चंच्चुला और पार्वती माता – शिवपुराण की भक्ति कथा | पति उद्धार की दिव्य कथा
शिवपुराण की कथा: चंच्चुला और पार्वती माता
स्रोत: शिव पुराण

चित्र: चंच्चुला माता पार्वती के समक्ष प्रार्थना करती हुईं
सूत जी बोले – शौनक, एक दिन चंच्चुला ने उमा देवी के पास जाकर प्रणाम किया। दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने माता की स्तुति की और कहा:
"हे स्कंदमाता, मनुष्यों ने सदा आपकी आराधना की है। सब सुखों को देने वाली शंभू प्रिये, आप ब्रह्म स्वरूपा हैं। विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा पूजित, आप ही सगुण और निर्गुण हैं। आप ही संसार की सृष्टि, पालन और संचालन करने वाली हैं, और तीनों लोकों में व्याप्त हैं।"
इस प्रकार की स्तुति करने के बाद चंच्चुला चुप हो गई।
पार्वती माता की करुणामयी प्रतिक्रिया
भक्तवत्सला पार्वती देवी ने प्रेम और करुणा से कहा:
"तुम मुझे बहुत प्रिय हो, बोलो क्या मांगती हो। तुम्हारे लिए मुझे सब कुछ देय है।"
चंच्चुला ने माता से विनम्रतापूर्वक पूछा:
"हे देवी, मेरे पति बिंदुग इस समय कहां हैं? उनकी कैसी गति हुई है? मैं अपने पतिदेव की सहायता करना चाहती हूँ। कृपया ऐसा उपाय बताएं कि मेरे पति उत्तम गति को प्राप्त करें।"
पार्वती जी ने उत्तर दिया कि यदि चंच्चुला उनके पुण्यमयी कथानक का पालन कराए, तो उसके पति उत्तम गति प्राप्त कर सकते हैं।
बिंदुग का वर्तमान स्वरूप
"तुम्हारा पति बिंदुग बड़ा पापी था। इस समय वह पिशाच योनि में है और विभिन्न प्रकार के दुःख उठा रहा है।"
सुनकर चंच्चुला बहुत दुखी हुई, लेकिन उन्होंने मन को स्थिर किया और बार-बार माता से प्रार्थना की:
"हे महेश्वरी महादेवी, कृपया मेरे दुष्कर्म करने वाले पति का उद्धार कर दें।"
पार्वती जी ने कृपा दिखाते हुए कहा:
"तुम्हारा कल्याण हो। तुम विन्ध्य पर्वत पर जाओ।"
चंच्चुला ने प्रार्थना की कि उनके पति को शिव पुराण सुनाने की व्यवस्था की जाए।
गंधर्व राज तुम्बुरू का आदेश
पार्वती माता ने गंधर्व राज तुम्बुरू को बुलाकर कहा:
"तुम्हारा मन भगवान शिव में लय रहता है। अतः शिव पुराण की पावन और पवित्र कथा का आयोजन करो और मेरी सखी के पति को पिशाच योनि से मुक्त कराओ।"
इस प्रकार, चंच्चुला के पति के उद्धार का उपाय सुनिश्चित हुआ और कथा हमें सिखाती है कि भक्ति, प्रार्थना और पुण्य कथाओं का पालन व्यक्ति के कल्याण और उद्धार का मार्ग है।
डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग पोस्ट शिव पुराण की कथा पर आधारित है। इसमें वर्णित सभी घटनाएँ धार्मिक ग्रंथों से ली गई हैं। यह सामग्री केवल धार्मिक और शैक्षिक उद्देश्य के लिए प्रस्तुत की गई है। व्यक्तिगत आस्था और अनुभव अलग हो सकते हैं।
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