भगवान शिव के अवतारों की कथा | नट और अवधूत रूप का रहस्य



भगवान शिव के अवतारों का उद्देश्य

🙏 भगवान शिव के अवतारों का उद्देश्य 🙏

भगवान शिव के अनेकों अवतार हुए हैं और सारे अवतार में एक उद्देश्य छिपा हुआ है, एक संदेश है, लोक मंगल की कामना है, विश्व के कल्याण की भावना है। शिव के प्रमुख रूप में महाशिव आते हैं जिन्हें प्रकृति पुरुष कहा जाता है। और पराशक्ति माता जोकि संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना करने वाली हैं, वह और महाशिव मिलकर ही संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना करते हैं और उसकी देखभाल करते हैं।

भगवान शिव का नट के रूप में अवतार

समय-समय पर भगवान शिव अपने अंश अवतार से लोक कल्याण की भावना के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं और उन्होंने लोक कल्याण के निमित्त लीला की है। जैसे कि भगवान शिव का नट अवतार, नट अवतार लेकर के प्रभु ने एक आदर्श स्थापित किया कि किस प्रकार मनुष्य अपने सद्गुणों से व्यक्ति का मन मोह करके अपने शुद्ध आचरण से अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकता है।

एक बार की बात है, दक्ष प्रजापति ने जब भगवान शिव के नट के रूप में कलाओं का प्रदर्शन देखा तो वह मंत्रमुग्ध हो गए और कहा कि मैं आपकी इन कलाओं को देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं, और आप अपनी इच्छा अनुसार वर मांग लें। तब नट ने मां पार्वती की ओर संकेत किया कि मैं इनको ही अपनी अर्धांगिनी बनाना चाहता हूं। इस पर दक्ष प्रजापति बोले — लेकिन एक नट को मैं अपनी बच्ची कैसे दे सकता हूं?

यह सुनकर प्रभु मुस्कुराए और उन्होंने ऐसे-ऐसे ज्ञान की बातें बताईं जिसे सुनकर दक्ष प्रजापति आश्चर्य में पड़ गए और सोचने लगे कि यह कोई साधारण नट नहीं है। इतने ज्ञान का भंडार इनके अंदर है, हो न हो यह जरूर कोई प्रमुख देवता है। इस प्रकार दक्ष प्रजापति ने नट के रूप में भगवान शिव से प्रार्थना की कि हे प्रभु, आप अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों। भगवान शिव ने अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया, जिसे देखकर दक्ष प्रजापति बोले — हे प्रभु, मैं आपके दर्शन करके धन्य हुआ। फिर उन्होंने पार्वती के विवाह की स्वीकृति दे दी और विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ।

भगवान शिव का अवधूत के रूप में अवतार

भगवान विष्णु का माता लक्ष्मी के साथ विवाह होना जब सुनिश्चित हुआ तो सबसे ज्यादा खुशी गणेश जी को हुई। श्री गणेश जी ने सोचा कि मैं सर्वप्रथम विवाह में जाऊंगा और भगवान विष्णु को स्वयं अपने हाथों से विवाह की पोशाक प्रदान करूंगा। वह मूषक पर सवार होकर विवाह स्थल की ओर चल पड़े।

परंतु मूषक धीमी गति से चलता था, जिससे उनके पीछे आने वाले देवता आगे निकल जाते। उन्होंने इंद्र से साथ ले जाने को कहा पर इंद्र ने अहंकारवश मना कर दिया। यह अपमान भगवान शिव से नहीं देखा गया, उन्होंने अवधूत रूप धारण कर इंद्र के रास्ते में लेट गए।

इंद्र ने चेतावनी दी पर अवधूत ने ध्यान नहीं दिया। क्रोधित होकर इंद्र ने वज्र प्रहार किया, जो असर नहीं कर पाया। इंद्र समझ गए कि यह साक्षात भगवान शिव हैं और माफी मांगी। जब भगवान गणेश जी के निवेदन पर भगवान शिव ने देखा कि इंद्र का अहंकार समाप्त हो गया है, तब उन्होंने इंद्र को क्षमा कर दिया।

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख/ब्लॉग में प्रस्तुत जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, शास्त्रों, प्रवचनों और लोककथाओं से संकलित एवं अध्ययन आधारित है। इसे केवल सूचनात्मक एवं आध्यात्मिक उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। हम किसी भी तथ्य की पूर्ण प्रमाणिकता का दावा नहीं करते। पाठकों से निवेदन है कि इसे श्रद्धा और ज्ञानवर्धन की दृष्टि से पढ़ें। किसी भी प्रकार के निर्णय, मान्यता या विश्वास का दायित्व पाठक का स्वयं का होगा।
संदर्भ: सामान्य रूप से उपलब्ध शास्त्रीय परंपराएँ/कथाएँ (Public Domain)। शाब्दिक कॉपी-पेस्ट से बचते हुए सामग्री स्व-रचित/पुनर्लेखित है।

📚 स्रोत (References)

  • शिव पुराण
  • विभिन्न धर्मग्रंथ एवं पौराणिक कथाएँ
  • आध्यात्मिक प्रवचन एवं परंपरागत लोककथाएँ

इस ब्लॉग का उद्देश्य केवल धार्मिक व आध्यात्मिक जानकारी पहुँचाना है 🙏 #भगवानशिव #महादेव #शिवअवतार #हरहरमहादेव #शिवकथा #सनातनधर्म

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