जो आदि और अंत मे तथा मध्य में भी नित्य मंगलमय है, किसी से भी इनकी तुलना नहीं की जा सकती है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले परमात्मा है। जिनके पांच मुख हैं। और जो खेल ही खेल में इस जगत की रचना, पालन और संहार करते है।
जो नित्य नवीन कर्म करते रहते हैं, जो आदि और अंत में तथा मध्य में भी मंगलमय हैं, उनकी तुलना कहीं भी नहीं है।
उन श्रेष्ठ अजर अमर ईश्वर अंबिका पति भगवान शंकर का मैं मन ही मन ध्यान करता हूं ।
व्यास जी कहते हैं कि जो धर्म का महान क्षेत्र है, जहां गंगा, जमुना का संगम हुआ, उस परम पूज्य प्रयाग में जो लोग ज्ञान मार्ग पर है। सर्वत्र वंदनीय है। उन्ही महात्मा मुनियों ने उसी परम पुण्यमय प्रयाग में विशाल ज्ञान योग का आयोजन किया।
व्यास जी के शिष्य पौराणिक मुनि महामुनि सूत जी वहां मुनियों के दर्शन करने के लिए आए, सूतजी को देखकर समस्त मुनिगण उस समय हर्ष से खिल उठे, और उनका स्वागत किया।
उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि आपका भाग्य भारी है आपने व्यास जी के मुख से अपनी प्रशंसा के लिए ही संपूर्ण पुराण विद्या प्राप्त की है। इसलिए आप अचंभित संदर्भ के पुराण कथा के भण्डार हैं।
ठीक उसी तरह जैसे कि रत्नाकर समुद्र कीमती रत्नों का आधार है। तीनों लोगों में भूत वर्तमान और भविष्य और जो कोई तथ्य है वह आप से अज्ञात नहीं है। आप हमारी शुभ कामनाओं से इस यज्ञ के दर्शन करने के लिए यहां पधार गए हैं।
और इसी प्रकार से हमारा कल्याण करने वाले हैं, क्योंकि आपका आगमन निष्फल नहीं हो सकता है,
तब उत्तम बुद्धि वाले सूत जी कहते हैं, हे मुनिगणो आप लोगों के प्रेम और स्नेह के कारण मैं इस विषय का वर्णन करूंगा, इसलिए आदर सहित इस पुराण को सुने, सबसे उत्तम जो शिवपुराण है वह संपूर्ण वेदांत का सार है।
। एकादश रुद्र संहिता में 9000 सहस्त्र कोटि संहिता में 11000 वायवीय संहिता में 4000 और धर्म संहिता में 12000 इस प्रकार मूल शिवपुराण की श्लोक संख्या एक लाख है।
धर्मज्ञ व्यास जी ने उन्हें 24000 श्लोक के रूप में संक्षिप्त किया। पुराणों की संख्या के विचार से इस शिव पुराण का स्थान चौथा है।
पूर्वकाल में भगवान शिव ने श्लोक संख्या की दृष्टि से 100 करोड़ श्लोक का एक ही पुराण बनाया था सृष्टि के आदि में निर्मित यह पुराण साहित्य अत्यंत विस्तृत था।
फिर द्वापर आदि युग में महर्षियो ने जब पुराण को 18 भागों में विभाजित कर दिया, उस समय संपूर्ण पुराणों का संक्षिप्त संदर्भ केवल 400000 श्लोकों का था।
उस समय उन्होंने शिव पुराण के 24000 श्लोकों में व्याख्या की ।
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