भगवान शिव के लिंग और उनकी मूर्ति के पूजा का रहस्य तथा महत्व का वर्णन

सूत जी कहते हैं--- जो श्रवण कीर्तन और मनन के अनुष्ठान में समर्थ  ना हो वह भगवान शंकर के लिंग एवं मूर्ति की स्थापना कर  नित्य उसकी पूजा करें तो संसार सागर से पार हो सकता है ।


  ●भक्त अपनी शक्ति के अनुसार धनराशि ले जाए और  लिंग  अथवा शिव मूर्ति की सेवा के लिए अर्पित कर दें ।साथ ही निरंतर उस दिन जो मूर्ति की पूजा भी करें ,उसके लिए भक्ति भाव से मंडप  की स्थापना करें ,तथा उत्सव रचाए ।


 ●गंध, पुष्प, दीप तथा पुआ आदि  व्यंजनों से युक्त भांति-भांति के व्यंजन  को भोजन के रूप में समर्पित करें,व्यंजन तथा अन्य पदार्थों को   भगवान शिव की मूर्ति पर चढ़ा  कर नमस्कार करे।


 ●आह्वान से लेकर विसर्जन तक सारा कार्य प्रतिदिन भक्तिभाव से संपन्न करें। इस प्रकार शिवलिंग अथवा शिव मूर्ति मे भगवान शंकर की पूजा करने वाला पुरुष संसाधनों का अनुष्ठान ना करें तो भी भगवान शिव की कृपा  प्राप्त करता  है।


 ●पहले  से ही बहुत से पुरुष, लिंग एवं  शिव मूर्ति ,की पूजा करने से मुक्त हो चुके हैं ।देवताओं की मूर्ति   पूजा होती है, परन्तु  भगवान शिव की पूजा सब जगह मूर्तियों मे एवं लिंग मे की जाती है । भगवान शिव की पूजा मूर्ति और लिंग दोनों मे क्यो  होती है? इसका उत्तर तो भगवान शिव के अलावा कोई नहीं दे पाएगा।


 ●यह तो अद्भुत है ,इस विषय में महादेव जी ही बता  सकते हैं दूसरा कोई और कहीं भी नहीं बता  सकता, इस प्रश्न के समाधान के लिए भगवान शिव ने जो कुछ कहा है, एवं मैंने  अपने  गुरु जी के मुख से जिस प्रकार सुना है उसी तरह से बता रहा हूं ।


 ●भगवान शिव ही निराकार कहे गए हैं रूपवान होने के कारण उन्हें शक्ल भी कहा गया है, इसलिए शक्ल और अकल दोनों ही शिव के कलाकार होने के कारण ही उनका पूजा का आधार  लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है।


 ●अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है इसका कारण उनकी पूजा का आधार होता है उनका प्रतीक होता है

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