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Shiv pujaशिव की पूजा से सभी का कल्याण कैसे होता है

 

शिव पूजा से सभी का कल्याण किस प्रकार होता है ?

शिव पूजा से सभी का कल्याण किस प्रकार होता है? इसके लिए सर्वप्रथम भगवान शिव के स्वभाव को जानना होगा, भगवान शिव भोले कहलाते हैं, आशुतोष हैं निश्चल, निष्कपट  हैं, एवं महात्याग की प्रतिमूर्ति, महादेव , महायोगी हैंl

शिव अनादि, अनंत, अजर और अमर हैं। भगवान शिव के न आदि का पता चलता है, न ही अंत का पता चलता है। 

भगवान शिव की पूजा सदियों से चली आ रही है। आज भी सदियों पुरानी शिव पूजा की परंपरा चली आ रही है।

खुदाई से प्राप्त मूर्तियां उनके अति प्राचीन होने के प्रमाण देती हैं। उनसे पता चलता है कि भगवान शिव की पूजा बहुत पहले ही चली आ रही है।

शिव का स्वभाव

भगवान शिव आशुतोष है, थोड़ी सी पूजा में खुश हो जाते हैं। शास्त्रों में भगवान शिव की पूजा से कल्याण कैसे होता है? और कौन-कौन से मनुष्य भगवान शिव की पूजा करके किस-किस लोक को प्राप्त करते हैं?


ऐसा श्री लिंग पुराण में वर्णन मिलता है कि किस प्रकार के लोग और किस प्रकार के लोग प्राप्त करते हैं? बहुत ही मनोहारी वर्णन लिंग पुराण में किया गया है।


एक बार की बात है महर्षि और ऋषि-मुनियों ने सूतजी से प्रश्न किया कि हे सूत जी, यह संकेत हैं कि भगवान शिव की पूजा में हजारों साल लग जाते हैं, तो भी भगवान जल्दी प्रसन्न नहीं होते।

तब मंदबुद्धि वाले, अल्प आयु वाले ,अल्प पराक्रम ,वाले मनुष्य को देवाधिदेव महादेव की पूजा किस प्रकार करनी चाहिए?

तब वास्तव में बोले हे मुनियों, आप लोगों ने बहुत अच्छी बातें कही हैं। भक्तों द्वारा पूजित होकर उनके भगवान भाव के फल देने वाले कहते हैं

कलयुग में पूजा के लिए मनुष्य के भीतर अपार श्रंगार प्रकट हो सकता है, इससे भगवान शिव को वचन दिया जा सकता है।

लिंग पुराण के 79वें अध्याय में बताया गया है कि

अधम ब्राम्हण शिव की पूजा करके पिशाच लोक को जाता है,क्रोध में भरकर पूजन करने वाला मनुष्य राक्षसों के स्थान को प्राप्त करता है, अभ्यक्ष भोजन का मनुष्य भक्षणर, शिवजी की पूजा करके यक्षलोक को प्राप्त करता है।


और नृत्य गण करने वाला मनुष्य, शिव जी की पूजा करके गंधर्व लोग प्राप्त करता है।

उत्सव एवं उत्सव में आसक्त पुरुष शिव की पूजा करके बुधलोक  प्राप्त करता है। 


और मदोन्मत व्यक्ति शिव की पूजा करते हैं, सोमलोक को प्राप्त करता है। इसमें पुराण के 79वें अध्याय का वर्णन किया गया है।


रूद्र गायत्री मंत्र से शिव का पूजन करके वाला प्रजापति लोक को प्राप्त होता है, एवं पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवान शिव की पूजा करने वाला भगवान शिव के लोगों में जाता है।


लिंग पुराण में बताया गया कि, विशेष श्रद्धा रूप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।

ईश्वर की पूजा अनन्या भक्ति से करनी चाहिए: -

ईश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है यही, हमारे स्वामी है, यही ग्रहण करने योग्य है, परम गति, माता-पिता, भाई, बन्धु, परम हितकारी परम आत्मीय और सर्वस्व हैं।


उन्हें छोड़कर कोई हमारा नहीं है, इस प्रकार का संबंध केवल भगवान से होना चाहिए।


ईश्वर से शुद्ध प्रेम करके हमेशा भगवान का भजन ध्यान करते रहना चाहिए, यह अनन्य योग है।

हमें भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र का ध्यान रखना चाहिए भगवान शिव का ध्यान करते समय यह ध्यान रखना चाहिए हमारी सभी इंद्रियां एकाग्र केवल भगवान शिव के स्वरूप में लीन हो जाएं ।


या उनके निराकार लिंग रूप में ही समाहित हो सकते हैं। भगवान शिव जी के एक रूप में भगवान शिव के दोनों हाथों में अमृत का कलश है और दोनों हाथों से अमृत अपने सिर के ऊपर उड़ेल रहे हैं।

अर्थात कि भगवान शिव को अमृत की कोई कमी नहीं है, उसी अमृत के लिए देवता लाते रहे समुद्र मंथन करते रहे । केवल एक कलश के लिए देवता और दानव परस्पर समुद्र का मंथन करते हैं।

वहीं पर भगवान शिव दोनों हाथों से अपने ऊपर अमृत उडेल रहे हैं अद्भुत, कोई कमी नहीं है !

भगवान शिव का कल्याणकारी रूप

  

जबकि वह स्वयं को किसी को भी जलाने की क्षमता रखते हैं

 इसका उदाहरण शास्त्रों में मिलता है।

एक बार भगवान श्रीराम ने अपने अश्वमेध यज्ञ के लिए अश्व को छोड़ा, परन्तु उस अश्व को भगवान शिव जी के भक्त एक राजा ने पकड़ कर अपने यहां बांध लिया। बस फिर क्या था, युद्ध निश्चित हुआ और दोनों ओर की सेनाएं आ गईं,इधर अपने भक्त की रक्षा के लिए भगवान शिव ने अपनी सेना को भेज दिया।

वीरभद्र ने भगवान श्री राम की सेना पर बहुत भयंकर आक्रमण किया, जिससे कई लोग परस्त हो गए, यहां तक ​​कि हनुमानजी ने नंदी के द्वारा चलाए गए शिवास्त्र से व्यास्थऩ, भगवान श्रीराम को याद किया।


तब भगवान श्रीराम ठीक होकर लक्ष्मणेव शत्रुघ्न के साथ युद्ध स्थल पर चले गए।

इसी तरह भगवान श्रीराम ने  युद्ध में अपना महान पराक्रम दिखाया। जिससे कि भाजपा परास्त हुई नजर आई, तब स्वयं भगवान शिव अपने भक्त की रक्षा के लिए युद्ध स्थल पर आ गए। इसी तरह भगवान श्रीराम मे और भगवान शिव में भीषण युद्ध हुआ। भगवान श्री राम के आराध्य देव भगवान शिव हैं और शिव के आराध्य देव भगवान श्रीराम हैं।

फिर भी इनमे युद्ध हुआ भगवान शिव और श्री भगवान राम के बीच भीषण भीषण युद्ध हुआ, और काफी लंबे समय तक अंत तक चला जब किसी की पराजय नहीं हुई।

तब भगवान श्रीराम ने भगवान शिव से हाथ जोड़कर कहा हे प्रभु, अब मैं आपका ही दिया पशुपतास्त्र आप पर लगा रहा हूं। आपने मुझे समय पर कहा था, कि इससे कोई बचत नहीं हो सकती।


इसलिए प्रभु मुझे क्षमा करें, मैं यह शस्त्र आप पर चलता हूं, ऐसा कह कर उन्होंने उस शस्त्र को भगवान शिव पर चला दिया।


वह शस्त्र भगवान शिव जी के वक्षस्थल में गए धनस गए, तब भगवान शिव बोले हे राम, बना कर युद्ध में मुझे फैसला दिया है।

कोई वर मांगो, तब श्री रामचंद्र जी हाथ जोड़कर बोले हे प्रभु, आप मेरी सेना को फिर से जीवित कर दें। तब भगवान शिव ने तथास्तु कहा, एवं पूरी सेना जीवित हो गई।

इस तरह से शिव जी ने भगवान श्रीराम का कल्याण किया।

जब भगवान शिव भक्तों की रक्षा के लिए अपने आराध्य

लड़ाई कर सकते हैं, तो समझिए कि वीडियो कल्याणी हैं।






उपसंहार:- 

जो मनुष्य भगवान शिव के नाम के नाव पर रहते हैं, वे इस संसार के रूप में समुद्र से पार हो जाते हैं। उनका जन्म मरण रूपी संसार के सारे पाप निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं।

जिन्हें पाप बहुत अधिक व्यस्थित करता है ऐसे विज्ञापनों को तो भगवान भोलेनाथ के नाम का सहयोग लेना अनिवार्य है, उनका शिव नाम सबसे कल्याणकारी है क्योंकि बिना शिव नाम के कहीं भी शांति नहीं मिलने वाले।

भगवान शिव के महादेव, भव, दिव्य, शंकर, शंभु, उमाकान्त, हर, मृद, पिनाकधारी, , नीललोहित, ईशान, महेश्वे,र, भगवान, नीलकंठेश्वर, महेश, रूद्र, महारुद्र, कालरूद्र, महाकाल गंगेश्वर वामदेव, चंद्रशेखर, चंद्रमौली शशिशेख विरुपाक्ष पशुपतिनाथ त्रिलोचन नाम है हजारों नाम है जिस भी नाम का सहयोग लेकर के प्रभु का चुनाव करें सब कल्याणकारी है।


क्योंकि उनके सभी और रूप सभी जीवों के आवास में निवास करते हैं, सर्वनाश हैं। शिव  रसस्वरूप है, शिव से ही समस्त विश्व को आनन्द की प्राप्ति होती है।,

शिवमहिम्न :स्त्रोत में उल्लेख आता है कि

भगवान शिव जब अत्यधिक उल्लास में होते हैं जब हर्ष के चरमोत्कर्ष पर होते हैं तो वे नृत्य करते हैं।


धरती चरमरा जाती है, लेकिन बिना किसी बाधा के भगवान शिव नृत्य करते हैं, और ही रहते हैं। नृत्य में प्रभु मंग्न हो जाते हैं। कोई भी भगवान शिव की इच्छा में विघ्न नहीं डाल सकते।


वही कर्म करते हैं, उसका पालन करते हैं, और वही संहार भी करते हैं। कर्मफल देने के लिए विधान विधान से जीवों की रचना होती है। इस सृष्टि में नाना प्रकार की आशंका की उत्पत्ति एवं संहार होता है।

तब त्रिकाल में भगवान शिव के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं रहता।

ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय हर हर महादेव हर-हर महादेव हर-हर महादेव हर-हर महादेव।

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