शिव की आराधना कैसे की जानी चाहिए
शिव पूजा के नियम
भगवान शिवजी की पूजा करके उनसे मांगी गई सबसे बड़ी भूल है।
भगवान शिव उनकी आराधना से उपासक धन्य हो जाते हैं वे केवल फल हैं , बुद्धि और विवेक के उद्गम स्थान ही भगवान शिव हैं वैसे ही बुद्धि प्राप्त कर देव, ऋषि, मनुष्य, अपने कार्यों को करते रहें।
शिव के अलग-अलग रूपों में कुछ अपनी-अपनी विशेषताएं रहती हैं, शंकर जी की यही विशेषता है कि वह बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना परखने के लिए उस समय वे भोले बन जाते हैं।
भगवान शंकर को मानक भोलेनाथे लोग उन्हें गंजेड़ी भंगेड़ी नशेबाज समझ कर उनके उपहास करते हैं।
प्रेम से भक्त कुछ भी कह सकते हैं, और भगवान स्वीकार भी कर लेते हैं, परंतु जो वास्तव में पागल हैं उन्हें समझते हैं, वह सबसे बड़ा महामूर्ख है।
जैसे श्री कृष्ण की रासलीला को देखकर उनकी ऊपर की टिप्पणी महामूर्खता का परिचय देती है।
भगवान शिव की पूजा करने वालों के लिए, भगवान शिव के मार्गदर्शक परम गुरु अनिवार्य हैं इस कारण प्रत्येक जीव को कल्याण स्वरूप शिव की पूजा करनी चाहिए।
भस्म का महत्व:-
एक बार की बात है कि महर्षि दुर्वासा अपने पितर लोक में वहाँ पहुँचे उन्होंने अपने पितरो के दर्शन किए, उन्हें प्रणाम किया उसके बाद जैसे ही वह जाने लगे तब तक उन्हें कराहने, की रूदन, की आवाज आई, उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, तो यमदूतो से यह पूछने पर कि आप लोग यह बताएं कि यह आवाज कहां से आ रही है?
तब यमदूतो से बोला कि यह आवाज कुम्भीपाक नरक से आ रही है, इस बात को सुनकर ऋषि दुर्वासा द्रवित हो कर कुम्भीपाक नरक के कुंड पर पहुंचे, जैसे ही उन्होंने कुंड के भीतर झाँका तो उन्हें, साड़ी आवाज सुनी बंद हो गई।
सारे प्राणी हर्षित हो गए आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी, ऋषि दुर्वासा जी को बड़ा आश्चर्य हुआ अभी तो इतनी सारी आवाज यहां पर आ रही थी।
कराहने कि, रोने की, यह सब आवाज कैसे बंद हो गई? वह खुद समझ नहीं पा रहे थे, उन्होंने यमराज से पूछा, यमराज जी बोले, मैं सहज नहीं है ऐसा क्यों हुआ?
तब वे लोग ब्रह्म जी के पास गए उनसे पूछा तो ब्रह्माजी बोले मुझे भी संभव नहीं है। तो वह भगवान विष्णु के पास चले गए, भगवान विष्णु मुझसे भी आसानी से नहीं कहते।
सारे देवता एवं ब्रह्मा जी, विष्णु जी, मिलकर के भगवान शिव के पास गए भगवान शिव मुस्कुराए बोले बोले, देवगण कैसे आए? सबने अपनी बात बताई कि महर्षि दुर्वासा ने जब कुम्भीपाक नरक में देखा तो सारे लोग कैसे हर्षित हो गए? क्या कारण है ?
भगवान शिवजी मुस्कुराते हुए कहते हैं कि जैसे ही महर्षि दुर्वासा जी ने कुम्भीपाक कुंड मे झाँका तो उनके चेहरे से भस्म झर कर उस नरक में गिर गए।
और उस भस्म के प्रभाव से सारे प्राणियों की विपत्ति दूर हो गई तब जाकर के सारे संसार को समझ में आया कि यह सब भस्म का प्रभाव है।
इसलिए भगवान शिव जी की पूजा मैं भस्म जरूरी होता है और भगवान शिव स्वयं भस्म को बहुत पसंद करते हैं।
लिंग पुराण के 83वे अध्याय में बताया गया है
कि हर महीने में किए जाने वाले भगवान शिव के व्रत का फल मिलता है।
एक बार ॠषि महर्षियों ने सूत जी से पूछा हे सूत जी, हम लोगों को यह बताते हैं कि लिंग दान के व्रत को कैसे करें?
शिव जी की तृप्ति वाले व्रत एवं विधि:-
तब सूत जी बोले हे ,श्रेष्ठ मुनियों मैं आप लोगों को (ब्रह्मपुत्र सत्नकुमार से व्यास ने और व्यास से) सुनकर मैं आप लोगों को बता रहा हूं।
1 साल तक हर तरफ की अष्टमी और चतुर्दशी को केवल रात में आहार ग्रहण करता है जो मनुष्य शिवजी की पूजा करता है वह समस्त यज्ञों का फल प्राप्त करके परम गति को प्राप्त होता है।
क्षीरधारा व्रत:-
जो मनुष्य महीने की दोनों पंचमी प्रतिपदा को क्षीरधारा व्रत करता है, और केवल दूध पी कर रहता है वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है।
और कृष्ण पक्ष की अष्टमी से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तक केवल रात में भोजन करने वाला इस व्रत को करता है तो वह ब्रह्म लोग प्राप्त करता है
जो मनुष्य ब्रम्हचर्य में स्थित, क्रोध को वश में करके, भगवान शिव के ध्यान में मग्नना 1 वर्ष तक सभी पर्वों को करता है, और वर्ष के अंत में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को विधिपूर्वक भोजन वरीयता है। वह ब्रह्म लोक कहलाता है।
शिव पुराण में बताया गया है कि उपवास करने की पान दीक्षा श्रेष्ठ है, दीक्षा की तृप्ति बिना मांगे जो भोजन प्राप्त होता है वह श्रेष्ठ है।
और बिना मांगे भोजन की दीपांक व्रत श्रेष्ठ है इसलिए नक्त व्रत करना चाहिए। करना
स्नान करना सत्य का पालन करना चाहिए अग्निहोत्र करना चाहिए भूमि पर शयन करना चाहिए।
जो धर्म काम और मोक्ष के लिए और सभी पापों की शुद्धि के लिए होता है, जो मनुष्य सत्यवादी होता है। तथा जो इन्द्रियों को अपने वश में करके पुष्य, पौष, मास में शिव का विधिवत पूजन करके चावल गेहूं से बने हुए और गोबर के कोंडो पर भरे हुए भोजन को केवल रात में ग्रहण करता है।
दोनों ओर की अष्टमी तिथि में व्रत करता है मास की पूर्णिमा के दिन महादेव को स्नान कराकर विधिपूर्वक उनकी पूजा करके श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दुग्ध अभिषेक एवं भरे हुए चावल का भोजन करवाता है।
जो विशेष रूप से शांति मंत्रों का जप करता है। और भगवान शिवजी को कपिल वर्ण का गोत्र, वृषभ समर्पित करता है, वह उत्तम मनुष्य लोक अग्नि लोक में जाता है, और कई लोगों के सुख को भोग करके वहीं पर मुक्त हो जाता है ।
माघ मास में जो इंद्रियों को वश में किया जाता है, दोनों तरफ की चौथी में उपवास करता है पूर्णिमा के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को प्राथमिकता है।
यमलोक रीकर के साथ आनंद मनाता है,
फागुन मास आने पर जो दूध में उदास व्यंजन करता है, वह इंद्रियों को अपने वश में रखता है, अष्टमी और चतुर्दशी के उपवास करता है।
पूर्णिमा के दिन महादेव शंकर को स्नान करवा कर उनकी पूजा करके उन शूलपाणी शिव को
ताम्र वर्ण का गोमिथुन प्रदान करता है वह चंद्रमा का सायुज्य प्राप्त करता है।
रुद्र की पूजा
रूद्र की पूजा करके जो व्यक्ति रात में गौशाला में जमीन पर सोता है, शिवजी का स्मरण करता है, पूर्णमासी के दिन शिव जी को स्नान कराकर हाविष्य ग्रहण करता है। वह शिव साजुष्य प्राप्त करता है।
ओम नमः शिवाय, (ऊँ नमः शिवाय) ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, हर -हर महादेव, हर-हर महादेव, हर हर-महादेव, हर -हर महादेव
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