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Shiv puja भगवान शिव की पूजा और उनका ध्यान

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शिव  पुराण में भगवान  शिव  और पार्वती के संवाद में पूजा का क्रम,विस्तारपूर्वक  वर्णन किया हुआ है। 

कि भगवान शिव की पूजा एवं ध्यान कैसे करना चाहिए? । शिव और पार्वती का संवाद  पूर्ण आध्यात्मिकता से प्रेरित है ।और इस संवाद में जो शब्द आते हैं । उसमें  काफी गूढ़ रहस्य छिपे हुए हैं ,इसमें  साधक को अपने भाव के अनुसार समझ करके साधना करनी चाहिए।

लेकिन इसमें संक्षेप में आप लोग  जानेगे , कि पूजा या साधना किस तरह की जाती है। तो सर्वप्रथम  ब्रह्ममुहुर्त  में  स्नान करके भगवान शिव और गुरु का चिंतन करें।
अब यहां  शंका पैदा होती है,कि  गुरु कैसे बनाया जाय तो   गुरु उसे मानेंगे  जिसके पास ज्ञान ,हो जो वेदों के अच्छे ज्ञाता हो,

जिनका अपना उज्ज्वल चरित्र  हो वाचा, मनसा, कर्मणा  से उनका आचरण  पवित्र  हो ,और साथ ही साथ जो भगवान शिव जी के प्रति पूर्ण समर्पित हो।

   

कलयुगी  गुरु  का चिंन्तन  न करें , क्यो कि इनकी दृष्टि शिष्य के धन पर होती है। अपनी वाक्पटुता से ये शिष्य को भ्रमित कर


 ये उसका धन हरण  करते  हैं । कलयुगी   गुरु वाणी के बड़े मीठे होते हैं, एवं इनका ध्यान भौतिकता मे ज्यादा होता है। जिससे कि साधक को आध्यात्मिक  कल्याण की प्राप्ति नहीं होती है।

  भगवान शिव की पूजा एवं ध्यान करनें के लिए सर्व प्रथम मन को एकाग्र चित्त करके  पूर्व मे बैठ जाय ,या उत्तर में अपना मुंह करके बैठ जाइए ,और उसके बाद अपने शरीर के पंच तत्वों को शुद्ध करना चाहिए ,अंग न्यास  करके देवताओं का आवाहन करना चाहिए ।



और उसके बाद पंचाक्षर मंत्र का जप करना चाहिए भगवान शिव का विशेष प्रेम एवं कृपा दृष्टि  प्राप्त करने के लिए    भगवान शिव और पार्वती जी की दोनों की मूर्ति का ध्यान करिए,।

 भगवान शिव का ध्यान  प्राणायाम युक्त होता है, तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है,इसलिए  प्राणायाम करना  चाहिए। प्राणायाम योग्य गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिए अन्यथा हानि  होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है

भगवान शिव की साधना  में ध्यान मुख्य है, इसके बाद भक्ति की प्राप्ति होती है। शिव पुराण  मे लिखा है ,कि शिव आराधना में  ध्यान और ज्ञान यज्ञ मुख्य है। जिनको  ध्यान और ज्ञान की प्राप्ति हुई है । वह साधक भगवान शिव जी का परम  प्रिय  होता है ।


मुख्य बात यह  है कि ध्यान हदय की गहराइयों से होना चाहिए शिव पुराण के अनेक स्थलों में उल्लेख है कि भगवान शिव का चिन्तन  अनन्य भाव  से भीतर की ओर होना चाहिए  साधक को भगवान शिव का हृदय में ही ध्यान करना चाहिए।

जिन साधको से हो सके तो लिंग बनाकर  शिवा शक्ति, शिवसूक्त ,तथा त्रयंबक मंत्रों से विधिवत पूजन करके त्वरितरूद्र, शिवसंकल्पसूक्त, नीलरूद्र,उत्तम रूद्र, वामीय।  पवमान पंचब्रह्मा (सद्धोजातदि पाँच मंत्र) होतृसूक्त, लिंगसूक्त तथा  अथर्वशीर्ष इन मंत्रों का जप करके भगवान रूद्र को अष्टांगअर्ध्य  प्रदान करके  विधि पूर्वक अर्चन करके करके भगवान शिव की प्रार्थना करनी चाहिए। 


ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय ,हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव ।



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