — बल्कि बिना किसी राग-द्वेष के स्वीकारा।
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📝 डिस्क्लेमर:
> यह लेख श्रद्धा एवं शास्त्रों में वर्णित प्रसंगों के भावात्मक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत है। इसका उद्देश्य किसी देवी, देवता या परंपरा का अपमान नहीं, अपितु भावनात्मक एवं दार्शनिक दृष्टि से उनके संवादों को समझना है।
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