शिव की आराधना और पूजा – भस्म, व्रत, मंत्र साधना और आध्यात्मिक लाभ


शिव की आराधना कैसे की जानी चाहिए

शिव की आराधना कैसे की जानी चाहिए

शिव पूजा के नियम

सच्चा साधक अपनी कामना के साथ, शुद्ध हृदय और एकाग्र मन से भगवान शिव की आराधना करता है।

  • चांदनी रात में या गंगा तट पर बैठकर “शिव-शिव” का उच्चारण करना।
  • अपना सर्वस्व अर्पित कर, कर्मों के फल को ईश्वर के हाथ में छोड़ना।
  • गंगाजल से स्नान करके, पवित्र भाव से, विल्व पत्र, पुष्प और जल से पूजा करना।
  • भजन और ध्यान में लीन होकर, सांसारिक यश, धन और परिवार को पीछे रखकर भगवान शिव की आराधना करना।

जो साधक भगवान शिव की भक्ति करता है, वह संसार में धन्य है। शिव स्वयं अपने भक्तों को भोग-वैराग्य और मोक्ष का ज्ञान प्रदान करते हैं।

भगवान शिव के अलग-अलग रूपों में उनकी विशेषताएँ होती हैं। वह बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाओं को परखने के लिए भोले बन जाते हैं।

भक्त प्रेम से कुछ भी कह सकते हैं, और भगवान स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए भक्त के लिए परम गुरु का मार्गदर्शन भी अनिवार्य है।

भस्म का महत्व

एक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा ने अपने पितरों के दर्शन किए। जब वे कुम्भीपाक नरक की ओर गए, वहां यमदूतों से पूछने पर उन्हें भस्म का रहस्य पता चला।

भगवान शिव मुस्कुराते हुए बोले कि महर्षि दुर्वासा के दर्शन मात्र से उनके चेहरे से भस्म गिर गया और नरक में विपत्ति दूर हुई।

इसलिए भगवान शिव की पूजा में भस्म का प्रयोग आवश्यक है।

व्रत और विधियाँ

लिंग पुराण का संदेश

हर महीने किए जाने वाले शिव व्रत का फल मिलता है। सूत जी ने कहा कि अष्टमी और चतुर्दशी को केवल रात में आहार ग्रहण करने वाले, शिव की पूजा करने वाले व्यक्ति को समस्त यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

क्षीरधारा व्रत

महीने की दोनों पंचमी/प्रतिपदा को केवल दूध ग्रहण कर व्रत करने वाला अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। क्रोध वश में रखकर, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, भगवान शिव के ध्यान में लीन रहने वाले व्यक्ति को ब्रह्मलोक प्राप्त होता है।

अन्य व्रत नियम

  • स्नान करना, सत्य का पालन करना और अग्निहोत्र करना अनिवार्य।
  • भूमि पर शयन करना, इंद्रियों पर नियंत्रण रखना और विधिपूर्वक पूजा करना चाहिए।
  • विशेष मंत्रों का जप, गोत्र वृषभ समर्पण और पूर्णिमा/अष्टमी/चतुर्दशी व्रत करने से मनुष्य ब्रह्मलोक में जाता है।

रुद्र की पूजा

रुद्र की पूजा करके, रात में गौशाला में सोना और शिव का स्मरण करना लाभकारी है। पूर्णिमा के दिन शिव को स्नान कराकर हाविष्य ग्रहण करने से शिव साजुष्य प्राप्त होता है।

मंत्र उच्चारण:
ओम नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय, हर-हर महादेव।

डिस्क्लेमर

यह लेख धार्मिक ग्रंथों, पुराणों और पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित जानकारी प्रस्तुत करता है। इसमें दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान और जागरूकता प्रदान करना है। इसमें उल्लिखित व्रत, पूजा विधि या साधना का पालन करते समय व्यक्तिगत शारीरिक और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसी योग्य गुरु या पारंपरिक विद्वान से मार्गदर्शन लेना आवश्यक है। लेखक या वेबसाइट इस जानकारी के अनुपालन या किसी भी परिणाम के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

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