नीलकंठ संवाद भाग 4"सावन में शिव ध्यान और बरसात की साधना – नीलकंठ संवाद"
यह विशेष लेख सावन 2025 के शुभारंभ पर 11 जुलाई को प्रकाशित किया गया है।
नीलकंठ संवाद – भाग 4: बरसात की साधना – शिव की वर्षा लीला
"जहाँ शब्द मौन हो जाए, वहीं से नीलकंठ संवाद प्रारंभ होता है।"
"जब आकाश रोता है, तब आत्मा हँसती है। बरसात, शिव का स्पर्श है — बाह्य नहीं, भीतरी स्नान।"
🔱 प्रस्तावना:
बरसात केवल ऋतु नहीं है — वह शिव की चेतना है।
जिस प्रकार शिव हिमालय की ऊँचाइयों पर शांत, निर्लिप्त भाव से वर्षा में ध्यानस्थ रहते हैं, उसी प्रकार हर साधक के लिए यह ऋतु भीतर की मलिनता को धोने का एक निमित्त है।
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🌿 शिव और वर्षा – एक पौराणिक अनुभूति
प्राचीन ग्रंथों में शिव को “मेघेश्वर” कहा गया है —
> “मेघानां अधिपतिः, वृष्टेर् निमित्तम् शिवः।”
(अर्थात् – शिव ही मेघों के अधिपति हैं, और वर्षा उन्हीं की इच्छा की अभिव्यक्ति है।)
जब दक्ष यज्ञ का विध्वंस हुआ,
जब सती ने अग्नि में प्रवेश किया —
तो आकाश भी फूट-फूट कर रोया, और वही पहली ‘शिववर्षा’ थी — जो आँसुओं की नहीं, सत्य की थी।
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🕉️ बरसात की साधना कैसे करें?
🌧️ 1. मौन वर्षा ध्यान
– बाहर बारिश हो रही हो, तो कमरे की खिड़की खोलें, या खुले में बैठें।
– केवल श्रवण करें — बूँदों की आवाज़ पर ध्यान केंद्रित करें।
– 5 मिनट तक यह मंत्र जपें:
> ॐ नीलकंठाय वर्षाय नमः।
🔥 2. भीगते हुए ‘अग्नि’ का ध्यान
विचार करें —
“जैसे वर्षा अग्नि को शांत करती है, वैसे ही शिव मेरी कामनाओं की अग्नि को शांत करें।”
यह भीतर के ताप को ठंडा करने की विधि है।
💧 3. जल बिंदु = करुणा बिंदु
हर बूँद को करुणा मानें — शिव की करुणा जो पाप नहीं, पीड़ा को धोने आई है।
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🌈 वर्षा में छिपा शिव का रहस्य:
शिव का रूप वर्षा में प्रतीक
गंगा गिरती बूँदें
डमरु मेघ की गर्जना
तीसरी आँख बिजली की चमक
शांति मेघों के बीच मौन
करुणा हर बूँद का स्पर्श
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📸 ध्यान की छवि:
शिव की यह ध्यानमग्न छवि वर्षा में — यही साधना का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि बाहर चाहे कितना ही तूफ़ान क्यों न हो, भीतर शिव शांति हैं।
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✍️ अंतिम वाक्य:
"जिन्हें बरसात पसंद है, वे केवल मौसमप्रेमी नहीं — वे शिव के कोमलतम रूप के साधक हैं।"
बरसात कोई ऋतु नहीं — यह शिव की कृपा की बूँदों का उत्सव है।
इस वर्षा में आप भीगिए — परंतु वस्त्र से नहीं, अंतःकरण से।
📜 डिस्क्लेमर (Disclaimer)
अस्वीकरण:
यह लेख "नीलकंठ संवाद" शृंखला के अंतर्गत एक आध्यात्मिक चिंतन है, जिसका उद्देश्य केवल पाठकों को शिव साधना, ध्यान एवं अनुभव के पथ पर प्रेरित करना है।
इसमें उल्लिखित ध्यान विधियाँ एवं भावनात्मक व्याख्याएँ पारंपरिक ग्रंथों, अनुभूत ध्यान और लेखक के निजी चिंतन पर आधारित हैं।
यह चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक या किसी प्रकार की पेशेवर सलाह का विकल्प नहीं है।
कृपया ध्यान अभ्यास अपने स्वास्थ्य, स्थिति और विवेक के अनुसार करें।
यह संवाद पूर्णत: भक्तिपूर्वक समर्पित है – भगवान शिव के चरणों में।
📜 Disclaimer
Disclaimer:
This article is a part of the "Neelkanth Samvaad" series, intended purely for spiritual reflection and devotional inspiration.
The meditative practices, symbolic interpretations, and experiential expressions shared here are based on traditional perspectives, inner contemplation, and personal understanding.
This content is not intended to substitute medical, psychological, or professional advice.
Readers are advised to engage in any form of spiritual practice at their own discretion, respecting their health, condition, and personal beliefs.
This offering is made in humble devotion at the feet of Lord
Shiva.
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