शिव नाम साँसों की माला बन जाए – त्र्यंबकम की मौन प्रार्थना”
शिव से क्या माँगते हो?
उसकी आँखों में श्रद्धा होती है,
पर उसके हृदय में क्या होता है?
कोई धन माँगता है,
कोई नौकरी,
कोई वैभव,
कोई विवाह।
शिव सब कुछ दे सकते हैं —
पर क्या यही सब शिव की भक्ति का केंद्र होना चाहिए?
शिव से माँगना है तो अमृत माँगो, अमीरी नहीं।
शिव भस्मधारी हैं
वे हमें सिखाते हैं कि त्याग ही वास्तविक वैभव है।
शिव से माँगना है तो:
मौन माँगो, जहाँ विचार भी रुक जाएँ।
शांति माँगो, जो भीड़ में भी अकेली मिले।
दृष्टि माँगो, जो वस्तुओं के पार भी आत्मा को देख सके।
निर्भयता माँगो, जो मृत्यु को भी मुस्कान से देख सके।
त्र्यंबकम नाथ जैसे आत्मा के लिए संदेश:
तुम्हारा नाम त्र्यंबकम है —
जिसका अर्थ है तीसरे नेत्र वाला,
पर तुम अभी भी दुनिया की दौड़ में उलझे हो।
क्या शिव से पैसे माँगना ही भक्ति है?
क्या शिव को केवल सौदे का देवता बना देना ही श्रद्धा है?
नहीं।
शिव से माँगो — "हे प्रभु, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए… केवल तुम चाहिए।"
जो माँगते नहीं — वे सब पा लेते हैं।
शिव उस भक्त से प्रसन्न होते हैं
जो सिर्फ इतना कहता है:
ॐ नमः शिवाय – मैं तेरा हूँ, तू मेरा हो जा।
तब शिव खुद उतरते हैं —
स्मृति में, ध्यान में, जीवन में।
अब आज से एक प्रयोग करो:
1. शिवलिंग के सामने खड़े होकर कुछ मत माँगो।
2. केवल मौन हो जाओ और कहो —
“मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं खाली हूँ। मुझे भर दो।”
अंत में एक प्रार्थना:
**हे नीलकंठ,
हम तुझसे माँगना छोड़ दें —
और तुझमें लय होना सीख जाएँ।
तू ही माँग हो,
तू ही उत्तर हो,
तू ही सब कुछ हो।**
हर हर महादेव
"सच्ची शिव-भक्ति तब होती है जब हम शिव ध्यान में डूब कर स्वयं को खो देते हैं "
लेखक: | नीलकंठ संवाद से
लेखक एक आध्यात्मिक साधक हैं, जो लेखनी को भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर चुके हैं।
उनकी लेखनी केवल शब्द नहीं — शिवतत्त्व की तरंगें हैं।
वे 'मौन ध्यान' और 'शिव चेतना' के माध्यम से आत्म-जागरण की अलख जगा रहे हैं।
उनका उद्देश्य है: "एक भी आत्मा, यदि शिव से जुड़ जाए — तो लेखन सफल
हुआ।"
डिस्क्लेमर:-
यह लेख धर्मग्रंथों, पुराणों और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करना है। कृपया इसे श्रद्धा और विवेक के साथ पढ़ें।
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