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Shiv katha महाभारत में अर्जुन की शिव भक्ति

 अर्जुन द्वारा भगवान शिव की आराधना एवं पाशुपतास्त्र की प्राप्ति



दुर्योधन की कुटिल नीति


महाभारत के अज्ञातवास काल में, दुर्योधन ने एक षड्यंत्र रचा। उसने सोचा कि यदि वह महर्षि दुर्वासा को पांडवों के पास भोजन के लिए भेजे, तो पांडव भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाएंगे, और महर्षि दुर्वासा के श्राप से नष्ट हो जाएंगे। इस योजना के तहत, दुर्योधन ने ऋषि दुर्वासा की सेवा की और उन्हें प्रसन्न कर अपने पक्ष में कर लिया।


जब ऋषि दुर्वासा ने दुर्योधन को वर मांगने के लिए कहा, तो उसने अनुरोध किया कि वह पांडवों के आतिथ्य को स्वीकार करें। ऋषि दुर्वासा ने सहमति जताई और अपने आश्रम लौट गए।


ऋषि दुर्वासा का आगमन


एक दिन, जब द्रौपदी सभी को भोजन करवा चुकी थीं, युधिष्ठिर चिंतित मुद्रा में आए और बोले, "द्रौपदी, ऋषि दुर्वासा अपने 10,000 शिष्यों के साथ हमारे आश्रम में भोजन के लिए आ रहे हैं।" द्रौपदी यह सुनकर चिंता में पड़ गईं, क्योंकि उनके पास भोजन तैयार करने का कोई साधन नहीं था।


भगवान श्रीकृष्ण का प्रकट होना


चिंतित द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण किया। श्रीकृष्ण तुरंत प्रकट हुए और उनसे चिंता का कारण पूछा। जब द्रौपदी ने अपनी समस्या बताई, तो श्रीकृष्ण ने उनके अक्षय पात्र (बटलोई) को देखा और उसमें बचे एक साग के पत्ते को खा लिया।


श्रीकृष्ण के इस दिव्य कृत्य से ऋषि दुर्वासा और उनके सभी शिष्यों का पेट भर गया, और वे बिना कुछ कहे वापस चले गए। इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को ऋषि दुर्वासा के श्राप से बचाया।


अर्जुन की तपस्या का प्रारंभ


इसके पश्चात, भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताया कि अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या करनी होगी। वेदव्यास जी ने अर्जुन को शक्र विद्या प्रदान की, जिससे वे भगवान इंद्र को प्रसन्न कर सके। इंद्रदेव ने अर्जुन को भगवान शिव की उपासना की विधि बताई।


अर्जुन इन्द्रकील पर्वत पर गए और पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करने लगे। उनकी तपस्या इतनी शक्तिशाली थी कि देवता भी चिंतित हो उठे।


भगवान शिव का किरात वेश में प्रकट होना


अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव किरात (भील योद्धा) के रूप में प्रकट हुए। उसी समय, दुर्योधन द्वारा भेजा गया एक विशाल शूकर (वराह राक्षस) अर्जुन की तपस्या भंग करने आ गया।


भगवान शिव और अर्जुन दोनों ने एक साथ शूकर पर तीर चलाया। अर्जुन को लगा कि यह शूकर उनके तीर से मारा गया है, लेकिन भगवान शिव के गण ने तीर को अपना बताया। इसी बात पर अर्जुन और भगवान शिव (किरात रूप में) के बीच घमासान युद्ध हुआ।


अर्जुन युद्ध में भगवान शिव को पहचान नहीं पाए, लेकिन जब उन्होंने पराजय स्वीकार की, तब भगवान शिव ने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया।


पाशुपतास्त्र की प्राप्ति


अर्जुन भगवान शिव के चरणों में गिर पड़े और क्षमा याचना की। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान किया। साथ ही, उन्होंने अर्जुन को आशीर्वाद दिया कि श्रीकृष्ण सदैव उनकी सहायता करेंगे।


अर्जुन का पांडवों के पास लौटना


पाशुपतास्त्र प्राप्त कर अर्जुन जब अपने भाइयों के पास लौटे, तो सभी पांडव हर्षित हुए। उन्होंने श्रीकृष्ण की स्तुति की। श्रीकृष्ण ने उन्हें आश्वासन दिया कि यह दिव्य अस्त्र महाभारत युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाएगा।


 

    

भगवान शिवजी को श्रीविष्णु से अत्यंत प्रेम है। जब विष्णु जी ने कृष्ण अवतार लिया, तब भी भगवान शिव अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए पृथ्वीलोक पर आए।

एक तेजस्वी साधु का वेश धारण कर, वे माता यशोदा के द्वार पर पहुंचे और भिक्षा मांगने लगे। माता यशोदा ने जब यह देखा तो फल-फूल लेकर साधु की सेवा के लिए आगे बढ़ीं।

तभी साधु रूपी भगवान शिव बोले,
"मैया, मुझे भिक्षा में कुछ नहीं चाहिए। मैं तो बस तुम्हारे लाल (बालकृष्ण) के दर्शन करना चाहता हूँ। हीरे, मोती और जवाहरात का मुझे कोई मोह नहीं। यदि तुम चाहो, तो इससे अधिक मैं तुम्हें दे सकता हूँ।"

माता यशोदा आश्चर्यचकित हो गईं, क्योंकि साधु के चेहरे पर दिव्य तेज था। उन्होंने सोचा कि यह कोई महापुरुष हैं और उन्होंने भगवान कृष्ण के दर्शन करा दिए।

भगवान शिवजी ने बिना पलक झपकाए अपने आराध्य बालकृष्ण के दर्शन किए और फिर कैलाश लौट गए।

भगवान शिव का यही प्रेम उन्हें वृंदावन तक खींच लाया। इसलिए चार धाम मंदिर में स्थित भगवान शिव की विशाल प्रतिमा के दर्शन हर भक्त को अवश्य करने चाहिए।


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