भगवान शिव का पाशुपत व्रत
एक बार की बात है सारे देवता ब्रह्मा, अग्नि, इंद्र वायु, वरुण, सूर्य, चंद्र, कुबेर आदि मुख्य विश्व को लेकर भगवान विष्णु गरुड़ के स्कंध पर बैठ कर के भगवान शिव के मेरु पर्वत पर पहुंचे।
मेरु पर्वत की छवि अत्यंत निराली थी, मेरू पर्वत महान (पुण्यात्मा पर्वत) जिसका शिखर पर भगवान शिव का शिवपुर था।
मेरु पर्वत नाना प्रकार के वृक्षों से आच्छादित था।
अत्यंत अजीब हाथी, मृग, सिंह, भालू, बाघ, हिंसक एवं अन्य सामान्य जीव अभिलेख सावधानीपूर्वक विचरण कर रहे थे। एक कोने में कैलाश था। जहां पर भगवान शिव का शिवपुर था।
प्रथम में पुर प्रवेश
जब देवता वहां पहुंचे तो शिवपुर की भव्यता देखकर अवाक रह गए।
नाना प्रकार के स्वर्णमहल इस पर्वत पर आच्छादित थे इस पुर की अंदर की शोभा अवर्णनीय थी।
पुर का द्वार नाना प्रकार की बहुमूल्य माणिक्य एवं रत्न जड़ित खंभों से सुसज्जित था ।
दूसरे पुर में प्रवेश
इसे देखते हुए जब देवता दूसरे पुर में गए वहां पर उन्होंने अत्यंत सुंदर अप्सराएं एवं अत्यंत सुंदर कन्याओं को नृत्य करते हुए देखा। नील कमल के समान उनकी आंखें एवं पद्मराग के समान कांति, एवं नाना प्रकार कीमती रत्नों से अलंकृत, कमल के रूप जैसे परिधान पहनने वाले सभी कन्याएं नृत्य में मग्न थी।
जब वे वहां पहुंचे ,तो भगवान शिव के दूसरे पुर के अंदर की शोभा इंद्र के महल से भी कहीं अधिक थी । वहां पहुंच कर जब देवताओं ने सोने से , हीरे जवाहरात ,माणिक्य, पुखराज, नीलम बहुमूल्य रत्नों से सुसज्जित पुर को देखा तो दंग रह गए ।
पुखराज नीलम,माणिक्य, और अमूल्य रत्नों के द्वारा स्तंभ प्रकाशमान हो रहे थे। जब देवताओं ने अंदर प्रवेश किया ।
अन्दर ,उन्होंने देवकन्या ,अप्सराओं ,को नृत्य करते हुए देखा ,और भगवान विष्णु और अन्य देवगण वहां की शोभा देखकर के अत्यंत विस्मित हो गए ,इसके बाद वे लोग तीसरे पुर में प्रवेश कर गये ।
तीसरे पुर में प्रवेश:-
तीसरे पुर में उन्होंने अनगिनत नृत्यांगनाओं को नृत्य करते हुए देखा, अंततः वे लोग उसको पार करके कैलाश पर गए। सारे देवता भगवान शिव के तीसरे पुर में प्रवेश किए। वह पुर अत्यंत शोभायमान था।
पोर्टल पर ही महल के ऊपर हजारों की संख्या में रूद्र कन्याएं एवं गणेश्वर कन्याएं अपने हाथों में पुष्प की थालियां लेकर आती थीं।
वे भगवान शिव के ऊपर पुष्पों की वर्षा की एवं साथ ही साथ आए सभी विश्व के ऊपर पुष्पों की वर्षा की।
वहां पर उन्होंने गणाध्यक्ष शैलाद पुत्र नंदीश्वर को देखा।
देवताओं को देखकर नंदीश्वर कहते हैं, आप लोगों का स्वागत है, इतने सारे देवता एक साथ किस कार्य से पधारे हैं।
तब कमल नयन श्री विष्णु बोले कि हे, नंदेश्वर हम भगवान शिव के दर्शन करना चाहते हैं, यह सब सुनकर नंदेश्वर भगवान शिव के पास लेकर गए।
भगवान शिव का शरीर करोड़ों चंद्रमा के समान प्रकाशमान था, इस शोभा का कोई वर्णन नहीं किया जा सकता।
उनके चेहरे में जो तेज था, वो सारी दिशाओं को प्रकाशित कर रहा था, देवताओं को देखकर भगवान शिव मधुर एवं अमृतमय वाणी से बोले, आप लोगों का किस प्रकार आना हुआ, इस पर सारे देवता बोले, हे भगवान हमें पाशुपत व्रत का महत्व बताएं ।
देवताओं ने भगवान शिव को उनकी प्रशंसा के लिए स्त्रोत का गान किया ।नाना प्रकार की वेद की ॠचाए,एवं वेद मंत्रों से स्तुति की।
शिव जी की पूजा
एवं शैव मंत्रों से भगवान शिव को प्रसन्न किया।
तो सारे देवता बोले, हे प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं हम लोग यहां पर पास पाशुपत व्रत की शिक्षा के लिए आए हैं। कृपया हमें बताएं कि हम पशु भाव से मुक्त कैसे होंगे?
तब भगवान शिव के कहने लगे कि पाशुपत व्रत 12 वर्ष, 12 महीने, एवं 12 दिन का भी होता है।
अपनी - अपनी सुविधा के अनुसार साधक इस व्रत को करते हैं। कोई 12 श्रुतलेख करता है कोई 12 महीने का करता है और कोई 12 दिन का करता है।
यह कह कर कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ, सभी देवगण को पाशुपत व्रत की विधि बताएं।
इसके बाद सारे देवताओं ने ने उस विधि को जानने के बाद 12 वर्ष तक की तपस्या की, एवं उस तपस्या के बाद सभी देवतागण भगवान शिव की आज्ञा लेकर वापस अपने-अपने लोक चले गए।
पाशुपत व्रत होने के बाद जीव पशु भाव से मुक्त हो जाता है यही पाशुपत व्रत की विशेषता है।
लिंग पुराण में उल्लेख है कि जो भी मनुष्य इस कथा को पढ़ता है एवं औरों को सुनाता है, उसका भगवान शिव कल्याण कर देते हैं।
नीलकंठेश्वर भगवान शिव के संदर्भ को जानने के लिए पाशुपत दर्शन में जिन पदार्थों का वर्णन किया गया है।
पशुपात्र व्रत :-
संक्षेप में इस प्रकार हैं
1 कार्य 2 कारण 3 योग 4 विधि 5 दुखांत इन पांच पदार्थों का वर्णन ब्रह्म सूत्र के द्वितीय अध्याय के द्वितीय पाद के 37 सूत्र में भी भाष्यकार तथा शेयरधारक ने उल्लेख किया है।
इन संलग्न पांच पदार्थों का बोधकर जीव के पशु पाश का विमोचन होता है, अज्ञानी जीव जीव है कर्मादि बंधन पाश है।
यही बंधन जन्म मरण के लेख हैं, यह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए शिव दर्शन का कथन है।
रूद्र संदर्भ भगवान शिव को दूसरे के दुखों को देख कर के द्रवित हो जाते हैं वैसे उनके सभी स्वरूप उपास्य एवं पूजनीय है।
लेकिन एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच में यह विवाद हुआ कि उसी समय भगवान शिव एक प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए।
ऊँकार रूप मे दर्शन
ब्रह्मा विष्णु आश्चर्य से उस स्तंभ को देखते रह गए अंत में वे उसका पता लगाने की कोशिश की कोशिश की ब्रह्मा जी हंस पर बैठे के ऊपर कीओर गए, एवं विष्णु जी वराह रूप मे नीचे की ओर पता लगाने गए ।
परंतु उस स्तंभ का न आदि मिला ,न अंत मिला, उन्हें परेशान होता देख भगवान शिव साक्षात उनके समक्ष ऊँकार के रूप में प्रकट हुए।
उनके ओंकार स्वरूप को देख कर के विष्णु जी और ब्रह्मा जी बोले की है देव आप कौन हैं? भगवान शिव बोले कि मै आप दोनों को उत्पन्न करने वाला महेश्वर हूं ।
और भगवान शिव जी ने उन्हें अपना साजुष्य दिया ,एवं बोले कि यह जो प्रकाश स्तंभ ओंकार स्वरूप है , यही उपास्य है इसी की उपासना हृदय में करनी चाहिए । यह सभी मनोरथो को सिद्ध करने वाला है।
ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय हर-हर महादेव हर-हर महादेव हर-हर महादेव हर-हर महादेव हर-हर महादेव
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