शिव महात्म्य: भगवान शिव के महत्व और वेदांत सिद्धांत का वर्णन

🕉️ शिव महात्म्य (महत्व) का वर्णन

एक बार शैलाद जी से सत्नकुमार बोले — “हे महामना! आप शिवजी के महत्व का वर्णन करें। आप प्राणियों के आदि नाथ हैं, महान गुणों वाले और सर्वज्ञ हैं।”

शैलाद जी का उत्तर

शैलाद बोले — हे मुने! कई श्रेष्ठ मुनियों ने अनेक प्रकार से अपने शब्दों में शिव महात्म्य का वर्णन किया है। अब आप एकाग्रचित होकर सुनिए। गौतम आदि ऋषियों ने कहा है कि शिव को सत् और असत् रूप में जाना जाता है। कुछ ने उन्हें सत्-असत् के पति भी कहा है।

इस संसार में जो कुछ भी सुंदर है, सत्य है — वह शिव रूप ही है। ऋषि गौतम ने तपस्या के दौरान भगवान शिव को अपने हृदय में देखा और अनुभव किया कि “शिव ही सुंदर हैं, शिव ही सत्य हैं।”


भाव और विकार

शास्त्रों में कहा गया है कि भाव स्वयं एक विकार है। मनुष्य की भावनाएँ ही उसे मोह, ममता और आसक्ति में बाँधती हैं। उदाहरणार्थ — धृतराष्ट्र ने पांडव और कौरव दोनों को समान माना, किन्तु ममता के कारण केवल दुर्योधन को प्राथमिकता दी। यही भाव का विकार था, जिससे अन्याय और महाभारत का कारण बना।

शिव भाव-विकार से परे, निर्विकार और निष्पक्ष हैं। उनका किसी के प्रति विशेष भाव नहीं होता। अतः कहा गया है कि सत्य और असत्य दोनों ही शिव के रूप हैं। शिव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।


शिव का तत्वज्ञान

  • कुछ मुनियों ने महेश्वर शिव को क्षर-अक्षर तथा उससे परे कहा है।
  • अव्यक्त और व्यक्त — दोनों ही शिव हैं।
  • शिव को परब्रह्म और शब्द ब्रह्म भी कहा गया है।
  • जगत के पालनकर्ता शिव विद्या और अविद्या दोनों के अधिपति हैं।
  • श्री, भ्रांति, विद्या और प्रकृति — सभी शिव के ही रूप हैं।

वेदांत का सिद्धांत

वेदान्त कहता है कि शब्द से ही तत्व का साक्षात्कार होता है। जैसे रस्सी को सांप समझ लेना एक भ्रम है, वैसे ही परमानंदमूर्ति शिव तत्व में भवसागर का भ्रम उत्पन्न होता है।

मंत्र और नामों के विशेष प्रयोग से अद्भुत शक्तियाँ प्रकट होती हैं। इसीलिए शिव तांडव स्तोत्र या मंत्रजप करने से साधक के भीतर रोमांच और शक्ति का अनुभव होता है।


शिव उपासना का महत्व

जो साधक भगवान शिव का ध्यान, जप और आराधना करता है, उसे सभी प्रकार के आहार, सुख और सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसीलिए कहा गया है — “शिव उपासना ही सर्वोत्तम धर्म, कर्म और साधन है।”


✨ निष्कर्ष

शिव ही सत्य हैं, शिव ही सुंदर हैं, और शिव ही परब्रह्म हैं। सभी को शिव नाम का स्मरण और जप करना चाहिए।


📌 डिस्क्लेमर

इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न ग्रंथों, प्रवचनों और स्रोतों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान साझा करना है। इसका उपयोग करने की जिम्मेदारी पाठक की स्वयं की होगी। इसका उपयोग करने की जिम्मेदारी पाठक की स्वयं की होगी।

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