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Shiv puja शिव गीता

 शिव गीता- भगवान शिव

भगवान शिव प्राचीन, अलौकिक  और कल्याणकारी हैं, मानव समाज में हमेशा धन संबंधी कार्य होते रहते हैं।
 मनुष्य को बहुत सी चीजों के लिए या अपना जीवन यापन करने के लिए या भोग विलास के लिए धन की आवश्यकता है।

यहां तक ​​तो ठीक है लेकिन नई-नई वस्तुओं का उपयोग करना हमारी  प्रतिष्ठा बन गई है ।परिणाम स्वरूप हमारी  आवश्यकता बहुत बढ़ गई है। और जो  इस दु:ख की मात्रा को लगातार बढ़ा रही है।
शिव का आदर्श
इसके विपरीत भगवान शिव का आदर्श है , कि अपनी आवश्यकताओं को कम से कम रखा जाय।

थोड़े से ही संतोष करना, ऐश्वर्य, वैभव का त्याग करना, लोक कल्याणकारी गंगा को अपनी मस्तक पर धारण करना, बताता है कि , यह आचरण  एवं त्याग वृति हम स्वयं अपनाकर दूसरो को भी प्रेरित कर सकते हैं।

ऐसी विशिष्ट  परिस्थितियों मे व्यक्ति कुछ भी नहीं करता है, इसलिए जब तक हमारी निर्णय  सीमाएँ सीमित नहीं होतीं, और जब तक हम अपने सबके लिए दिन रात मेहनत नहीं करेंगे।तब तक भगवान शिव के आदर्शों को नहीं समझ पायेगे। उनका दिन-रात तपस्या मे लीन रहना यही बतलाता है कि मनुष्य को परिस्थितियों के सामने झुकना नहीं चाहिए, कयोंकि भगवान शिव हिमपर्वत पर भी बैठ कर ध्यान लगाते है,क्यो कि उनका यही लक्ष्य है।

ठीक उसी तरह से मनुष्य को भी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होना चाहिए ।

भगवान शिव का ध्यान

धवलवपुषमिन्दोर्मण्डले          संनिविष्टं  ।
भुजगवलयहारं  भस्मदिग्धाङ्गमीशम्         ।।
हरिणपरशुपाणिं     चारूचन्द्रार्धमौलिं     ।
हृदयकमलमध्ये  संततं  चिन्तयामि      ।।

भगवान शिव जी का गौर शरीर है, बालचन्द्र उनके  मस्तक पर शोभायमान है। वह अपने हाथ मे सर्पों का कंगन पहने हुए हैं, एवं गले में सर्पों की माला है ।

पूरे शरीर पर उनके भस्म लेपित है ,उनके हाथों में मृगी- मुद्रा एवं  परसु है । और होठों पर मृदुल हास्य है, ऐसे भगवान शिव का मै हृदय से स्तवन, चिंतन, मनन करता हूं।

   महाकाल

भगवान शिव साक्षात कालों के भी काल है इसलिए तो महाकाल हैं। अपने भक्त की रक्षा के लिए क्रोध में आकर भगवान शिव ने काल के वक्षस्थल पर लात मारी थी ।और उससे काल बेहोश हो गया था।

 फिर  काल के द्वारा स्तुति करने पर भगवान शिव प्रसन्न हुए, एवं उन्होंने काल को अभय दिया, इसीलिए उनको महाकाल का आ जाता है । 

उनके पास एक परम शक्ति है, और वह है ,योग की शक्ति इसलिए उन्हें महायोगी कहा गया  है ।योग की पराकाष्ठा मे पहुंचकर साधक अनंत विभूतियों से सुसज्जित  होता है। योगी कभी भोगी नहीं होता है।

भगवान शिव के पास अनंत शक्ति है लेकिन अपना कोई घर नहीं है। दिगंबर है, भूतों के स्वामी शमशान के निवासी हैं,  और हमेशा ध्यान में रहें। ऐसे  योगी का भरण पोषण स्वयं महामाया जी करती है, और भगवान शिव तो महामाया के स्वामी हैं।



शिव जी की पूजा 

भगवान शिवजी की पूजा हर जगह की जाती है, बंगाल, गुजरात, नेपाल, सभी लोग विधि विधान से पूजन करते हैं। 

 आवश्यकता की निगरानी मे सारा जीवन खप जाता है क्योंकि आवश्यकताए असीमित है,  और संसाधन सीमित है।

ऐसे में यदि सुख चाहिए तो हमें भगवान शिव के त्याग स्वरूप का स्मरण करना चाहिए, उनकी योग मुद्रा धारण करना चाहिए
समाधिस्थित भगवान शिव साधकों  के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है।


 क्योंकि सभी ऐश्वर्य के साथ होने के बाद भी भगवान शिव ने अपने पास कुछ नहीं रखा, एक बार माता पार्वती जी के विशेष आग्रह पर उन्होंने सोने की लंका का निर्माण किया, लेकिन उसे भी उन्होंने रावण को दान में दे दिया। 

शिवचरित्र

इसलिए भगवान शिव के चरित्र से जनमानस को सीखने के लिए अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहिए।


 ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, ऊँओम नमः शिवाय नमः शिवाय, नमः शिवाय। हर -हर महादेव, हर -हर महादेव, हर -हर महादेव, हर - हर महादेव, हर - हर महादेव, हर - हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव

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