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Shiv Katha वीरभद्र जी का अपनी विशाल सेना के साथ यज्ञ मंडप में जाना और देवताओं से युद्ध करना

वीरभद्र जी का विशाल सेना के साथ दक्ष के यज्ञ मंडप में प्रस्थान/

जब दक्ष प्रजापति ने सुना कि वीरभद्र अपनी विशाल सेना के साथ यज्ञ का विध्वंस करने आ रहे हैं, तो उनके हाथ पांव फूल गए ,मुख में जुबान अटक गई, सांस फूलने लगी, बड़ी मुश्किल से लड़खड़ाते कदमों से भगवान विष्णु के चरणों में अपनी पत्नी सहित दंडवत लेट गए, और कहने लगे कि प्रभु आप यज्ञ स्वरूप हैं ,आप ही यज्ञ की रक्षा करने वाले हैं, मैं तो आपका शरणार्थी हूं, एवं  शरणागत की रक्षा करना आपका कर्तव्य है ,अतः आप मेरी रक्षा कीजिए।


विष्णु उवाच:-

दक्ष प्रजापति के वचन को सुनकर भगवान विष्णु बोले ,हे दक्ष प्रजापति , तुमने भगवान शिव का अपमान किया तुमने शिव तत्व को नहीं समझा, यहां किसकी हिम्मत है ?जो कि भगवान शिव के विरुद्ध खड़ा हो जाए ,

मैं तो केवल दधिचि के  श्राप की वजह से यहां पर हूं , फिर भी मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकता, हम लोग ईश्वर होते हुए भी तुम्हारा साथ नहीं दे सकते


इस पर दक्ष प्रजापति बहुत गिड़गिड़ाते हुए बोले प्रभु केवल आपका ही आसरा है, तो भगवान विष्णु बोले कि चाहे कुछ भी हो जाए , भगवान शिव से हम लोग नहीं जीत पाएंगे क्योंकि मैंने तुम्हें वचन दिया था, तो उसे वचन को निभाने के लिए ही मैं यहां पर हूं ,वस्तुत मेरा भगवान शिव से युद्ध करने का कोई इरादा नहीं है।


और वीरभद्र तो साक्षात भगवान शिव की क्रोधाग्नि है उनका सामना करना असंभव है ।


अभी यह सब बातें चली रही थी ,तब तक वीरभद्र यज्ञ मंडप में आ गए, उन्होंने अपने विशाल शरीर से ही बहुत सारे देवताओं को काट दिया, जो ऋषि ,महर्षि दक्ष प्रजापति की सहायता कर रहे थे उनको भी उन्होंने उखाड़ फेंका, चारों ओर हाहाकार मच गया ।

यह सब देखकर के लोकपाल  देवराज इंद्र गुरु बृहस्पति के पास गए और  बोले ,गुरुदेव क्या इस विशाल सेना को जितना संभव नहीं है ?

बृहस्पति उवाच:-

बृहस्पति बोले की देवराज इंद्र क्या तुम  शिव तत्व को नही जानते हो? जो ऐसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछ रहे हो? भगवान शिव ईश्वर के भी ईश्वर है।


देवों के देव महादेव उन परमेश्वर की शक्ति की आगे यहां कौन  टिक पाएगा ?सारे लोग मारे जाएंगे। भलाई इसी में है कि सभी लोग यहां से चल जाए।


क्योंकि अब यहां महाविनाश उत्पन्न होने वाला है। अभी गुरु बृहस्पति इंद्र को समझा ही रहे थे कि वीरभद्र 
 इंद्र के सामने पहुंच गए, वहां उन्होंने बहुत जोर से इंद्र को डांटा और कहां तुमको शर्म नहीं आती कि तुम अधर्मी का साथ दे रहे हो। उनकी डाट सुनकर इंद्र भय से काॉऺपने लगे।

वीरभद्र के विशाल रूप को देखकर के सारे लोकपाल भय के मारे भाग खड़े हुए। लोकपालों को भागता देखकर के अन्य देवता भी भागने  लगे ।

वीरभद्र ने तब,  जो देवता युद्ध के लिए तैयार हुए उनका संहार करना चालू कर दिया,  पूषा के दांत तोड़ दिए ,एवं जो भी ऋषि महर्षि देवता दक्ष प्रजापति का साथ दे रहे थे ,सबको वीरभद्र ने मार भगाया ।

इस समय उनके समक्ष भगवान विष्णु आ गए तब वीरभद्र ने भगवान विष्णु से कहा कि आपको इस पापी का साथ देने की क्या जरूरत थी? और यदि आप इसका साथ देंगे तो आप मुझसे युद्ध कीजिए।

 विष्णु जी बोले कि हम भक्त के आगे मजबूर हो जाते हैं, जिस प्रकार भक्त हमारी भक्ति करते हैं, उसी प्रकार हम उन्हें वरदान देने के लिए मजबूर हो जाते हैं।


ब्रह्मा जी बोले हे नारद , भगवान विष्णु की बात सुनकर  वीरभद्र की मुस्कुराए और बोले कि आप तो स्वयं जगत के पालनहार हैं, और आप शिव के भक्त भी हैं ,तब भला आप इस पापी का साथ क्यों दे रहे है ?


तब भगवान विष्णु बोल वीरभद्र हम त्रिदेव भक्तों के लिए विवश हो जाते हैं ,दक्ष प्रजापति मेरा भक्त है इसलिए मैं न चाहते हुए भी मुझे इसके यज्ञ में आना पड़ा ।



और मुझे तुमसे भी युद्ध करना पड़ेगा, अच्छा तुम अपने कर्तव्य का पालन करो मैं अपने कर्तव्य का पालन करूंगा। इस प्रकार  से, वीरभद्र  जी और भगवान विष्णु में घमासान युद्ध हुआ ।


अंत में वीरभद्र के तेज के आगे भगवान विष्णु फीके पड़ गए, तो वह तुरंत अंतर्ध्यान हो गए ।


ब्रह्मा जी कहते  हैं ,हे नारद विष्णु जी के अंतर्ध्यान होने के बाद मैं भी अपने पुत्र को उसी अवस्था में छोड़कर के ब्रह्म लोक में चला आया।



विष्णु और मेरे आने के बाद फिर वीरभद्र ने सभी का नाश कर,  दक्ष प्रजापति के शीश को अस्त्रों से काटने लगे ,परंतु दक्ष प्रजापति का शीश शस्त्रों से नहीं कट रहा था। वह अमोघ हो गया था।


तब वीरभद्र जी ने दक्ष प्रजापति को पटक कर उनके सीने पर लात रख करके और दोनों हाथों से उनके शीश को मरोड़ दिया, जब उनका सर मोड़ा  तो वह टूट गया ।

जिसे वीरभद्र जी ने तुरंत यज्ञ कुंड में डाल दिया ,और दक्ष  प्रजापति की मृत्यु हो गई, और यह सब करके वीरभद्र वापस कैलाश की ओर चले आए।


और आकर  कैलाशपति भगवान शिव को सरा वृत्तांत बताया, यह सुनकर भगवान शिव बड़े खुश हुए, और उन्होंने वीरभद्र को समस्त गणों  का अध्यक्ष बना दिया।

डिस्क्लेमर:-

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